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मौर्यकालीन कला की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
मौर्यकालीन कला की प्रमुख विशेषताएँ प्रस्तावना मौर्य साम्राज्य (लगभग 322-185 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास का एक प्रमुख और समृद्ध काल था। मौर्य काल में कला और स्थापत्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास हुए, जो भारतीय कला के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए। इस समय की कला ने न केवल धार्मिक, बल्कि राजनीतिक औRead more
मौर्यकालीन कला की प्रमुख विशेषताएँ
प्रस्तावना
मौर्य साम्राज्य (लगभग 322-185 ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास का एक प्रमुख और समृद्ध काल था। मौर्य काल में कला और स्थापत्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विकास हुए, जो भारतीय कला के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुए। इस समय की कला ने न केवल धार्मिक, बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। मौर्य कला की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
मौर्यकालीन कला की प्रमुख विशेषताएँ
1. अशोककालीन कला
मौर्यकाल की कला में सबसे महत्वपूर्ण योगदान सम्राट अशोक का था। अशोक के शासनकाल में बौद्ध धर्म का प्रचार और स्थायित्व हुआ, जिसके परिणामस्वरूप कला और स्थापत्य में धार्मिक तत्व प्रमुख हो गए। उनकी कला की प्रमुख विशेषताएँ हैं:
2. स्तूप और स्तंभ
मौर्य काल में स्थापत्य कला के क्षेत्र में विशेष प्रगति हुई थी। दो प्रमुख स्थापत्य संरचनाएँ थीं:
3. पत्थर की नक्काशी और उकेरी गई कला
मौर्यकालीन कला में पत्थर की नक्काशी का प्रयोग बढ़ा। मौर्य काल के स्थापत्य में कुशल पत्थर-शिल्पकला का उपयोग किया गया, जिनमें उकेरी हुई चित्रकला और राहत चित्रण शामिल थे।
4. भव्यता और सरलता
मौर्य काल की कला में भव्यता और सरलता का अद्भुत संतुलन था। जबकि मौर्य कला का उद्देश्य धार्मिक प्रचार था, साथ ही यह स्थापत्य और शिल्प में सहज और साधारण रूपों की ओर भी प्रवृत्त थी। इसे गांधी शैली के नाम से जाना जाता है।
5. स्थायित्व और दीर्घकालिक प्रभाव
मौर्यकालीन कला ने न केवल तत्कालीन समय में प्रभाव डाला, बल्कि इसके स्थायी परिणामों ने बाद के समय में भी भारतीय कला की दिशा को प्रभावित किया। मौर्य काल की कला शैली ने बाद में गुप्त काल के स्थापत्य और कला में भी अपना प्रभाव छोड़ा।
मौर्यकालीन कला के उदाहरण
निष्कर्ष
मौर्यकालीन कला ने भारतीय स्थापत्य और मूर्तिकला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस काल की प्रमुख विशेषताएँ धार्मिक प्रभाव, भव्यता और शिल्प की सरलता, तथा स्थायित्व की ओर संकेत करती हैं। मौर्यकाल की कला ने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनी।
See less1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन पर एक निबन्ध लिखिए। क्या यह एक अनायास ही होने वाला आन्दोलन था? [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
प्रस्तावना भारत छोड़ो आन्दोलन (Quit India Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक और महत्वपूर्ण चरण था। 9 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी ने "अंग्रेजों भारत छोड़ो" का नारा देते हुए इस आन्दोलन की शुरुआत की। यह आन्दोलन भारत को विदेशी शासन से मुक्त कराने की भारतीय जनता की असीमित लालसा और दृढ़ नRead more
प्रस्तावना
भारत छोड़ो आन्दोलन (Quit India Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक और महत्वपूर्ण चरण था। 9 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी ने “अंग्रेजों भारत छोड़ो” का नारा देते हुए इस आन्दोलन की शुरुआत की। यह आन्दोलन भारत को विदेशी शासन से मुक्त कराने की भारतीय जनता की असीमित लालसा और दृढ़ निश्चय का प्रतीक था।
भारत छोड़ो आन्दोलन का पृष्ठभूमि
इस आन्दोलन की नींव द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में रखी गई थी। अंग्रेजों ने बिना भारतीय नेताओं की सहमति के भारत को इस युद्ध में झोंक दिया था। ब्रिटिश शासन का दमनकारी रवैया, भारतीयों के मूलभूत अधिकारों का हनन और युद्ध के कारण बढ़ती आर्थिक समस्याएं इस आन्दोलन के प्रमुख कारण थे। इसके अलावा:
भारत छोड़ो आन्दोलन का आरंभ
8 अगस्त 1942 को मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में कांग्रेस ने एक विशेष अधिवेशन आयोजित किया। महात्मा गांधी ने इसमें “करो या मरो” (Do or Die) का आह्वान किया। इसके तुरंत बाद, ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, जिसमें महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल शामिल थे। इससे जनता में गहरी असंतोष की भावना फैल गई, और देशभर में विरोध प्रदर्शन होने लगे।
आन्दोलन की प्रमुख घटनाएँ और प्रभाव
आन्दोलन के दौरान प्रमुख गतिविधियाँ:
आन्दोलन के परिणाम:
क्या यह अनायास ही होने वाला आन्दोलन था?
नहीं, भारत छोड़ो आन्दोलन अनायास नहीं था। यह संगठित और पूर्व-निर्धारित आन्दोलन था। इसके लिए जनता को जागरूक किया गया था, आन्दोलन के लिए वातावरण तैयार था, और इसका उद्देश्य स्पष्ट था। इसके मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
निष्कर्ष
1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस आन्दोलन ने यह स्पष्ट कर दिया कि अब भारतीय जनता ब्रिटिश शासन को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है। यह आन्दोलन अनायास नहीं था, बल्कि वर्षों की संघर्ष, प्रेरणा और राष्ट्रीय चेतना का परिणाम था जिसने भारत की स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।
See lessएक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नायक के रूप में गाँधीजी के उदय के लिए उत्तरदायी कारकों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
गाँधीजी के उदय के लिए उत्तरदायी कारकों का आलोचनात्मक विश्लेषण महात्मा गांधी, जिन्हें मोहनदास करमचंद गांधी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उनके उदय के पीछे कई सामाजिक, राजनीतिक, और व्यक्तिगत कारक थे, जिन्होंने उन्हें एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नायक केRead more
गाँधीजी के उदय के लिए उत्तरदायी कारकों का आलोचनात्मक विश्लेषण
महात्मा गांधी, जिन्हें मोहनदास करमचंद गांधी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उनके उदय के पीछे कई सामाजिक, राजनीतिक, और व्यक्तिगत कारक थे, जिन्होंने उन्हें एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नायक के रूप में स्थापित किया। इस विश्लेषण में हम इन कारकों की गहराई से समीक्षा करेंगे।
1. सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ
1.1 ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियाँ
1.2 शिक्षा और जागरूकता
2. व्यक्तिगत गुण और नेतृत्व क्षमता
2.1 आध्यात्मिकता और नैतिकता
2.2 प्रभावी संचार कौशल
3. अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांत
3.1 सत्याग्रह की रणनीति
3.2 समरसता और एकता
4. आर्थिक नीतियाँ और स्वावलंबन
4.1 स्वदेशी आंदोलन
4.2 ग्रामीण विकास
5. राजनीतिक संगठनों और आंदोलन
5.1 भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस (INC)
5.2 सामाजिक न्याय और अधिकारिता
6. विदेशी समर्थन और वैश्विक दृष्टिकोण
6.1 अंतरराष्ट्रीय मान्यता
6.2 प्रेरणा और प्रभाव
निष्कर्ष
महात्मा गांधी के उदय के पीछे कई महत्वपूर्ण कारक थे, जिनमें सामाजिक और राजनीतिक संदर्भ, व्यक्तिगत गुण, अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांत, आर्थिक नीतियाँ, राजनीतिक संगठन, और विदेशी समर्थन शामिल हैं। इन सभी कारकों ने मिलकर उन्हें एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय नायक के रूप में स्थापित किया। गांधीजी का जीवन और उनका संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रेरणादायक उदाहरण रहा है, जिसने लाखों लोगों को स्वतंत्रता की दिशा में प्रेरित किया।
See less1857-1947 के मध्य बिहार में पाश्चात्य एवं तकनीकी शिक्षा के विस्तार के क्रम को अनुरेखित कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
1857-1947 के मध्य बिहार में पाश्चात्य एवं तकनीकी शिक्षा का विस्तार बिहार में 1857 से 1947 के बीच पाश्चात्य एवं तकनीकी शिक्षा का प्रसार कई ऐतिहासिक घटनाओं और नीतियों का परिणाम था। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में पाश्चात्य शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कदम उठाए, जिससे आधुनिक शिक्षा कRead more
1857-1947 के मध्य बिहार में पाश्चात्य एवं तकनीकी शिक्षा का विस्तार
बिहार में 1857 से 1947 के बीच पाश्चात्य एवं तकनीकी शिक्षा का प्रसार कई ऐतिहासिक घटनाओं और नीतियों का परिणाम था। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में पाश्चात्य शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कदम उठाए, जिससे आधुनिक शिक्षा का विस्तार हुआ और समाज में जागरूकता फैली।
1. 1857 के बाद का प्रारंभिक दौर
2. पैटन कॉलेज की स्थापना (1863)
3. साइंस कॉलेज, पटना का उदय
4. पटना मेडिकल कॉलेज (1925)
5. मौलाना मजहरुल हक़ अरबिक एंड पर्शियन यूनिवर्सिटी
6. तकनीकी शिक्षा का विकास
ब्रिटिश शासन का प्रभाव और परिणाम
ब्रिटिश शासन के अंतर्गत पाश्चात्य शिक्षा ने बिहार में शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से बदल दिया। छात्रों में स्वतंत्रता, समानता और आधुनिक सोच को बढ़ावा मिला, जिससे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी हुई। इस दौरान बिहार में सामाजिक सुधार, राजनीतिक जागरूकता और आधुनिक विज्ञान की शिक्षा का आधार तैयार हुआ।
निष्कर्ष
1857 से 1947 के बीच बिहार में पाश्चात्य और तकनीकी शिक्षा का प्रसार सामाजिक और राजनीतिक विकास का एक महत्वपूर्ण अंग बना। शिक्षा ने न केवल समाज में जागरूकता और चेतना फैलाई, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम को भी सशक्त बनाया।
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारकों का उल्लेख कीजिए। प्रारम्भिक राष्ट्रवादियों के प्रति ब्रिटिश नीतियों की चर्चा कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारक भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस (INC) की स्थापना 1885 में हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता के हितों को ब्रिटिश सरकार के सामने रखना और एक संगठित मंच तैयार करना था। इसकी स्थापना के पीछे कई महत्वपूर्ण कारक थे: 1. ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियाँRead more
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना के लिए उत्तरदायी कारक
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस (INC) की स्थापना 1885 में हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता के हितों को ब्रिटिश सरकार के सामने रखना और एक संगठित मंच तैयार करना था। इसकी स्थापना के पीछे कई महत्वपूर्ण कारक थे:
1. ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियाँ
2. आर्थिक शोषण
और सार्वजनिक राय**
5. राजनका अभाव
प्रारम्भिक राष्ट्रवादियों के प्रति ब्रिटिश नीतियाँ
कांग्रेस की स्थापना के बाद, ब्रिटिश सरकार ने प्रारम्भिक राष्ट्रवादी नेताओं (जिन्हें नरम दल भी कहा जाता है) के प्रति मिलाजुला रवैया अपनाया।
1. समर्थन और प्रोत्साहन
2. प्रतिबंधात्मक नीति
3. फूट डालो और राज करो नीति
4. कांग्रेसी नेताओं का अपमान
निष्कर्ष
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना ने भारतीय समाज में जागरूकता और एकता का संचार किया, जो बाद में स्वतंत्रता संग्राम का आधार बना। ब्रिटिश नीतियों ने पहले नरम दल को अनदेखा किया, लेकिन जब ये नेता प्रभावी होने लगे, तो सरकार ने दबाव डालने का प्रयास किया। कांग्रेस के प्रारम्भिक नेताओं ने अहिंसा और संवैधानिक माध्यम से अपने अधिकारों की माँग की, जिससे देश में स्वतंत्रता की भावना प्रबल हुई।
See lessविगत कई वर्षों से बाढ़ एवं सूखे की स्थिति ने बिहार राज्य के उप्रयन एवं समृद्धि को लगातार प्रभावित किया है। इस प्रकार के दुर्घटना प्रबंधन में विज्ञान एवं अभियांत्रिकी की भूमिका की विशिष्ट उदाहरण के साथ विवेचना कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
बाढ़ और सूखे से बिहार की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव बिहार राज्य में बाढ़ और सूखे की स्थिति ने विकास और समृद्धि को प्रभावित किया है। यह राज्य हर वर्ष उत्तर में हिमालय से आने वाली नदियों और दक्षिण में कम वर्षा के कारण प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता है, जिससे कृषि, जल संसाधन, और जनजीवन पर गंभीर प्रभाव पड़तRead more
बाढ़ और सूखे से बिहार की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
बिहार राज्य में बाढ़ और सूखे की स्थिति ने विकास और समृद्धि को प्रभावित किया है। यह राज्य हर वर्ष उत्तर में हिमालय से आने वाली नदियों और दक्षिण में कम वर्षा के कारण प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता है, जिससे कृषि, जल संसाधन, और जनजीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
आपदा प्रबंधन में विज्ञान और अभियांत्रिकी की भूमिका
बिहार में आपदा प्रबंधन को सुदृढ़ करने के लिए विज्ञान और अभियांत्रिकी के कई उपाय अपनाए गए हैं। इनमें तकनीकी समाधान और आधुनिक साधनों का उपयोग महत्वपूर्ण है:
1. भू-स्थानिक तकनीक (Geospatial Technology)
2. अर्ली वार्निंग सिस्टम (Early Warning System)
3. स्मार्ट जल प्रबंधन (Smart Water Management)
4. ड्रोन तकनीक का उपयोग
5. बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (BSDMA) के प्रयास
निष्कर्ष
विज्ञान और अभियांत्रिकी के उपयोग से बिहार में बाढ़ और सूखे से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है। नवीनतम तकनीकों, जैसे GIS, अर्ली वार्निंग सिस्टम, ड्रोन, और जल प्रबंधन, से बिहार राज्य आपदाओं का सामना करने के लिए अधिक सक्षम बनता जा रहा है। इन उपायों से लोगों की जान-माल की सुरक्षा के साथ-साथ राज्य की अर्थव्यवस्था को भी स्थायित्व मिल रहा है।
See less"मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत ने अपने सुरक्षा निबाद में सुरक्षा आयुध्धी एवं उपकरणों को राष्ट्र की सुरक्षा के लिए समाहित कर उसमें वृद्धि की है।" इस कथन की पुत्रि सुरक्षा अभियांत्रिकी में वैज्ञानिक विकास के आधार कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
सुरक्षा अभियांत्रिकी और मेक इन इंडिया कार्यक्रम परिचय "मेक इन इंडिया" कार्यक्रम के अंतर्गत भारत ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण पहल की हैं। इस पहल के तहत, भारत में रक्षा उत्पादन और सुरक्षा उपकरणों के विकास को प्रोत्साहित किया गया है। सुरक्षा अभियांत्रिकीRead more
सुरक्षा अभियांत्रिकी और मेक इन इंडिया कार्यक्रम
परिचय
“मेक इन इंडिया” कार्यक्रम के अंतर्गत भारत ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण पहल की हैं। इस पहल के तहत, भारत में रक्षा उत्पादन और सुरक्षा उपकरणों के विकास को प्रोत्साहित किया गया है। सुरक्षा अभियांत्रिकी में वैज्ञानिक विकास ने भारत को नवीनतम तकनीकों के साथ मजबूत बनाने में सहायक भूमिका निभाई है।
सुरक्षा अभियांत्रिकी में मेक इन इंडिया के अंतर्गत विकास
1. रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता
2. आधुनिक तकनीकी विकास
3. नवीनतम हथियार प्रणाली और उपकरणों का निर्माण
वैज्ञानिक विकास के प्रभाव
निष्कर्ष
मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत किए गए वैज्ञानिक और तकनीकी विकास ने भारत की रक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। स्वदेशी उत्पादन से न केवल हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूती मिलती है, बल्कि देश की आर्थिक और तकनीकी प्रगति भी होती है। यह कार्यक्रम भारत को रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
See lessवर्तमान में विश्व के अनेक राष्ट्रों के वैज्ञानिकों का एक प्रमुख ध्येय दूसरे ग्रहों पर बीवन की खोज है। भारत के द्वारा अंतरिक्ष शोध के विकास की विवेचना, विशेष रूप से 21वीं सदी में, इस ध्येय की पूर्ति के लिए कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज और भारत का अंतरिक्ष शोध वर्तमान में विश्व के अनेक राष्ट्रों के वैज्ञानिक और अंतरिक्ष एजेंसियाँ अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज में सक्रिय हैं। भारत भी इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, विशेषकर 21वीं सदी में अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में उसकी प्रगति उल्लेखनीय रही है। इसRead more
दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज और भारत का अंतरिक्ष शोध
वर्तमान में विश्व के अनेक राष्ट्रों के वैज्ञानिक और अंतरिक्ष एजेंसियाँ अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज में सक्रिय हैं। भारत भी इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, विशेषकर 21वीं सदी में अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में उसकी प्रगति उल्लेखनीय रही है। इस लेख में हम 21वीं सदी में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास और उसके प्रयासों का विश्लेषण करेंगे, जो दूसरे ग्रहों पर जीवन की खोज में सहायक हो सकते हैं।
भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान की दिशा में मुख्य पहल
1. चंद्रयान मिशन
मिशन
जीवन की खोज में भारत की चुनौतियाँ और भविष्य के प्रयास
भारत के प्रयासों का वैश्विक महत्व
निष्कर्ष
भारत का अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम 21वीं सदी में तेजी से उन्नति कर रहा है। चंद्रयान और मंगलयान जैसे मिशनों से प्राप्त ज्ञान से वैज्ञानिकों को अन्य ग्रहों पर जीवन की संभावना का आकलन करने में मदद मिलती है। भारत की “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” पहल ने भी देश की अंतरिक्ष क्षमताओं को मजबूती प्रदान की है, जिससे वह अन्य ग्रहों पर जीवन की खोज में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपना योगदान दे रहा है।
See lessभारतवर्ष दुनिया का कोविड-19 महामारी से सबसे अधिक प्रभावित दूसरा राष्ट्र है। इस जानलेवा वाइरस के उन्मूलन के लिए केवल सामाजिक दूरी एवं मास्क के प्रयोग के साथ-साथ एक तेज टीकाकरण प्रक्रिया आवश्यक है। प्रधानमंत्री द्वारा प्रतिपादित मेक इन इंडिया अवधारणा को दृष्टिगत रखते हुए हमारे राष्ट्र द्वारा कोविड-19 उन्मूलन के लिए उठायी गयी गतिविधियों का विस्तार से वर्णन कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
भारत में कोविड-19 महामारी का उन्मूलन और मेक इन इंडिया का योगदान भारत, कोविड-19 महामारी से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। इस जानलेवा वायरस के नियंत्रण और उन्मूलन के लिए सामाजिक दूरी, मास्क के साथ-साथ एक व्यापक और तेज टीकाकरण प्रक्रिया अत्यावश्यक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेक इन इंडियाRead more
भारत में कोविड-19 महामारी का उन्मूलन और मेक इन इंडिया का योगदान
भारत, कोविड-19 महामारी से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है। इस जानलेवा वायरस के नियंत्रण और उन्मूलन के लिए सामाजिक दूरी, मास्क के साथ-साथ एक व्यापक और तेज टीकाकरण प्रक्रिया अत्यावश्यक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेक इन इंडिया पहल ने महामारी के समय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत ने आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाए और महामारी से निपटने में सक्षम हुआ।
मेक इन इंडिया और कोविड-19 टीकाकरण अभियान
1. टीकों का उत्पादन और विकास
मेक इन इंडिया के तहत भारत में कई टीकों का उत्पादन हुआ, जिसमें दो प्रमुख टीके शामिल हैं:
इन दोनों टीकों ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ विकासशील देशों में टीकों की आपूर्ति में भी सहायता की।
2. बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान
स्वास्थ्य सेवाओं का विकास और सुधार
1. चिकित्सा उपकरणों का उत्पादन
महामारी के दौरान वेंटिलेटर, PPE किट, मास्क और सैनिटाइज़र जैसे आवश्यक चिकित्सा उपकरणों का उत्पादन बड़े पैमाने पर देश में किया गया। मेक इन इंडिया की वजह से इन वस्तुओं के लिए आयात पर निर्भरता कम हुई, और आत्मनिर्भरता में वृद्धि हुई।
2. अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन सुविधाओं का विस्तार
महामारी के चरम समय पर ऑक्सीजन की भारी कमी हो गई थी। ऐसे में सरकार ने ‘ऑक्सीजन एक्सप्रेस’ शुरू की और मेडिकल ऑक्सीजन के उत्पादन को बढ़ावा दिया। कई अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट लगाए गए, ताकि चिकित्सा सुविधाओं में सुधार हो सके।
अनुसंधान और नवाचार का प्रोत्साहन
वैश्विक स्तर पर योगदान
भारत ने न केवल अपनी आवश्यकताओं को पूरा किया बल्कि मेक इन इंडिया के तहत उत्पादन कर कई देशों को कोविड-19 के टीके उपलब्ध कराए। इसके जरिए भारत ने वैश्विक स्वास्थ्य में योगदान दिया और वैक्सीन मैत्री पहल के तहत कई विकासशील देशों को टीके दिए।
निष्कर्ष
मेक इन इंडिया ने कोविड-19 महामारी के दौरान भारत को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वास्थ्य सेवाओं और टीकाकरण में आत्मनिर्भरता के कारण भारत न केवल अपने देशवासियों को सुरक्षा प्रदान कर सका, बल्कि अन्य देशों की भी सहायता कर सका। प्रधानमंत्री द्वारा प्रतिपादित मेक इन इंडिया अवधारणा ने भारत को एक मजबूत और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।
See lessमानव विकास का मापन कैसे किया जाता है? मानव विकास कार्य-सूची को प्राप्त करने के लिए बिहार सरकार की सात प्रतिबद्धताएँ क्या हैं? इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सरकार की योजनाओं को समझाइए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
मानव विकास का मापन कैसे किया जाता है? मानव विकास का मापन मानव विकास सूचकांक (HDI) के माध्यम से किया जाता है, जो संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा विकसित किया गया एक सूचकांक है। यह सूचकांक तीन प्रमुख आयामों पर आधारित होता है: जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) व्यक्ति की औसत आयु जीवन प्रत्यRead more
मानव विकास का मापन कैसे किया जाता है?
मानव विकास का मापन मानव विकास सूचकांक (HDI) के माध्यम से किया जाता है, जो संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा विकसित किया गया एक सूचकांक है। यह सूचकांक तीन प्रमुख आयामों पर आधारित होता है:
इन आयामों के आधार पर HDI के माध्यम से किसी देश या राज्य की मानव विकास स्तर को आँका जाता है। यह 0 से 1 के बीच होता है, जिसमें 1 उच्चतम मानव विकास को दर्शाता है।
बिहार सरकार की सात प्रतिबद्धताएँ
बिहार सरकार ने मानव विकास कार्य-सूची को प्राप्त करने के लिए सात प्रतिबद्धताएँ निर्धारित की हैं, जिन्हें “सात निश्चय” भी कहा जाता है। ये नीतियाँ बिहार के सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बनाई गई हैं:
इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए बिहार सरकार की योजनाएँ
बिहार सरकार ने इन सात निश्चयों को साकार करने के लिए कई योजनाओं को लागू किया है: