सरकारी नीतियों के संदर्भ में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
जर्मनी की जिम्मेदारी: दो विश्व युद्धों का कारण बनने में जर्मनी को दो विश्व युद्धों के कारणों में जिम्मेदार ठहराने का प्रश्न जटिल और बहु-आयामी है। **1. पहला विश्व युद्ध (1914-1918) पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की भूमिका महत्वपूर्ण लेकिन एकमात्र नहीं थी। जर्मनी ने ऑस्ट्रिया-हंगरी को गारंटी दी, जो आर्कडRead more
जर्मनी की जिम्मेदारी: दो विश्व युद्धों का कारण बनने में
जर्मनी को दो विश्व युद्धों के कारणों में जिम्मेदार ठहराने का प्रश्न जटिल और बहु-आयामी है।
**1. पहला विश्व युद्ध (1914-1918)
पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की भूमिका महत्वपूर्ण लेकिन एकमात्र नहीं थी। जर्मनी ने ऑस्ट्रिया-हंगरी को गारंटी दी, जो आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या के बाद युद्ध की ओर ले गई। जर्मनी का श्लीफेन योजना, जो फ्रांस पर त्वरित आक्रमण का प्रस्ताव था, युद्ध को बढ़ाने में एक प्रमुख कारण था। हालांकि, यह युद्ध कई देशों की गठबंधनों और जटिल कूटनीतिक संघर्षों का परिणाम था।
**2. दूसरा विश्व युद्ध (1939-1945)
दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी की भूमिका अधिक प्रत्यक्ष थी। एडॉल्फ हिटलर की नेतृत्व में, जर्मनी ने आक्रामक विस्तारवादी नीतियों को अपनाया, जिसमें पोलैंड पर आक्रमण प्रमुख था, जिसने युद्ध को शुरू किया। हिटलर की नाज़ी विचारधारा और अधिकारी शासन ने युद्ध के दौरान व्यापक उत्पीड़न और नरसंहार को जन्म दिया।
**3. वर्तमान संदर्भ और विश्लेषण
हाल के विश्लेषण और ऐतिहासिक पुनरावलोकन से पता चलता है कि जबकि जर्मनी की भूमिका महत्वपूर्ण थी, युद्धों के कारण बहुपरकारी थे। वर्साय संधि की कठोर शर्तें और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की विफलता ने जर्मनी में चरमपंथ और सैन्यवाद को बढ़ावा दिया।
अतः, जर्मनी को दोनों विश्व युद्धों के कारणों में प्रमुख माना जा सकता है, लेकिन इन युद्धों की जटिलता और अन्य वैश्विक शक्तियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।
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भारतीय शासकीय तंत्र में गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका भारतीय शासकीय तंत्र में गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका का सीमित होना एक महत्वपूर्ण विषय है, हालांकि यह कहना पूरी तरह सत्य नहीं है। सामाजिक संगठनों का प्रभाव: गैर-राजकीय क्रियाकलापों में कई गैर सरकारी संगठन (NGOs) शामिल हैं जो सामाजिक कल्याण, मानवाधिRead more
भारतीय शासकीय तंत्र में गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका
भारतीय शासकीय तंत्र में गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका का सीमित होना एक महत्वपूर्ण विषय है, हालांकि यह कहना पूरी तरह सत्य नहीं है।
सामाजिक संगठनों का प्रभाव:
गैर-राजकीय क्रियाकलापों में कई गैर सरकारी संगठन (NGOs) शामिल हैं जो सामाजिक कल्याण, मानवाधिकार, और पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय हैं। उदाहरण के लिए, “गिव इंडिया” जैसे संगठन ने नागरिकों को चैरिटी पर आधारित गतिविधियों में शामिल करके सरकारी प्रयासों को सहयोग प्रदान किया है।
नागरिक समाज और लब्बोलुआब:
नागरिक समाज के अभ्युदय से सरकारी निकायों को अधिक जवाबदेही का सामना करना पड़ता है। “नोटबंदी” या “कृषि कानूनों” पर विभिन्न संगठनों ने जनहित के मुद्दों को उठाया और सरकार को विवश किया कि वह जनसंवेदना को ध्यान में रखे।
राजनीतिक दबाव:
राजनीतिक पार्टियों के साथ मिलकर, गैर-राजकीय कर्ता, जैसे युवाओं का आंदोलन, आए दिन सरकार की नीतियों पर दबाव डालते हैं, जैसे CAA-NRC प्रदर्शन ने नीति निर्धारण में सामुदायिक भागीदारी को प्रतिपादित किया।
निष्कर्ष:
See lessहालांकि, सरकारी नीतियों में गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका सीमित मानी जा सकती है, परंतु इनकी उपस्थिति और प्रभाव अक्सर महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने में सहायक होती है। अतः, यह स्पष्ट है कि भारतीय शासकीय तंत्र में गैर-राजकीय कर्ताओं की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता।