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वन्य जीवों के संरक्षण की चुनौतियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (125 Words) [UPPSC 2020]
वन्य जीवों के संरक्षण की चुनौतियाँ: आलोचनात्मक मूल्यांकन **1. विवादित भूमि उपयोग: वनों की कटाई और शहरीकरण: शहरी विस्तार और कृषि भूमि के लिए वन क्षेत्र की कटाई, जैसे कि उत्तरी भारत में गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानी क्षेत्रों में वन कटाई, वन्य जीवों की निवास स्थली को संकुचित कर देती है। **2. अवैध शिकार औRead more
वन्य जीवों के संरक्षण की चुनौतियाँ: आलोचनात्मक मूल्यांकन
**1. विवादित भूमि उपयोग:
**2. अवैध शिकार और व्यापार:
**3. पर्यावरणीय परिवर्तन:
**4. मानव-वन्य जीव संघर्ष:
निष्कर्ष: वन्य जीवों के संरक्षण के लिए, भूमि उपयोग नीतियों में बदलाव, अवैध शिकार की रोकथाम, जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपाय, और मानव-वन्य जीव संघर्ष के समाधान आवश्यक हैं।
See lessक्या यू० एन० एफ० सी० सी० सी० के अधीन स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास यांत्रिकत्वों का अनुसरण जारी रखा जाना चाहिए, यद्यपि कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट आयी है? आर्थिक संवृद्धि के लिए भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं की दृष्टि से चर्चा कीजिए।
परिचय: यूएनएफसीसीसी (UNFCCC) के अधीन स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास यांत्रिकत्वों (CDMs) का अनुसरण करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, विशेषकर जब कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट आई है। भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं और आर्थिक संवृद्धि के संदर्भ में, इन यांत्रिकत्वों को जारी रखना महत्वपूर्ण हो सकRead more
परिचय: यूएनएफसीसीसी (UNFCCC) के अधीन स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास यांत्रिकत्वों (CDMs) का अनुसरण करना एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, विशेषकर जब कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट आई है। भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं और आर्थिक संवृद्धि के संदर्भ में, इन यांत्रिकत्वों को जारी रखना महत्वपूर्ण हो सकता है।
कार्बन क्रेडिट और CDMs का महत्व:
कार्बन क्रेडिट के मूल्य में गिरावट की चुनौतियाँ:
भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं की दृष्टि से प्रासंगिकता:
सुझाव:
निष्कर्ष: कार्बन क्रेडिट और CDMs का अनुसरण भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं और आर्थिक संवृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है, भले ही कार्बन क्रेडिट के मूल्य में गिरावट आई हो। इन यांत्रिकत्वों का सुधार और वैकल्पिक वित्तीय स्रोतों की खोज भारत को विकास और जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता कर सकती है।
See lessयह बहुत वर्षों पहले की बात नहीं है ज़ब नदियों को जोड़ना एक संकल्पना थी, परन्तु अब यह देश में एक वास्तविकता बनती जा रही है। नदियों को जोड़ने से होने वाले लाभों पर एवं पर्यावरण पर इसके संभावित प्रभाव पर चर्चा कीजिए । (150 words) [UPSC 2017]
नदियों को जोड़ने के लाभ और पर्यावरण पर प्रभाव **1. नदियों को जोड़ने के लाभ: **1. जल संसाधन प्रबंधन: जल उपलब्धता में वृद्धि: नदियों को जोड़ने से जल की अधिशेष क्षेत्रों से जल की कमी वाले क्षेत्रों में स्थानांतरण होता है, जिससे पीने का पानी, सिंचाई और औद्योगिक उपयोग के लिए जल की उपलब्धता बढ़ती है। उदाहRead more
नदियों को जोड़ने के लाभ और पर्यावरण पर प्रभाव
**1. नदियों को जोड़ने के लाभ:
**1. जल संसाधन प्रबंधन:
**2. कृषि में सुधार:
**3. बाढ़ नियंत्रण:
**2. पर्यावरण पर संभावित प्रभाव:
**1. पारिस्थितिकीय विघटन:
**2. मृदा कटाव और तलछट:
**3. स्थानीय समुदायों पर प्रभाव:
हालिया उदाहरण:
निष्कर्ष:
भारत में जैव विविधता किस प्रकार अलग-अलग पाई जाती है? बनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण में जैव विविधता अधिनियम, 2002 किस प्रकार सहायक है? (250 words) [UPSC 2018]
भारत में जैव विविधता का प्रकार भौगोलिक विविधता: भारत में जैव विविधता अपने विशाल भौगोलिक और जलवायु विविधताओं के कारण अत्यधिक भिन्न होती है। देश की विविधता में हिमालयी क्षेत्र, गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान, पश्चिमी घाट, और दकन पठार शामिल हैं। उदाहरण के लिए, हिमालय में 7,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ पाRead more
भारत में जैव विविधता का प्रकार
भौगोलिक विविधता:
भारत में जैव विविधता अपने विशाल भौगोलिक और जलवायु विविधताओं के कारण अत्यधिक भिन्न होती है। देश की विविधता में हिमालयी क्षेत्र, गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान, पश्चिमी घाट, और दकन पठार शामिल हैं। उदाहरण के लिए, हिमालय में 7,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जबकि पश्चिमी घाट में 139 विभिन्न प्रकार के अभयारण्य हैं।
वन्यजीव विविधता:
भारत में वन्यजीवों की विविधता भी उल्लेखनीय है, जिसमें बाघ, सिंह, साल्ट-डॉक्स और गंगा डॉल्फिन शामिल हैं। किराट और रेनफॉरेस्ट जैसे अनूठे पारिस्थितिक तंत्र इन प्रजातियों का समर्थन करते हैं।
जैव विविधता अधिनियम, 2002 के योगदान
संरक्षण और प्रबंधन:
जैव विविधता अधिनियम, 2002 का उद्देश्य बनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण को सुनिश्चित करना है। इस अधिनियम के तहत, राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) और राज्य जैव विविधता प्राधिकरण (SBA) की स्थापना की गई है, जो जैव विविधता संरक्षण की दिशा में नीतिगत और प्रशासनिक समर्थन प्रदान करते हैं।
पेटेंट और बौद्धिक संपदा संरक्षण:
अधिनियम पारंपरिक ज्ञान और आयुर्वेदिक पौधों की रक्षा करता है। इससे भारत ने हाल ही में तुलसी, अश्वगंधा जैसी पारंपरिक जड़ी-बूटियों के पेटेंट को सुरक्षित किया है। यह पेटेंट अधिकार भारतीय समुदायों को उनके ज्ञान और संसाधनों पर नियंत्रण प्रदान करते हैं और विदेशी कंपनियों द्वारा इनका दुरुपयोग रोकते हैं।
स्वदेशी समुदायों के अधिकार:
जैव विविधता अधिनियम ने स्वदेशी समुदायों के सांस्कृतिक और पारंपरिक अधिकारों की रक्षा की है। इसके माध्यम से, ये समुदाय अपने पारंपरिक ज्ञान और संसाधनों के उचित उपयोग और लाभांश के अधिकार प्राप्त करते हैं।
संरक्षण प्रयासों में योगदान:
अधिनियम ने विविध प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण में नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया है। उदाहरण स्वरूप, साइबर ट्री और सपारी जैसे महत्वपूर्ण वनस्पतियों के संरक्षण में स्थानीय समुदायों की भूमिका को बढ़ाया गया है।
निष्कर्ष
See lessजैव विविधता अधिनियम, 2002 ने भारत की जैव विविधता को संरक्षित करने और प्रबंधित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यह पारंपरिक ज्ञान की रक्षा, स्वदेशी समुदायों के अधिकारों की रक्षा, और विविध प्रजातियों के संरक्षण को सुनिश्चित करता है। इससे जैव विविधता की रक्षा और उसके सतत उपयोग को बढ़ावा मिला है।
आईभूमि क्या है? आर्द्रभूमि संरक्षण के संदर्भ में 'बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग' की रामसर संकल्पना को स्पष्ट कीजिए। भारत से रामसर स्थलों के दो उदाहरणों का उद्धरण दीजिए। (150 words) [UPSC 2018]
आईभूमि (Wetland) क्या है? आईभूमि वे क्षेत्र हैं जहाँ पानी पर्यावरण और संबंधित पौधों एवं जानवरों की जीवनशैली को नियंत्रित करता है। इनमें दलदल, स्वंप, बोग और बाढ़ की ज़मीनें शामिल हैं। आईभूमियाँ जल निस्पंदन, बाढ़ नियंत्रण और जैव विविधता का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 'बुद्धिमत्तापूर्Read more
आईभूमि (Wetland) क्या है?
‘बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग’ की रामसर संकल्पना:
भारत से रामसर स्थलों के दो उदाहरण:
इन स्थलों के माध्यम से ‘बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग’ की रामसर संकल्पना का प्रभावी कार्यान्वयन किया जा रहा है, जो आर्द्रभूमि के संरक्षण और सतत प्रबंधन के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
See lessपर्यावरण से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना की परिभाषा दीजिए। स्पष्ट कीजिए कि किसी प्रदेश के दीर्घोपयोगी विकास (सस्टेनेबल डेवेलपमेंट) की योजना बनाते समय इस संकल्पना को समझना किस प्रकार महत्त्वपूर्ण है। (250 words) [UPSC 2019]
पर्यावरण से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना 1. पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता (Carrying Capacity): परिभाषा: पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता से तात्पर्य उस अधिकतम सीमा से है, जिस तक एक पारिस्थितिक तंत्र प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरणीय सेवाओं का स्थिर और स्वस्थ तरीके से उपयोग करRead more
पर्यावरण से संबंधित पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना
1. पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता (Carrying Capacity):
2. सस्टेनेबल डेवेलपमेंट में वहन क्षमता का महत्व:
3. हाल के उदाहरण:
4. विकास योजनाओं में वहन क्षमता को ध्यान में रखना:
निष्कर्ष: पारिस्थितिक तंत्र की वहन क्षमता की संकल्पना को समझना और उसे विकास योजनाओं में शामिल करना, पर्यावरणीय स्थिरता और संसाधन प्रबंधन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल विकास को सतत बनाता है, बल्कि पर्यावरणीय दबाव को भी कम करता है।
See lessतटीय बालू खनन, चाहे वह वैध हो या अवैध हो, हमारे पर्यावरण के सामने सबसे बड़े खतरों में से एक है। भारतीय तटों पर हो रहे बालू खनन के प्रभाव का, विशिष्ट उदाहरणों का हवाला देते हुए, विश्लेषण कीजिए। (150 words) [UPSC 2019]
तटीय बालू खनन के प्रभाव 1. पर्यावरणीय क्षति: बालू कटाव और आवास हानि: तटीय बालू खनन के कारण बालू कटाव और कोस्टल हैबिटेट की हानि होती है। केरल के कोल्लम में बालू खनन से तटीय क्षति और पर्यावरणीय असंतुलन देखा गया है। 2. मरीन जीवन पर प्रभाव: मरीन पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश: बालू खनन से मरीन पारिस्थितिकीRead more
तटीय बालू खनन के प्रभाव
1. पर्यावरणीय क्षति:
2. मरीन जीवन पर प्रभाव:
3. जल गुणवत्ता में गिरावट:
4. वैध और अवैध खनन:
5. सुधारात्मक उपाय:
इन प्रभावों से सभी तटीय क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण और स्थायी प्रबंधन की आवश्यकता स्पष्ट होती है।
See lessभारत सरकार द्वारा शुरू किए गए राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम पर टिप्पणी कीजिए और रामसर स्थलों में शामिल अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की भारत की कुछ आर्द्रभूमियों के नाम लिखिए। (250 words) [UPSC 2023]
भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम पर टिप्पणी राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम (NWCP): भारत सरकार ने 1985 में राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम (NWCP) की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य देशभर में आर्द्रभूमियों की सुरक्षा और संरक्षण करना है। यह कार्यक्रम आर्द्रभRead more
भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम पर टिप्पणी
राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम (NWCP):
भारत सरकार ने 1985 में राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम (NWCP) की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य देशभर में आर्द्रभूमियों की सुरक्षा और संरक्षण करना है। यह कार्यक्रम आर्द्रभूमियों के महत्व को मान्यता देते हुए उनकी रक्षा और प्रबंधन के लिए विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है।
मुख्य उद्देश्य:
रामसर स्थलों में शामिल भारत की आर्द्रभूमियाँ:
भारत ने कई आर्द्रभूमियों को रामसर स्थलों के रूप में मान्यता दी है, जो अंतर्राष्ट्रीय महत्व की होती हैं। इनमें शामिल हैं:
हाल की पहल:
हाल ही में, भारत सरकार ने राष्ट्रीय आर्द्रभूमि सूची और मूल्यांकन परियोजना की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य आर्द्रभूमियों की सूची को अद्यतन और सुधारना है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्ययोजना आर्द्रभूमि प्रबंधन को व्यापक पर्यावरणीय नीतियों और कार्यक्रमों के साथ एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित करती है।
संक्षेप में, राष्ट्रीय आर्द्रभूमि संरक्षण कार्यक्रम भारत की आर्द्रभूमियों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और रामसर स्थलों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियाँ भारत के प्राकृतिक संसाधनों की अमूल्य धरोहर हैं।
See lessबायोपाइरेसी विकासशील विश्व के मौजूदा पारंपरिक ज्ञान के लिए प्रमुख चिंता का कारण क्यों है? भारत सरकार द्वारा मौजूदा पारंपरिक भारतीय ज्ञान की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
बायोपाइरेसी (Biopiracy) का अर्थ है प्राकृतिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के दुरुपयोग और उन्हें बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights) के तहत बिना अनुमति के उपयोग करना। विकासशील देशों में यह एक प्रमुख चिंता का विषय है, खासकर उन देशों में जहाँ पारंपरिक ज्ञान और जैव विविधता की प्रचुरता है।Read more
बायोपाइरेसी (Biopiracy) का अर्थ है प्राकृतिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के दुरुपयोग और उन्हें बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights) के तहत बिना अनुमति के उपयोग करना। विकासशील देशों में यह एक प्रमुख चिंता का विषय है, खासकर उन देशों में जहाँ पारंपरिक ज्ञान और जैव विविधता की प्रचुरता है।
बायोपाइरेसी की चिंता के कारण:
सांस्कृतिक और आर्थिक शोषण: विकासशील देशों, जैसे भारत, में पारंपरिक समुदायों के पास अनमोल जैविक और चिकित्सा ज्ञान होता है। बायोपाइरेसी के माध्यम से, विदेशी कंपनियाँ इस ज्ञान का उपयोग कर पेटेंट प्राप्त कर लेती हैं, जबकि मूल समुदायों को उचित क्रेडिट या मुआवजा नहीं मिलता। यह उनकी सांस्कृतिक धरोहर और आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है।
वैज्ञानिक और तकनीकी लाभ की हानि: जब विदेशी कंपनियाँ पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करती हैं, तो वे इससे वैज्ञानिक और तकनीकी लाभ प्राप्त करती हैं, जिससे विकासशील देशों को लाभ का हिस्सा नहीं मिलता। इससे पारंपरिक समुदायों का विज्ञान और प्रौद्योगिकी में योगदान मान्यता प्राप्त करने से वंचित रहता है।
पारंपरिक ज्ञान का ह्रास: बायोपाइरेसी पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा और संरक्षण को खतरे में डालती है। जब यह ज्ञान बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत पेटेंट कर लिया जाता है, तो मूल समुदायों को अपने ही ज्ञान का उपयोग करने पर प्रतिबंध लग सकता है।
भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
वैकल्पिक सिस्टम और कानून: भारत ने संपत्ति और जैव विविधता के संरक्षण के लिए उपनिवेशी पारंपरिक ज्ञान (Traditional Knowledge Digital Library – TKDL) स्थापित किया है। TKDL पारंपरिक भारतीय ज्ञान को डिजिटल रूप में संग्रहित करता है और इसे पेटेंट दावों से बचाने के लिए साक्ष्य प्रदान करता है।
कानूनी और नीतिगत ढांचा: भारत ने नागरिक और जैव विविधता अधिनियम के तहत पारंपरिक ज्ञान की सुरक्षा के लिए कानून बनाए हैं। इन कानूनों का उद्देश्य बायोपाइरेसी के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करना और पारंपरिक ज्ञान के अवैध उपयोग को रोकना है।
वैश्विक संधियाँ और समझौते: भारत ने जैव विविधता पर कन्वेंशन (CBD) के तहत वैश्विक स्तर पर बायोपाइरेसी और पारंपरिक ज्ञान की रक्षा के लिए संधियाँ और समझौतों का पालन किया है। ये संधियाँ पारंपरिक ज्ञान के स्वामित्व और लाभ साझा करने की अवधारणाओं को लागू करती हैं।
स्वदेशी समुदायों का सशक्तिकरण: भारत सरकार ने विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के माध्यम से स्वदेशी और स्थानीय समुदायों को अपने पारंपरिक ज्ञान के अधिकारों के प्रति जागरूक करने और उन्हें सशक्त बनाने की कोशिश की है।
इन प्रयासों के माध्यम से, भारत पारंपरिक ज्ञान की रक्षा और बायोपाइरेसी के खिलाफ प्रभावी उपाय कर रहा है, ताकि विकासशील देशों के सांस्कृतिक और वैज्ञानिक योगदान को सुरक्षित रखा जा सके।
See lessभारत में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारणों की व्याख्या कीजिए। मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपायों पर चर्चा कीजिए।(150 शब्दों में उत्तर दें)
भारत में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष के मुख्य कारणों में शहरीकरण, कृषि विस्तार, और जंगलों की अंधाधुंध कटाई शामिल हैं। जैसे-जैसे मानव बस्तियाँ और खेत जंगलों के करीब आते हैं, वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास घटता जाता है, जिससे वे भोजन और पानी की तलाश में मानव बस्तियों की ओर आकर्षित होते हैं। इसके अतिरिक्त,Read more
भारत में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष के मुख्य कारणों में शहरीकरण, कृषि विस्तार, और जंगलों की अंधाधुंध कटाई शामिल हैं। जैसे-जैसे मानव बस्तियाँ और खेत जंगलों के करीब आते हैं, वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास घटता जाता है, जिससे वे भोजन और पानी की तलाश में मानव बस्तियों की ओर आकर्षित होते हैं। इसके अतिरिक्त, वन्यजीवों की आदतों में बदलाव और जंगलों की अव्यवस्थित उपयोग भी संघर्ष को बढ़ाते हैं।
मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए सरकार ने कई उपाय किए हैं:
वन्यजीव सुरक्षा कानून: वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और अन्य कानूनी उपायों के माध्यम से वन्यजीवों की सुरक्षा और उनके आवास की रक्षा की जाती है।
संघर्ष निवारण उपाय: जैसे कि इलेक्ट्रीफाइड फेंसिंग, और बायो-फेंसिंग का उपयोग, और विशेष निगरानी तकनीकें।
साक्षरता और शिक्षा कार्यक्रम: स्थानीय समुदायों को वन्यजीवों के साथ सह-अस्तित्व के महत्व के बारे में जागरूक किया जाता है।
वन्यजीव राहत केंद्र: वन्यजीवों को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए राहत केंद्र स्थापित किए गए हैं।
इन उपायों से संघर्ष को कम करके वन्यजीवों और मानवों के बीच बेहतर सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की जा रही है।
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