भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारकों का उल्लेख कीजिए। प्रारम्भिक राष्ट्रवादियों के प्रति ब्रिटिश नीतियों की चर्चा कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
19वीं सदी में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ कई जनजातीय प्रतिरोध आंदोलन उठे थे। इन आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनजातियों की अपनी पारंपरिक आज़ादी और भूस्वामित्व की रक्षा करना था। हालांकि इन आंदोलनों की असफलता के कई कारण थे, लेकिन इनकी विशेषताएँ और संघर्ष भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थानRead more
19वीं सदी में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ कई जनजातीय प्रतिरोध आंदोलन उठे थे। इन आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनजातियों की अपनी पारंपरिक आज़ादी और भूस्वामित्व की रक्षा करना था। हालांकि इन आंदोलनों की असफलता के कई कारण थे, लेकिन इनकी विशेषताएँ और संघर्ष भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
जनजातीय प्रतिरोध की विशेषताएँ
- स्थानीय और स्वदेशी संघर्ष
- जनजातीय आंदोलनों का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य और उनके द्वारा लागू किए गए नए कानूनों, कर व्यवस्था, और जंगलों के अधिकारों से मुक्ति था। उदाहरण के लिए, संताली विद्रोह (1855-1856) और कोल विद्रोह (1831-1832) ने ब्रिटिश शासन द्वारा जनजातीय भूमि पर किए गए अतिक्रमण और अत्याचारों के खिलाफ प्रतिरोध किया।
- इन आंदोलनों में मुख्य रूप से निहत्थे लड़ाई और आदिवासी जनों द्वारा जंगलों में छिपकर किया गया संघर्ष शामिल था।
- आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रेरणा
- जनजातीय प्रतिरोध आंदोलन अक्सर धार्मिक और सांस्कृतिक प्रेरणा से भी जुड़े होते थे। संताली विद्रोह का नेतृत्व सिदो और कान्हू ने किया था, जिनका धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण प्रतिरोध को बढ़ावा देने के लिए प्रेरणादायक था।
- कई बार आंदोलन को धार्मिक नेता और साधू संत प्रोत्साहित करते थे, जो समाज में व्याप्त अन्याय और शोषण के खिलाफ थे।
- ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वाभाविक असहमति
- जनजातीय समुदायों में ब्रिटिश शासन द्वारा की गई नीतियों के प्रति स्वाभाविक असहमति थी, खासकर उनके जीवन और संसाधनों पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर। झारखंड और उड़ीसा में कोल विद्रोह इसका एक उदाहरण था, जिसमें आदिवासी समुदायों ने भूमि के अधिकार और शोषण के खिलाफ विद्रोह किया था।
असफलता के कारण
- अल्पसंख्यक समर्थन और संगठन की कमी
- जनजातीय समुदायों का संगठन अक्सर कमजोर था, और इन्हें मुख्यधारा के राजनीतिक दलों का पर्याप्त समर्थन नहीं मिलता था। यह उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संगठित होकर लम्बे समय तक संघर्ष करने में असफल बनाता था।
- उदाहरण के लिए, संताली विद्रोह और कोल विद्रोह जैसे आंदोलनों में नेतृत्व का अभाव और बाहरी समर्थन की कमी प्रमुख कारण था, जो अंततः उनकी असफलता का कारण बने।
- ब्रिटिश साम्राज्य की शक्ति
- ब्रिटिश साम्राज्य के पास मजबूत सैन्य ताकत और संसाधन थे, जिन्हें जनजातीय समुदायों के छोटे और कमजोर प्रतिरोधों को कुचलने में कोई कठिनाई नहीं थी। इनके पास सैन्य शक्ति और आधिकारिक प्रशासन था, जो जनजातीय आंदोलनों को कुचलने के लिए काफी प्रभावी साबित हुआ।
- उदाहरण के लिए, कोल विद्रोह को ब्रिटिश सेना ने कुचल दिया था, क्योंकि जनजातीय लोग संगठन और पर्याप्त हथियारों से लैस नहीं थे।
- सामाजिक और राजनीतिक संरचना का अभाव
- जनजातीय समाजों में पारंपरिक रूप से एकीकृत राजनीतिक संरचना की कमी थी, जिससे उन्हें संगठित और समन्वित प्रतिरोध करने में मुश्किल होती थी। इनके पास पश्चिमी रूप में संगठित सैन्य बल या आधुनिक राजनीति की समझ नहीं थी, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ प्रभावी हो सके।
- आर्थिक दबाव और शोषण
- ब्रिटिश साम्राज्य ने इन जनजातीय समुदायों को आर्थिक शोषण का शिकार बनाया। खेती के पारंपरिक तरीके बदलने और नए कर व्यवस्था को लागू करने से जनजातीय लोग अपनी आज़ादी और संसाधनों को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे, लेकिन यह संघर्ष आर्थिक दवाबों के कारण लंबे समय तक टिक नहीं सका।
निष्कर्ष
19वीं सदी में जनजातीय प्रतिरोध आंदोलनों ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया, लेकिन इनकी असफलता के प्रमुख कारण थे संगठन की कमी, आर्थिक शोषण, और ब्रिटिश साम्राज्य की सैन्य ताकत। हालांकि, इन आंदोलनों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए आधार तैयार किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा दी।
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भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारक भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस (INC) की स्थापना 1885 में हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता के हितों को ब्रिटिश सरकार के सामने रखना और एक संगठित मंच तैयार करना था। इसकी स्थापना के पीछे कई महत्वपूर्ण कारक थे: 1. ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियाँRead more
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारक
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस (INC) की स्थापना 1885 में हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता के हितों को ब्रिटिश सरकार के सामने रखना और एक संगठित मंच तैयार करना था। इसकी स्थापना के पीछे कई महत्वपूर्ण कारक थे:
1. ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियाँ
2. आर्थिक शोषण
और सार्वजनिक राय**
5. राजनका अभाव
प्रारम्भिक राष्ट्रवादियों के प्रति ब्रिटिश नीतियाँ
कांग्रेस की स्थापना के बाद, ब्रिटिश सरकार ने प्रारम्भिक राष्ट्रवादी नेताओं (जिन्हें नरम दल भी कहा जाता है) के प्रति मिलाजुला रवैया अपनाया।
1. समर्थन और प्रोत्साहन
2. प्रतिबंधात्मक नीति
3. फूट डालो और राज करो नीति
4. कांग्रेसी नेताओं का अपमान
निष्कर्ष
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना ने भारतीय समाज में जागरूकता और एकता का संचार किया, जो बाद में स्वतंत्रता संग्राम का आधार बना। ब्रिटिश नीतियों ने पहले नरम दल को अनदेखा किया, लेकिन जब ये नेता प्रभावी होने लगे, तो सरकार ने दबाव डालने का प्रयास किया। कांग्रेस के प्रारम्भिक नेताओं ने अहिंसा और संवैधानिक माध्यम से अपने अधिकारों की माँग की, जिससे देश में स्वतंत्रता की भावना प्रबल हुई।
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