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पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) पर एक निबंध लिखिये।
परिचय पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो किसी प्रस्तावित परियोजना या विकास की संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि निर्णय-निर्माताओं के पास परियोजना की स्वीकृति से पहले पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी हो, ताकि संभाRead more
परिचय
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो किसी प्रस्तावित परियोजना या विकास की संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि निर्णय-निर्माताओं के पास परियोजना की स्वीकृति से पहले पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी हो, ताकि संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके और सतत विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
EIA की प्रक्रिया
EIA के लाभ और महत्व
EIA के चुनौतीपूर्ण पहलू
हाल के उदाहरण और केस स्टडीज
निष्कर्ष
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) विकास परियोजनाओं को पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक जिम्मेदारी के साथ जोड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह संभावित प्रभावों की पहचान और निवारण की प्रक्रिया प्रदान करता है, जो पर्यावरणीय क्षति को रोकने, सतत विकास को प्रोत्साहित करने, और जन स्वास्थ्य की रक्षा करने में सहायक है। हालाँकि इसके सामने चुनौतियाँ हैं, EIA की प्रभावशीलता को बढ़ाने और पिछले अनुभवों से सीखे गए पाठों को लागू करने से सतत प्रगति प्राप्त करना संभव होगा।
See less"आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या" पर टिप्पणी लिखिये। (200 Words) [UPPSC 2020]
आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या परिचय: आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जैसे-जैसे देश आर्थिक विकास की ओर बढ़ते हैं, पर्यावरणीय प्रभाव, विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के रूप में, बढ़ता है। दीर्घकालिक विकास लक्ष्योRead more
आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या
परिचय: आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जैसे-जैसे देश आर्थिक विकास की ओर बढ़ते हैं, पर्यावरणीय प्रभाव, विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के रूप में, बढ़ता है। दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्थायी संतुलन खोजना आवश्यक है, ताकि जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा न मिले।
आर्थिक विकास बनाम कार्बन उत्सर्जन: आर्थिक विकास पारंपरिक रूप से औद्योगिकीकरण पर आधारित होता है, जो ऊर्जा-गहन है और अक्सर जीवाश्म ईंधन पर निर्भर करता है। इससे कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, चीन और भारत जैसे देशों ने तेजी से आर्थिक विकास देखा है, लेकिन इसके साथ ही उत्सर्जन में भी वृद्धि हुई है, जिससे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है।
चुनौतियाँ:
हाल का उदाहरण: भारत ने पेरिस समझौते के तहत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) के अनुसार, 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में अपने जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, देश का 2025 तक $5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य है, जो निरंतर आर्थिक विकास की मांग करता है और संतुलन की इस चुनौती को और जटिल बनाता है।
निष्कर्ष: संतुलन प्राप्त करने के लिए हरित प्रौद्योगिकियों, स्थायी प्रथाओं, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जैसे नवाचार समाधान आवश्यक हैं। चुनौती केवल आर्थिक रूप से विकसित होने की नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की है कि यह विकास स्थायी और समावेशी हो, बिना पर्यावरण के साथ समझौता किए।
See lessसरकार द्वारा किसी परियोजना को अनुमति देने से पूर्व, अधिकाधिक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन किए जा रहे हैं। कोयला गर्त-शिखरी (पिटहेड्स) पर अवस्थित कोयला अनित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा कीजिए। (200 words) [UPSC 2014]
परिचय: सरकार द्वारा किसी परियोजना को मंजूरी देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अध्ययन आवश्यक होते हैं। कोयला गर्त-शिखरी (पिटहेड्स) पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव महत्वपूर्ण हैं और इन्हें ध्यान में रखना आवश्यक है। कोयला पिटहेड्स पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रोंRead more
परिचय: सरकार द्वारा किसी परियोजना को मंजूरी देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) अध्ययन आवश्यक होते हैं। कोयला गर्त-शिखरी (पिटहेड्स) पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव महत्वपूर्ण हैं और इन्हें ध्यान में रखना आवश्यक है।
कोयला पिटहेड्स पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव:
हाल के उदाहरण:
निष्कर्ष: कोयला पिटहेड्स पर स्थित कोयला आधारित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभाव गंभीर हैं, जिसमें वायु प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जल प्रदूषण, भूमि अवनति, और स्वास्थ्य समस्याएँ शामिल हैं। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन इन प्रभावों की पहचान और उन्हें कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, ताकि विकास परियोजनाएँ पर्यावरणीय मानकों के अनुरूप हों और सतत विकास को प्रोत्साहित किया जा सके।
See lessपर्यावरण प्रभाव आकलन (ई० आइ० ए०) अधिसूचना, 2020 प्रारूप मौजूदा ई० आइ० ए० अधिसूचना, 2006 से कैसे भिन्न है? (150 words) [UPSC 2020]
ई.आई.ए. अधिसूचना 2020 और 2006 के बीच भिन्नताएँ 1. सार्वजनिक परामर्श की प्रक्रिया: ई.आई.ए. 2020: परियोजनाओं की श्रेणी के आधार पर सार्वजनिक परामर्श की प्रक्रिया को सरल बनाता है, कुछ मामलों में केवल ऑनलाइन टिप्पणियाँ आवश्यक होती हैं। उदाहरण: बड़े पैमाने पर औद्योगिक परियोजनाओं के लिए सार्वजनिक सुनवाई कीRead more
ई.आई.ए. अधिसूचना 2020 और 2006 के बीच भिन्नताएँ
1. सार्वजनिक परामर्श की प्रक्रिया:
2. परियोजना वर्गीकरण:
3. पूर्व-स्वीकृति की अनुमति:
4. अनुपालन निगरानी:
ये बदलाव ई.आई.ए. के तहत परियोजनाओं की स्वीकृति प्रक्रिया को सरल बनाते हैं और प्रक्रियात्मक बाधाओं को कम करते हैं।
See lessरेत एवं धूल भरी आंधियों के पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभावों पर चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
रेत और धूल भरी आंधियां पर्यावरण और आर्थिक प्रभावों का महत्वपूर्ण कारक हैं। इन आंधियों के उड़ने से प्रदूषण बढ़ता है, जो वायुमंडलीय गैसों के स्तर को बढ़ाता है और स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। दूरस्थ इलाकों में रेत और धूल के भारी अवानधिकार से खेती और वन्यजीवों के लिए स्थायी नुकसान होता है। आर्थिकRead more
रेत और धूल भरी आंधियां पर्यावरण और आर्थिक प्रभावों का महत्वपूर्ण कारक हैं। इन आंधियों के उड़ने से प्रदूषण बढ़ता है, जो वायुमंडलीय गैसों के स्तर को बढ़ाता है और स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। दूरस्थ इलाकों में रेत और धूल के भारी अवानधिकार से खेती और वन्यजीवों के लिए स्थायी नुकसान होता है।
आर्थिक दृष्टि से, रेत और धूल के नुकसान से कृषि उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है, जिससे खेतों की उपज में कमी हो सकती है। साथ ही, प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य सेवाओं की लागत भी बढ़ सकती है। इसलिए, सकारात्मक कार्रवाई और प्रशासनिक नीतियों की आवश्यकता है ताकि रेत और धूल के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।
See lessजल और शहरी-पारिस्थितिकी चुनौतियों से निपटने के लिए 'वन वाटर' दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है। चर्चा कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
'वन वाटर' दृष्टिकोण: जल और शहरी-पारिस्थितिकी चुनौतियों का समाधान 'वन वाटर' दृष्टिकोण एक एकीकृत जल प्रबंधन पद्धति है जो जल संसाधनों के विविध उपयोगों और उनकी आपसी निर्भरता को समझती है। यह दृष्टिकोण जल की गुणवत्ता, मात्रा और वितरण की समग्र योजना बनाने पर बल देता है, जिससे शहरी और पारिस्थितिकी संबंधी समRead more
‘वन वाटर’ दृष्टिकोण: जल और शहरी-पारिस्थितिकी चुनौतियों का समाधान
‘वन वाटर’ दृष्टिकोण एक एकीकृत जल प्रबंधन पद्धति है जो जल संसाधनों के विविध उपयोगों और उनकी आपसी निर्भरता को समझती है। यह दृष्टिकोण जल की गुणवत्ता, मात्रा और वितरण की समग्र योजना बनाने पर बल देता है, जिससे शहरी और पारिस्थितिकी संबंधी समस्याओं को प्रभावी ढंग से निपटाया जा सके।
जल और शहरी पारिस्थितिकी चुनौतियों के संदर्भ में, ‘वन वाटर’ दृष्टिकोण निम्नलिखित लाभ प्रदान करता है:
इस दृष्टिकोण से शहरी विकास और पारिस्थितिकीय संरक्षण के बीच एक संतुलन स्थापित किया जा सकता है, जिससे दीर्घकालिक जल सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
See lessजलवायु शमन और अनुकूलन के साथ-साथ जैव विविधता को बनाए रखने और मानव स्वास्थ्य के लिए आर्द्रभूमियों को जीवंत बनाए रखना महत्वपूर्ण है। चर्चा कीजिए। इसे सुनिश्चित करने के लिए भारत में कौन-से साधन मौजूद हैं? (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
जलवायु शमन और अनुकूलन के साथ-साथ जैव विविधता को बनाए रखने और मानव स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए आर्द्रभूमियों का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। आर्द्रभूमियाँ न केवल जलवायु को स्थिर करने, बाढ़ और सूखा प्रबंधन में मदद करती हैं, बल्कि ये जैव विविधता के लिए भी महत्वपूर्ण आवास प्रदान करती हैं और जल कRead more
जलवायु शमन और अनुकूलन के साथ-साथ जैव विविधता को बनाए रखने और मानव स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए आर्द्रभूमियों का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। आर्द्रभूमियाँ न केवल जलवायु को स्थिर करने, बाढ़ और सूखा प्रबंधन में मदद करती हैं, बल्कि ये जैव विविधता के लिए भी महत्वपूर्ण आवास प्रदान करती हैं और जल की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक होती हैं।
भारत में आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिए कई उपाय और साधन उपलब्ध हैं:
1. **विधायी ढांचा**: भारतीय संविधान और पर्यावरण संरक्षण कानूनों के तहत आर्द्रभूमियों की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान हैं। ‘वेटलैंड्स (कनज़र्वेशन और मैनेजमेंट) रूल्स, 2017’ इन क्षेत्रों के संरक्षण के लिए दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।
2. **राष्ट्रीय योजनाएँ**: भारत सरकार ने ‘नेशनल वेटलैंड्स कंज़र्वेशन प्रोग्राम’ (NWCP) की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य आर्द्रभूमियों की स्थिति का मूल्यांकन करना और उनका संरक्षण सुनिश्चित करना है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत विशेष आर्द्रभूमियों को ‘वेटलैंड्स ऑफ इंटरनेशनल इम्पोर्टेंस’ (Ramsar Sites) के रूप में मान्यता दी जाती है।
3. **संरक्षण और प्रबंधन परियोजनाएँ**: विभिन्न केंद्रीय और राज्य सरकारी एजेंसियाँ आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिए परियोजनाएँ चला रही हैं, जैसे ‘वेटलैंड्स कंज़र्वेशन और मैनेजमेंट प्रोजेक्ट्स’ और स्थानीय स्तर पर समुदाय आधारित परियोजनाएँ।
4. **जन जागरूकता और शिक्षा**: विभिन्न एनजीओ और शैक्षिक संस्थान आर्द्रभूमियों के महत्व पर जागरूकता फैलाने और स्थानीय समुदायों को शामिल करने के लिए काम कर रहे हैं।
इन साधनों और उपायों के माध्यम से भारत आर्द्रभूमियों का संरक्षण करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए सक्रिय रूप से प्रयासरत है। इनका उचित कार्यान्वयन जैव विविधता, मानव स्वास्थ्य और जलवायु शमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
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