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बिहार में औद्योगिक विकास का चित्र प्रस्तुत कीजिए तथा भारत के औद्योगिक विकास से तुलना कीजिए। इस राज्य में औद्योगिक पिछड़ेपन के कारणों को इंगित कीजिए तथा स्थिति को सुधारने के लिए बिहार सरकार द्वारा उठाये गये हालिया सुधारात्मक कदमों का वर्णन कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
बिहार का औद्योगिक परिप्रेक्ष्य पिछले कुछ दशकों में अपेक्षाकृत कम विकसित रहा है। इसके बावजूद, राज्य में औद्योगिक क्षमता और विकास की संभावनाएँ बड़ी हैं। बिहार का औद्योगिक पिछड़ापन कई कारणों से हुआ है, लेकिन राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कुछ सुधारात्मक कदमों से स्थिति में सुधार की उम्मीद है। इस लेख में हमRead more
बिहार का औद्योगिक परिप्रेक्ष्य पिछले कुछ दशकों में अपेक्षाकृत कम विकसित रहा है। इसके बावजूद, राज्य में औद्योगिक क्षमता और विकास की संभावनाएँ बड़ी हैं। बिहार का औद्योगिक पिछड़ापन कई कारणों से हुआ है, लेकिन राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कुछ सुधारात्मक कदमों से स्थिति में सुधार की उम्मीद है। इस लेख में हम बिहार में औद्योगिक विकास की वर्तमान स्थिति, उसके कारणों और हालिया सुधारात्मक कदमों की चर्चा करेंगे, साथ ही इसे भारत के औद्योगिक परिप्रेक्ष्य से भी तुलना करेंगे।
बिहार में औद्योगिक विकास का चित्र
बिहार और भारत के औद्योगिक विकास की तुलना
बिहार में औद्योगिक पिछड़ेपन के कारण
बिहार सरकार द्वारा उठाए गए सुधारात्मक कदम
एक स्वतंत्र न्यायपालिका, जिसे 'न्यायिक समीक्षा' की शक्ति प्राप्त है, भारत के संविधान की एक प्रमुख विशेषता है। क्या आपको लगता है कि 'न्यायिक सक्रियता' ने सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों को और बढ़ा दिया है? उदाहरण सहित समझाइए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
भारत का संविधान एक स्वतंत्र न्यायपालिका को स्थापित करता है, जो न केवल कानूनों के पालन को सुनिश्चित करती है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की भी जिम्मेदारी निभाती है कि केंद्र और राज्य सरकारें संविधान के अनुसार कार्य करें। न्यायिक समीक्षा की शक्ति, जो सर्वोच्च न्यायालय को प्राप्त है, यह अधिकार देती है कि वRead more
भारत का संविधान एक स्वतंत्र न्यायपालिका को स्थापित करता है, जो न केवल कानूनों के पालन को सुनिश्चित करती है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की भी जिम्मेदारी निभाती है कि केंद्र और राज्य सरकारें संविधान के अनुसार कार्य करें। न्यायिक समीक्षा की शक्ति, जो सर्वोच्च न्यायालय को प्राप्त है, यह अधिकार देती है कि वह संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानूनों और सरकारी कार्यों की संवैधानिक वैधता की जांच कर सके। समय के साथ, ‘न्यायिक सक्रियता’ (Judicial Activism) ने सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों को बढ़ाया है, जिससे न्यायपालिका का प्रभाव और भी सशक्त हुआ है।
इस लेख में हम यह विश्लेषण करेंगे कि न्यायिक सक्रियता ने सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों को कैसे बढ़ाया और इसके क्या प्रभाव पड़े हैं।
न्यायिक समीक्षा की शक्ति
न्यायिक सक्रियता और सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों में वृद्धि
न्यायिक सक्रियता के प्रभाव
भारत में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के उदय का वर्णन कीजिए। क्या आपको लगता है कि क्षेत्रीय आकांक्षाओं और राष्ट्रीय एकता को संतुष्ट करने के लिए क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का अस्तित्व अच्छा है? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
भारत में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के उदय और उनका महत्व प्रस्तावना भारत में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय समय के साथ एक महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रवृत्ति बन चुका है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय दलों का दबदबा था, लेकिन 1970 के दशक के बाद क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ता गया। क्षRead more
भारत में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के उदय और उनका महत्व
प्रस्तावना
भारत में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय समय के साथ एक महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रवृत्ति बन चुका है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय दलों का दबदबा था, लेकिन 1970 के दशक के बाद क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ता गया। क्षेत्रीय दलों का विकास भारतीय लोकतंत्र में विविधता और विभिन्न जाति, धर्म, भाषा, और सांस्कृतिक समूहों की पहचान की आवश्यकता के कारण हुआ है। इन दलों ने अपनी राजनीति को अपनी क्षेत्रीय आकांक्षाओं और स्थानीय मुद्दों के आधार पर परिभाषित किया है।
क्षेत्रीय दलों के उदय के कारण
क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व और राष्ट्रीय एकता
क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व के विपक्ष में तर्क
निष्कर्ष
भारत में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो देश की विविधता, क्षेत्रीय आकांक्षाओं और राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता को संतुलित करता है। क्षेत्रीय दलों का अस्तित्व भारतीय संघीय संरचना को मजबूत करता है, क्योंकि वे राज्य के हितों और लोगों की आकांक्षाओं को प्रमुखता देते हैं। हालांकि, इन दलों को राष्ट्रीय एकता और अखंडता को ध्यान में रखते हुए काम करना चाहिए। इस तरह से, अगर क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय राजनीति में एक सहकारी दृष्टिकोण अपनाते हैं, तो यह देश के विकास के लिए सकारात्मक साबित हो सकता है।
See lessबिहार के विशेष संदर्भ में भारत में केन्द्र-राज्य संबंधों की समस्या और भविष्य में इसकी संभावनाओं की चर्चा कीजिए। जाँच कीजिए कि सहकारी संघवाद के अनुरूप समस्या को रचनात्मक रूप से कैसे संभाला जा सकता है। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
बिहार के विशेष संदर्भ में भारत में केन्द्र-राज्य संबंधों की समस्या और भविष्य में इसकी संभावनाएँ प्रस्तावना भारत में केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का बंटवारा संविधान में स्पष्ट रूप से किया गया है। फिर भी, समय-समय पर केन्द्र-राज्य संबंधों में तनाव और समस्याएँ उत्पन्न होती रहती हैं, जो देश कRead more
बिहार के विशेष संदर्भ में भारत में केन्द्र-राज्य संबंधों की समस्या और भविष्य में इसकी संभावनाएँ
प्रस्तावना
भारत में केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का बंटवारा संविधान में स्पष्ट रूप से किया गया है। फिर भी, समय-समय पर केन्द्र-राज्य संबंधों में तनाव और समस्याएँ उत्पन्न होती रहती हैं, जो देश के संघीय ढांचे को चुनौती देती हैं। बिहार राज्य के संदर्भ में यह समस्या विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि बिहार का सामाजिक-आर्थिक ढांचा, राज्य सरकार की प्राथमिकताएँ, और राज्य की राजनीतिक स्थिति केन्द्र के साथ संबंधों को प्रभावित करती हैं।
इस लेख में हम बिहार के संदर्भ में केन्द्र-राज्य संबंधों की समस्याओं का विश्लेषण करेंगे और यह देखेंगे कि कैसे सहकारी संघवाद (Cooperative Federalism) के सिद्धांत के तहत इन समस्याओं को रचनात्मक रूप से हल किया जा सकता है।
केन्द्र-राज्य संबंधों की प्रमुख समस्याएँ
भविष्य में केन्द्र-राज्य संबंधों की संभावनाएँ
सहकारी संघवाद के अनुरूप समस्या का रचनात्मक समाधान
निष्कर्ष
बिहार के संदर्भ में भारत में केन्द्र-राज्य संबंधों की समस्या मुख्यतः वित्तीय असंतुलन, राज्यों के अधिकारों की सीमाएँ और केंद्र सरकार की योजनाओं में राज्य की भूमिका के कारण उत्पन्न होती है। भविष्य में इन समस्याओं का समाधान सहकारी संघवाद के सिद्धांत के अनुरूप किया जा सकता है, जहाँ केंद्र और राज्य एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करें। राज्यों को अधिक स्वायत्तता, अधिक वित्तीय संसाधन, और उनकी प्राथमिकताओं का सम्मान देने से इस संबंध में सुधार हो सकता है। बिहार जैसे राज्यों के लिए यह आवश्यक है कि केंद्र और राज्य मिलकर देश के समग्र विकास के लिए कार्य करें।
"भारतीय संसद स्वायत्त विधानमंडल नहीं है। इसकी शक्तियाँ विशाल तो हैं, पर असीम नहीं।" इस कथन पर टिप्पणी कीजिए और इस पर प्रकाश डालिए कि भारतीय संसद की तुलना उसके ब्रिटिश समकक्ष से क्यों नहीं की जा सकती। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
भारतीय संसद और ब्रिटिश संसद: स्वायत्तता और शक्तियों का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तावना भारतीय संसद को संविधान में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है और यह भारत के लोकतंत्र की रीढ़ मानी जाती है। लेकिन, "भारतीय संसद स्वायत्त विधानमंडल नहीं है। इसकी शक्तियाँ विशाल तो हैं, पर असीम नहीं" यह कथन भारतीय संसद की स्Read more
भारतीय संसद और ब्रिटिश संसद: स्वायत्तता और शक्तियों का तुलनात्मक विश्लेषण
प्रस्तावना
भारतीय संसद को संविधान में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है और यह भारत के लोकतंत्र की रीढ़ मानी जाती है। लेकिन, “भारतीय संसद स्वायत्त विधानमंडल नहीं है। इसकी शक्तियाँ विशाल तो हैं, पर असीम नहीं” यह कथन भारतीय संसद की स्थिति और उसकी शक्तियों की सीमा को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। यह कथन भारतीय संसद की तुलना ब्रिटिश संसद से करने की आवश्यकता को भी स्पष्ट करता है, क्योंकि दोनों संस्थाओं के अधिकार, कार्यप्रणाली और राजनीतिक संदर्भ में कई महत्वपूर्ण भिन्नताएँ हैं।
भारतीय संसद की शक्तियाँ
ब्रिटिश संसद और भारतीय संसद में भिन्नताएँ
भारतीय संसद की शक्तियाँ और सीमाएँ
निष्कर्ष
“भारतीय संसद स्वायत्त विधानमंडल नहीं है। इसकी शक्तियाँ विशाल तो हैं, पर असीम नहीं” इस कथन का अर्थ है कि भारतीय संसद को संविधान द्वारा तय की गई सीमाओं के भीतर ही काम करना होता है। हालांकि यह शक्तिशाली है, लेकिन इसकी शक्तियाँ न्यायपालिका और संविधान द्वारा सीमित हैं। दूसरी ओर, ब्रिटिश संसद एक पूर्णतः स्वायत्त विधानमंडल है, जो अपनी शक्तियों का विस्तार बिना किसी बाधा के कर सकती है। इस प्रकार, भारतीय संसद और ब्रिटिश संसद की तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि भारत का संविधान भारतीय संसद की शक्तियों को नियंत्रित करता है, जबकि ब्रिटिश संसद की कोई ऐसी सीमा नहीं है।
See lessप्रायः यह आरोप लगाया जाता है कि सत्ताधारी दल अपने निहित स्वार्थों हेतु संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करता है। क्या आप इस मत से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
सत्ताधारी दलों द्वारा संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग: एक विश्लेषण प्रस्तावना संविधान में देश की विभिन्न संस्थाओं को स्वायत्तता प्रदान की गई है, ताकि वे स्वतंत्र रूप से कार्य करें और सरकार या सत्ताधारी दलों से प्रभावित न हों। फिर भी यह आरोप अक्सर लगाया जाता है कि सत्ताधारी दल अपने निहित स्वार्थों केRead more
सत्ताधारी दलों द्वारा संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग: एक विश्लेषण
प्रस्तावना
संविधान में देश की विभिन्न संस्थाओं को स्वायत्तता प्रदान की गई है, ताकि वे स्वतंत्र रूप से कार्य करें और सरकार या सत्ताधारी दलों से प्रभावित न हों। फिर भी यह आरोप अक्सर लगाया जाता है कि सत्ताधारी दल अपने निहित स्वार्थों के लिए संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करते हैं। यह आरोप मुख्य रूप से चुनाव आयोग, न्यायपालिका, केंद्रीय जांच एजेंसियों और अन्य संवैधानिक संस्थाओं के संदर्भ में उठता है। इस निबंध में, हम इस आरोप के पक्ष में और विपक्ष में तर्कों का विश्लेषण करेंगे।
सत्ताधारी दलों द्वारा संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग: पक्ष में तर्क
विपक्ष में तर्क
निष्कर्ष
यह कहना कि सत्ताधारी दल अपने निहित स्वार्थों के लिए संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग करते हैं, एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है। जबकि कुछ उदाहरणों में यह आरोप सही प्रतीत होते हैं, वहीं कई बार संवैधानिक संस्थाएँ स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं और सत्ताधारी दल के प्रभाव से बाहर रहती हैं। अतः, यह सुनिश्चित करना कि संवैधानिक संस्थाएँ अपनी स्वायत्तता बनाए रखें, सरकार की जिम्मेदारी है। इसके लिए संस्थाओं को सशक्त और स्वतंत्र बनाने के उपायों की आवश्यकता है, ताकि लोकतंत्र को मजबूत किया जा सके।
See lessरूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध का मूल कारण क्या है? भारत के विशेष सन्दर्भ में विश्व के राष्ट्रों पर इसके प्रभाव का वर्णन कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध का मूल कारण और भारत पर इसके प्रभाव प्रस्तावना रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध, जिसे फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद तेज़ी से बढ़ावा मिला, वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आया है। यह युद्ध केवल दो देशों के बीच संघर्ष नहीं है, बल्कि इसकी जRead more
रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध का मूल कारण और भारत पर इसके प्रभाव
प्रस्तावना
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध, जिसे फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद तेज़ी से बढ़ावा मिला, वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आया है। यह युद्ध केवल दो देशों के बीच संघर्ष नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें वैश्विक शक्ति संघर्ष, क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों, और ऐतिहासिक विवादों में छिपी हैं। इस युद्ध के कारणों और इसके प्रभाव को समझना, विशेष रूप से भारत के संदर्भ में, महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल यूरोप, बल्कि पूरे विश्व की राजनीति और अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है।
रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध का मूल कारण
भारत के संदर्भ में युद्ध के प्रभाव
निष्कर्ष
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के मूल कारणों में भू-राजनीतिक, ऐतिहासिक, और सुरक्षा संबंधी मुद्दे हैं। रूस का पश्चिमी देशों के प्रभाव से डर और यूक्रेन की स्वतंत्रता की दिशा ने युद्ध को जन्म दिया। भारत के संदर्भ में इस युद्ध ने वैश्विक स्तर पर ऊर्जा संकट, रक्षा आत्मनिर्भरता, और भूराजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। भारत ने एक तटस्थ नीति अपनाई है, लेकिन युद्ध ने उसे आत्मनिर्भरता के प्रति अपनी रणनीति को पुनः निर्धारित करने के लिए प्रेरित किया है।
See lessभारतीय सन्दर्भ में, 'एक राष्ट्र एक निर्वाचन' की अवधारणा का वर्णन कीजिए तथा इसके पक्ष और विपक्ष में अपने तर्क दीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
भारतीय संदर्भ में 'एक राष्ट्र, एक निर्वाचन' की अवधारणा का वर्णन प्रस्तावना 'एक राष्ट्र, एक निर्वाचन' की अवधारणा का उद्देश्य भारत में एक ही समय में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को आयोजित करना है। इस विचार का प्रस्ताव इस कारण से उठाया गया कि चुनावों के बार-बार होने वाले दौर को कम किया जाए और संसाधनों काRead more
भारतीय संदर्भ में ‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ की अवधारणा का वर्णन
प्रस्तावना
‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ की अवधारणा का उद्देश्य भारत में एक ही समय में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को आयोजित करना है। इस विचार का प्रस्ताव इस कारण से उठाया गया कि चुनावों के बार-बार होने वाले दौर को कम किया जाए और संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जा सके। इसके साथ ही, यह देश की चुनावी प्रक्रिया को स्थिर और व्यवस्थित बनाने की दिशा में एक कदम होगा।
यह अवधारणा भारतीय संविधान और लोकतंत्र की संरचना के संदर्भ में महत्वपूर्ण सवाल उठाती है, क्योंकि इसका प्रभाव लोकतंत्र, संघीय ढांचे, राजनीतिक प्रणाली और संसदीय शासन पर पड़ सकता है।
‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ की अवधारणा
‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ के पक्ष में तर्क
‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ के विपक्ष में तर्क
भारतीय संदर्भ में इसका महत्त्व
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में ‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ की अवधारणा को लागू करना एक गंभीर कदम हो सकता है। जहां इसके लाभ हैं, वहीं इसके कुछ नकरात्मक पहलू भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, 2019 के लोकसभा चुनावों और राज्य विधानसभा चुनावों के बीच समय अंतराल को देखकर यह साफ होता है कि भारत के विभिन्न राज्यों की राजनीतिक स्थिति और समस्याएँ अलग-अलग होती हैं। एक साथ चुनाव कराना राज्यों की राजनीतिक स्वायत्तता पर असर डाल सकता है।
हालाँकि, यदि इस योजना को सही तरीके से लागू किया जाए और राज्यों की चिंताओं को ध्यान में रखा जाए, तो यह देश के लिए एक सकारात्मक बदलाव साबित हो सकता है।
निष्कर्ष
‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ की अवधारणा एक महत्वाकांक्षी योजना है जो भारतीय चुनाव प्रणाली को सुधारने के उद्देश्य से प्रस्तावित की गई है। इसके पक्ष में और विपक्ष में दोनों तरह के तर्क मौजूद हैं। यह योजना देश को आर्थिक, प्रशासनिक और राजनीतिक स्थिरता प्रदान कर सकती है, लेकिन इसके साथ ही संघीय ढांचे और राज्यों की स्वायत्तता पर सवाल भी उठ सकती है। अत: इस विचार को लागू करने से पहले इसके संभावित प्रभावों का गहरे से अध्ययन और संवाद आवश्यक है।
See less'अग्रिपथ' विकास अथवा विनाश की ओर पथ है? टिप्पणी कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
अग्रिपथ: विकास अथवा विनाश की ओर पथ है? प्रस्तावना "अग्रिपथ" योजना भारतीय सेना के लिए एक नई भर्ती प्रणाली है, जिसे 2022 में भारतीय सरकार द्वारा घोषित किया गया। इस योजना का उद्देश्य भारतीय सेना की समग्र संरचना को आधुनिक और युवा बनाना है। इसके तहत, 17.5 से 21 वर्ष के युवा चार साल के लिए सेना में भर्तीRead more
अग्रिपथ: विकास अथवा विनाश की ओर पथ है?
प्रस्तावना
“अग्रिपथ” योजना भारतीय सेना के लिए एक नई भर्ती प्रणाली है, जिसे 2022 में भारतीय सरकार द्वारा घोषित किया गया। इस योजना का उद्देश्य भारतीय सेना की समग्र संरचना को आधुनिक और युवा बनाना है। इसके तहत, 17.5 से 21 वर्ष के युवा चार साल के लिए सेना में भर्ती होंगे और फिर उन्हें वापस नागरिक जीवन में भेजा जाएगा। हालांकि, इस योजना को लेकर कुछ नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ भी आई हैं। यह योजना विकास और विनाश के बीच एक गहरी बहस का विषय बन चुकी है।
अग्रिपथ योजना के उद्देश्य
अग्रिपथ योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
अग्रिपथ योजना के लाभ
अग्रिपथ योजना के विपक्षी दृष्टिकोण
भारत के संदर्भ में अग्रिपथ योजना का महत्त्व
निष्कर्ष
अग्रिपथ योजना एक क्रांतिकारी पहल है जो भारतीय सेना की संरचना को समकालीन और युवा बनाने का प्रयास करती है। हालांकि, इसे लेकर कई मुद्दे हैं, जैसे कि अनुभवहीनता, मानसिक स्वास्थ्य, और असंतोष के खतरे। इस योजना का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि इसे कैसे कार्यान्वित किया जाता है और इसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना और समाज में क्या परिवर्तन होते हैं।
See less'काड' की उत्पत्ति, सदस्यता, विकास एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए। भारत के लिए इसका क्या महत्त्व है? [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
काड (QUAD) की उत्पत्ति, सदस्यता, विकास एवं उद्देश्यों का वर्णन और भारत के लिए इसका महत्त्व प्रस्तावना काड (QUAD), या 'क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग', एक अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक गठबंधन है, जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। इस समूह का उद्देश्य विशेष रूप से क्षेत्रीय सुरक्षा, सामरिकRead more
काड (QUAD) की उत्पत्ति, सदस्यता, विकास एवं उद्देश्यों का वर्णन और भारत के लिए इसका महत्त्व
प्रस्तावना
काड (QUAD), या ‘क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग’, एक अंतरराष्ट्रीय रणनीतिक गठबंधन है, जिसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। इस समूह का उद्देश्य विशेष रूप से क्षेत्रीय सुरक्षा, सामरिक सहयोग और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। यह समूह विशेष रूप से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए महत्वपूर्ण है।
काड की उत्पत्ति
काड की शुरुआत 2007 में हुई थी, जब जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने पहली बार भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक सुरक्षा सहयोग का प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव का उद्देश्य इन देशों के बीच समुद्री सुरक्षा और रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना था। हालांकि, 2008 में कुछ मतभेदों और असहमति के कारण इस गठबंधन को स्थगित कर दिया गया था। फिर, 2017 में इस समूह को फिर से पुनर्जीवित किया गया और आज यह एक स्थायी और प्रभावी गठबंधन बन चुका है।
काड की सदस्यता
काड के सदस्य चार देश हैं:
काड का विकास
काड ने 2017 के बाद एक नया मोड़ लिया, जब इस समूह ने एक औपचारिक रूप से नियमित संवाद और समन्वय स्थापित किया। इस गठबंधन में उच्च-स्तरीय वार्ता, संयुक्त सैन्य अभ्यास, और अन्य रणनीतिक साझेदारियों की शुरुआत की गई। काड देशों ने अपनी सामूहिक सुरक्षा रणनीतियों को स्पष्ट करते हुए, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में लोकतांत्रिक मूल्यों, समुद्री सुरक्षा, और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के पालन की बात की।
काड के उद्देश्य
काड के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
भारत के लिए काड का महत्त्व
भारत के लिए काड का कई दृष्टिकोणों से महत्त्व है:
निष्कर्ष
काड (QUAD) भारत के लिए न केवल एक सुरक्षा मंच है, बल्कि यह एक बहुपक्षीय रणनीतिक सहयोग भी है जो भारत को वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। यह समूह क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और सामरिक ताकत को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। काड के माध्यम से भारत को अपनी सुरक्षा, आर्थिक विकास और वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने का एक मजबूत मंच मिला है।
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