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भारत में आर्थिक सुधारों के बाद के काल में आर्थिक नियोजन की प्रासंगिकता की विवेचना कीजिये। इस संदर्भ में समझाइए कि किस प्रकार राज्य और बाजार देश के आर्थिक विकास में एक सकारात्मक भूमिका निबाह सकते हैं। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
आर्थिक सुधारों के बाद आर्थिक नियोजन की प्रासंगिकता भारत में 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद नियोजन के स्वरूप में व्यापक बदलाव आया। उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की नीतियों ने राज्य-केंद्रित नियोजन की पारंपरिक अवधारणा को चुनौती दी। इसके बावजूद, आर्थिक नियोजन ने विकास के मार्गदर्शन और संतुलन बनाए रखनेRead more
आर्थिक सुधारों के बाद आर्थिक नियोजन की प्रासंगिकता
भारत में 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद नियोजन के स्वरूप में व्यापक बदलाव आया। उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की नीतियों ने राज्य-केंद्रित नियोजन की पारंपरिक अवधारणा को चुनौती दी। इसके बावजूद, आर्थिक नियोजन ने विकास के मार्गदर्शन और संतुलन बनाए रखने में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है।
आर्थिक सुधारों के बाद नियोजन की प्रासंगिकता
राज्य और बाजार की सकारात्मक भूमिका
1. राज्य की भूमिका
2. बाजार की भूमिका
राज्य और बाजार का सहयोग: एक सकारात्मक दृष्टिकोण
1. पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP):
2. नीति निर्माण और कार्यान्वयन:
3. सामाजिक न्याय और समावेशन:
निष्कर्ष
आर्थिक सुधारों के बाद, आर्थिक नियोजन की प्रकृति भले ही बदल गई हो, लेकिन इसकी प्रासंगिकता बनी रही। राज्य और बाजार के बीच संतुलन बनाए रखने से आर्थिक विकास और समावेशी वृद्धि को बढ़ावा दिया जा सकता है। राज्य का मार्गदर्शन और बाजार की दक्षता साथ मिलकर भारत को आत्मनिर्भर और सतत विकासशील बना सकते हैं।
See lessभारतीय कृषि में 1991 से संवृद्धि एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियों की व्याख्या कीजिये। बिहार में कृषि उत्पादन और उसकी उत्पादकता को बढ़ाने के लिये क्या व्यावहारिक उपाय किये जाने चाहिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
भारतीय कृषि में 1991 से संवृद्धि एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियाँ भारत में 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद कृषि क्षेत्र ने कई बदलाव देखे। यह परिवर्तन वैश्विक व्यापार, तकनीकी उन्नति, और नीतिगत सुधारों का परिणाम था। 1. संवृद्धि की प्रवृत्तियाँ हरित क्रांति के प्रभाव का विस्तार: हरित क्रांति के बाद से कृषRead more
भारतीय कृषि में 1991 से संवृद्धि एवं उत्पादकता की प्रवृत्तियाँ
भारत में 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद कृषि क्षेत्र ने कई बदलाव देखे। यह परिवर्तन वैश्विक व्यापार, तकनीकी उन्नति, और नीतिगत सुधारों का परिणाम था।
1. संवृद्धि की प्रवृत्तियाँ
2. उत्पादकता की प्रवृत्तियाँ
बिहार में कृषि उत्पादन और उत्पादकता की स्थिति
1. वर्तमान स्थिति
2. चुनौतियाँ
बिहार में कृषि सुधार के व्यावहारिक उपाय
1. सिंचाई का विकास
2. मशीनीकरण और तकनीकी उन्नति
3. भंडारण और विपणन सुधार
4. फसल विविधीकरण
5. सहकारिता और क्रेडिट सुधार
निष्कर्ष
1991 के बाद भारतीय कृषि ने संवृद्धि और उत्पादकता में सुधार देखा, लेकिन क्षेत्रीय असमानताएँ बनी रहीं। बिहार में कृषि क्षेत्र की प्रगति के लिए तकनीकी उन्नति, सिंचाई, और विपणन सुधारों पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है। इन सुधारों से कृषि को अधिक उत्पादक और लाभदायक बनाया जा सकता है, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
See lessई-शासन से आप क्य समझते हैं? ई-शासन को लागू करने में बिहार की स्थिति का वर्णन कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
ई-शासन: ई-शासन (E-Governance) का तात्पर्य है, सरकार की प्रक्रियाओं और सेवाओं को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के माध्यम से नागरिकों, व्यवसायों, और अन्य सरकारी एजेंसियों तक पहुँचाना। इसका उद्देश्य प्रशासन को अधिक पारदर्शी, प्रभावी, और जवाबदेह बनाना है। ई-शासन के मुख्य उद्देश्य: सरकारी सेवाओं की तRead more
ई-शासन:
ई-शासन (E-Governance) का तात्पर्य है, सरकार की प्रक्रियाओं और सेवाओं को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के माध्यम से नागरिकों, व्यवसायों, और अन्य सरकारी एजेंसियों तक पहुँचाना। इसका उद्देश्य प्रशासन को अधिक पारदर्शी, प्रभावी, और जवाबदेह बनाना है।
ई-शासन के मुख्य उद्देश्य:
बिहार में ई-शासन: एक विश्लेषण
बिहार जैसे विकासशील राज्य में ई-शासन की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हाल के वर्षों में, बिहार सरकार ने ई-शासन को बढ़ावा देने के लिए कई पहलों को लागू किया है, लेकिन इस दिशा में कई चुनौतियाँ भी हैं।
1. ई-शासन की प्रमुख पहलें:
2. ई-शासन में बिहार की स्थिति:
ई-शासन की चुनौतियों से निपटने के सुझाव
निष्कर्ष
बिहार में ई-शासन ने प्रशासन को नागरिकों के करीब लाने में मदद की है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए संरचनात्मक सुधार और डिजिटल बुनियादी ढाँचे पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि चुनौतियों का समाधान किया जाए, तो ई-शासन बिहार की प्रशासनिक दक्षता को नई ऊँचाईयों तक ले जा सकता है।
See less"भारतीय राजनीतिक दलीय व्यवस्था राष्ट्रोन्मुखी न होकर व्यक्ति उन्मुखी है।" इस तथ्य को बिहार राज्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
भारतीय राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली पर व्यक्ति-उन्मुखता का आरोप लंबे समय से लगाया जाता रहा है। बिहार की राजनीति इस समस्या का विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है, जहाँ व्यक्ति-उन्मुखी नेतृत्व और परिवारवाद व्यापक रूप से प्रभावी हैं। बिहार में राजनीतिक दलीय व्यवस्था की व्यक्ति-उन्मुखी प्रवृत्ति वंशवाद औरRead more
भारतीय राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली पर व्यक्ति-उन्मुखता का आरोप लंबे समय से लगाया जाता रहा है। बिहार की राजनीति इस समस्या का विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती है, जहाँ व्यक्ति-उन्मुखी नेतृत्व और परिवारवाद व्यापक रूप से प्रभावी हैं।
बिहार में राजनीतिक दलीय व्यवस्था की व्यक्ति-उन्मुखी प्रवृत्ति
इसके परिणाम
समाधान और संभावनाएँ
निष्कर्ष
बिहार में राजनीतिक दलीय व्यवस्था का व्यक्ति-उन्मुखी होना लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लिए चुनौती है। हालांकि, इसके समाधान के लिए संस्थागत सुधार, जनता की जागरूकता, और दलीय संरचना का लोकतंत्रीकरण आवश्यक है। यह न केवल बिहार बल्कि समग्र भारतीय राजनीति को भी राष्ट्रोन्मुखी बनाने में सहायक होगा
See less"भारतीय संसद एक गैर-प्रभुता संपन्न विधि-निर्मात्री संस्था है।" इस कथन की समीक्षा कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
भारतीय संविधान में संसद को विधि-निर्माण की सर्वोच्च संस्था माना गया है। फिर भी, इसे "गैर-प्रभुता संपन्न" कहा जाना एक बहस का विषय है। यह विचार संसद की सीमाओं और संवैधानिक ढांचे में इसके अधिकार क्षेत्र को दर्शाता है। भारतीय संसद की सीमाएँ भारतीय संसद के "गैर-प्रभुता संपन्न" होने का तात्पर्य है कि इसकाRead more
भारतीय संविधान में संसद को विधि-निर्माण की सर्वोच्च संस्था माना गया है। फिर भी, इसे “गैर-प्रभुता संपन्न” कहा जाना एक बहस का विषय है। यह विचार संसद की सीमाओं और संवैधानिक ढांचे में इसके अधिकार क्षेत्र को दर्शाता है।
भारतीय संसद की सीमाएँ
भारतीय संसद के “गैर-प्रभुता संपन्न” होने का तात्पर्य है कि इसका कार्यक्षेत्र पूर्णतः स्वतंत्र नहीं है। इसके कई कारक हैं:
1. संविधान द्वारा सीमित अधिकार
2. न्यायिक समीक्षा का अधिकार
3. संविधान संशोधन की प्रक्रिया
4. संघीय ढांचे में सीमितता
संसद की प्रभुता के पक्ष में तर्क
1. विधायिका की सर्वोच्चता
2. लोकतंत्र में प्रतिनिधित्व
3. संसदीय समितियाँ
क्या आप इस वक्तव्य से सहमत हैं कि हमारे संविधान ने एक हाथ से मौलिक अधिकार दिये हैं, किंतु दूसरे हाथ से उन्हें वापस ले लिया है? [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने और उनकी सीमा तय करने के बीच एक संतुलन स्थापित किया गया है। इस विषय पर विचार करते समय हमें संविधान की मंशा, लोकतांत्रिक सिद्धांतों और सामाजिक वास्तविकताओं को समझना होगा। मौलिक अधिकारों का महत्व समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18): यह जाति, धर्म, लिंग,Read more
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने और उनकी सीमा तय करने के बीच एक संतुलन स्थापित किया गया है। इस विषय पर विचार करते समय हमें संविधान की मंशा, लोकतांत्रिक सिद्धांतों और सामाजिक वास्तविकताओं को समझना होगा।
मौलिक अधिकारों का महत्व
अधिकारों पर लगाए गए प्रतिबंध
संविधान इन अधिकारों को ‘पूर्ण’ नहीं बनाता। ये “यथासंभव” स्वतंत्रता प्रदान करते हैं, जिन पर समाज और राष्ट्रहित में सीमा लगाई जा सकती है। उदाहरण:
आलोचनाएँ और आवश्यकता
निष्कर्ष
संविधान ने मौलिक अधिकार देकर नागरिकों को सशक्त बनाया है, लेकिन समाज और राष्ट्र की व्यापक भलाई के लिए उनके प्रयोग पर सीमाएँ लगाई हैं। इस प्रकार यह कथन आंशिक रूप से सत्य है कि संविधान ने “एक हाथ से अधिकार दिए और दूसरे से सीमित कर दिए”। यह लोकतंत्र के संतुलन और न्याय के लिए आवश्यक कदम है।
See less"मिशन शक्ति' के साथ भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अंतरिक्ष शक्ति बन गया है।" इस कथन पर चर्चा कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
"मिशन शक्ति" और भारत की अंतरिक्ष शक्ति की स्थिति "मिशन शक्ति" भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हुआ, जो 2019 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा लॉन्च किया गया था। इस मिशन के तहत भारत ने अपनी "एंटी-सैटेलाइट" (ASAT) क्षमताओं का प्रदर्शन किया और एक सक्रिय उपग्रहRead more
“मिशन शक्ति” और भारत की अंतरिक्ष शक्ति की स्थिति
“मिशन शक्ति” भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हुआ, जो 2019 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा लॉन्च किया गया था। इस मिशन के तहत भारत ने अपनी “एंटी-सैटेलाइट” (ASAT) क्षमताओं का प्रदर्शन किया और एक सक्रिय उपग्रह को नष्ट किया, जिससे भारत ने अंतरिक्ष शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत किया। इस मिशन के साथ भारत ने खुद को विश्व की चौथी सबसे बड़ी अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित किया।
1. मिशन शक्ति का महत्व
1.1. ASAT परीक्षण की सफलता
मिशन शक्ति ने भारत को “शक्तिशाली अंतरिक्ष शक्ति” के रूप में पहचान दिलाई, क्योंकि यह क्षमता केवल कुछ देशों के पास ही थी। भारत के साथ अमेरिका, रूस और चीन ही इस तरह के ASAT परीक्षण को सफलतापूर्वक अंजाम दे पाए थे। इस परीक्षण ने भारत की अंतरिक्ष सुरक्षा में नया आयाम जोड़ा, जिससे देश को किसी भी संभावित अंतरिक्ष युद्ध या संघर्ष से निपटने की शक्ति मिली।
1.2. वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धि
मिशन शक्ति न केवल एक सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टिकोण से भी बहुत बड़ा कदम था। इस परीक्षण में ISRO के वैज्ञानिकों ने उपग्रहों को निशाना बनाने वाली अत्याधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया, जो इस तरह के मिशन के लिए आवश्यक होती हैं।
2. भारत की अंतरिक्ष शक्ति की स्थिति
2.1. वैश्विक प्रतिस्पर्धा में स्थान
मिशन शक्ति के साथ, भारत ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को विश्व में महत्वपूर्ण स्थान दिलवाया। अब भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी अंतरिक्ष शक्ति बन चुका है, और उसकी प्रतिस्पर्धा अमेरिका, रूस और चीन से की जा सकती है।
2.2. नागरिक और सैन्य उपयोग
भारत ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम का उपयोग नागरिक और सैन्य दोनों उद्देश्यों के लिए किया है। जहां एक ओर ISRO द्वारा चंद्रयान और मंगलयान जैसे मिशन भारतीय विज्ञान को प्रोत्साहित करते हैं, वहीं दूसरी ओर मिशन शक्ति जैसे सैन्य मिशन भारत की सुरक्षा को मजबूत करते हैं।
3. निष्कर्ष
मिशन शक्ति ने भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक नया मुकाम दिया और उसे विश्व की चौथी सबसे बड़ी अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित किया। इसने भारत की वैज्ञानिक, तकनीकी और सैन्य क्षमताओं का प्रदर्शन किया और देश की सुरक्षा को एक नई दिशा दी। भारत अब अंतरिक्ष में एक महाशक्ति बनने की दिशा में कदम बढ़ा चुका है, जो भविष्य में और अधिक अंतरिक्ष अभियानों और मिशनों के साथ अपनी स्थिति को और मजबूत करेगा।
See lessभारत में कोविड-19 लॉकडाउन के सामाजिक-आर्थिक और पारिस्थितिक निहितार्थों की सोदाहरण व्याख्या कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया, और भारत भी इससे अछूता नहीं था। मार्च 2020 में लागू किए गए लॉकडाउन ने न केवल भारत की सामाजिक और आर्थिक संरचना को प्रभावित किया, बल्कि इसके पारिस्थितिकीय प्रभाव भी बड़े पैमाने पर महसूस किए गए। 1. सामाजिक-आर्थिक प्रभाव 1.1. आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी लॉकडRead more
कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया, और भारत भी इससे अछूता नहीं था। मार्च 2020 में लागू किए गए लॉकडाउन ने न केवल भारत की सामाजिक और आर्थिक संरचना को प्रभावित किया, बल्कि इसके पारिस्थितिकीय प्रभाव भी बड़े पैमाने पर महसूस किए गए।
1. सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
1.1. आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी
लॉकडाउन के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आई। उद्योग, व्यापार और सेवाओं के बंद होने के कारण लाखों लोग बेरोज़गार हो गए। खासकर प्रवासी मजदूरों की स्थिति अत्यधिक संकटपूर्ण हो गई, क्योंकि वे अपने घरों से दूर काम कर रहे थे और लॉकडाउन के कारण कई महीने तक बिना काम के रहे।
1.2. गरीबी में वृद्धि
कोविड-19 लॉकडाउन ने गरीब और मजदूर वर्ग के जीवन को और भी कठिन बना दिया। सरकारी राहत कार्यक्रमों के बावजूद, बड़ी संख्या में लोग खाद्य सुरक्षा संकट और आर्थिक असुरक्षा का सामना कर रहे थे।
1.3. शिक्षा क्षेत्र पर प्रभाव
लॉकडाउन ने शिक्षा क्षेत्र को भी प्रभावित किया, क्योंकि स्कूलों और कॉलेजों के बंद होने से लाखों छात्रों की शिक्षा रुक गई। ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से शिक्षा को जारी रखने की कोशिश की गई, लेकिन तकनीकी साधनों की कमी, खासकर ग्रामीण इलाकों में, एक बड़ी चुनौती बनी।
2. पारिस्थितिकीय प्रभाव
2.1. प्राकृतिक संसाधनों पर असर
लॉकडाउन के दौरान, कई उद्योगों और वाहनों की गतिविधियां रुक गईं, जिससे प्रदूषण में कमी आई और पर्यावरण में सुधार हुआ।
2.2. वन्यजीवों के व्यवहार में बदलाव
लॉकडाउन ने वन्यजीवों को मानव गतिविधियों से कुछ राहत दी। कई शहरों में देखा गया कि सड़कें खाली होने के कारण कुछ वन्य प्रजातियाँ शहरों के भीतर आ गईं।
2.3. जलवायु परिवर्तन पर असर
लॉकडाउन के दौरान कार्बन उत्सर्जन में भारी गिरावट आई, लेकिन इसका प्रभाव स्थायी नहीं था। जैसे ही लॉकडाउन हटाया गया, फिर से उद्योगों और परिवहन के कारण प्रदूषण के स्तर में वृद्धि हो गई।
3. निष्कर्ष
भारत में कोविड-19 लॉकडाउन ने सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिकीय परिदृश्यों पर गहरा प्रभाव डाला। जहां एक ओर इसका मानव जीवन और कामकाजी जीवन पर नकारात्मक असर पड़ा, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण में अस्थायी सुधार भी देखने को मिला। भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर तैयारी, समाजिक कल्याण योजनाओं का विस्तार और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अधिक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
See lessऑस्ट्रेलिया के 'जंगली आग' (बुश-फायर) और ब्राजील के 'अमेजन दाह' जैसी तात्कालिक आपदाओं की उनके कारणों और स्थानीय पारिस्थितिक तथा वैश्विक वातावरणीय दशाओं पर प्रभाव सहित जाँच कीजिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
ऑस्ट्रेलिया के जंगली आग (बुश-फायर) और ब्राजील के 'अमेजन दाह' की तात्कालिक आपदाएं और उनके प्रभाव 1. ऑस्ट्रेलिया के बुश-फायर (2019-2020) ऑस्ट्रेलिया के बुश-फायर ने 2019-2020 में गंभीर तबाही मचाई, जिससे पर्यावरण, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ा। कारण: गर्मी और सूखा: बढ़ती गर्मी और दीर्घकालRead more
ऑस्ट्रेलिया के जंगली आग (बुश-फायर) और ब्राजील के ‘अमेजन दाह’ की तात्कालिक आपदाएं और उनके प्रभाव
1. ऑस्ट्रेलिया के बुश-फायर (2019-2020)
ऑस्ट्रेलिया के बुश-फायर ने 2019-2020 में गंभीर तबाही मचाई, जिससे पर्यावरण, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ा।
कारण:
प्रभाव:
2. ब्राजील का ‘अमेजन दाह’ (Amazon Fires)
अमेजन वर्षावनों में आग की घटनाएं 2019 में भी बढ़ी, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक पर्यावरणीय चिंताएं उत्पन्न हुईं।
कारण:
प्रभाव:
निष्कर्ष
इन दोनों घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियाँ पर्यावरणीय आपदाओं को बढ़ावा देती हैं। पर्यावरणीय दृष्टि से, इन आपदाओं ने स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित किया है और वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के खतरे को बढ़ाया है। इन घटनाओं के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और पर्यावरण संरक्षण नीतियों को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
See lessविश्व खुशहाली रिपोर्ट-2020 के विभेद के क्या है? कारण बताइए कि नॉर्डिक देशों को विश्व में प्रथम स्तरीय देश क्यों माना जाता है? [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
विश्व खुशहाली रिपोर्ट 2020 के विभेद विश्व खुशहाली रिपोर्ट 2020 को संयुक्त राष्ट्र की सतत विकास समाधान नेटवर्क (SDSN) द्वारा प्रकाशित किया गया, जो दुनिया के विभिन्न देशों के नागरिकों की खुशहाली और जीवन गुणवत्ता का आकलन करता है। इस रिपोर्ट में खुशहाली का मूल्यांकन छह मुख्य आयामों पर आधारित था: आय: नागRead more
विश्व खुशहाली रिपोर्ट 2020 के विभेद
विश्व खुशहाली रिपोर्ट 2020 को संयुक्त राष्ट्र की सतत विकास समाधान नेटवर्क (SDSN) द्वारा प्रकाशित किया गया, जो दुनिया के विभिन्न देशों के नागरिकों की खुशहाली और जीवन गुणवत्ता का आकलन करता है। इस रिपोर्ट में खुशहाली का मूल्यांकन छह मुख्य आयामों पर आधारित था:
इस रिपोर्ट में विभेद (inequality) से संबंधित मुद्दे का भी उल्लेख किया गया है, विशेष रूप से उन देशों के बीच जहां खुशहाली में अंतर अधिक था। ऐसे देशों में समाजिक असमानताएँ, गरीबी और बेरोज़गारी प्रमुख कारण हैं, जो नागरिकों की खुशहाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
नॉर्डिक देशों को विश्व में प्रथम स्तरीय देश क्यों माना जाता है?
नॉर्डिक देश, जैसे स्वीडन, डेनमार्क, फिनलैंड, नॉर्वे, और आइसलैंड, को विश्व में खुशहाली और सामाजिक कल्याण के संदर्भ में सर्वोत्तम माना जाता है। ये देश कई कारणों से अन्य देशों से बेहतर स्थिति में हैं:
निष्कर्ष
विश्व खुशहाली रिपोर्ट 2020 ने यह स्पष्ट किया कि नॉर्डिक देशों में सामाजिक कल्याण, न्याय, और समावेशन पर जोर दिया गया है, जो इन देशों को खुशहाली के मामले में अग्रणी बनाता है। इन देशों के नागरिकों का जीवन संतुलित और समृद्ध है, जिससे वे वैश्विक खुशहाली सूची में शीर्ष पर आते हैं।
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