Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
नीतिशास्त्र एवं नैतिकता में विभेद कीजिये तथा नीतिशास्त्रीय कार्यों के निर्धारक तत्त्वों की व्याख्या कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2018]
नीतिशास्त्र और नैतिकता में विभेद 1. परिभाषा: नीतिशास्त्र (Ethics) पेशेवर या सामाजिक संदर्भ में व्यवहार को मार्गदर्शित करने वाले सिद्धांतों का एक संरचित सेट है। यह आमतौर पर औपचारिक दिशा-निर्देशों और पेशेवर मानकों में संहिताबद्ध होता है। उदाहरण के लिए, IAS अधिकारियों के लिए आचार संहिता नैतिक सिद्धांतोRead more
नीतिशास्त्र और नैतिकता में विभेद
1. परिभाषा:
2. स्रोत:
नीतिशास्त्रीय कार्यों के निर्धारक तत्त्व
1. व्यक्तिगत ईमानदारी: व्यक्तिगत ईमानदारी और मूल्यों में निरंतरता नीतिशास्त्रीय व्यवहार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उदाहरण के लिए, डॉ. एपीजे Abdul Kalam ने पारदर्शिता बनाए रखी, जिससे उनके नैतिक दृष्टिकोण को बल मिला।
2. कानूनी ढांचा: कानून और नियम नीतिशास्त्रीय कार्यों की सीमाएँ निर्धारित करते हैं। हाल के भ्रष्टाचार विरोधी कानून ने शासन में नैतिक आचरण को सुदृढ़ किया है।
3. संगठनात्मक संस्कृति: एक संगठन की नैतिक जलवायु व्यवहार को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, Patagonia ने पर्यावरणीय स्थिरता के प्रति अपने प्रतिबद्धता के माध्यम से नैतिक संस्कृति को बढ़ावा दिया है।
4. सामाजिक मानक और मूल्य: सांस्कृतिक और सामाजिक मानक नैतिक व्यवहार को आकारित करते हैं। जैसे #MeToo आंदोलन ने कैसे सामाजिक मूल्यों की बदलती धारा के अनुसार नैतिक मानक और आचरण को प्रभावित किया है।
इस प्रकार, नीतिशास्त्र और नैतिकता दोनों मार्गदर्शक होते हैं, लेकिन नीतिशास्त्र बाहरी और प्रणालीगत होता है, जबकि नैतिकता व्यक्तिगत और सांस्कृतिक रूप से प्रभावित होती है। नैतिक कार्यों के निर्धारक तत्त्व व्यक्तिगत ईमानदारी, कानूनी ढांचा, संगठनात्मक संस्कृति, और सामाजिक मानक हैं।
See less"प्रभावी प्रशासन के लिये लोक सेवा के प्रति समर्पण आवश्यक होता है।" व्याख्या कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2018]
प्रभावी प्रशासन और लोक सेवा के प्रति समर्पण 1. सेवा की प्रतिबद्धता: प्रभावी प्रशासन के लिए लोक सेवा के प्रति गहरी प्रतिबद्धता आवश्यक है। उदाहरण के तौर पर, दिल्ली की COVID-19 प्रतिक्रिया में अधिकारियों की प्रतिबद्धता ने टीकों और संसाधनों के वितरण में दक्षता सुनिश्चित की, जिससे सार्वजनिक विश्वास और कलRead more
प्रभावी प्रशासन और लोक सेवा के प्रति समर्पण
1. सेवा की प्रतिबद्धता: प्रभावी प्रशासन के लिए लोक सेवा के प्रति गहरी प्रतिबद्धता आवश्यक है। उदाहरण के तौर पर, दिल्ली की COVID-19 प्रतिक्रिया में अधिकारियों की प्रतिबद्धता ने टीकों और संसाधनों के वितरण में दक्षता सुनिश्चित की, जिससे सार्वजनिक विश्वास और कल्याण बढ़ा।
2. उत्तरदायित्व और पारदर्शिता: लोक सेवा के प्रति समर्पण में उच्च मानकों का पालन और पारदर्शिता शामिल है। प्रधानमंत्री जन धन योजना एक उदाहरण है, जहाँ प्रशासनिक समर्पण ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया और गरीबों के लिए बैंकों की सेवाओं को सुगम बनाया।
3. सक्रिय समस्या समाधान: प्रशासनिक अधिकारियों को सार्वजनिक मुद्दों का सक्रिय समाधान करना चाहिए। स्वच्छ भारत मिशन ने स्वच्छता और sanitation में समर्पण के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य और जीवन गुणवत्ता में सुधार किया।
4. नैतिक नेतृत्व: समर्पण में नैतिक आचरण और उदाहरण पेश करना शामिल है। उत्तर प्रदेश के भ्रष्टाचार विरोधी पहल ने दिखाया कि लोक सेवा के प्रति समर्पण भ्रष्टाचार को कम करने और शासन को बेहतर बनाने में सहायक होता है।
इस प्रकार, लोक सेवा के प्रति समर्पण प्रभावी प्रशासन के लिए आवश्यक है, जो बेहतर शासन और सार्वजनिक कल्याण को सुनिश्चित करता है।
See less"सहनशीलता सर्वोत्तम मूलभूत मूल्य है" इस कथन की विवेचना एक लोक सेवक के संदर्भ में कीजिए। (200 Words) [UPPSC 2022]
सहनशीलता: लोक सेवक के संदर्भ में सर्वोत्तम मूलभूत मूल्य 1. सहनशीलता की परिभाषा और महत्व (Definition and Importance): सहनशीलता: विभिन्न दृष्टिकोणों, संस्कृतियों, और विश्वासों को समझने और सम्मान करने की क्षमता। यह गुण लोक सेवकों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे समाज के विभिन्न हिस्सों केRead more
सहनशीलता: लोक सेवक के संदर्भ में सर्वोत्तम मूलभूत मूल्य
1. सहनशीलता की परिभाषा और महत्व (Definition and Importance):
2. लोक सेवक के कार्य में सहनशीलता का अनुप्रयोग (Application in Civil Service):
3. हाल के उदाहरण (Recent Examples):
4. चुनौतियाँ और समाधान (Challenges and Solutions):
निष्कर्षतः, सहनशीलता एक लोक सेवक के लिए सर्वोत्तम मूलभूत मूल्य है क्योंकि यह प्रभावी प्रशासन, सामाजिक समरसता, और सकारात्मक नेतृत्व के लिए आवश्यक है। सहनशीलता सुनिश्चित करती है कि लोक सेवक विभिन्न सामाजिक मुद्दों को निष्पक्षता और सम्मान के साथ संबोधित कर सकें, जिससे समाज में विश्वास और सहयोग बढ़े।
See lessकरुणा की आधारभूत आवश्यकताएँ क्या हैं? लोक सेवा में कमज़ोर वर्ग के प्रति करुणा की क्या आवश्यकता है ? (200 Words) [UPPSC 2022]
करुणा की आधारभूत आवश्यकताएँ 1. सहानुभूति (Empathy): करुणा की पहली आवश्यकता दूसरों की भावनाओं और परिस्थितियों को समझने की है। सहानुभूति के बिना करुणा असंभव है। उदाहरण के लिए, कोविड-19 महामारी के दौरान, स्वास्थ्यकर्मियों ने मरीजों के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए उनकी देखभाल की। 2. सक्रिय सुनना (Active LRead more
करुणा की आधारभूत आवश्यकताएँ
1. सहानुभूति (Empathy):
2. सक्रिय सुनना (Active Listening):
3. सहायक कार्य (Supportive Actions):
लोक सेवा में कमज़ोर वर्ग के प्रति करुणा की आवश्यकता
1. समावेशी सेवा वितरण (Equitable Service Delivery):
2. विश्वास निर्माण (Building Trust):
3. असमानता घटाना (Reducing Inequality):
4. नीति प्रभावी कार्यान्वयन (Effective Policy Implementation):
क्रोध एक हानिकारक नकारात्मक संवेग है, यह व्यक्तिगत जीवन एवं कार्य जीवन दोनों के लिये हानिकारक है। इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है? व्याख्या कीजिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
क्रोध नियंत्रण के उपाय: व्यक्तिगत और कार्य जीवन में प्रभाव 1. क्रोध का प्रभाव: क्रोध एक हानिकारक नकारात्मक संवेग है जो व्यक्तिगत जीवन और कार्य जीवन दोनों में नुकसान पहुंचा सकता है। यह रिश्तों को बिगाड़ सकता है, निर्णय क्षमता को प्रभावित कर सकता है, और प्रोफेशनल प्रदर्शन को भी नुकसान पहुंचा सकता है।Read more
क्रोध नियंत्रण के उपाय: व्यक्तिगत और कार्य जीवन में प्रभाव
1. क्रोध का प्रभाव: क्रोध एक हानिकारक नकारात्मक संवेग है जो व्यक्तिगत जीवन और कार्य जीवन दोनों में नुकसान पहुंचा सकता है। यह रिश्तों को बिगाड़ सकता है, निर्णय क्षमता को प्रभावित कर सकता है, और प्रोफेशनल प्रदर्शन को भी नुकसान पहुंचा सकता है। उदाहरण के लिए, प्रेस और मीडिया में विवाद और विवादित टिप्पणियाँ, जो क्रोध के कारण होती हैं, अक्सर व्यक्तिगत और पेशेवर प्रतिष्ठा को प्रभावित करती हैं।
2. क्रोध नियंत्रित करने के उपाय:
3. निष्कर्ष: क्रोध को नियंत्रित करने के लिए स्व-चेतना, तनाव प्रबंधन, सकारात्मक संवाद, और पेशेवर मदद महत्वपूर्ण उपाय हैं। इन विधियों को अपनाकर, व्यक्तिगत और कार्य जीवन में सकारात्मकता और संतुलन बनाए रखा जा सकता है, जिससे कि संबंधों और प्रोफेशनल प्रदर्शन में सुधार हो सके।
See lessकार्यवाहियों की नैतिकता के संबंध में एक दृष्टिकोण तो यह है, कि साधन सर्वोपरि महत्त्व के होते हैं और दूसरा दृष्टिकोण यह है कि परिणाम साधनों को उचित सिद्ध करते हैं। आपके विचार में इनमें से कौन-सा दृष्टिकोण अपेक्षाकृत अधिक उपयुक्त है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क पेश कीजिए । (150 words) [UPSC 2018]
कार्यवाहियों की नैतिकता: दृष्टिकोण पर विश्लेषण साधन सर्वोपरि हैं दृष्टिकोण: इस दृष्टिकोण के अनुसार, कार्यवाहियों के लिए प्रयुक्त साधन या तरीके अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। नैतिकता का मूल्यांकन साधनों की नैतिकता पर आधारित होता है, न कि केवल अंतिम परिणाम पर। तर्क: यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि कारRead more
कार्यवाहियों की नैतिकता: दृष्टिकोण पर विश्लेषण
साधन सर्वोपरि हैं
दृष्टिकोण: इस दृष्टिकोण के अनुसार, कार्यवाहियों के लिए प्रयुक्त साधन या तरीके अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। नैतिकता का मूल्यांकन साधनों की नैतिकता पर आधारित होता है, न कि केवल अंतिम परिणाम पर।
तर्क: यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि कार्यवाही के दौरान नैतिक मानक बनाए रखें जाएं, जिससे दीर्घकालिक सकारात्मक प्रभाव और विश्वास बने रहते हैं। उदाहरण: महात्मा गांधी ने सत्याग्रह और अहिंसा के तरीकों से स्वतंत्रता संग्राम लड़ा, जो केवल परिणाम की ओर नहीं, बल्कि साधनों की नैतिकता की ओर भी ध्यान केंद्रित करता था।
परिणाम साधनों को उचित सिद्ध करते हैं
दृष्टिकोण: इस दृष्टिकोण के अनुसार, यदि परिणाम सकारात्मक हैं, तो साधन भले ही अनैतिक क्यों न हों, उन्हें उचित ठहराया जा सकता है।
तर्क: यह दृष्टिकोण कभी-कभी अनुचित साधनों को वैधता प्रदान कर सकता है, जैसे कि एनरॉन स्कैंडल में, जहां अनैतिक तरीके अपनाए गए, लेकिन अंततः इसका परिणाम विनाशकारी रहा।
निष्कर्ष: साधन सर्वोपरि हैं का दृष्टिकोण अधिक उपयुक्त है क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि नैतिकता केवल परिणाम पर निर्भर न होकर, कार्यविधियों के नैतिक आधार पर भी आधारित हो। यह दृष्टिकोण दीर्घकालिक नैतिकता और संगठनात्मक विश्वास को बढ़ावा देता है।
See lessनिम्नलिखित में से प्रत्येक पर 30 शब्दों में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए : (i) सांविधानिक नैतिकता (ii) हितों का संघर्ष (iii) सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा (iv) डिजिटिकरण की चुनौतियाँ (v) कर्तव्यनिष्ठा
(i) सांविधानिक नैतिकता सांविधानिक नैतिकता का तात्पर्य संविधान के मूलभूत सिद्धांतों, मूल्यों और आदर्शों के प्रति समर्पण से है। यह न्याय, समानता, और विधि के शासन को बनाए रखने में सहायक होती है। (ii) हितों का संघर्ष हितों का संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब विभिन्न व्यक्तियों या समूहों के व्यक्तिगत लाभ एक-Read more
(i) सांविधानिक नैतिकता
सांविधानिक नैतिकता का तात्पर्य संविधान के मूलभूत सिद्धांतों, मूल्यों और आदर्शों के प्रति समर्पण से है। यह न्याय, समानता, और विधि के शासन को बनाए रखने में सहायक होती है।
(ii) हितों का संघर्ष
हितों का संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब विभिन्न व्यक्तियों या समूहों के व्यक्तिगत लाभ एक-दूसरे से टकराते हैं। इससे समाधान की दिशा में विवाद और निर्णयों में जटिलता पैदा होती है।
(iii) सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा
सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा का अर्थ है ईमानदारी और पारदर्शिता बनाए रखना। यह समाज में विश्वास और भरोसे को बढ़ावा देती है, जिससे सरकारी और सामाजिक संस्थाएँ प्रभावी बनती हैं।
(iv) डिजिटिकरण की चुनौतियाँ
डिजिटिकरण के साथ डेटा सुरक्षा, गोपनीयता, और डिजिटल खतरों जैसी समस्याएँ बढ़ जाती हैं। इसके अतिरिक्त, डिजिटल विषमताएँ और तकनीकी साक्षरता की कमी भी प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
(v) कर्तव्यनिष्ठा
See lessकर्तव्यनिष्ठा का मतलब है अपने कार्यों और जिम्मेदारियों के प्रति ईमानदारी और लगन से काम करना। यह व्यक्ति की व्यक्तिगत और पेशेवर सफलता के लिए महत्वपूर्ण होती है।
'नैतिक अंतर्ज्ञान' से 'नैतिक तर्कशक्ति' का अन्तर स्पष्ट करते हुए उचित उदाहरण दीजिए । (150 words)[UPSC 2023]
नैतिक अंतर्ज्ञान और नैतिक तर्कशक्ति में अंतर नैतिक अंतर्ज्ञान: नैतिक अंतर्ज्ञान वह स्वचालित और तात्कालिक नैतिक निर्णय है जो भावनात्मक प्रतिक्रिया या आदतों पर आधारित होता है। उदाहरण के तौर पर, दया और करुणा की भावना से किसी गरीब को मदद करने की तत्परता दिखाना नैतिक अंतर्ज्ञान का एक उदाहरण है। यह भावनाRead more
नैतिक अंतर्ज्ञान और नैतिक तर्कशक्ति में अंतर
नैतिक अंतर्ज्ञान: नैतिक अंतर्ज्ञान वह स्वचालित और तात्कालिक नैतिक निर्णय है जो भावनात्मक प्रतिक्रिया या आदतों पर आधारित होता है। उदाहरण के तौर पर, दया और करुणा की भावना से किसी गरीब को मदद करने की तत्परता दिखाना नैतिक अंतर्ज्ञान का एक उदाहरण है। यह भावना तुरंत उत्पन्न होती है और सोच-विचार की प्रक्रिया के बिना आंतरिक विश्वासों और सांस्कृतिक मान्यताओं पर आधारित होती है।
नैतिक तर्कशक्ति: नैतिक तर्कशक्ति में नैतिक मुद्दों पर सावधानीपूर्वक और तर्कसंगत विचार शामिल होता है, जिसमें तर्क, मूल्य और परिणामों का विश्लेषण किया जाता है। उदाहरण के लिए, वातावरण संरक्षण के लिए सरकारी नीतियों पर चर्चा करते समय, नीति निर्माता तर्कशक्ति का उपयोग करते हैं। वे विभिन्न पर्यावरणीय प्रभावों और भविष्य की पीढ़ियों के प्रति नैतिक जिम्मेदारियों का विश्लेषण करते हैं, न कि केवल भावनात्मक प्रतिक्रियाओं पर निर्भर होते हैं।
इस प्रकार, नैतिक अंतर्ज्ञान तात्कालिक और भावनात्मक निर्णय प्रदान करता है, जबकि नैतिक तर्कशक्ति गहरे विचार और विश्लेषण पर आधारित होता है।
See lessप्रशासकों द्वारा धारित शक्ति, यदि सही तरीके से प्रयोग की जाए तो देश को महान लाभ प्रदान कर सकती है, लेकिन यदि इसका दुरुपयोग किया जाए तो क्षति और अपमान का कारण बन सकती है। सविस्तार वर्णन कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दें)
प्रशासकों द्वारा धारित शक्ति, यदि सही तरीके से प्रयोग की जाए, तो यह देश के विकास और समृद्धि के लिए अत्यंत लाभकारी हो सकती है। जब प्रशासक अपनी शक्ति का प्रयोग पारदर्शिता, न्याय और सतत सुधार के लिए करते हैं, तो वे कानून के शासन को मजबूत करते हैं, प्रशासनिक कुशलता में सुधार करते हैं, और नागरिकों के जीवRead more
प्रशासकों द्वारा धारित शक्ति, यदि सही तरीके से प्रयोग की जाए, तो यह देश के विकास और समृद्धि के लिए अत्यंत लाभकारी हो सकती है। जब प्रशासक अपनी शक्ति का प्रयोग पारदर्शिता, न्याय और सतत सुधार के लिए करते हैं, तो वे कानून के शासन को मजबूत करते हैं, प्रशासनिक कुशलता में सुधार करते हैं, और नागरिकों के जीवनस्तर को बेहतर बनाते हैं। इसके परिणामस्वरूप सामाजिक न्याय, आर्थिक विकास, और समृद्धि को बढ़ावा मिलता है।
इसके विपरीत, यदि शक्ति का दुरुपयोग किया जाए, तो यह भ्रष्टाचार, शोषण, और संस्थागत विफलता का कारण बन सकता है। जब प्रशासक अपने अधिकार का अनुचित लाभ उठाते हैं या निजी स्वार्थ के लिए इसका प्रयोग करते हैं, तो इससे समाज में असमानता, असंतोष, और विश्वास की कमी उत्पन्न होती है। इस प्रकार, शक्ति का दुरुपयोग न केवल प्रशासन की छवि को धूमिल करता है बल्कि देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को भी नुकसान पहुँचाता है।
See less