“आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या” पर टिप्पणी लिखिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
परिचय: सरकार द्वारा किसी परियोजना को मंजूरी देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अध्ययन आवश्यक होते हैं। कोयला गर्त-शिखरी (पिटहेड्स) पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव महत्वपूर्ण हैं और इन्हें ध्यान में रखना आवश्यक है। कोयला पिटहेड्स पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रोंRead more
परिचय: सरकार द्वारा किसी परियोजना को मंजूरी देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अध्ययन आवश्यक होते हैं। कोयला गर्त-शिखरी (पिटहेड्स) पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव महत्वपूर्ण हैं और इन्हें ध्यान में रखना आवश्यक है।
कोयला पिटहेड्स पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव:
- वायु प्रदूषण: कोयला आधारित तापीय संयंत्रों से बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂), नाइट्रोजन ऑक्साइड्स (NOₓ), और कणिका पदार्थ (PM) उत्सर्जित होते हैं। ये प्रदूषक वायु गुणवत्ता को खराब करते हैं और श्वसन समस्याओं को जन्म देते हैं। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के हरदोई में स्थित तापीय संयंत्र के उच्च SO₂ और NOₓ उत्सर्जन ने स्थानीय वायु गुणवत्ता को प्रभावित किया है।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: कोयला संयंत्र CO₂ जैसे ग्रीनहाउस गैसों के प्रमुख स्रोत होते हैं, जो वैश्विक तापन और जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देते हैं। जैसे, मध्य प्रदेश के सिंगरौली क्षेत्र में स्थित कोयला संयंत्रों के कारण CO₂ उत्सर्जन ने जलवायु परिवर्तन को योगदान दिया है।
- जल उपयोग और प्रदूषण: इन संयंत्रों को ठंडा करने के लिए बड़े पैमाने पर जल की आवश्यकता होती है, जिससे थर्मल और रासायनिक प्रदूषण उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ के कोरबा तापीय संयंत्र द्वारा जल के अत्यधिक उपयोग और जल bodies में गर्म जल के डिस्चार्ज ने स्थानीय जल स्रोतों को प्रभावित किया है।
- भूमि अवनति: पिटहेड्स से कोयला निकालने से वनस्पति, मृदा अपरदन, और आवासीय क्षेत्रों का विनाश होता है। जैसे, झरिया कोलफील्ड्स में कोयला खनन से भूमि अवनति और स्थानीय समुदायों के विस्थापन की समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
- स्वास्थ्य प्रभाव: कोयला संयंत्रों से निकलने वाले प्रदूषकों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से श्वसन रोग, हृदय रोग, और कैंसर जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। कोयला संयंत्रों के आसपास रहने वाले लोगों में उच्चतर स्वास्थ्य समस्याएँ देखी गई हैं।
हाल के उदाहरण:
- झरिया कोलफील्ड्स: झरिया में कोयला खनन की गतिविधियों के कारण भूमि का धंसना और वायु प्रदूषण की समस्याएँ बढ़ गई हैं। इस क्षेत्र में पर्यावरणीय क्षति और स्थानीय निवासियों पर प्रभाव स्पष्ट है।
- कोरबा तापीय संयंत्र: कोरबा तापीय संयंत्र छत्तीसगढ़ में जल संसाधनों पर प्रभाव डालते हैं, जिससे स्थानीय जल स्रोतों में थर्मल प्रदूषण और अन्य पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं।
निष्कर्ष: कोयला पिटहेड्स पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव गंभीर हैं, जिसमें वायु प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जल प्रदूषण, भूमि अवनति, और स्वास्थ्य समस्याएँ शामिल हैं। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन इन प्रभावों की पहचान और उन्हें कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ताकि विकास परियोजनाएँ पर्यावरणीय मानकों के अनुरूप हों और सतत विकास को प्रोत्साहित किया जा सके।
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आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या परिचय: आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जैसे-जैसे देश आर्थिक विकास की ओर बढ़ते हैं, पर्यावरणीय प्रभाव, विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के रूप में, बढ़ता है। दीर्घकालिक विकास लक्ष्योRead more
आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या
परिचय: आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जैसे-जैसे देश आर्थिक विकास की ओर बढ़ते हैं, पर्यावरणीय प्रभाव, विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के रूप में, बढ़ता है। दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्थायी संतुलन खोजना आवश्यक है, ताकि जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा न मिले।
आर्थिक विकास बनाम कार्बन उत्सर्जन: आर्थिक विकास पारंपरिक रूप से औद्योगिकीकरण पर आधारित होता है, जो ऊर्जा-गहन है और अक्सर जीवाश्म ईंधन पर निर्भर करता है। इससे कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, चीन और भारत जैसे देशों ने तेजी से आर्थिक विकास देखा है, लेकिन इसके साथ ही उत्सर्जन में भी वृद्धि हुई है, जिससे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है।
चुनौतियाँ:
हाल का उदाहरण: भारत ने पेरिस समझौते के तहत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) के अनुसार, 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में अपने जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, देश का 2025 तक $5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य है, जो निरंतर आर्थिक विकास की मांग करता है और संतुलन की इस चुनौती को और जटिल बनाता है।
निष्कर्ष: संतुलन प्राप्त करने के लिए हरित प्रौद्योगिकियों, स्थायी प्रथाओं, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जैसे नवाचार समाधान आवश्यक हैं। चुनौती केवल आर्थिक रूप से विकसित होने की नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की है कि यह विकास स्थायी और समावेशी हो, बिना पर्यावरण के साथ समझौता किए।
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