भारत में पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों (ESZs) के निर्माण की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए, इससे संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिए। साथ ही, इस संबंध में हाल में किए गए प्रयासों का भी उल्लेख कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
जैव विविधता संरक्षण: आशय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास परिचय जैव विविधता संरक्षण का तात्पर्य पृथ्वी पर जीवन की विविधता, जिसमें पारिस्थितिक तंत्र, प्रजातियाँ और आनुवंशिक विविधता शामिल है, को सुरक्षित रखने और बनाए रखने से है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी जीवों के विविध रूप और उनके पारिस्थितिकीय कार्य अच्Read more
जैव विविधता संरक्षण: आशय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास
परिचय जैव विविधता संरक्षण का तात्पर्य पृथ्वी पर जीवन की विविधता, जिसमें पारिस्थितिक तंत्र, प्रजातियाँ और आनुवंशिक विविधता शामिल है, को सुरक्षित रखने और बनाए रखने से है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी जीवों के विविध रूप और उनके पारिस्थितिकीय कार्य अच्छी स्थिति में बने रहें, जो मानव जीवन की गुणवत्ता और पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता के लिए आवश्यक है।
जैव विविधता संरक्षण का आशय
- परिभाषा और महत्व
- जैव विविधता: यह पृथ्वी पर जीवन के विभिन्न रूपों, जैसे पौधे, जानवर, कवक, और सूक्ष्मजीवों, तथा उनके पारिस्थितिक तंत्रों की विविधता को दर्शाती है।
- महत्व: जैव विविधता पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता, जलवायु नियंत्रण, और प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति जैसे कई महत्वपूर्ण कार्यों में सहायक होती है। यह सांस्कृतिक और आर्थिक लाभ भी प्रदान करती है, जैसे पर्यटन और पारंपरिक औषधियाँ।
- जैव विविधता के स्तर
- आनुवंशिक विविधता: प्रजातियों के भीतर विविधता, जो जनसंख्या को बदलते पर्यावरण के अनुकूल बनाने में मदद करती है।
- प्रजाति विविधता: एक क्षेत्र या पारिस्थितिक तंत्र में विभिन्न प्रजातियों की संख्या।
- पारिस्थितिक तंत्र विविधता: विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों की विविधता जो पारिस्थितिकीय सेवाएँ प्रदान करती हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर जैव विविधता संरक्षण के प्रयास
- कानूनी उपाय
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: यह अधिनियम वन्यजीवों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है और शिकार को नियंत्रित करता है। इसके तहत राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य स्थापित किए गए हैं।
- जैव विविधता अधिनियम, 2002: यह अधिनियम जैव विविधता के संरक्षण, इसके घटकों का सतत उपयोग, और जैव संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न लाभों की उचित साझेदारी के लिए है।
- हाल का उदाहरण: जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ (BMCs), जो जैव विविधता अधिनियम के तहत स्थापित की गई हैं, स्थानीय स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन और संरक्षण में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं, जैसे स्थानीय जैव विविधता रजिस्टर का निर्माण।
- संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क
- राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य: भारत में वन्यजीवों और उनके आवासों के संरक्षण के लिए संरक्षित क्षेत्रों का नेटवर्क स्थापित किया गया है। इसमें 106 राष्ट्रीय उद्यान और 565 वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं।
- हाल का उदाहरण: कन्हा-पेंच कॉरिडोर (मध्य प्रदेश) एक सफल संरक्षण प्रयास का उदाहरण है जहां दो प्रमुख बाघ अभयारण्यों के बीच कनेक्टिविटी बहाल की गई है, जिससे वन्यजीवों की आवाजाही सुगम हुई है।
- संरक्षण कार्यक्रम और पहल
- प्रोजेक्ट टाइगर (1973): बाघों और उनके आवासों के संरक्षण के लिए शुरू किया गया। इससे कई बाघ अभयारण्यों की स्थापना हुई।
- प्रोजेक्ट एलेफैंट (1992): हाथियों और उनके आवासों के संरक्षण के लिए, मानव-हाथी संघर्ष और आवास खंडन जैसे मुद्दों को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
- हाल का उदाहरण: काजीरेंगा राष्ट्रीय पार्क, जो प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलेफैंट के तहत है, बाघों और हाथियों की जनसंख्या बढ़ाने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है।
- जैव विविधता कार्य योजना
- राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना (NBAP): भारत की व्यापक योजना जो जैव विविधता संरक्षण के लिए रणनीतियाँ निर्धारित करती है और जैव संसाधनों के सतत उपयोग को सुनिश्चित करती है।
- हाल का उदाहरण: राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना (NBAP) 2018-2030 में राष्ट्रीय विकास योजनाओं में जैव विविधता संरक्षण को एकीकृत करने और समुदाय की भागीदारी को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- अनुसंधान और शिक्षा
- नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेस (NCBS): जैव विविधता और पारिस्थितिकीय प्रणालियों पर अनुसंधान करता है जो संरक्षण प्रयासों का समर्थन करता है।
- जैव विविधता शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम: सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा जैव विविधता के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
- हाल का उदाहरण: भारत जैव विविधता पोर्टल एक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म है जो भारत की जैव विविधता के बारे में जानकारी प्रदान करता है और जागरूकता बढ़ाता है।
- समुदाय की भागीदारी और पारंपरिक ज्ञान
- समुदाय आरक्षित क्षेत्र और संरक्षण पहल: स्थानीय समुदाय और आदिवासी समूह जैव विविधता प्रबंधन में सक्रिय रूप से शामिल होते हैं और पारंपरिक प्रथाओं को लागू करते हैं।
- हाल का उदाहरण: मध्य प्रदेश में गोंड समुदाय पारंपरिक ज्ञान और सतत प्रथाओं के माध्यम से स्थानीय जैव विविधता के संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा
- आवास हानि और टुकड़ीकरण
- शहरीकरण, कृषि और बुनियादी ढांचे के विकास से प्राकृतिक आवासों पर दबाव पड़ता है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए संरक्षण प्रयासों को विकास योजनाओं के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन
- जलवायु परिवर्तन जैव विविधता पर प्रभाव डालता है, जैसे कि आवासों का परिवर्तन और पारिस्थितिकीय संतुलन में विघटन। संरक्षण प्रयासों में जलवायु अनुकूलन उपायों को शामिल करना आवश्यक है।
- आक्रमणकारी प्रजातियाँ
- गैर-देशी प्रजातियों का परिचय स्थानीय पारिस्थितिक तंत्रों को बाधित कर सकता है। आक्रमणकारी प्रजातियों को प्रबंधित करना और प्रभावित आवासों की पुनः बहाली आवश्यक है।
निष्कर्ष
जैव विविधता संरक्षण पृथ्वी पर जीवन की विविधता और पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। भारत में, कानूनी उपाय, संरक्षित क्षेत्र, संरक्षण कार्यक्रम, और समुदाय की भागीदारी के माध्यम से महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं। भविष्य में, आवास हानि, जलवायु परिवर्तन, और आक्रमणकारी प्रजातियों जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए, जैव विविधता संरक्षण के लिए निरंतर प्रयास और नई रणनीतियों की आवश्यकता होगी।
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भारत में पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों (ESZs) का निर्माण एक महत्वपूर्ण कदम है जो प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षण को सुनिश्चित करने में मददगार हो सकता है। ESZs विशेष रूप से उन क्षेत्रों को दर्ज करते हैं जो विशेष रूप से संरक्षित क्षेत्रों के आसपास होते हैं और उनकी सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।Read more
भारत में पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों (ESZs) का निर्माण एक महत्वपूर्ण कदम है जो प्राकृतिक संसाधनों की संरक्षण को सुनिश्चित करने में मददगार हो सकता है। ESZs विशेष रूप से उन क्षेत्रों को दर्ज करते हैं जो विशेष रूप से संरक्षित क्षेत्रों के आसपास होते हैं और उनकी सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
ESZs के निर्माण से एक प्रमुख उद्देश्य प्राकृतिक जीवन के संरक्षण, वन्यजीव संरक्षण, जलसंसाधनों की सुरक्षा, और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है। हाल ही में, सरकार ने ESZs के निर्माण और प्रबंधन को लेकर कई पहल की है।
कुछ प्रमुख मुद्दों में से एक यह है कि ESZs के निर्माण में स्थानीय आदिवासी समुदायों के हितों को सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। उनके पारंपरिक जीवनशैली और संसाधनों को समाप्त न करते हुए ESZs के प्रबंधन में उनकी भूमिका को महत्व देना चाहिए।
इसके साथ ही, ESZs की सीमाओं का स्पष्टीकरण, प्रबंधन की कठिनाइयों का सामना, और संवर्धनशील विकास को समायोजित करने की जरूरत है। ESZs के निर्माण में संभावित विवादों का समाधान निपुणता से किया जाना चाहिए ताकि पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय जनता के हितों को भी सुनिश्चित किया जा सके।
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