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Discuss the features of Pala art and architecture and its relationship with Buddhism. [65th BPSC Main Exam 2019]
Pala Art and Architecture and Its Relationship with Buddhism The Pala dynasty, which ruled large parts of eastern India, including Bihar and Bengal, from the 8th to the 12th century, played a crucial role in the development of art and architecture, closely tied to the spread of Buddhism. Pala art isRead more
Pala Art and Architecture and Its Relationship with Buddhism
The Pala dynasty, which ruled large parts of eastern India, including Bihar and Bengal, from the 8th to the 12th century, played a crucial role in the development of art and architecture, closely tied to the spread of Buddhism. Pala art is known for its distinctive features, and its relationship with Buddhism can be seen in the way it reflected and supported Buddhist practices.
Key Features of Pala Art and Architecture
Pala Architecture and Its Role in Buddhism
Conclusion
The Pala dynasty’s contributions to art and architecture were deeply connected to Buddhism, as their patronage of Buddhist learning centers led to the development of a unique artistic style. The Pala period marked the zenith of Buddhist art in India, influencing not only religious practices but also the cultural landscapes of neighboring regions. The intricate sculptures, beautiful manuscripts, and grand monasteries created during this period remain a testament to the enduring legacy of the Pala dynasty in the realm of Buddhist art.
See lessWrite a note on Swami Sahajanand and the Kisan Sabha Movement. [65th BPSC Main Exam 2019]
Swami Sahajanand and the Kisan Sabha Movement Swami Sahajanand Saraswati played a pivotal role in shaping the Kisan Sabha Movement, which emerged as a significant peasant uprising in India during the early 20th century. The movement primarily aimed at addressing the exploitation and injustices facedRead more
Swami Sahajanand and the Kisan Sabha Movement
Swami Sahajanand Saraswati played a pivotal role in shaping the Kisan Sabha Movement, which emerged as a significant peasant uprising in India during the early 20th century. The movement primarily aimed at addressing the exploitation and injustices faced by the Indian farmers, particularly in Bihar and Uttar Pradesh.
Background of the Movement
The roots of the Kisan Sabha movement lay in the exploitation of peasants under the colonial British rule. After the 1857 revolt, the power of the taluqdars (landlords) increased, leading to greater oppression of the peasants. Farmers were subjected to high rents, forced labor, and unfair taxes. The situation worsened with the price rise during World War I, further aggravating the farmers’ plight.
Role of Swami Sahajanand
Swami Sahajanand Saraswati emerged as the key leader of the Kisan Sabha Movement. He was deeply moved by the poor conditions of the peasants and believed that they needed a structured platform to voice their grievances. His leadership provided the Kisan Sabha Movement with a sense of unity and purpose.
In 1929, Swami Sahajanand formed the All India Kisan Sabha (AIKS), which aimed to unite farmers across India against the oppressive policies of the landlords and the colonial government. The movement focused on the issues of high rents, land reforms, and the elimination of unfair practices like sharecropping. He emphasized that the liberation of peasants was crucial for India’s independence and overall social and economic development.
Major Objectives and Impact
Under Sahajanand’s leadership, the Kisan Sabha Movement expanded rapidly, especially in Bihar, and gained momentum in other regions as well. It helped raise awareness about the exploitation of peasants, and many land reforms were initiated as a result of the movement’s pressure. This also paved the way for future peasant struggles, including the important role of peasants in the Indian freedom struggle.
Conclusion
The Kisan Sabha Movement, under the guidance of Swami Sahajanand Saraswati, marked a turning point in the history of peasant movements in India. It not only highlighted the exploitation of farmers but also laid the foundation for future agricultural reforms. By uniting the peasants and giving them a voice, the movement played a significant role in challenging colonial exploitation and promoting social justice.
See lessDescribe the spread of Western Education in Bihar between 1858-1914. [65th BPSC Main Exam 2019]
Spread of Western Education in Bihar (1858-1914) The period between 1858 and 1914 saw significant changes in the educational landscape of Bihar, largely driven by the introduction of Western education under British colonial rule. This era marked the beginning of modern education systems, which incluRead more
Spread of Western Education in Bihar (1858-1914)
The period between 1858 and 1914 saw significant changes in the educational landscape of Bihar, largely driven by the introduction of Western education under British colonial rule. This era marked the beginning of modern education systems, which included not only formal schooling but also the promotion of English and scientific education.
Key Developments in Western Education in Bihar
Challenges and Limitations
"नैनोटेक्नोलॉजी में लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की विशाल क्षमता है।" उपयुक्त उदाहरणों के साथ कथन की पुष्टि कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
नैनोटेक्नोलॉजी (Nanotechnology) में लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की विशाल क्षमता है, और इसके अनुप्रयोगों के चलते विभिन्न क्षेत्रों में सुधार हुआ है। इस तकनीक के माध्यम से हम पदार्थों को आणविक और आणु-आधारित स्तर पर नियंत्रित कर सकते हैं, जिससे न केवल नई सामग्रियों का निर्माण होता है, बल्कि जीवन के अनRead more
नैनोटेक्नोलॉजी (Nanotechnology) में लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की विशाल क्षमता है, और इसके अनुप्रयोगों के चलते विभिन्न क्षेत्रों में सुधार हुआ है। इस तकनीक के माध्यम से हम पदार्थों को आणविक और आणु-आधारित स्तर पर नियंत्रित कर सकते हैं, जिससे न केवल नई सामग्रियों का निर्माण होता है, बल्कि जीवन के अन्य पहलुओं में भी बदलाव आता है।
नैनोटेक्नोलॉजी के प्रभाव
निष्कर्ष
नैनोटेक्नोलॉजी से जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सुधार हुआ है, खासकर स्वास्थ्य, ऊर्जा, कृषि और पर्यावरण के क्षेत्र में। इसके द्वारा नई और बेहतर सामग्री विकसित की जा रही हैं, जो हमारे जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद करती हैं। इस तकनीक के आगे और अधिक संभावनाएँ हैं, जो भविष्य में लोगों की जीवनशैली को और भी समृद्ध और सुरक्षित बना सकती हैं।
See lessबिहार एक बाढ़-प्रभावित राज्य है। आधुनिक प्रौद्योगिकी बाढ़ को नियंत्रित करने और इस तरह के आपदा प्रबंधन में कैसे मदद कर सकती है? उपयुक्त उदाहरण सहित स्पष्टीकरण दीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2020]
बिहार में बाढ़ प्रबंधन और नियंत्रण के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। बाढ़ नियंत्रण में तकनीकी सुधारों ने राज्य में विभिन्न पहलुओं को सुदृढ़ किया है, जो बाढ़ के प्रभावों को कम करने में सहायक हैं। आधुनिक प्रौद्योगिकी का योगदान बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली (Flood Early Warning SyRead more
बिहार में बाढ़ प्रबंधन और नियंत्रण के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। बाढ़ नियंत्रण में तकनीकी सुधारों ने राज्य में विभिन्न पहलुओं को सुदृढ़ किया है, जो बाढ़ के प्रभावों को कम करने में सहायक हैं।
आधुनिक प्रौद्योगिकी का योगदान
बिहार में बाढ़ प्रबंधन की चुनौतियाँ
हालाँकि तकनीकी उपायों से काफी मदद मिल रही है, बिहार में बाढ़ का पूर्ण नियंत्रण मुश्किल है। राज्य की भौगोलिक स्थिति और कई नदियों की उपस्थिति, जैसे कोसी, गंगा और घाघरा, हर साल बाढ़ के खतरे को बढ़ाते हैं। इन नदियों में पानी का अत्यधिक बहाव कभी-कभी इन परियोजनाओं की तैयारी से बाहर हो जाता है।
निष्कर्ष
आधुनिक प्रौद्योगिकी जैसे AI, ड्रोन, और समय पर चेतावनी देने वाली प्रणाली ने बिहार में बाढ़ प्रबंधन को अधिक प्रभावी बना दिया है, लेकिन इनका उपयोग अभी भी शुरुआती स्तर पर है और अधिक व्यापक रूप से अपनाए जाने की आवश्यकता है। इन तकनीकों के प्रभावी उपयोग के लिए स्थानीय समुदायों की जागरूकता और भागीदारी भी उतनी ही जरूरी है।
See less"प्रौद्योगिकी एक वरदान से अधिक अभिशाप है।" पर्यावरण प्रदूषण के संदर्भ में इस कथन की पुष्टि कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
"प्रौद्योगिकी एक वरदान से अधिक अभिशाप है" इस कथन को पर्यावरण प्रदूषण के संदर्भ में समझा जा सकता है क्योंकि आधुनिक प्रौद्योगिकियों ने जहां एक ओर जीवन को सरल और बेहतर बनाया है, वहीं दूसरी ओर इनसे उत्पन्न प्रदूषण ने पर्यावरण पर गहरे प्रभाव डाले हैं। प्रौद्योगिकी और पर्यावरण प्रदूषण प्रौद्योगिकी, विशेषRead more
“प्रौद्योगिकी एक वरदान से अधिक अभिशाप है” इस कथन को पर्यावरण प्रदूषण के संदर्भ में समझा जा सकता है क्योंकि आधुनिक प्रौद्योगिकियों ने जहां एक ओर जीवन को सरल और बेहतर बनाया है, वहीं दूसरी ओर इनसे उत्पन्न प्रदूषण ने पर्यावरण पर गहरे प्रभाव डाले हैं।
प्रौद्योगिकी और पर्यावरण प्रदूषण
प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से औद्योगिकीकरण और वाहन प्रदूषण, ने वायु, जल और मृदा प्रदूषण में वृद्धि की है। जीवाश्म ईंधन (कोयला, पेट्रोल, डीजल) का दहन, जो अधिकतर ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयोग होता है, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और पार्टिकुलेट मैटर जैसे प्रदूषकों को वायुमंडल में छोड़ता है, जिससे वायु प्रदूषण और धुंध का निर्माण होता है। इसके अलावा, औद्योगिक प्रक्रियाओं के दौरान भारी धातुओं, रासायनिक तत्वों और अन्य हानिकारक प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है, जो जल और मृदा प्रदूषण का कारण बनता है। इन प्रदूषकों का मानव स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, जैसे कि श्वसन रोग, कैंसर, और अन्य शारीरिक विकार।
तकनीकी समाधान और उनका प्रभाव
हालांकि, प्रौद्योगिकी ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए कुछ समाधान भी प्रदान किए हैं। उदाहरण के तौर पर, पर्यावरण के लिए हानिकारक गैसों को कम करने के लिए किट्स और फिल्टर सिस्टम का विकास किया गया है। इसके अलावा, प्रदूषण नियंत्रण उपायों के रूप में बायोफिल्ट्रेशन, जल शोधन, और वायु शोधन जैसी तकनीकें पर्यावरण को बचाने के लिए प्रयुक्त की जा रही हैं।
निष्कर्ष
इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि प्रौद्योगिकी एक दोधारी तलवार की तरह है। यदि इसका उपयोग उचित तरीके से और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी से किया जाए, तो यह वरदान साबित हो सकती है। लेकिन यदि इसे अनियंत्रित रूप से इस्तेमाल किया जाए, तो यह अभिशाप भी बन सकती है, जैसा कि प्रदूषण के मामले में स्पष्ट है। इस स्थिति से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी का सही उपयोग और पर्यावरण के प्रति जागरूकता की आवश्यकता है
See lessकिसी भी राष्ट्र के जीवन की गुणवत्ता और स्वास्थ्य का सीधा संबंध भोजन और आहार संबंधी सुरक्षा से होता है। भारत ने उत्पादन, उत्पादकता, खाद्यान्न की उपलब्धता, बागवानी उत्पाद आदि के मामले में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की है। उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में बिहार के कृषि विकास में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर चर्चा कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
बिहार में कृषि विकास में प्रौद्योगिकी की भूमिका भारत में खाद्य सुरक्षा और पोषण का सीधा संबंध कृषि उत्पादन और उत्पादकता से है, और बिहार इसमें एक महत्वपूर्ण योगदान देता है। बिहार राज्य ने कृषि क्षेत्र में विभिन्न प्रौद्योगिकियों को अपनाया है, जो न केवल उत्पादन में वृद्धि कर रही हैं, बल्कि किसानों की जRead more
बिहार में कृषि विकास में प्रौद्योगिकी की भूमिका
भारत में खाद्य सुरक्षा और पोषण का सीधा संबंध कृषि उत्पादन और उत्पादकता से है, और बिहार इसमें एक महत्वपूर्ण योगदान देता है। बिहार राज्य ने कृषि क्षेत्र में विभिन्न प्रौद्योगिकियों को अपनाया है, जो न केवल उत्पादन में वृद्धि कर रही हैं, बल्कि किसानों की जीवन गुणवत्ता को भी सुधार रही हैं। बिहार में कृषि विकास में प्रौद्योगिकी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर जब हम राज्य की कृषि विकास दर को देखें। यहां कुछ प्रमुख पहलुओं पर चर्चा की जा रही है:
1. वर्मी कम्पोस्टिंग और जैविक खेती
2. ड्रिप इरीगेशन और जल प्रबंधन
3. सतत कृषि और पेड़-पौधों का संरक्षण
4. कृषि शिक्षा और प्रशिक्षण
बिहार के कृषि क्षेत्र के लिए प्रौद्योगिकी का महत्व
बिहार कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का उपयोग कई मायनों में महत्वपूर्ण है:
निष्कर्ष
बिहार में कृषि के विकास में प्रौद्योगिकी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, और राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदम जैसे कि वर्मी कम्पोस्टिंग, ड्रिप इरीगेशन, और जैविक खेती ने कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की है। हालांकि, अधिक निवेश और बेहतर प्रौद्योगिकी के उपयोग से बिहार में कृषि क्षेत्र को और अधिक समृद्ध बनाया जा सकता है, जिससे राज्य की खाद्य सुरक्षा में सुधार होगा और किसानों की आय में भी वृद्धि होगी।
See lessबिहार राज्य में विद्यमान प्रमुख प्राकृतिक संसाधनों के नाम लिखिए। इनमें से किन्हीं दो को चुनिए तथा उन क्षेत्रों को दर्शाइए जहाँ ये पाये जाते हैं और बिहार के आर्थिक विकास में इनके महत्त्व का वर्णन कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 20202]
बिहार राज्य के प्रमुख प्राकृतिक संसाधन बिहार राज्य में कई प्रकार के प्राकृतिक संसाधन पाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं: खनिज संसाधन: एस्बेस्टस: यह एक रेशेदार खनिज है जो मुख्य रूप से मुंगेर जिले में पाया जाता है। इसके आग और बिजली प्रतिरोधक गुण के कारण इसका उपयोग आग से बचाव के उपकरणों और निर्माण सामग्रीRead more
बिहार राज्य के प्रमुख प्राकृतिक संसाधन
बिहार राज्य में कई प्रकार के प्राकृतिक संसाधन पाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
प्राकृतिक संसाधनों के योगदान और विकास में महत्त्व
बिहार में इन संसाधनों का राज्य की आर्थिक स्थिति में बड़ा योगदान है:
इन संसाधनों का बेहतर प्रबंधन राज्य की आर्थिक प्रगति में सहायक हो सकता है, लेकिन उनके विकास के लिए और भी ठोस योजनाओं की आवश्यकता है, जैसे संसाधनों का संरक्षण, अवसंरचना का सुधार और औद्योगिक निवेश को प्रोत्साहन देना।
See less'नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक, 2021' के अनुसार, भारत के 19 बड़े राज्यों में से बिहार का स्थान 18वाँ है। इस राज्य में, इस दयनीय स्थिति के उत्तरदायी कारकों को सूचीबद्ध कीजिए। बिहार में स्वास्थ्य स्थिति को सुधारने के लिए क्या कदम उठाये गये हैं? क्या वे पर्याप्त हैं? अपने उत्तर को तथ्यों एवं आँकड़ों से पुष्ट कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक 2021 में बिहार का स्थान: नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक 2021 के अनुसार, बिहार भारत के 19 बड़े राज्यों में से 18वें स्थान पर है, जिसमें कुल 31.00 स्कोर प्राप्त किया है। यह सूचकांक समग्र स्वास्थ्य प्रदर्शन पर आधारित है, जिसमें 24 विभिन्न संकेतकों का समावेश किया गया है। इRead more
नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक 2021 में बिहार का स्थान:
नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक 2021 के अनुसार, बिहार भारत के 19 बड़े राज्यों में से 18वें स्थान पर है, जिसमें कुल 31.00 स्कोर प्राप्त किया है। यह सूचकांक समग्र स्वास्थ्य प्रदर्शन पर आधारित है, जिसमें 24 विभिन्न संकेतकों का समावेश किया गया है। इस रैंकिंग में शीर्ष स्थान पर केरल (82.20 अंक), तमिलनाडु (72.42 अंक) और तेलंगाना (69.96 अंक) हैं।
बिहार की स्वास्थ्य स्थिति में खराब प्रदर्शन के कारण:
बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति कई कारणों से दयनीय रही है, जिनमें प्रमुख हैं:
बिहार में स्वास्थ्य सुधार के लिए उठाए गए कदम:
हालांकि बिहार की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार के लिए कुछ कदम उठाए गए हैं, लेकिन ये अब तक पर्याप्त नहीं साबित हुए हैं:
क्या ये कदम पर्याप्त हैं?
हालांकि कुछ कदम उठाए गए हैं, लेकिन राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए और भी ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। खासकर ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाने, स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या में वृद्धि और स्वास्थ्य बजट को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, स्वास्थ्य शिक्षा और जागरूकता को प्राथमिकता देना भी महत्वपूर्ण है।
समग्र रूप से, बिहार को अपनी स्वास्थ्य प्रणाली में व्यापक सुधार की आवश्यकता है, और इसे प्राथमिकता के साथ लागू करना होगा ताकि राज्य की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार हो सके।
See lessयह कहा जाता है कि 'जीविका (बी० आर० एल० पी० एस०) महिला सशक्तिकरण का औजार है'। इस परियोजना का परिचय दीजिए तथा इसके उद्देश्यों का वर्णन कीजिए। बिहार में महिला सशक्तिकरण के संदर्भ में 'जीविका परियोजना' की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
'जीविका परियोजना' बिहार राज्य में महिला सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण औजार बनकर उभरी है। बिहार राज्य में महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से यह परियोजना शुरू की गई थी। इसका पूरा नाम बिहार रूरल लाइवलीहुड प्रोजेक्ट (B.R.L.P.S.) है, जिसे मुख्य रूप से ग्रामीण महिलाओं के सामाजिRead more
‘जीविका परियोजना’ बिहार राज्य में महिला सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण औजार बनकर उभरी है। बिहार राज्य में महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से यह परियोजना शुरू की गई थी। इसका पूरा नाम बिहार रूरल लाइवलीहुड प्रोजेक्ट (B.R.L.P.S.) है, जिसे मुख्य रूप से ग्रामीण महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए कार्यरत किया गया है।
जीविका परियोजना का परिचय
जीविका परियोजना के उद्देश्य
बिहार में महिला सशक्तिकरण के संदर्भ में जीविका परियोजना की भूमिका
जीविका परियोजना की सफलता और चुनौतियाँ