“आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या” पर टिप्पणी लिखिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
परिचय पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो किसी प्रस्तावित परियोजना या विकास की संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि निर्णय-निर्माताओं के पास परियोजना की स्वीकृति से पहले पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी हो, ताकि संभाRead more
परिचय
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो किसी प्रस्तावित परियोजना या विकास की संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि निर्णय-निर्माताओं के पास परियोजना की स्वीकृति से पहले पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी हो, ताकि संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके और सतत विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
EIA की प्रक्रिया
- उद्देश्य और आवश्यकता:
- सूचित निर्णय लेना: EIA निर्णय-निर्माताओं और संबंधित पक्षों को परियोजना के पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में पूर्ण जानकारी प्रदान करता है, जिससे वे सही निर्णय ले सकें।
- निवारण उपाय: यह प्रक्रिया नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों की पहचान करने में मदद करती है और उनके निवारण के उपाय सुझाती है।
- जन भागीदारी: EIA प्रक्रिया में आमतौर पर जन-सामान्य की राय शामिल की जाती है, जिससे स्थानीय समुदायों की चिंताओं और दृष्टिकोणों को परियोजना योजना में शामिल किया जा सके।
- EIA की प्रक्रिया:
- स्क्रीनिंग: यह चरण यह तय करता है कि क्या परियोजना को पूर्ण EIA की आवश्यकता है या केवल प्रारंभिक आकलन पर्याप्त है।
- स्कोपिंग: इसमें प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों की पहचान की जाती है जिन्हें EIA में शामिल किया जाएगा। इसमें स्टेकहोल्डर्स से परामर्श और आकलन की दायरे की परिभाषा शामिल होती है।
- प्रभाव आकलन: इसमें परियोजना के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का विश्लेषण किया जाता है, जिसमें प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष, और संचयी प्रभाव शामिल होते हैं। यह चरण डेटा संग्रह, मॉडलिंग, और प्रभाव पूर्वानुमान को शामिल करता है।
- निवारण और रिपोर्टिंग: नकारात्मक प्रभावों को कम करने के उपायों का सुझाव दिया जाता है और एक पर्यावरणीय प्रभाव रिपोर्ट (EIS) तैयार की जाती है जिसमें निष्कर्ष और सिफारिशें शामिल होती हैं।
- समीक्षा और निर्णय: EIS की समीक्षा की जाती है और सार्वजनिक और नियामक एजेंसियों द्वारा निर्णय लिया जाता है। अनुमोदन के लिए शर्तें लागू की जा सकती हैं।
- निगरानी और अनुपालन: स्वीकृति के बाद, निगरानी की जाती है ताकि निवारण उपायों का पालन सुनिश्चित हो सके और किसी अप्रत्याशित प्रभाव को संबोधित किया जा सके।
EIA के लाभ और महत्व
- पर्यावरणीय संरक्षण:
- क्षति की रोकथाम: EIA संभावित पर्यावरणीय क्षति की पहचान कर सकता है और इसे रोकने के उपाय सुझा सकता है। उदाहरण के लिए, मुंबई तटीय सड़क परियोजना ने समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और तटीय आवासों पर प्रभाव को संबोधित करने के लिए EIA किया।
- सतत विकास:
- विकास और पर्यावरण संतुलन: EIA सुनिश्चित करता है कि विकास परियोजनाएँ सतत विकास के सिद्धांतों के साथ मेल खाती हैं, जिससे आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संरक्षण में संतुलन बना रहे। नर्मदा घाटी परियोजना में EIA प्रक्रिया ने बड़े पैमाने पर बांध निर्माण के पर्यावरणीय चिंताओं को संबोधित किया।
- जन स्वास्थ्य और सुरक्षा:
- स्वास्थ्य जोखिमों की निवारण: EIA पर्यावरणीय परिवर्तनों से संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों की पहचान और निवारण में मदद करता है, जैसे कि प्रदूषण या आवासीय विनाश। दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने EIA किया ताकि शहरी वायु गुणवत्ता और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर संभावित प्रभाव को कम किया जा सके।
- कानूनी और नियामक अनुपालन:
- विधायी अनुपालन: EIA सुनिश्चित करता है कि परियोजनाएँ पर्यावरणीय कानूनों और नियमों का पालन करें, जिससे कानूनी विवाद और दंड से बचा जा सके। भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत कुछ परियोजनाओं के लिए EIA अनिवार्य है, जो नियामक अनुपालन सुनिश्चित करता है।
EIA के चुनौतीपूर्ण पहलू
- डेटा और विशेषज्ञता की सीमाएँ:
- अपूर्ण डेटा: EIA प्रक्रियाओं को अक्सर अपूर्ण या पुराना डेटा प्राप्त होता है, जिससे प्रभाव पूर्वानुमान असटीक हो सकते हैं। चिल्का झील केस ने संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव आकलन के लिए व्यापक डेटा संग्रह की चुनौती को उजागर किया।
- जन भागीदारी:
- सीमित संलग्नता: प्रभावी जन भागीदारी एक चुनौती हो सकती है, जिसमें समुदायों की सीमित भागीदारी EIA प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है। सरदार सरोवर डेम परियोजना ने जन-संविधान और स्थानीय समुदायों के विस्थापन पर आलोचना का सामना किया।
- कार्यान्वयन और अनुपालन:
- निगरानी समस्याएँ: यह सुनिश्चित करना कि निवारण उपाय प्रभावी ढंग से लागू किए जाएँ और निगरानी की जाए, चुनौतीपूर्ण हो सकता है। कोलकाता ईस्टर्न बायपास परियोजना में पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों के प्रवर्तन में समस्याएँ आईं, जो कठोर निगरानी की आवश्यकता को उजागर करता है।
हाल के उदाहरण और केस स्टडीज
- चंडीगढ़ स्मार्ट सिटी परियोजना: इस परियोजना ने शहरी बुनियादी ढाँचे और पर्यावरण पर प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए एक व्यापक EIA किया। आकलन ने इको-फ्रेंडली समाधानों को डिज़ाइन करने और स्थानीय समुदायों पर प्रभाव को कम करने में मदद की।
- भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) का फास्ट ब्रीडर रिएक्टर: इस नाभिकीय परियोजना के लिए EIA ने नाभिकीय सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रभावों से संबंधित चिंताओं को संबोधित किया और सार्वजनिक परामर्श को शामिल किया।
- गंगा सफाई परियोजना (नमामी गंगे): इस परियोजना के लिए EIA ने जल गुणवत्ता, जलीय जीवन और स्थानीय समुदायों पर प्रभाव का मूल्यांकन किया, जिसके परिणामस्वरूप प्रदूषण कम करने और नदी के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के उपाय लागू किए गए।
निष्कर्ष
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) विकास परियोजनाओं को पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक जिम्मेदारी के साथ जोड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह संभावित प्रभावों की पहचान और निवारण की प्रक्रिया प्रदान करता है, जो पर्यावरणीय क्षति को रोकने, सतत विकास को प्रोत्साहित करने, और जन स्वास्थ्य की रक्षा करने में सहायक है। हालाँकि इसके सामने चुनौतियाँ हैं, EIA की प्रभावशीलता को बढ़ाने और पिछले अनुभवों से सीखे गए पाठों को लागू करने से सतत प्रगति प्राप्त करना संभव होगा।
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आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या परिचय: आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जैसे-जैसे देश आर्थिक विकास की ओर बढ़ते हैं, पर्यावरणीय प्रभाव, विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के रूप में, बढ़ता है। दीर्घकालिक विकास लक्ष्योRead more
आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या
परिचय: आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जैसे-जैसे देश आर्थिक विकास की ओर बढ़ते हैं, पर्यावरणीय प्रभाव, विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के रूप में, बढ़ता है। दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्थायी संतुलन खोजना आवश्यक है, ताकि जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा न मिले।
आर्थिक विकास बनाम कार्बन उत्सर्जन: आर्थिक विकास पारंपरिक रूप से औद्योगिकीकरण पर आधारित होता है, जो ऊर्जा-गहन है और अक्सर जीवाश्म ईंधन पर निर्भर करता है। इससे कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, चीन और भारत जैसे देशों ने तेजी से आर्थिक विकास देखा है, लेकिन इसके साथ ही उत्सर्जन में भी वृद्धि हुई है, जिससे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है।
चुनौतियाँ:
हाल का उदाहरण: भारत ने पेरिस समझौते के तहत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) के अनुसार, 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में अपने जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, देश का 2025 तक $5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य है, जो निरंतर आर्थिक विकास की मांग करता है और संतुलन की इस चुनौती को और जटिल बनाता है।
निष्कर्ष: संतुलन प्राप्त करने के लिए हरित प्रौद्योगिकियों, स्थायी प्रथाओं, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जैसे नवाचार समाधान आवश्यक हैं। चुनौती केवल आर्थिक रूप से विकसित होने की नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की है कि यह विकास स्थायी और समावेशी हो, बिना पर्यावरण के साथ समझौता किए।
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