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पीढ़ियों के बीच संबंधों में समरसता सुनिश्चित करने के लिए आप गाँव के वयोवृद्धों की पितृतंत्रात्मक अभिवृत्ति का किस प्रकार प्रबंधन का और ढालने का कार्य करेंगे? (250 words) [UPSC 2015]
परिचय: गाँवों में पितृतंत्रात्मक अभिवृत्ति वयोवृद्धों में गहराई से समाई होती है, जो पीढ़ियों के बीच संबंधों में चुनौती उत्पन्न कर सकती है। इन अभिवृत्तियों का प्रबंधन और उन्हें ढालने के लिए सम्मानजनक संवाद, समुदाय-उन्मुख दृष्टिकोण, और परिवर्तन के लिए धैर्य आवश्यक है, जिससे परंपरा और प्रगति दोनों का सRead more
परिचय: गाँवों में पितृतंत्रात्मक अभिवृत्ति वयोवृद्धों में गहराई से समाई होती है, जो पीढ़ियों के बीच संबंधों में चुनौती उत्पन्न कर सकती है। इन अभिवृत्तियों का प्रबंधन और उन्हें ढालने के लिए सम्मानजनक संवाद, समुदाय-उन्मुख दृष्टिकोण, और परिवर्तन के लिए धैर्य आवश्यक है, जिससे परंपरा और प्रगति दोनों का संतुलन बना रहे।
1. संवाद और विश्वास का निर्माण करना
पहला कदम वयोवृद्धों के साथ खुले और सम्मानजनक संवाद की पहल करना है। उनके अनुभव और ज्ञान को स्वीकारते हुए यह समझाना जरूरी है कि कुछ प्रथाओं में बदलाव से अगली पीढ़ी का भला होगा। ग्राम सभाएँ और समुदायिक बैठकें इस प्रकार के संवाद के लिए प्रभावी मंच साबित हो सकती हैं।
2. सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करना
वयोवृद्धों को उन सकारात्मक उदाहरणों से अवगत कराना जो पारंपरिक और आधुनिक मूल्यों के बीच संतुलन बना चुके हैं, महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, हरियाणा के गाँवों में महिलाओं की शिक्षा के प्रचार से जुड़े सफल अभियान और मनुषी छिल्लर (मिस वर्ल्ड 2017) जैसी सफल महिलाओं ने जेंडर भूमिकाओं के प्रति सोच में परिवर्तन लाने में मदद की है।
3. प्रभावशाली सामुदायिक नेताओं का उपयोग करना
स्थानीय प्रभावशाली व्यक्तियों जैसे पंचायत प्रमुखों, धार्मिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से प्रगतिशील विचारों का संचार करना प्रभावी साबित हो सकता है। उदाहरण के लिए, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान में हरियाणा के कई गाँवों में पंचायत नेताओं ने कन्या भ्रूण हत्या कम करने और बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
4. नीतियों के माध्यम से धीरे-धीरे बदलाव लाना
मनरेगा और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) जैसी सरकारी योजनाओं को लागू कर महिलाओं की आर्थिक भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है, जिससे पितृतंत्रात्मक सोच को धीरे-धीरे बदला जा सकता है। जब वयोवृद्ध देखेंगे कि महिलाएँ आर्थिक रूप से योगदान दे रही हैं, तो उनके प्रति समाज में अधिक सम्मान बढ़ सकता है।
निष्कर्ष:
पीढ़ियों के बीच समरसता सुनिश्चित करने के लिए संवाद, सकारात्मक उदाहरण, सामुदायिक नेतृत्व और नीतियों का क्रियान्वयन आवश्यक है। यह दृष्टिकोण परंपरा का सम्मान करते हुए धीरे-धीरे सामाजिक बदलाव लाने में सहायक होगा, जिससे गाँव में दीर्घकालिक सामाजिक संतुलन बना रहेगा।
See lessलड़कियों की शिक्षा में व्यवधान डाले बिना, लड़कियों की सुरक्षा को सुरक्षित करने के लिए आप क्या कदम उठाएँगे?
परिचय: लड़कियों की शिक्षा में व्यवधान डाले बिना उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। यह आवश्यक है कि संस्थानिक, सामाजिक और अवसंरचनात्मक उपायों का सहारा लिया जाए ताकि लड़कियाँ सुरक्षित वातावरण में अपनी शिक्षा जारी रख सकें। 1. स्कूल अवसंरचना को मजबूत करना स्कूलों में सुरक्षित और अनुकूलRead more
परिचय: लड़कियों की शिक्षा में व्यवधान डाले बिना उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है। यह आवश्यक है कि संस्थानिक, सामाजिक और अवसंरचनात्मक उपायों का सहारा लिया जाए ताकि लड़कियाँ सुरक्षित वातावरण में अपनी शिक्षा जारी रख सकें।
1. स्कूल अवसंरचना को मजबूत करना
स्कूलों में सुरक्षित और अनुकूल वातावरण प्रदान करना आवश्यक है। इसके लिए स्कूल परिसरों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय, प्रकाशयुक्त परिसर, और सुरक्षित परिवहन सुविधाएँ होनी चाहिए। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना ने इस दिशा में जोर देकर स्कूलों में सुरक्षित स्थान उपलब्ध कराने की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
2. जेंडर सेंसिटिव नीतियाँ बनाना
शिक्षण संस्थानों में लिंग-संवेदनशील नीतियों का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए। हर शैक्षणिक संस्थान में आंतरिक शिकायत समिति (जैसा कि POSH अधिनियम में उल्लिखित है) होनी चाहिए ताकि यौन उत्पीड़न की शिकायतों का निवारण किया जा सके। इसके अलावा, एंटी-बुलिंग कमेटियों का गठन किया जा सकता है ताकि किसी भी प्रकार के भेदभाव या उत्पीड़न को रोका जा सके।
3. सुरक्षा के लिए तकनीक का उपयोग
तकनीकी साधनों का प्रयोग सुरक्षा को बेहतर बनाने में सहायक हो सकता है। स्कूलों में CCTV कैमरे लगाने और छात्राओं के लिए पैनिक बटन ऐप्स तैयार किए जा सकते हैं ताकि आपात स्थिति में पुलिस या अभिभावकों को तुरंत सूचित किया जा सके। कई राज्यों ने 181 महिला हेल्पलाइन जैसी सेवाओं का शुभारंभ किया है, जो महिलाओं को त्वरित सहायता प्रदान करती हैं।
4. जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम
छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना आवश्यक है। नियमित रूप से जेंडर सेंसिटाइजेशन वर्कशॉप्स और लड़कियों के लिए स्व-रक्षा प्रशिक्षण आयोजित किया जा सकता है ताकि वे आत्मविश्वास के साथ चुनौतियों का सामना कर सकें। राजस्थान जैसे राज्यों में आवाज़ दो जैसी कार्यशालाएँ सफलतापूर्वक जेंडर-आधारित हिंसा के प्रति जागरूकता बढ़ा रही हैं।
5. समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करना
सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए समुदाय की सक्रिय भागीदारी महत्वपूर्ण है। स्कूलों को स्थानीय समुदायों और NGOs के साथ सहयोग करना चाहिए ताकि लड़कियों की सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित हो सके, जैसे कि सुरक्षित परिवहन समूह जैसे सामुदायिक प्रयासों के माध्यम से। निर्भया फंड के तहत महिलाओं के लिए सुरक्षित सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था एक सफल उदाहरण है कि कैसे इन साझेदारियों से लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
निष्कर्ष:
लड़कियों की शिक्षा को बाधित किए बिना उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अवसंरचना सुधार, तकनीकी उपाय, नीतिगत ढाँचे और समुदाय की भागीदारी का संयोजन आवश्यक है। इन रणनीतियों को अपनाकर हम ऐसा सुरक्षित वातावरण बना सकते हैं जहाँ लड़कियाँ निडर होकर अपनी शिक्षा प्राप्त कर सकें, जिससे उनका सशक्तिकरण और देश की प्रगति सुनिश्चित हो सके।
See lessआत्मनिर्भरता' सरदार पटेल के आर्थिक दर्शन के प्रमुख सिद्धातों में से एक थी। व्याख्या करें।
सरदार पटेल के आर्थिक दर्शन में आत्मनिर्भरता 1. आत्मनिर्भरता का महत्व: सरदार वल्लभभाई पटेल के आर्थिक दर्शन में आत्मनिर्भरता को केंद्रीय स्थान प्राप्त था। उनका मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता और स्वदेशी उत्पादन से ही देश की सच्ची स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सकती है। उन्होंने भारत के आर्थिक विकास के लिए आत्मRead more
सरदार पटेल के आर्थिक दर्शन में आत्मनिर्भरता
1. आत्मनिर्भरता का महत्व: सरदार वल्लभभाई पटेल के आर्थिक दर्शन में आत्मनिर्भरता को केंद्रीय स्थान प्राप्त था। उनका मानना था कि आर्थिक स्वतंत्रता और स्वदेशी उत्पादन से ही देश की सच्ची स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सकती है। उन्होंने भारत के आर्थिक विकास के लिए आत्मनिर्भरता को महत्वपूर्ण बताया।
2. औद्योगिकीकरण और ग्रामीण विकास: पटेल ने औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय संसाधनों का उपयोग करने पर जोर दिया। उन्होंने खुद की उद्योग नीति अपनाने की वकालत की और स्थानीय कारीगरों और उद्यमियों को प्रोत्साहित किया। इसके साथ ही, उन्होंने ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे गांवों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम किया।
3. हाल के उदाहरण: हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान सरदार पटेल की इस नीति की विरासत को आगे बढ़ाता है। 2020 में कोविड-19 के समय में ‘आत्मनिर्भर भारत’ की पहल ने स्वदेशी उत्पादों और स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देने पर जोर दिया, जिससे भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता कम करने में मदद मिली।
4. नीतिगत दिशा: पटेल की आत्मनिर्भरता की दृष्टि ने स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ-साथ विपणन और निर्यात में स्वायत्तता के महत्व को भी स्पष्ट किया। इसने भविष्य में आर्थिक नीति के निर्माण के लिए एक प्रेरणादायक आधार प्रदान किया।
सरदार पटेल के आत्मनिर्भरता के सिद्धांत ने भारत की आर्थिक नीति और विकास दृष्टिकोण को एक दिशा प्रदान की, जो आज भी भारतीय नीति निर्माताओं के लिए प्रेरणास्पद है।
See lessसार्वभौम धर्म क्या हैं? इसके प्रमुख तत्त्वों की विवेचना कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
सार्वभौम धर्म: अवधारणा और प्रमुख तत्त्व **1. सार्वभौम धर्म की अवधारणा: सार्वभौम धर्म का उद्देश्य सांस्कृतिक, जातीय, और भौगोलिक सीमाओं को पार कर एक साझा आध्यात्मिक समझ को बढ़ावा देना है। यह विभिन्न जातियों के बीच एकता को प्रोत्साहित करता है। **2. प्रमुख तत्त्व: सामान्य नैतिक सिद्धांत: दयालुता, न्याय,Read more
सार्वभौम धर्म: अवधारणा और प्रमुख तत्त्व
**1. सार्वभौम धर्म की अवधारणा: सार्वभौम धर्म का उद्देश्य सांस्कृतिक, जातीय, और भौगोलिक सीमाओं को पार कर एक साझा आध्यात्मिक समझ को बढ़ावा देना है। यह विभिन्न जातियों के बीच एकता को प्रोत्साहित करता है।
**2. प्रमुख तत्त्व:
निष्कर्ष: सार्वभौम धर्म भिन्नताओं को दूर करके एक एकीकृत आध्यात्मिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है, सामान्य नैतिक मानदंड और समावेशिता पर केंद्रित होता है।
See lessआप उसे कौन-सा रास्ता अपनाने की सलाह देंगे और क्यों देंगे ? (250 words) [UPSC 2016]
सुझाव: सबसे उपयुक्त मार्ग और कारण सुझाव: सख्त नियामक अनुपालन और पारदर्शिता **1. नियमों का पालन सुनिश्चित करना किसी भी संगठन को कानूनी और नियामक मानकों का पालन करना सबसे प्राथमिकता होनी चाहिए। हाल ही में, फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों ने डेटा सुरक्षा उल्लंघनों के कारण भारी जुर्माना भरा और उनके लिए नएRead more
सुझाव: सबसे उपयुक्त मार्ग और कारण
सुझाव: सख्त नियामक अनुपालन और पारदर्शिता
**1. नियमों का पालन सुनिश्चित करना
किसी भी संगठन को कानूनी और नियामक मानकों का पालन करना सबसे प्राथमिकता होनी चाहिए। हाल ही में, फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों ने डेटा सुरक्षा उल्लंघनों के कारण भारी जुर्माना भरा और उनके लिए नए अनुपालन नियमों को लागू किया। इसी प्रकार, खाद्य कंपनी को भी भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) के सभी नियमों का सख्ती से पालन करना चाहिए। इससे उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित होगी और भविष्य में किसी भी कानूनी विवाद से बचा जा सकेगा।
**2. पारदर्शिता और ग्राहकों के प्रति जिम्मेदारी
कंपनी को अपनी गलतियों को स्वीकार करते हुए पारदर्शिता दिखानी चाहिए। जैसे कि डोडो पिज्जा ने अपने एक खाद्य गुणवत्ता संकट के बाद ग्राहकों को स्पष्ट जानकारी और उत्पादों की गारंटी देने के लिए कदम उठाए। कंपनी को अपने ग्राहकों को स्थिति के बारे में स्पष्ट रूप से सूचित करना चाहिए और जिन उत्पादों में समस्या है, उन्हें तुरंत मार्केट से हटाना चाहिए। इससे ग्राहकों का विश्वास पुनः प्राप्त होगा।
**3. सुधारात्मक उपाय और ब्रांड पुनर्निर्माण
कंपनी को सुधारात्मक उपाय लागू करने चाहिए और एक ठोस ब्रांड पुनर्निर्माण रणनीति विकसित करनी चाहिए। मैगी नूडल्स संकट के दौरान, Nestlé ने ब्रांड छवि को पुनर्निर्मित करने के लिए सुरक्षा मानकों में सुधार किया और ग्राहकों के साथ सक्रिय संवाद किया। कंपनी को भी ऐसे ही कदम उठाने चाहिए जैसे कि गुणवत्ता नियंत्रण में सुधार और सार्वजनिक संबंध प्रबंधन।
**4. आंतरिक निगरानी और प्रशिक्षण
आंतरिक गुणवत्ता निगरानी को मजबूत करना और कर्मचारी प्रशिक्षण को बढ़ावा देना चाहिए। हाल ही में, Apple ने अपने आपूर्तिकर्ताओं के लिए सख्त गुणवत्ता और एथिक्स मानक लागू किए हैं। यह सुनिश्चित करता है कि सभी स्तरों पर नियमों का पालन हो।
सारांश
See lessकंपनी को नियामक अनुपालन, पारदर्शिता, और सुधारात्मक उपायों के माध्यम से अपनी स्थिति सुधारनी चाहिए। यह न केवल कानूनी और नैतिक दृष्टिकोण से उचित है, बल्कि दीर्घकालिक स्थिरता और ग्राहक विश्वास के लिए भी महत्वपूर्ण है।
खनन, बाँध एवं अन्य बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए आवश्यक भूमि अधिकांशतः आदिवासियों, पहाड़ी निवासियों एवं ग्रामीण समुदायों से अर्जित की जाती है। विस्थापित व्यक्तियों को कानूनी प्रावधानों के अनुरूप मौद्रिक मुआवज़ा दिया जाता है। फिर भी, भुगतान प्रायः धीमी गति से होता है। किसी भी हालत में विस्थापित परिवार लम्बे समय तक जीवनयापन नहीं कर पाते। इन लोगों के पास बाज़ार की आवश्यकतानुसार किसी दूसरे धंधे में लगने का कौशल भी नहीं होता है । वे आखिरकार कम मज़दूरी वाले आवर्जिक (प्रवासी) श्रमिक बन जाते हैं। इसके अलावा, उनके सामुदायिक जीवन के परम्परागत तरीके अधिकांशतः समाप्त हो जाते हैं। अतः विकास के लाभ उद्योगों, उद्योगपतियों एवं नगरीय समुदायों को चले जाते हैं, जबकि विकास की लागत इन ग़रीब असहाय लोगों पर डाल दी जाती है। लागतों एवं लाभों का यह अनुचित वितरण अनैतिक है ।
खनन, बाँध और बड़े पैमाने की परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण और विस्थापन: एक समालोचनात्मक विश्लेषण भूमि अधिग्रहण और विस्थापन भारत में खनन, बाँध और अन्य बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए आवश्यक भूमि अक्सर आदिवासियों, पहाड़ी निवासियों, और ग्रामीण समुदायों से अर्जित की जाती है। इन परियोजनाओं के कारण इन लोगोRead more
खनन, बाँध और बड़े पैमाने की परियोजनाओं में भूमि अधिग्रहण और विस्थापन: एक समालोचनात्मक विश्लेषण
भूमि अधिग्रहण और विस्थापन
भारत में खनन, बाँध और अन्य बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए आवश्यक भूमि अक्सर आदिवासियों, पहाड़ी निवासियों, और ग्रामीण समुदायों से अर्जित की जाती है। इन परियोजनाओं के कारण इन लोगों को विस्थापित किया जाता है, और कानूनी प्रावधानों के अनुसार उन्हें मौद्रिक मुआवज़ा दिया जाता है।
मुआवज़े की धीमी प्रक्रिया
विस्थापित व्यक्तियों को मौद्रिक मुआवज़ा मिलने की प्रक्रिया अक्सर धीमी और जटिल होती है। उदाहरण के लिए, सरदार सरोवर बाँध परियोजना में विस्थापित परिवारों को मुआवज़े के वितरण में लंबी देरी हुई, जिससे उनके पुनर्वास की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
आजीविका और कौशल की कमी
विस्थापित परिवारों को अक्सर नई आजीविका के लिए कौशल की कमी होती है। इन लोगों को बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुसार उपयुक्त कौशल प्रशिक्षण नहीं मिलता, जिससे वे कम मज़दूरी वाले प्रवासी श्रमिक बन जाते हैं। उदाहरण के लिए, झारखंड और छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में खनन परियोजनाओं के कारण विस्थापन के बाद कई परिवारों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
सामुदायिक जीवन का विनाश
विस्थापन से इन समुदायों के सामुदायिक जीवन के परंपरागत तरीके अक्सर समाप्त हो जाते हैं। परियोजनाओं के कारण सांस्कृतिक और सामाजिक ताना-बाना बिखर जाता है, और इन लोगों की पारंपरिक जीवनशैली को नुकसान पहुँचता है।
विकास के लाभ और लागत का असमान वितरण
विकास की परियोजनाओं से उद्योगपतियों और नगरीय समुदायों को लाभ होता है, जबकि विस्थापित और गरीब समुदायों पर इसके लागत का भार डाल दिया जाता है। यह अनैतिक है क्योंकि विकास की लागत और लाभ का वितरण असमान होता है, और गरीबों को उनके अधिकार और संसाधनों से वंचित किया जाता है।
निष्कर्ष
See lessखनन, बाँध और अन्य बड़े पैमाने की परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण और विस्थापन की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है। सामाजिक न्याय और विस्थापित समुदायों की समुचित देखभाल सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी नीतियों और पुनर्वास योजनाओं को लागू करना अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि विकास के लाभ सभी हिस्सेदारों में समान रूप से वितरित हों और विस्थापित व्यक्तियों के जीवन में सुधार हो।
यदि आपको ऐसे विस्थापित व्यक्तियों के लिए अच्छे मुआवज़े एवं पुनःवास की नीति का मसौदा बनाने का कार्य दिया जाता है, तो आप इस समस्या के सम्बन्ध में क्या दृष्टिकोण रखेंगे एवं आपके द्वारा सुझाई गई नीति के मुख्य तत्त्व कौन-कौन से होंगे ? (250 words) [UPSC 2016]
परिचय: विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास और मुआवज़े की नीति तैयार करते समय एक समग्र और मानव-केंद्रित दृष्टिकोण आवश्यक है। विस्थापन अक्सर विकास परियोजनाओं, प्राकृतिक आपदाओं या संघर्षों के कारण होता है, जिससे प्रभावित व्यक्तियों को सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे मेंRead more
परिचय:
विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास और मुआवज़े की नीति तैयार करते समय एक समग्र और मानव-केंद्रित दृष्टिकोण आवश्यक है। विस्थापन अक्सर विकास परियोजनाओं, प्राकृतिक आपदाओं या संघर्षों के कारण होता है, जिससे प्रभावित व्यक्तियों को सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में नीति का उद्देश्य इन व्यक्तियों को न केवल मुआवज़ा देना बल्कि उनके जीवन और आजीविका का स्थायी पुनर्निर्माण करना होना चाहिए।
दृष्टिकोण:
नीति के मुख्य तत्त्व:
"परस्पर निर्भरता के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है। हमें एक-दूसरे की जरूरत है और जितनी हम जल्दी इसे सीख लें यह हम सबके लिए उतना ही अच्छा है।" एरिक एरिक्सन (150 words) [UPSC 2021]
परिचय: एरिक एरिक्सन का यह कथन जीवन में परस्पर निर्भरता के महत्व को दर्शाता है। मानव समाज और विश्व की संरचना ऐसी है कि हम सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं। यदि हम इस सच्चाई को शीघ्र समझ लें, तो हम अधिक समृद्ध, शांतिपूर्ण और संगठित समाज की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं। परस्पर निर्भरता का महत्व: वैश्विक सहयोगRead more
परिचय:
एरिक एरिक्सन का यह कथन जीवन में परस्पर निर्भरता के महत्व को दर्शाता है। मानव समाज और विश्व की संरचना ऐसी है कि हम सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं। यदि हम इस सच्चाई को शीघ्र समझ लें, तो हम अधिक समृद्ध, शांतिपूर्ण और संगठित समाज की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।
परस्पर निर्भरता का महत्व:
निष्कर्ष:
परस्पर निर्भरता को जितनी जल्दी हम स्वीकार करेंगे, उतनी ही जल्दी हम एक सशक्त और समृद्ध वैश्विक समुदाय का निर्माण कर सकते हैं।
See less"हम बाहरी दुनिया में तब तक शांति प्राप्त नहीं कर सकते जब तक कि हम अपने भीतर शांति प्राप्त नहीं कर लेते।" – दलाई लामा (150 words) [UPSC 2021]
परिचय: दलाई लामा द्वारा कही गई यह पंक्ति शांति और आंतरिक संतुलन के महत्व पर बल देती है। जब तक व्यक्ति अपने भीतर शांति प्राप्त नहीं करता, तब तक वह बाहरी दुनिया में स्थायी शांति स्थापित करने में सक्षम नहीं होता। आंतरिक शांति से तात्पर्य मानसिक और भावनात्मक संतुलन से है, जो व्यक्ति के व्यवहार और दृष्टिRead more
परिचय:
दलाई लामा द्वारा कही गई यह पंक्ति शांति और आंतरिक संतुलन के महत्व पर बल देती है। जब तक व्यक्ति अपने भीतर शांति प्राप्त नहीं करता, तब तक वह बाहरी दुनिया में स्थायी शांति स्थापित करने में सक्षम नहीं होता। आंतरिक शांति से तात्पर्य मानसिक और भावनात्मक संतुलन से है, जो व्यक्ति के व्यवहार और दृष्टिकोण को नियंत्रित करता है।
आंतरिक शांति का महत्व:
निष्कर्ष:
व्यक्ति की आंतरिक शांति ही बाहरी दुनिया में शांति लाने का पहला कदम है। जब हम भीतर शांत होते हैं, तभी हम बाहरी संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान खोज सकते हैं।
See lessलोक सेवकों के सन्दर्भ में निम्नलिखित की प्रासंगिता की व्याख्या कीजिए। (125 Words) [UPPSC 2022]
समर्पण: लोक सेवकों के लिए समर्पण अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनकी कार्यक्षमता और जनता के प्रति उनके उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करता है। समर्पण का मतलब है कि लोक सेवक पूरी लगन और ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करें। यह उन्हें कठिनाइयों के बावजूद अपने कार्य को सही ढंग से करने की प्रेरणा देतRead more
समर्पण: लोक सेवकों के लिए समर्पण अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उनकी कार्यक्षमता और जनता के प्रति उनके उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करता है। समर्पण का मतलब है कि लोक सेवक पूरी लगन और ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करें। यह उन्हें कठिनाइयों के बावजूद अपने कार्य को सही ढंग से करने की प्रेरणा देता है, जिससे वे प्रभावी और गुणात्मक सेवाएँ प्रदान कर पाते हैं। समर्पण उनके कार्य में गुणवत्ता और परिणामों को बेहतर बनाता है, और समाज में विश्वास और संतोष पैदा करता है।
जवाबदेही: जवाबदेही लोक सेवकों के लिए एक अनिवार्य गुण है जो उनके कार्यों की पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करता है। इसका मतलब है कि लोक सेवक अपनी निर्णयों और कार्यों के लिए पूरी तरह से उत्तरदायी होते हैं। जवाबदेही यह सुनिश्चित करती है कि लोक सेवक अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए जनता के प्रति उत्तरदायी रहें, और किसी भी गलतफहमी या भ्रष्टाचार से बच सकें। यह जनसुविधा और शासन में विश्वास को बढ़ाता है।
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