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"धार्मिक कट्टरता किसी भी लोकतांत्रिक देश की उन्नति में बाधक रही हैं।" विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]"धार्मिक कट्टरता किसी भी लोकतांत्रिक देश की उन्नति में बाधक रही हैं।" विवेचना कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2019]
धार्मिक कट्टरता और लोकतांत्रिक उन्नति परिभाषा और प्रभाव: धार्मिक कट्टरता का तात्पर्य ऐसे असहिष्णुता और पूर्वाग्रह से है जो धार्मिक मान्यताओं के आधार पर व्यक्तियों या समुदायों के प्रति होता है। यह कट्टरता लोकतांत्रिक देशों की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में प्रमुख बाधक बनती है। ऐतिहासिक उदाहरण: भारत काRead more
धार्मिक कट्टरता और लोकतांत्रिक उन्नति
परिभाषा और प्रभाव: धार्मिक कट्टरता का तात्पर्य ऐसे असहिष्णुता और पूर्वाग्रह से है जो धार्मिक मान्यताओं के आधार पर व्यक्तियों या समुदायों के प्रति होता है। यह कट्टरता लोकतांत्रिक देशों की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में प्रमुख बाधक बनती है।
ऐतिहासिक उदाहरण:
उन्नति पर प्रभाव:
निष्कर्ष: धार्मिक कट्टरता लोकतांत्रिक देशों की उन्नति में बाधक है, क्योंकि यह सामाजिक विघटन, आर्थिक विकास में रुकावट, और मानवाधिकार उल्लंघन को जन्म देती है। असहिष्णुता को समाप्त करना और समावेशिता को बढ़ावा देना लोकतांत्रिक समाजों की स्थिरता और विकास के लिए आवश्यक है।
See lessजनता के विरोध के संबंध में अनुनय के गुणों और अवगुणों की व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
जनता के विरोध के संबंध में अनुनय के गुण और अवगुण गुण: अहिंसात्मक दृष्टिकोण: अनुनय एक अहिंसात्मक तरीका है जो संवाद और समझ के माध्यम से परिवर्तन को प्रोत्साहित करता है। उदाहरण के लिए, अन्ना हज़ारे का जन लोकपाल आंदोलन ने जनसमर्थन के लिए अनुनय का उपयोग किया और महत्वपूर्ण बदलावों की ओर ध्यान आकर्षित कियाRead more
जनता के विरोध के संबंध में अनुनय के गुण और अवगुण
गुण:
अवगुण:
निष्कर्ष: अनुनय अहिंसात्मक, सहमति निर्माण करने वाला और दीर्घकालिक प्रभावी होता है, लेकिन तत्काल प्रभाव की कमी और संदेश की कमजोरी जैसे अवगुण भी हो सकते हैं।
See lessलोक सेवको की लोकतंत्रीय अभिवृति एवं अधिकारीतंत्रीय अभिवृति में विभेद कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2019]
लोक सेवकों की लोकतंत्रीय और अधिकारीतंत्रीय अभिवृति में विभेद लोकतंत्रीय अभिवृति: जन भागीदारी: लोकतंत्रीय अभिवृति वाले लोक सेवक जनता के साथ सक्रिय सहभागिता को प्राथमिकता देते हैं, जैसे शहरी और ग्रामीण स्थानीय निकायों में भागीदारी के माध्यम से। पारदर्शिता और उत्तरदायित्व: ये लोक सेवक पारदर्शिता और उत्Read more
लोक सेवकों की लोकतंत्रीय और अधिकारीतंत्रीय अभिवृति में विभेद
लोकतंत्रीय अभिवृति:
अधिकारीतंत्रीय अभिवृति:
हालिया उदाहरण: प्रधानमंत्री जन धन योजना और स्वच्छ भारत मिशन लोकतंत्रीय दृष्टिकोण को दर्शाते हैं, जिसमें नागरिकों की भागीदारी और पारदर्शिता को बढ़ावा दिया गया है।
निष्कर्ष: लोकतंत्रीय अभिवृति जन सहभागिता, पारदर्शिता, और लचीलेपन पर आधारित होती है, जबकि अधिकारीतंत्रीय अभिवृति औपचारिकता, प्रक्रियागत कठोरता, और ऊर्ध्वाधर निर्णय प्रक्रिया पर केंद्रित होती है।
See lessआज लोक सेवाओं में वस्तुनिष्ठता एवं निष्ठा समय की मांग है' कथन को सिद्ध कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
लोक सेवाओं में वस्तुनिष्ठता एवं निष्ठा: समय की मांग 1. वस्तुनिष्ठता की आवश्यकता: निष्पक्ष निर्णय: वस्तुनिष्ठता सुनिश्चित करती है कि निर्णय तथ्य और प्रमाणों पर आधारित हों, न कि व्यक्तिगत पूर्वाग्रह या बाहरी दबावों पर। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत खाद्य सामग्री का वितरणRead more
लोक सेवाओं में वस्तुनिष्ठता एवं निष्ठा: समय की मांग
1. वस्तुनिष्ठता की आवश्यकता:
2. निष्ठा की आवश्यकता:
3. चुनौती और मांग:
निष्कर्ष: आज के समय में लोक सेवाओं में वस्तुनिष्ठता और निष्ठा अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। वस्तुनिष्ठता निष्पक्ष और प्रमाण आधारित निर्णय सुनिश्चित करती है, जबकि निष्ठा जटिल सामाजिक समस्याओं को सुलझाने और गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक सेवाओं को प्रदान करने के लिए प्रतिबद्धता का प्रतीक है। दोनों गुणों का समन्वय प्रभावी और पारदर्शी प्रशासन के लिए आवश्यक है।
See lessविश्वसनीयता और सहन-शक्ति के सद्गुण लोक सेवा में किस प्रकार प्रदर्शित होते हैं? उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिए। (150 words) [UPSC 2015]
विश्वसनीयता और सहन-शक्ति के सद्गुण लोक सेवा में विश्वसनीयता और सहन-शक्ति लोक सेवा में महत्वपूर्ण सद्गुण हैं, जो सरकारी कर्मियों के कार्यों में प्रकट होते हैं। विश्वसनीयता: उदाहरण: 2023 में, दिल्ली के नगर निगम अधिकारी ने कोरोना महामारी के दौरान मास्क वितरण के कार्य में पारदर्शिता और ईमानदारी बनाए रखीRead more
विश्वसनीयता और सहन-शक्ति के सद्गुण लोक सेवा में
विश्वसनीयता और सहन-शक्ति लोक सेवा में महत्वपूर्ण सद्गुण हैं, जो सरकारी कर्मियों के कार्यों में प्रकट होते हैं।
विश्वसनीयता: उदाहरण: 2023 में, दिल्ली के नगर निगम अधिकारी ने कोरोना महामारी के दौरान मास्क वितरण के कार्य में पारदर्शिता और ईमानदारी बनाए रखी। उनके द्वारा सही तरीके से सहायता सामग्री की वितरण रिपोर्टिंग और निगरानी ने सार्वजनिक विश्वास को मजबूत किया। यह उदाहरण दिखाता है कि विश्वसनीयता से लोगों का भरोसा कायम रहता है।
सहन-शक्ति: उदाहरण: 2024 में, एक IAS अधिकारी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाते हुए राजनीतिक दबाव और व्यक्तिगत धमकियों का सामना किया। उनके द्वारा कानून के प्रति अडिग समर्पण और कठिन परिस्थितियों में डटे रहने से न्याय की प्रक्रिया मजबूत हुई। सहन-शक्ति से अधिकारी ने ईमानदारी और न्याय को सुनिश्चित किया।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि विश्वसनीयता और सहन-शक्ति लोक सेवा में प्रभावशीलता और ईमानदारी को बढ़ावा देते हैं।
See lessअनुशासन में सामान्यतः आदेश पालन और अधीनता निहित है। फिर भी यह संगठन के लिए प्रति-उत्पादक हो सकता है। चर्चा कीजिए। (150 words) [UPSC 2017]
अनुशासन और इसके संगठनात्मक प्रभाव अनुशासन सामान्यतः आदेशों का पालन और अधीनता को दर्शाता है, जो संगठन में नियंत्रण और सुव्यवस्था बनाए रखने में मदद करता है। फिर भी, अत्यधिक अनुशासन कभी-कभी संगठन के लिए प्रति-उत्पादक हो सकता है। रचनात्मकता पर प्रभाव: कठोर अनुशासन रचनात्मकता और नवाचार को बाधित कर सकता हRead more
अनुशासन और इसके संगठनात्मक प्रभाव
अनुशासन सामान्यतः आदेशों का पालन और अधीनता को दर्शाता है, जो संगठन में नियंत्रण और सुव्यवस्था बनाए रखने में मदद करता है। फिर भी, अत्यधिक अनुशासन कभी-कभी संगठन के लिए प्रति-उत्पादक हो सकता है।
रचनात्मकता पर प्रभाव: कठोर अनुशासन रचनात्मकता और नवाचार को बाधित कर सकता है। उदाहरण के लिए, टेक्नोलॉजी कंपनियों में जैसे गूगल, जहां लचीले कार्य वातावरण को प्रोत्साहित किया जाता है, यह पारंपरिक अनुशासन की तुलना में अधिक नवाचार को बढ़ावा देता है।
कर्मचारी मनोबल: सख्त अनुशासन कर्मचारी मनोबल और संतोष पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। अमेज़न की कार्य संस्कृति, जो अपने कठोर प्रदर्शन मानकों के लिए प्रसिद्ध है, कर्मचारी पलायन और कम काम संतोष की समस्याओं का सामना करती है।
अनुकूलनशीलता: तेजी से बदलती उद्योग स्थितियों में, कठोर अनुशासन अनुकूलनशीलता को प्रभावित कर सकता है। नेटफ्लिक्स जैसे कंपनियाँ, जो अधिक लचीले और विश्वास आधारित दृष्टिकोण को अपनाती हैं, बाजार परिवर्तन के प्रति बेहतर अनुकूल हो सकती हैं।
इस प्रकार, जबकि अनुशासन संगठन में व्यवस्था बनाए रखता है, अत्यधिक कठोरता रचनात्मकता, मनोबल, और अनुकूलनशीलता को प्रभावित कर सकती है, जिससे संगठन की दीर्घकालिक सफलता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
See lessक्या लोक-प्रशासन पर न्यायिक नियंत्रण आवश्यक है? लोक प्रशासन पर संभावित न्यायकि नियंत्रण के विभिन्न रूपों की व्याख्या कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
क्या लोक-प्रशासन पर न्यायिक नियंत्रण आवश्यक है? **1. जवाबदेही सुनिश्चित करना: न्यायिक नियंत्रण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है, जिससे सार्वजनिक प्रशासन की कार्यप्रणाली पर निगरानी होती है और शक्ति के दुरुपयोग को रोका जाता है। उदाहरण के तौर पर, सबरिमला मंदिर मामला में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के समानताRead more
क्या लोक-प्रशासन पर न्यायिक नियंत्रण आवश्यक है?
**1. जवाबदेही सुनिश्चित करना: न्यायिक नियंत्रण जवाबदेही को सुनिश्चित करता है, जिससे सार्वजनिक प्रशासन की कार्यप्रणाली पर निगरानी होती है और शक्ति के दुरुपयोग को रोका जाता है। उदाहरण के तौर पर, सबरिमला मंदिर मामला में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के समानता अधिकार की रक्षा की, यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रशासनिक निर्णय मूलभूत अधिकारों के अनुरूप हों।
**2. मूलभूत अधिकारों की रक्षा: न्यायिक नियंत्रण मूलभूत अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक है। न्यायालय प्रशासनिक निर्णयों की समीक्षा कर सकते हैं ताकि वे नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन न करें। आधार अधिनियम के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम को मान्यता दी लेकिन निजता की सुरक्षा के लिए प्रतिबंध भी लगाए, जो प्रशासनिक दक्षता और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करता है।
**3. सुधारात्मक शासन को बढ़ावा: न्यायिक नियंत्रण सुधारात्मक शासन को बढ़ावा देता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि सार्वजनिक प्रशासन कानूनी ढांचे के भीतर कार्य करे और पारदर्शिता और निष्पक्षता के सिद्धांतों का पालन करे। सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम को न्यायिक व्याख्याओं के माध्यम से लागू किया गया है, जो प्रशासन में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।
न्यायिक नियंत्रण के रूप
**1. न्यायिक समीक्षा: यह रूप न्यायालयों को प्रशासनिक कार्रवाइयों और निर्णयों की वैधता की समीक्षा करने की अनुमति देता है। केसवानंद भारती मामला में, सुप्रीम कोर्ट ने संविधान संशोधनों की समीक्षा की ताकि वे संविधान की मूल संरचना को न बदलें।
**2. हटाने की याचिका (Writ Jurisdiction): भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 के तहत, व्यक्तियों को प्रशासनिक निर्णयों को चुनौती देने के लिए याचिकाएँ दायर करने की अनुमति है। जनहित याचिकाएँ (PILs), जैसे गंगा प्रदूषण मामला, न्यायपालिका को जनता के हित में प्रशासनिक विफलताओं को संबोधित करने का मौका देती हैं।
**3. न्यायिक निगरानी समितियाँ: न्यायालय अपने आदेशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए समितियाँ गठित कर सकते हैं। दिल्ली प्रदूषण मामला में, सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण से संबंधित आदेशों के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए ग्रीन ट्रिब्यूनल की नियुक्ति की।
निष्कर्ष: लोक-प्रशासन पर न्यायिक नियंत्रण आवश्यक है ताकि जवाबदेही, मूलभूत अधिकारों की रक्षा और सुधारात्मक शासन को बढ़ावा दिया जा सके। न्यायिक नियंत्रण के विभिन्न रूप, जैसे न्यायिक समीक्षा, हटाने की याचिका, और न्यायिक निगरानी समितियाँ, प्रशासनिक शक्ति और कानूनी मानदंडों के बीच संतुलन बनाए रखने में सहायक होती हैं।
See lessनिजी क्षेत्र की नैतिक विकृतियाँ क्या हैं? नैतिक जीवन के तीन विकल्पों का वर्णन कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2021]
निजी क्षेत्र की नैतिक विकृतियाँ 1. श्रम शोषण: निजी क्षेत्र में श्रम शोषण एक प्रमुख नैतिक समस्या है, जिसमें असमान वेतन, खराब कार्य परिस्थितियाँ, और नौकरी की सुरक्षा की कमी शामिल है। उदाहरण के तौर पर, गर्मेन्ट फैक्ट्रियाँ में कामकाजी परिस्थितियाँ बहुत खराब हो सकती हैं, जहां मजदूरों को न्यूनतम वेतन औरRead more
निजी क्षेत्र की नैतिक विकृतियाँ
1. श्रम शोषण: निजी क्षेत्र में श्रम शोषण एक प्रमुख नैतिक समस्या है, जिसमें असमान वेतन, खराब कार्य परिस्थितियाँ, और नौकरी की सुरक्षा की कमी शामिल है। उदाहरण के तौर पर, गर्मेन्ट फैक्ट्रियाँ में कामकाजी परिस्थितियाँ बहुत खराब हो सकती हैं, जहां मजदूरों को न्यूनतम वेतन और अत्यधिक घंटे काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।
2. पर्यावरणीय क्षति: निजी कंपनियाँ पर्यावरणीय क्षति कर सकती हैं, जैसे कि प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन। बीपी का तेल रिसाव 2010 में एक प्रमुख उदाहरण है, जहां कंपनी ने अपने कुप्रबंधन के कारण समुद्री पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुँचाया।
3. अनैतिक व्यापार प्रथाएँ: कुछ निजी क्षेत्र की कंपनियाँ अनैतिक व्यापार प्रथाओं में लिप्त होती हैं, जैसे कि रिश्वत, भ्रष्टाचार, और झूठी विज्ञापन। फोल्क्सवागन उत्सर्जन घोटाला, जहां कंपनी ने उत्सर्जन डेटा को झूठा प्रस्तुत किया, इस प्रकार की नैतिक विकृति का एक प्रमुख उदाहरण है।
नैतिक जीवन के तीन विकल्प
**1. सद्गुण नैतिकता: इस दृष्टिकोण में नैतिक चरित्र और गुणों के विकास पर जोर दिया जाता है। इसमें ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, और सहानुभूति जैसे गुण शामिल होते हैं। निजी क्षेत्र में, यह नैतिक व्यवहार और व्यक्तिगत जिम्मेदारी की संस्कृति को बढ़ावा देने की बात है।
**2. कर्तव्यवादी नैतिकता: इस दृष्टिकोण में नियमों और कर्तव्यों का पालन महत्वपूर्ण होता है। यह मानता है कि कुछ कार्य स्वाभाविक रूप से सही या गलत होते हैं, चाहे परिणाम कुछ भी हों। व्यापार जगत में, इसका मतलब है कानूनी और नैतिक दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करना, जैसे कि पर्यावरणीय नियमों और न्यायपूर्ण श्रम प्रथाओं का पालन।
**3. परिणामवाद: इस दृष्टिकोण में क्रियाओं के परिणाम या प्रभाव को ध्यान में रखा जाता है। इसे इस प्रकार से देखा जाता है कि किसी कार्य की नैतिकता इसके समग्र कल्याण पर प्रभाव द्वारा मापी जाती है। निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए, इसका मतलब है कि व्यापार प्रथाओं के दीर्घकालिक प्रभाव को ध्यान में रखा जाए, जैसे कि कर्मचारियों, समुदायों, और पर्यावरण पर प्रभाव।
निष्कर्ष: निजी क्षेत्र में नैतिक विकृतियों को संबोधित करने के लिए, सद्गुण नैतिकता, कर्तव्यवादी नैतिकता, और परिणामवाद जैसे नैतिक दृष्टिकोणों को संतुलित रूप से अपनाना आवश्यक है। कंपनियों को इन नैतिक ढांचों के साथ अपने व्यवहार को संरेखित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए।
"सहनशीलता सर्वोत्तम मूलभूत मूल्य है" इस कथन की विवेचना एक लोक सेवक के संदर्भ में कीजिए। (200 Words) [UPPSC 2022]
सहनशीलता: लोक सेवक के संदर्भ में सर्वोत्तम मूलभूत मूल्य 1. सहनशीलता की परिभाषा और महत्व (Definition and Importance): सहनशीलता: विभिन्न दृष्टिकोणों, संस्कृतियों, और विश्वासों को समझने और सम्मान करने की क्षमता। यह गुण लोक सेवकों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे समाज के विभिन्न हिस्सों केRead more
सहनशीलता: लोक सेवक के संदर्भ में सर्वोत्तम मूलभूत मूल्य
1. सहनशीलता की परिभाषा और महत्व (Definition and Importance):
2. लोक सेवक के कार्य में सहनशीलता का अनुप्रयोग (Application in Civil Service):
3. हाल के उदाहरण (Recent Examples):
4. चुनौतियाँ और समाधान (Challenges and Solutions):
निष्कर्षतः, सहनशीलता एक लोक सेवक के लिए सर्वोत्तम मूलभूत मूल्य है क्योंकि यह प्रभावी प्रशासन, सामाजिक समरसता, और सकारात्मक नेतृत्व के लिए आवश्यक है। सहनशीलता सुनिश्चित करती है कि लोक सेवक विभिन्न सामाजिक मुद्दों को निष्पक्षता और सम्मान के साथ संबोधित कर सकें, जिससे समाज में विश्वास और सहयोग बढ़े।
See lessक्या आप स्वीकारते हैं कि जन संस्थाएँ जनता के अधिकारों के संरक्षण में सफल है ? (125 Words) [UPPSC 2022]
जन संस्थाएँ और जनता के अधिकारों का संरक्षण सफलता के उदाहरण: जन संस्थाएँ आमतौर पर जनता के अधिकारों के संरक्षण में सफल रही हैं। सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम ने नागरिकों को सार्वजनिक अधिकारियों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही में वृद्धि हुई है। सुप्रीम कोर्टRead more
जन संस्थाएँ और जनता के अधिकारों का संरक्षण
सफलता के उदाहरण: जन संस्थाएँ आमतौर पर जनता के अधिकारों के संरक्षण में सफल रही हैं। सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम ने नागरिकों को सार्वजनिक अधिकारियों से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही में वृद्धि हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 377 पर निर्णय देकर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया, जो व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
चुनौतियाँ और सीमाएँ: हालांकि, चुनौतियाँ भी हैं। पुलिस उत्पीड़न और न्यायिक प्रणाली में देरी कभी-कभी संस्थानों की प्रभावशीलता को प्रभावित करती हैं। हाल के अंधराठा कांड में पुलिस की भूमिका पर उठे सवाल और न्यायिक देरी समस्याएँ हैं जो अधिकारों के संरक्षण में बाधा डालती हैं।
निष्कर्ष: जन संस्थाएँ अधिकारों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, लेकिन निरंतर सुधार और निगरानी आवश्यक है ताकि इन संस्थाओं की प्रभावशीलता सुनिश्चित की जा सके।
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