गाँधी के नैतिक एंव सामाजिक विचारों का परीक्षण कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2018]
परिचय चार्वाक दर्शन, जिसे लोकायत के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय दर्शन का एक प्रमुख भौतिकवादी विचारधारा है। इसने पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं, वेदों की प्रामाणिकता, और अध्यात्मिक अवधारणाओं को खारिज करते हुए प्रत्यक्ष अनुभव और जीवन में सुखवाद पर जोर दिया। भले ही इसे अन्य आस्तिक दर्शनों द्वारा आलोचना काRead more
परिचय
चार्वाक दर्शन, जिसे लोकायत के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय दर्शन का एक प्रमुख भौतिकवादी विचारधारा है। इसने पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं, वेदों की प्रामाणिकता, और अध्यात्मिक अवधारणाओं को खारिज करते हुए प्रत्यक्ष अनुभव और जीवन में सुखवाद पर जोर दिया। भले ही इसे अन्य आस्तिक दर्शनों द्वारा आलोचना का सामना करना पड़ा हो, चार्वाक की भारतीय दर्शन को दी गई देन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
1. प्रत्यक्ष अनुभव पर बल
चार्वाक दर्शन की सबसे बड़ी देन है कि इसने प्रत्यक्ष अनुभव या प्रत्यक्ष को ज्ञान का एकमात्र विश्वसनीय स्रोत माना।
- अन्य भारतीय दर्शनों के विपरीत, जो अनुमान और शास्त्रों की प्रामाणिकता को भी मानते थे, चार्वाक ने कहा कि केवल वही सत्य है जो इंद्रियों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया जा सकता है। इसने अनुभववाद (Empiricism) को बढ़ावा दिया और स्थापित परंपराओं व आस्था पर सवाल उठाने की नींव रखी।
- आधुनिक समय में यह दृष्टिकोण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मेल खाता है, जहाँ प्रत्यक्ष प्रमाण और अवलोकन पर आधारित तथ्यों को ही सत्य माना जाता है। उदाहरण के लिए, वैज्ञानिक विधियों में अंधविश्वास और अतार्किक धारणाओं को खारिज करते हुए प्रत्यक्ष प्रमाणों पर जोर दिया जाता है, जो चार्वाक के विचारों से मेल खाता है।
2. धर्म और आध्यात्मिकता की आलोचना
चार्वाक दर्शन की एक प्रमुख विशेषता इसकी धार्मिक प्रथाओं और अध्यात्मिक अवधारणाओं जैसे कर्म, पुनर्जन्म, और परलोक की कड़ी आलोचना है।
- चार्वाक ने वेदों और ब्राह्मणवादी अनुष्ठानों को खारिज किया और इन्हें जनता का शोषण करने का साधन माना।
- आज के संदर्भ में, चार्वाक की इस आलोचना को धर्मनिरपेक्ष और तर्कवादी आंदोलनों से जोड़ा जा सकता है, जो धार्मिक आडंबरों को चुनौती देते हैं और जीवन को मानव-केंद्रित दृष्टिकोण से देखने पर जोर देते हैं। उदाहरणस्वरूप, भारत में पेरियार और डॉ. बी.आर. अंबेडकर जैसे विचारकों ने धार्मिक आडंबरों की आलोचना करते हुए तर्कसंगत और मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता दी।
3. भौतिकवाद और सुखवाद का समर्थन
चार्वाक ने भौतिकवाद का समर्थन किया, जिसमें केवल भौतिक जगत को वास्तविक माना गया। इसने लोगों को इस जीवन में सुख का आनंद लेने और दुःख से बचने की सलाह दी, क्योंकि इसने परलोक को नकारा।
- यह दृष्टिकोण उपयोगितावादी दर्शन (Utilitarian Philosophy) से मेल खाता है, जिसे जेरेमी बेंथम और जॉन स्टुअर्ट मिल जैसे पश्चिमी विचारकों ने आगे बढ़ाया, जो सुख को अधिकतम करने और दुःख को न्यूनतम करने की बात करते थे।
- आज के संदर्भ में, चार्वाक के इस विचार को आधुनिक जीवनशैली में देखा जा सकता है, जहाँ लोग आध्यात्मिक बंधनों से मुक्त होकर वर्तमान में जीने और भौतिक सुखों का आनंद लेने पर जोर देते हैं।
4. धर्मनिरपेक्ष और नास्तिक विचारधारा पर प्रभाव
हालांकि चार्वाक दर्शन प्राचीन भारतीय दर्शन में एक अल्पसंख्यक विचारधारा थी, इसके विचारों ने धर्मनिरपेक्ष, नास्तिक और तर्कवादी आंदोलनों पर गहरा प्रभाव डाला।
- हाल के समय में, पेरियार और डॉ. बी.आर. अंबेडकर जैसे विचारकों ने धार्मिक रूढ़िवाद की आलोचना की और तर्कवाद और मानववाद को बढ़ावा दिया, जो चार्वाक के धार्मिक प्रामाणिकता के विरोध के समान है।
निष्कर्ष
भारतीय दर्शन को चार्वाक दर्शन की सबसे बड़ी देन है इसका तर्कसंगत और अनुभवात्मक दृष्टिकोण और इसका धार्मिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं की आलोचना। इसका भौतिकवादी दृष्टिकोण और वर्तमान में जीने पर जोर आज भी वैज्ञानिक सोच, धर्मनिरपेक्षता और तर्कवाद को प्रेरित करता है। भले ही प्राचीन काल में इसे मुख्यधारा में स्थान न मिला हो, पर आज के समय में इसका महत्व निर्विवाद है।
गाँधी के नैतिक और सामाजिक विचार 1. नैतिक दार्शनिकता: गाँधी के नैतिक विचारों का केंद्र अहिंसा और सत्याग्रह था। उन्होंने अहिंसा को सबसे उच्च नैतिक सिद्धांत माना। उदाहरण के लिए, नमक सत्याग्रह (1930) में उन्होंने ब्रिटिश नमक कर के खिलाफ अहिंसात्मक विरोध किया, जो उनके शांतिपूर्ण प्रतिरोध के प्रति प्रतिबदRead more
गाँधी के नैतिक और सामाजिक विचार
1. नैतिक दार्शनिकता: गाँधी के नैतिक विचारों का केंद्र अहिंसा और सत्याग्रह था। उन्होंने अहिंसा को सबसे उच्च नैतिक सिद्धांत माना। उदाहरण के लिए, नमक सत्याग्रह (1930) में उन्होंने ब्रिटिश नमक कर के खिलाफ अहिंसात्मक विरोध किया, जो उनके शांतिपूर्ण प्रतिरोध के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
2. सामाजिक सुधार: गाँधी ने सामाजिक समानता और जाति उन्मूलन का समर्थन किया। उन्होंने हरिजन आंदोलन चलाया, जिसका उद्देश्य निम्न जातियों की स्थिति सुधारना था। चंपारण सत्याग्रह (1917) के माध्यम से उन्होंने ग्रामीण संकट और किसान अधिकारों पर ध्यान केंद्रित किया।
3. आत्मनिर्भरता और ग्रामीण विकास: गाँधी ने खादी और ग्रामीण उद्योगों के माध्यम से आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया। उनका गांवों की गणतंत्र का दृष्टिकोण विकेन्द्रीकृत, सतत विकास पर आधारित था, जिसे उन्होंने अपने लेखों और भाषणों में प्रतिपादित किया।
गाँधी के नैतिक और सामाजिक विचार आज भी अहिंसा और सामाजिक न्याय पर चर्चा में महत्वपूर्ण हैं।
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