प्रश्न का उत्तर अधिकतम 200 शब्दों में दीजिए। यह प्रश्न 11 अंक का है। [MPPSC 2023] पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) पर एक निबंध लिखिये।
आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या परिचय: आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जैसे-जैसे देश आर्थिक विकास की ओर बढ़ते हैं, पर्यावरणीय प्रभाव, विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के रूप में, बढ़ता है। दीर्घकालिक विकास लक्ष्योRead more
आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन की समस्या
परिचय: आर्थिक विकास और कार्बन उत्सर्जन के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जैसे-जैसे देश आर्थिक विकास की ओर बढ़ते हैं, पर्यावरणीय प्रभाव, विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के रूप में, बढ़ता है। दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्थायी संतुलन खोजना आवश्यक है, ताकि जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा न मिले।
आर्थिक विकास बनाम कार्बन उत्सर्जन: आर्थिक विकास पारंपरिक रूप से औद्योगिकीकरण पर आधारित होता है, जो ऊर्जा-गहन है और अक्सर जीवाश्म ईंधन पर निर्भर करता है। इससे कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, चीन और भारत जैसे देशों ने तेजी से आर्थिक विकास देखा है, लेकिन इसके साथ ही उत्सर्जन में भी वृद्धि हुई है, जिससे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है।
चुनौतियाँ:
- ऊर्जा निर्भरता: विकासशील देश अक्सर कोयला और तेल पर निर्भर होते हैं, जो प्रमुख कार्बन उत्सर्जक हैं।
- प्रौद्योगिकी की सीमाएं: नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण के लिए महत्वपूर्ण निवेश और प्रौद्योगिकी में उन्नति की आवश्यकता होती है, जो विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए चुनौतीपूर्ण है।
- नीति निर्धारण की दुविधा: सरकारों के सामने आर्थिक विकास को प्राथमिकता देने या कठोर पर्यावरणीय नियम लागू करने का द्वंद्व रहता है।
हाल का उदाहरण: भारत ने पेरिस समझौते के तहत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) के अनुसार, 2030 तक 2005 के स्तर की तुलना में अपने जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, देश का 2025 तक $5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य है, जो निरंतर आर्थिक विकास की मांग करता है और संतुलन की इस चुनौती को और जटिल बनाता है।
निष्कर्ष: संतुलन प्राप्त करने के लिए हरित प्रौद्योगिकियों, स्थायी प्रथाओं, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जैसे नवाचार समाधान आवश्यक हैं। चुनौती केवल आर्थिक रूप से विकसित होने की नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने की है कि यह विकास स्थायी और समावेशी हो, बिना पर्यावरण के साथ समझौता किए।
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परिचय पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो किसी प्रस्तावित परियोजना या विकास की संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि निर्णय-निर्माताओं के पास परियोजना की स्वीकृति से पहले पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी हो, ताकि संभाRead more
परिचय
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो किसी प्रस्तावित परियोजना या विकास की संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करती है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि निर्णय-निर्माताओं के पास परियोजना की स्वीकृति से पहले पर्यावरणीय प्रभावों की जानकारी हो, ताकि संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके और सतत विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
EIA की प्रक्रिया
EIA के लाभ और महत्व
EIA के चुनौतीपूर्ण पहलू
हाल के उदाहरण और केस स्टडीज
निष्कर्ष
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) विकास परियोजनाओं को पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक जिम्मेदारी के साथ जोड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह संभावित प्रभावों की पहचान और निवारण की प्रक्रिया प्रदान करता है, जो पर्यावरणीय क्षति को रोकने, सतत विकास को प्रोत्साहित करने, और जन स्वास्थ्य की रक्षा करने में सहायक है। हालाँकि इसके सामने चुनौतियाँ हैं, EIA की प्रभावशीलता को बढ़ाने और पिछले अनुभवों से सीखे गए पाठों को लागू करने से सतत प्रगति प्राप्त करना संभव होगा।
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