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अंतर्राष्ट्रीय स्थानांतरण और व्यापार के संदर्भ में कोविड-19 महामारी के वैश्विक प्रसार के तरीके की चर्चा कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
कोविड-19 महामारी ने वैश्विक व्यापार और अंतर्राष्ट्रीय स्थानांतरण पर गहरे प्रभाव डाले। यह महामारी न केवल एक स्वास्थ्य संकट के रूप में उभरी, बल्कि इसने विश्व अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित किया। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में इसके प्रभावों को समझने के लिए कुछ मुख्य बिंदुओं पर चर्चा की जा सकती है: 1Read more
कोविड-19 महामारी ने वैश्विक व्यापार और अंतर्राष्ट्रीय स्थानांतरण पर गहरे प्रभाव डाले। यह महामारी न केवल एक स्वास्थ्य संकट के रूप में उभरी, बल्कि इसने विश्व अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित किया। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में इसके प्रभावों को समझने के लिए कुछ मुख्य बिंदुओं पर चर्चा की जा सकती है:
1. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर प्रभाव:
कोविड-19 ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की स्थिरता को चुनौती दी। वैश्विक उत्पादक और आपूर्तिकर्ता देश लॉकडाउन और यात्रा प्रतिबंधों के कारण उत्पादन और वितरण में बाधित हुए। उदाहरण स्वरूप, चीन, जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा है, महामारी के पहले चरण में पूरी तरह से बंद हो गया, जिससे अन्य देशों में कच्चे माल की कमी हुई और उत्पादन की दर में गिरावट आई।
2. व्यापारिक दबाव और संरक्षणवाद:
महामारी के कारण विभिन्न देशों ने अपने घरेलू उद्योगों को बचाने के लिए व्यापारिक संरक्षणवाद की नीतियाँ अपनाईं। इन नीतियों में आयात शुल्क बढ़ाना, निर्यात पर प्रतिबंध और अन्य व्यापार प्रतिबंध शामिल थे। इससे वैश्विक व्यापार में और अधिक अड़चनें आईं। विशेषकर स्वास्थ्य और जीवनरक्षक वस्तुओं की आपूर्ति पर दबाव बढ़ा।
3. डिजिटल व्यापार और ऑनलाइन व्यापार में वृद्धि:
कोविड-19 महामारी ने डिजिटल व्यापार को बढ़ावा दिया। वैश्विक लॉकडाउन और यात्रा प्रतिबंधों के कारण, ऑनलाइन व्यापार और सेवाओं की मांग में भारी वृद्धि हुई। उदाहरण के लिए, ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों जैसे अमेज़न, फ्लिपकार्ट आदि में भारी वृद्धि देखी गई। इसके साथ ही डिजिटल माध्यमों से वैश्विक व्यापार में नए रास्ते खुले।
4. वाणिज्यिक रणनीतियों में बदलाव:
महामारी ने वैश्विक व्यापार रणनीतियों को भी बदल दिया। कंपनियों ने अपनी उत्पादन और वितरण रणनीतियों में लचीलापन लाने की कोशिश की ताकि भविष्य में किसी भी प्रकार के वैश्विक संकट का सामना किया जा सके। इसके लिए ‘डाइवर्सिफाइड सप्लाई चेन’ और ‘शॉर्टर सप्लाई चेन’ जैसे विकल्पों को अपनाया गया।
इस प्रकार, कोविड-19 महामारी ने वैश्विक व्यापार और अंतर्राष्ट्रीय स्थानांतरण की प्रक्रिया में कई बदलाव किए हैं, जिनका असर आने वाले वर्षों में भी देखा जाएगा।
See lessपाल कला तथा भवन निर्माण कला की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिये तथा बौद्ध धर्म के साथ उनके संबंध पर भी प्रकाश डालिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
पाल कला (Pala Art) भारतीय कला के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, और यह विशेष रूप से बिहार, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में विकसित हुई थी। इस कला का सबसे बड़ा प्रभाव बौद्ध धर्म पर पड़ा, जो उस समय के पाल शासकों द्वारा संरक्षण प्राप्त कर रहा था। आइए, इसकी विशेषताओं को विस्तार से समझते हैं और इसकRead more
पाल कला (Pala Art) भारतीय कला के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, और यह विशेष रूप से बिहार, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में विकसित हुई थी। इस कला का सबसे बड़ा प्रभाव बौद्ध धर्म पर पड़ा, जो उस समय के पाल शासकों द्वारा संरक्षण प्राप्त कर रहा था। आइए, इसकी विशेषताओं को विस्तार से समझते हैं और इसके बौद्ध धर्म से संबंध पर चर्चा करते हैं।
पाल कला की विशेषताएँ
बौद्ध धर्म के साथ पाल कला का संबंध
पाल शासक बौद्ध धर्म के प्रति अत्यधिक प्रतिबद्ध थे, और उनके शासन काल में बौद्ध धर्म को संरक्षण प्राप्त था। पाल कला के अधिकांश निर्माण कार्य बौद्ध धर्म से संबंधित थे, जैसे कि बौद्ध मठों और मंदिरों का निर्माण और बौद्ध मूर्तियों की स्थापना। बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को प्रसारित करने में पाल कला ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उदाहरण के लिए, विक्रमशिला और नालंदा जैसे स्थानों में बौद्ध शिक्षा और कला का सम्मिलन हुआ, और पाल शासकों ने बौद्ध धर्म के अंतर्राष्ट्रीयकरण को भी बढ़ावा दिया।
निष्कर्ष
पाल कला ने न केवल भारतीय कला को समृद्ध किया, बल्कि बौद्ध धर्म के प्रसार में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। शासकों द्वारा बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने और कला के संरक्षण ने इस कला शैली को विशेष रूप से ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बना दिया।
See lessराम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण के सामाजिक और आर्थिक चिंतन की व्याख्या कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण दोनों ही भारतीय समाजवाद के प्रमुख विचारक थे, जिन्होंने भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में गहरे सुधारों की आवश्यकता को महसूस किया। उनके विचारों ने भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया, खासकर स्वतंत्रता संग्राम और बाद के समाजवादी आंदोलनों में। राम मनोहर लोहियाRead more
राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण दोनों ही भारतीय समाजवाद के प्रमुख विचारक थे, जिन्होंने भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में गहरे सुधारों की आवश्यकता को महसूस किया। उनके विचारों ने भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया, खासकर स्वतंत्रता संग्राम और बाद के समाजवादी आंदोलनों में।
राम मनोहर लोहिया के विचार
राम मनोहर लोहिया का सामाजिक और आर्थिक चिंतन भारतीय समाज में समानता की ओर अग्रसर होने का था। वे यह मानते थे कि भारतीय समाज में व्याप्त असमानताएँ—सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक—को समाप्त करने के लिए क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत थी।
जयप्रकाश नारायण के विचार
जयप्रकाश नारायण का सामाजिक और आर्थिक चिंतन राम मनोहर लोहिया से कुछ भिन्न था, लेकिन दोनों में समानताएँ भी थीं। जयप्रकाश का समाजवाद भी आर्थिक असमानता और समाज में गहरी असमानताओं को खत्म करने के लिए था।
निष्कर्ष
राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण दोनों ने भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में गहरे सुधारों की आवश्यकता को महसूस किया। उनके विचार आज भी समाजवाद और सामाजिक न्याय के आंदोलन में प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं। उनके विचारों ने भारतीय राजनीति में समानता, न्याय और सामाजिक समृद्धि की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
See lessस्वामी सहजानंद और किसान सभी आंदोलन पर एक टिप्पणी लिखिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
स्वामी सहजानंद और किसान आंदोलन स्वामी सहजानंद सरस्वती भारतीय किसान आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई संघर्ष किए। उनका जीवन और कार्य भारतीय समाज के परिवर्तन के साथ जुड़ा हुआ था। स्वामी सहजानंद ने बिहार में किसान आंदोलन की नींव रखी और उसे एक राष्ट्रव्यापी रूRead more
स्वामी सहजानंद और किसान आंदोलन
स्वामी सहजानंद सरस्वती भारतीय किसान आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई संघर्ष किए। उनका जीवन और कार्य भारतीय समाज के परिवर्तन के साथ जुड़ा हुआ था। स्वामी सहजानंद ने बिहार में किसान आंदोलन की नींव रखी और उसे एक राष्ट्रव्यापी रूप दिया। उनका उद्देश्य किसानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारना और सामंती शासन के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन खड़ा करना था।
स्वामी सहजानंद का जीवन और योगदान
स्वामी सहजानंद का जन्म 1889 में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में हुआ था। वे बचपन से ही धार्मिक थे, लेकिन युवावस्था में उन्होंने संन्यास लेकर सामाजिक कार्यों की दिशा में कदम बढ़ाया। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा बिहार और अन्य क्षेत्रों में किसानों के बीच बिताया, जहां उन्होंने उनकी समस्याओं को समझा और उनके लिए संघर्ष किया।
किसान सभा की स्थापना और आंदोलन
स्वामी सहजानंद ने 1929 में “प्रांतीय किसान सभा” की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जमींदारों के अत्याचारों के खिलाफ किसानों को संगठित करना था। उनका यह आंदोलन धीरे-धीरे बिहार के विभिन्न इलाकों में फैल गया। 1936 में “अखिल भारतीय किसान सभा” का गठन किया गया, जिसमें स्वामी सहजानंद को अध्यक्ष चुना गया। इस सभा ने जमींदारी प्रथा को समाप्त करने और किसानों के कर्ज माफ करने की मांग उठाई। स्वामी जी के नेतृत्व में किसान संगठनों ने जमींदारी उन्मूलन और भूमि पर किसानों के अधिकार की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
आंदोलन की प्रभावशीलता
स्वामी सहजानंद के नेतृत्व में किसान आंदोलन ने एक मजबूत जनाधार प्राप्त किया। उन्होंने किसानों को संगठित करने के लिए कई पहल की, जिनमें उनका प्रसिद्ध नारा “लट्ठ हमारा जिंदाबाद” शामिल था। यह नारा न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश में किसान आंदोलनों को प्रेरित करने वाला बन गया। उनका आंदोलन गांधीजी और कांग्रेस के आंदोलन से अलग था, क्योंकि वे किसानों की समस्याओं को प्राथमिकता देते थे और उन्हें राजनीतिक मंच पर उठाने की कोशिश करते थे।
किसान आंदोलन का साम्यवाद से संबंध
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कांग्रेस के किसान मुद्दों पर उदासीनता के कारण स्वामी सहजानंद का झुकाव कुछ हद तक साम्यवाद की ओर हुआ। इस समय किसान आंदोलन का नेतृत्व साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित नेताओं ने किया, जिनमें जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया जैसे लोग शामिल थे।
निष्कर्ष
स्वामी सहजानंद का किसान आंदोलन भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। उन्होंने किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए न केवल समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया, बल्कि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को भी एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया। उनके आंदोलन से भारतीय समाज को यह समझ में आया कि स्वतंत्रता केवल अंग्रेजों से नहीं, बल्कि समाज के भीतर व्याप्त असमानताओं से भी मिलनी चाहिए।
See less1858-1914 के दौरान बिहार में पाश्चात्य शिक्षा के संप्रसार का वर्णन कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
1858-1914 के दौरान बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का संप्रसार 19वीं शताब्दी के मध्य से लेकर 20वीं शताब्दी के आरंभ तक बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार धीरे-धीरे हुआ। इस दौर में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए, जिनका प्रभाव बिहार पर भी पड़ा। 1. पाश्चात्य शिक्षा का पRead more
1858-1914 के दौरान बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का संप्रसार
19वीं शताब्दी के मध्य से लेकर 20वीं शताब्दी के आरंभ तक बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार धीरे-धीरे हुआ। इस दौर में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए, जिनका प्रभाव बिहार पर भी पड़ा।
1. पाश्चात्य शिक्षा का प्रारंभ
2. बिहार में उच्च शिक्षा की स्थापना
3. तकनीकी शिक्षा का विस्तार
4. बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव
5. निष्कर्ष
1858 से 1914 तक पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार बिहार में धीरे-धीरे हुआ, लेकिन इसने अंततः बिहार की शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार और परिवर्तन किए। इस शिक्षा प्रणाली ने न केवल सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता को बढ़ाया, बल्कि बिहार में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी एक नया दृष्टिकोण विकसित किया।
See less1857 के विद्रोह के क्या कारण थे? बिहार में उसका प्रभाव क्या था? [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
1857 के विद्रोह के कारण 1. राजनीतिक कारण सैनिकों की असंतोष: ब्रिटिश सेना के भारतीय सिपाहियों के साथ भेदभाव और अपमानजनक व्यवहार। लॉर्ड डलहौजी की नीति: "लक्ष्मी प्रथा" के तहत रियासतों का अधिग्रहण, जिसके कारण कई राजाओं का राजपाट छिन गया। हिंदू और मुस्लिम धार्मिक भावनाओं का ठेस पहुँचना: ईसाई धर्म का प्रRead more
1857 के विद्रोह के कारण
1. राजनीतिक कारण
2. आर्थिक कारण
3. सामाजिक और सांस्कृतिक कारण
बिहार में 1857 का प्रभाव
निष्कर्ष
1857 का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखने वाला महत्वपूर्ण घटनाक्रम था। बिहार में इसका प्रभाव गहरा था, जहां लोगों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया और वीरता की मिसाल पेश की।
See lessEvaluate the causes and results of Revolt of Santhal (1855-56) in Bihar. [63th BPSC Mains Exam 2017]
Santhal Revolt (1855-56): Causes and Results Causes of the Revolt Economic Exploitation: The Santhal community faced heavy taxation and exploitation by the British and zamindars (landlords). They were forced to pay high rents and taxes, leading to severe economic distress. Exploitation by MoneylendeRead more
Santhal Revolt (1855-56): Causes and Results
Causes of the Revolt
The Revolt
Results of the Revolt
Conclusion
The Santhal Revolt of 1855-56 was a significant expression of tribal resistance against British colonial exploitation. While it was eventually suppressed, its impact on the socio-political landscape of Bihar and neighboring regions was profound, influencing future uprisings and contributing to the broader Indian independence movement.
See lessDiscuss the contribution of Bihar to the Uprising of 1857 AD. [63th BPSC Mains Exam 2017]
The Revolt of 1857 saw significant contributions from Bihar, which played a crucial role in resisting British colonial rule. Key Events in Bihar Patna Uprising (July 3, 1857): Pir Ali, a local bookseller, led an uprising against British officers, particularly targeting the opium trade. His role wasRead more
The Revolt of 1857 saw significant contributions from Bihar, which played a crucial role in resisting British colonial rule.
Key Events in Bihar
Major Rebellions in Other Areas
Significance of Bihar’s Contribution
Though the rebellion was eventually suppressed, Bihar’s involvement in the Revolt of 1857 is remembered for its widespread support among different sections of society and its leadership under figures like Kunwar Singh.
See lessDiscuss the development of western education in Bihar from 1857 AD to 1947 AD. [63th BPSC Mains Exam 2017]
The development of Western education in Bihar was a gradual process influenced by British colonial policies and societal changes. Here’s a detailed overview of its progression from 1857 to 1947. Early Developments (1857-1860s) Charter Act of 1813: The British government allocated funds for educationRead more
The development of Western education in Bihar was a gradual process influenced by British colonial policies and societal changes. Here’s a detailed overview of its progression from 1857 to 1947.
Early Developments (1857-1860s)
Key Institutions Established
Expansion in Technical and Professional Education
Education for Social Upliftment
Challenges and Limitations
Conclusion
The development of Western education in Bihar from 1857 to 1947 was marked by the establishment of key institutions and the spread of English education. While it helped build an educated elite, it largely neglected the masses. The focus on vocational training and higher education paved the way for a new generation that later contributed to India’s freedom struggle.
See lessबिहार में चंपारण सत्याग्रह (1917) के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये। [63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2017]
चंपारण सत्याग्रह (1917), भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो महात्मा गांधी के नेतृत्व में बिहार के चंपारण जिले में हुआ। यह सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी की पहली बड़ी भूमिका थी और इसने देशवासियों को अहिंसक विरोध की शक्ति से परिचित कराया। चंपारण सत्याग्रह के कारण:Read more
चंपारण सत्याग्रह (1917), भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो महात्मा गांधी के नेतृत्व में बिहार के चंपारण जिले में हुआ। यह सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी की पहली बड़ी भूमिका थी और इसने देशवासियों को अहिंसक विरोध की शक्ति से परिचित कराया।
चंपारण सत्याग्रह के कारण:
चंपारण सत्याग्रह के परिणाम:
निष्कर्ष:
चंपारण सत्याग्रह ने भारतीय किसानों को उनके अधिकारों के लिए लड़ने का साहस दिया और महात्मा गांधी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण नेता बना दिया। यह सत्याग्रह गांधी जी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों की सफलता का प्रतीक बन गया, जिसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की दिशा बदल दी।
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