Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
मूल्य सृजन में परिवार, समाज और शिक्षण संस्थाओं की भूमिका की विवेचना कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
परिवार, समाज और शिक्षा संस्थाएँ मूल्य सृजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं मूल्य एक व्यक्ति के जीवन को रूप देने के सिद्धान्त होते हैं। ये सिद्धांत किसी व्यक्ति को सही से गलत का अलग-अलग करने के लिए मदद करते हैं। परिवार, समाज और शिक्षा संस्थाएँ मूल्य सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। परिवRead more
परिवार, समाज और शिक्षा संस्थाएँ मूल्य सृजन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं
मूल्य एक व्यक्ति के जीवन को रूप देने के सिद्धान्त होते हैं। ये सिद्धांत किसी व्यक्ति को सही से गलत का अलग-अलग करने के लिए मदद करते हैं। परिवार, समाज और शिक्षा संस्थाएँ मूल्य सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
परिवार: परिवार व्यक्ति का पहला स्कूल होता है। परिवार में बच्चे प्यार करने, सम्मान करना, और दूसरों की मदद करने के तरीके सीखते हैं। बच्चे का व्यक्तित्व उसके माँ-बाप का व्यवहार और उनकी मूल्य से ही रूप बनाता है।
समाज: समाज में रहकर व्यक्ति विभिन्न प्रकार के लोगों से मिलता है और उनके व्यवहार को देखता है। समाज के मूल्य, रीति-रिवाज और परंपराएं व्यक्ति के मूल्यों को आकार देती हैं।
शिक्षण संस्थाएं: स्कूल और कॉलेज व्यक्ति को ज्ञान और कौशल प्रदान करने के साथ-साथ नैतिक मूल्यों को भी सिखाते हैं। शिक्षक, छात्रों में सकारात्मक मूल्यों का विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
Conclusion:
मूल्य सृजन एक सतत प्रक्रिया है। परिवार, समाज और शिक्षण संस्थाएं मिलकर व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं और उसके मूल्यों को आकार देती हैं। इन सभी संस्थाओं को मिलकर काम करना चाहिए ताकि व्यक्ति एक अच्छे नागरिक बन सके।
See lessअवसाद और आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने में गीता का निष्काय कर्मयोग किस प्रकार सहायक हो सकता हैं? विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
अवसाद और आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने में गीता का निष्काम कर्मयोग की भूमिका 1. निष्काम कर्मयोग का सार गीता के निष्काम कर्मयोग का सिद्धांत व्यक्ति को अपने कार्यों को बिना परिणाम की चिंता के निष्पादित करने की सलाह देता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, नRead more
अवसाद और आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं को रोकने में गीता का निष्काम कर्मयोग की भूमिका
1. निष्काम कर्मयोग का सार
गीता के निष्काम कर्मयोग का सिद्धांत व्यक्ति को अपने कार्यों को बिना परिणाम की चिंता के निष्पादित करने की सलाह देता है। इसका मतलब है कि व्यक्ति को अपने कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि उनके परिणामों पर।
2. तनाव और चिंता को कम करना
परिणाम की चिंता से मुक्ति: निष्काम कर्मयोग द्वारा व्यक्तियों को परिणामों के बारे में चिंता करने की बजाय वर्तमान कार्य पर ध्यान केंद्रित करने का प्रेरणा मिलता है। यह दृष्टिकोण उन लोगों के लिए उपयोगी है जो जीवन के प्रदर्शन दबाव से ग्रस्त होते हैं। जैसे कि विद्यार्थियों और पेशेवरों में प्रदर्शन चिंता को कम करने के लिए यह सिद्धांत सहायक हो सकता है।
3. भावनात्मक सहनशीलता में वृद्धि
कर्तव्य और उद्देश्य की भावना: यह सिद्धांत व्यक्ति को अपने कार्यों में उद्देश्य खोजने के लिए प्रोत्साहित करता है, जो अवसाद के लक्षणों जैसे निराशा और नकारात्मकता को कम कर सकता है। उदाहरण के लिए, ‘माइंडफुलनेस’ आधारित प्रथाएँ भी इसी तरह के उद्देश्य और फोकस को प्रोत्साहित करती हैं।
4. संतुलित जीवन की दिशा में योगदान
संतुलित दृष्टिकोण: निष्काम कर्मयोग जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है, जो जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद कर सकता है। आधुनिक मानसिक स्वास्थ्य में भी समान दृष्टिकोण अपनाए जाते हैं, जैसे कि ‘कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT)’, जो नकारात्मक सोच को चुनौती देती है और सकारात्मक कार्यों को बढ़ावा देती है।
5. वर्तमान समस्याओं में उपयोगिता
आधुनिक संदर्भ में अनुप्रयोग: गीता के निष्काम कर्मयोग को आज के संदर्भ में माइंडफुलनेस और तनाव प्रबंधन तकनीकों के माध्यम से लागू किया जा सकता है। मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर और संगठनों ने इस दृष्टिकोण को शामिल किया है, जिससे अवसाद और आत्महत्या की घटनाओं को प्रबंधित किया जा सके।
संक्षेप में, गीता का निष्काम कर्मयोग अवसाद और आत्महत्या की घटनाओं को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, क्योंकि यह व्यक्ति को कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित करने, परिणामों से मुक्ति, और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
See lessआज के शिक्षित भारतीयों में विद्यमान ऐसे अवांछनीय मूल्यों की विवेचना कीजिए ।
आज के शिक्षित भारतीयों में विद्यमान अवांछनीय मूल्य शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के बावजूद, आज के शिक्षित भारतीय समाज में कुछ अवांछनीय मूल्य और विचारधाराएँ बनी हुई हैं। इन मूल्यों का समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और ये आधुनिक समाज की समता और समानता की अवधारणाओं के खिलाफ होते हैं। निम्नलिखित बिंदुRead more
आज के शिक्षित भारतीयों में विद्यमान अवांछनीय मूल्य
शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के बावजूद, आज के शिक्षित भारतीय समाज में कुछ अवांछनीय मूल्य और विचारधाराएँ बनी हुई हैं। इन मूल्यों का समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और ये आधुनिक समाज की समता और समानता की अवधारणाओं के खिलाफ होते हैं। निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से इन अवांछनीय मूल्यों की विवेचना की जा रही है:
1. लिंग भेदभाव और पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण
प्रोफेशनल सेटिंग्स में लिंग भेदभाव: शिक्षा के बावजूद, कई शिक्षित भारतीय पेशेवर माहौल में लिंग भेदभाव का सामना करते हैं। हाल ही में, महिलाओं को समान अनुभव और योग्यता होने के बावजूद पदोन्नति और वेतन में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, कुछ कंपनियों में महिलाओं के नेतृत्व वाले पदों पर चयन की संख्या में कमी देखी गई है।
परिवारिक संदर्भ में पारंपरिक भूमिकाएँ: शिक्षित परिवारों में भी महिलाओं को पारंपरिक भूमिकाओं की अपेक्षाएँ की जाती हैं, जैसे घर की जिम्मेदारियाँ निभाना। यह धारणा कई बार महिलाओं के करियर विकास में बाधा बनती है, जैसे हाल ही के मीडिया रिपोर्ट्स में इस तरह की घटनाओं का उल्लेख किया गया है।
2. जाति आधारित भेदभाव
सामाजिक संपर्कों में सूक्ष्म जातिवाद: जाति आधारित भेदभाव आज भी शिक्षित व्यक्तियों के बीच विद्यमान है, हालांकि यह खुलकर नहीं प्रकट होता। हाल ही में किए गए अध्ययनों में यह पाया गया है कि नौकरी के दौरान जाति आधारित नाम वाले उम्मीदवारों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
शादी के लिए जाति आधारित प्राथमिकताएँ: शिक्षित परिवारों में भी जाति आधारित विवाह की प्राथमिकताएँ कायम हैं। यह देखा गया है कि शादी के लिए जाति को एक महत्वपूर्ण मानदंड माना जाता है, जो सामाजिक और पारिवारिक विज्ञापन में स्पष्ट रूप से प्रकट होता है।
3. अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति पूर्वाग्रह
धार्मिक असहिष्णुता: शिक्षित व्यक्तियों में धार्मिक असहिष्णुता अब भी एक समस्या है। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के विवादों ने यह दर्शाया है कि शिक्षित वर्ग में भी अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति पूर्वाग्रह विद्यमान हैं।
एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों के प्रति भेदभाव: शिक्षित वर्ग में भी एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों के प्रति रूढ़िवादी दृष्टिकोण जारी है। हाल ही में, समाज और कानूनी चुनौतियों का सामना करने वाले एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों की समस्याओं ने इस पूर्वाग्रह को उजागर किया है।
4. भौतिकवाद और उपभोक्तावाद
धन और स्थिति पर जोर: शिक्षित भारतीयों में भौतिक सफलता और स्थिति के प्रतीक पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है। यह भौतिकवाद सामाजिक स्तर पर भेदभाव और असमानता को बढ़ावा देता है। सोशल मीडिया पर लग्जरी जीवनशैली को दिखाना इस प्रवृत्ति को और मजबूत करता है।
उपभोक्तावाद और पर्यावरणीय प्रभाव: शिक्षित वर्ग में बढ़ते उपभोक्तावाद के कारण पर्यावरणीय समस्याएँ बढ़ रही हैं। हालांकि सततता के मुद्दों के प्रति जागरूकता है, फिर भी विलासिता की वस्तुओं और अत्यधिक उपभोग की प्रवृत्ति जारी है, जो पर्यावरणीय जिम्मेदारी के साथ असंगत है।
निष्कर्ष
शिक्षा के बावजूद, भारतीय समाज में कई अवांछनीय मूल्य कायम हैं, जैसे लिंग भेदभाव, जातिवाद, धार्मिक असहिष्णुता और भौतिकवाद। इन समस्याओं का समाधान केवल शिक्षा के माध्यम से नहीं बल्कि सामाजिक सुधार, जागरूकता और सक्रिय प्रयासों से संभव है। इन मुद्दों पर विचार करना और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में काम करना महत्वपूर्ण है।
See less"बालक अपने चतुर्दिक जो देखता है, उससे मूल्यों को सीखता है" इस कथन के आलोक में मूल्यों के निर्माण में परिवार और समाज की भूमिका की विवेचना कीजिए । (125 Words) [UPPSC 2023]
परिवार और समाज की भूमिका में मूल्यों का निर्माण 1. परिवार का प्रभाव प्रारंभिक शिक्षा: परिवार बच्चे को प्रारंभिक मूल्यों और आचार-व्यवहार का पहला सबक सिखाता है। उदाहरण के लिए, अच्छे आदर्श और सच्चाई की शिक्षा से बच्चे में नैतिक गुण विकसित होते हैं, जैसा कि सिंधु स्वाति, एक प्रसिद्ध शिक्षिका, ने अपने बचRead more
परिवार और समाज की भूमिका में मूल्यों का निर्माण
1. परिवार का प्रभाव
2. समाज का प्रभाव
निष्कर्ष: परिवार और समाज दोनों मिलकर मूल्यों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो बच्चों के समाजिक और नैतिक विकास को दिशा प्रदान करते हैं।
See lessक्या आपको लगता है कि प्रौद्योगिकी एक मूल्य-केंद्रित आधुनिक समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है? समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
प्रौद्योगिकी आधुनिक समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, लेकिन इसके प्रभाव को समालोचनात्मक रूप से समझना आवश्यक है। सकारात्मक दृष्टिकोण: प्रौद्योगिकी सामाजिक संपर्क और शिक्षा को सुलभ बनाकर मूल्यों को प्रसारित कर सकती है। उदाहरण के लिए, डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया विभिन्न सामाजिक मRead more
प्रौद्योगिकी आधुनिक समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, लेकिन इसके प्रभाव को समालोचनात्मक रूप से समझना आवश्यक है।
सकारात्मक दृष्टिकोण:
प्रौद्योगिकी सामाजिक संपर्क और शिक्षा को सुलभ बनाकर मूल्यों को प्रसारित कर सकती है। उदाहरण के लिए, डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने में सहायक होते हैं। ये प्लेटफॉर्म वैश्विक स्तर पर विचारों और विचारधाराओं का आदान-प्रदान संभव बनाते हैं, जिससे समानता और मानवाधिकार जैसे मूल्यों को बढ़ावा मिलता है।
नकारात्मक दृष्टिकोण:
हालांकि, प्रौद्योगिकी का अत्यधिक उपयोग समाज में वैमनस्य और असमानता को भी जन्म दे सकता है। डिजिटल विभाजन और सोशल मीडिया के माध्यम से फैलने वाली गलत सूचनाएं समाज में ध्रुवीकरण और विभाजन को बढ़ावा दे सकती हैं। इसके अलावा, प्रौद्योगिकी की अत्यधिक निर्भरता से पारंपरिक मानवीय संबंध और सामाजिक मूल्य प्रभावित हो सकते हैं।
इस प्रकार, प्रौद्योगिकी का मूल्य-केंद्रित समाज निर्माण में योगदान सकारात्मक हो सकता है, लेकिन इसके संभावित दुष्प्रभावों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।
See lessसामाजिक समूहों जैसे कि परिवार एवं अपने समकक्षों के साथ सीधी बातचीत लोगों को सिखाती है कि दूसरे उनसे कैसा व्यवहार करने की उम्मीद करते हैं। इसी तरह, एक संपूर्ण समाज अपने मानदंडों, संस्थानों, मीडिया और सामूहिक व्यवहार के माध्यम से मूल्यों को सुदृढ़ करता है और उन्हें आकार देता है। उदाहरण सहित चर्चा कीजिए कि किसी समाज की औपचारिक गौर अनौपचारिक संस्थाएं उसकी आबादी का समाजीकरण कैसे करती हैं। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
समाज में औपचारिक और अनौपचारिक संस्थाएं लोगों का समाजीकरण महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं। औपचारिक संस्थाएं, जैसे स्कूल और धार्मिक संस्थान, समाज के मानदंडों और मूल्यों को स्थापित और सिखाते हैं। उदाहरण के लिए, स्कूल न केवल अकादमिक शिक्षा प्रदान करते हैं बल्कि समाज में आदर्श नागरिक बनने के लिए आवश्Read more
समाज में औपचारिक और अनौपचारिक संस्थाएं लोगों का समाजीकरण महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं।
औपचारिक संस्थाएं, जैसे स्कूल और धार्मिक संस्थान, समाज के मानदंडों और मूल्यों को स्थापित और सिखाते हैं। उदाहरण के लिए, स्कूल न केवल अकादमिक शिक्षा प्रदान करते हैं बल्कि समाज में आदर्श नागरिक बनने के लिए आवश्यक नैतिक और सामाजिक मूल्यों को भी सिखाते हैं, जैसे ईमानदारी और सहयोग।
अनौपचारिक संस्थाएं, जैसे परिवार और मित्र मंडल, व्यक्तियों की प्राथमिक समाजीकरण इकाइयां होती हैं। परिवार में बच्चों को जीवन की प्रारंभिक शिक्षा मिलती है, जैसे सभ्य व्यवहार और सामाजिक अपेक्षाओं का पालन करना। परिवार और मित्र, दैनिक बातचीत और अनुभवों के माध्यम से सामाजिक मानदंडों को संचारित करते हैं, जैसे समानता और समर्थन।
इन दोनों प्रकार की संस्थाएं मिलकर समाज के मूल्यों और मानदंडों को स्थापित करती हैं और उन्हें सुदृढ़ करती हैं, जिससे समाज में समन्वय और स्थिरता बनाए रखी जाती है।
See less