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'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा ? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे ? (250 words) [UPSC 2017]
जलवायु परिवर्तन का भारत पर प्रभाव 1. भारत पर सामान्य प्रभाव: **1. तापमान वृद्धि: तापमान में वृद्धि: भारत में औसत तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे अधिक ताप लहरें और गर्मियों में तीव्रता बढ़ रही है। उदाहरण के लिए, 2015 की गर्मी लहर में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 2,000 से अधिक मौतें हुईं। **Read more
जलवायु परिवर्तन का भारत पर प्रभाव
1. भारत पर सामान्य प्रभाव:
**1. तापमान वृद्धि:
**2. चरम मौसम घटनाएँ:
**3. कृषि पर प्रभाव:
2. हिमालयी राज्यों पर प्रभाव:
**1. ग्लेशियरों का पिघलना:
**2. बाढ़ का बढ़ता खतरा:
**3. पर्यावरणीय विघटन:
3. समुद्रतटीय राज्यों पर प्रभाव:
**1. समुद्र स्तर की वृद्धि:
**2. नमक का प्रवेश:
**3. साधारण लहर:
निष्कर्ष:
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिए। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं ? (250 words) [UPSC 2021]
COP26 के प्रमुख परिणाम 1. वैश्विक कार्बन तटस्थता लक्ष्य: COP26 में 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करने का एक वैश्विक लक्ष्य अपनाया गया। यह लक्ष्य 1.5°C तक वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के प्रयासों को समर्थन देता है, ताकि जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों से बचा जा सके। 2. कोयले का चरणबद्ध समापRead more
COP26 के प्रमुख परिणाम
1. वैश्विक कार्बन तटस्थता लक्ष्य: COP26 में 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करने का एक वैश्विक लक्ष्य अपनाया गया। यह लक्ष्य 1.5°C तक वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने के प्रयासों को समर्थन देता है, ताकि जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों से बचा जा सके।
2. कोयले का चरणबद्ध समापन: सम्मेलन में असंबद्ध कोयला बिजली उत्पादन और अप्रभावी फॉसिल ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने पर सहमति बनी। हालांकि, अंतिम समझौते में ‘फेज-आउट’ की बजाय ‘फेज-डाउन’ शब्द का उपयोग किया गया, जो कोयला निर्भर देशों की चिंताओं को दर्शाता है।
3. जलवायु वित्त: विकसित देशों ने 2025 तक प्रति वर्ष $100 बिलियन जलवायु वित्त प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया। यह विकासशील देशों को जलवायु अनुकूलन और शमन प्रयासों के लिए समर्थन प्रदान करने के उद्देश्य से है।
4. ग्लासगो जलवायु पैक्ट: ग्लासगो जलवायु पैक्ट को अपनाया गया, जिसमें राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं (NDCs) को मजबूत करने और जलवायु प्रभावों के प्रति वैश्विक प्रयासों को बढ़ाने की प्रतिबद्धताएँ शामिल हैं।
भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ
1. नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य: भारत ने 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई, जो दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्यों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
2. नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार: भारत ने 2030 तक 500 GW की गैर-फॉसिल ईंधन ऊर्जा क्षमता बढ़ाने और अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50% नवीकरणीय स्रोतों से पूरा करने का लक्ष्य रखा है।
3. ग्रीन बॉन्ड्स: भारत ने जलवायु परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए ग्रीन बॉन्ड्स जारी करने की योजना का ऐलान किया, जो सतत विकास के लिए जलवायु वित्त को जुटाने की दिशा में एक कदम है।
4. अनुकूलन प्रयासों को सशक्त बनाना: भारत ने जलवायु अनुकूलन प्रयासों को मजबूत करने और वल्नरेबल समुदायों को समर्थन देने की वचनबद्धता जताई।
हालिया उदाहरण: भारत ने बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा पार्कों की स्थापना और पवन ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश किया है, जो उसकी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता बढ़ाने की दिशा में एक ठोस कदम है।
COP26 ने वैश्विक जलवायु रणनीति में महत्वपूर्ण प्रगति की, जिसमें भारत की वचनबद्धताएँ दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्यों की ओर महत्वपूर्ण योगदान हैं।
See lessनवम्बर, 2021 में ग्लासगो में विश्व के नेताओं के शिखर सम्मेलन में सी.ओ.पी. 26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में, आरम्भ की गई हरित ग्रिड पहल का प्रयोजन स्पष्ट कीजिए । अन्तर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आई.एस.ए.) में यह विचार पहली बार कब दिया गया था ? (150 words) [UPSC 2021]
हरित ग्रिड पहल का प्रयोजन 1. वैश्विक ऊर्जा संक्रमण: नवंबर 2021 में ग्लासगो में COP26 शिखर सम्मेलन में शुरू की गई हरित ग्रिड पहल का उद्देश्य वैश्विक ऊर्जा ग्रिडों का एक नेटवर्क स्थापित करना है ताकि नवीनीकृत ऊर्जा का कुशलता से आदान-प्रदान किया जा सके। इससे फॉसिल ईंधन पर निर्भरता कम होगी और स्वच्छ ऊर्जRead more
हरित ग्रिड पहल का प्रयोजन
1. वैश्विक ऊर्जा संक्रमण: नवंबर 2021 में ग्लासगो में COP26 शिखर सम्मेलन में शुरू की गई हरित ग्रिड पहल का उद्देश्य वैश्विक ऊर्जा ग्रिडों का एक नेटवर्क स्थापित करना है ताकि नवीनीकृत ऊर्जा का कुशलता से आदान-प्रदान किया जा सके। इससे फॉसिल ईंधन पर निर्भरता कम होगी और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा।
2. ऊर्जा पहुँच में सुधार: विभिन्न राष्ट्रीय ग्रिडों को जोड़ने से ऊर्जा की पहुंच और विश्वसनीयता में सुधार होगा, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां संसाधनों की कमी है। यह पहल अस्थिर नवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर और पवन ऊर्जा के संतुलन में भी मदद करती है।
3. जलवायु लक्ष्यों का समर्थन: यह पहल पेरिस समझौते के लक्ष्यों को समर्थन देती है, वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को कम करने और नवीनीकृत ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देती है।
हालिया उदाहरण: भारत और यूरोपीय संघ जैसे देश पहले से ही क्षेत्रीय ग्रिडों के माध्यम से नवीनीकृत ऊर्जा साझा करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं, जिससे इस पहल की व्यावहारिकता सिद्ध होती है।
आई.एस.ए. में विचार का प्रारंभ: हरित ग्रिड पहल का विचार पहली बार अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आई.एस.ए.) की 2018 की बैठक में प्रस्तुत किया गया था। इस विचार ने वैश्विक सौर ऊर्जा के वितरण को बढ़ावा देने के लिए एक ठोस आधार प्रदान किया।
सारांश में, हरित ग्रिड पहल एक सतत और आपस में जुड़ी वैश्विक ऊर्जा प्रणाली की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है, जो जलवायु और ऊर्जा लक्ष्यों के साथ मेल खाता है।
See lessग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापन) की चर्चा कीजिए और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिए । क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिए नियंत्रण उपायों को समझाइए । (250 words) [UPSC 2022]
ग्लोबल वार्मिंग: प्रभाव और नियंत्रण उपाय **1. ग्लोबल वार्मिंग क्या है?: ग्लोबल वार्मिंग पृथ्वी की सतह का औसत तापमान बढ़ने की प्रक्रिया है, मुख्यतः ग्रीनहाउस गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄) और नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) के बढ़ते उत्सर्जन के कारण। ये गैसें सौर विकिरण को पृथ्वी की सतह पर फंसRead more
ग्लोबल वार्मिंग: प्रभाव और नियंत्रण उपाय
**1. ग्लोबल वार्मिंग क्या है?:
**2. वैश्विक जलवायु पर प्रभाव:
**3. कंट्रोल उपाय: क्योटो प्रोटोकॉल, 1997:
**4. नवीन उपाय:
निष्कर्ष: ग्लोबल वार्मिंग की गंभीरता को देखते हुए, क्योटो प्रोटोकॉल और अन्य उपायों के माध्यम से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना आवश्यक है। प्रभावी नियंत्रण उपायों को अपनाकर और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देकर हम वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपट सकते हैं।
See lessभारतीय उपमहाद्वीप के संदर्भ में बादल फटने की क्रियाविधि और घटना को समझाइए । हाल के दो उदाहरणों की चर्चा कीजिए। (150 words)[UPSC 2022]
भारतीय उपमहाद्वीप में बादल फटने की क्रियाविधि और घटना **1. क्रियाविधि: बादल फटना एक अत्यधिक तीव्र वर्षा की घटना है, जो आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में होती है। यह तब होता है जब गर्म और आर्द्र वायु अचानक ऊँचाई पर उठती है, जिससे कंडेन्सेशन और भारी वर्षा होती है। ओरोग्राफिक लिफ्टिंग (पहाड़ों द्वारा वायुRead more
भारतीय उपमहाद्वीप में बादल फटने की क्रियाविधि और घटना
**1. क्रियाविधि:
**2. भारतीय उपमहाद्वीप में घटना:
हाल के उदाहरण:
**1. हिमाचल प्रदेश (अगस्त 2021):
**2. उत्तराखंड (अक्टूबर 2022):
इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि बादल फटने की घटनाओं से निपटने के लिए बेहतर मौसम पूर्वानुमान और आपदा प्रबंधन आवश्यक हैं।
See lessजलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आइ० पी० सी० सी०) ने वैश्विक समुद्र स्तर में 2100 ईस्वी तक लगभग एक मीटर की वृद्धि का पूर्वानुमान लगाया है। हिन्द महासागर क्षेत्र में भारत और दूसरे देशों में इसका क्या प्रभाव होगा? (250 words) [UPSC 2023]
वैश्विक समुद्र स्तर में 2100 ईस्वी तक एक मीटर की वृद्धि के प्रभाव भारत पर प्रभाव: तटीय कटाव और भूमि हानि: समुद्र स्तर की वृद्धि भारत के तटीय क्षेत्रों में कटाव को बढ़ाएगी, जिससे महत्वपूर्ण भूमि का नुकसान होगा। मुंबई और चेन्नई जैसे बड़े तटीय शहरों को खासा खतरा होगा। हाल की मुंबई बाढ़ (2023) ने दिखायाRead more
वैश्विक समुद्र स्तर में 2100 ईस्वी तक एक मीटर की वृद्धि के प्रभाव
भारत पर प्रभाव:
हिन्द महासागर क्षेत्र पर प्रभाव:
हाल की पहल:
भारत ने राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC) की शुरुआत की है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए परियोजनाओं को समर्थन प्रदान करता है। मालदीव और अन्य द्वीपीय देशों ने तटीय सुरक्षा परियोजनाओं और पुनर्स्थापन योजनाओं पर काम किया है ताकि समुद्र स्तर वृद्धि के प्रभावों को कम किया जा सके।
संक्षेप में, 2100 तक एक मीटर समुद्र स्तर की वृद्धि भारत और हिन्द महासागर क्षेत्र में तटीय कटाव, बाढ़, जनसंख्या विस्थापन, और आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों को बढ़ा सकती है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए प्रभावी अनुकूलन और क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता है।
See lessजलवायु परिवर्तन भारत द्वारा भुखमरी और कुपोषण दूर करने में सामना की जाने वाली चुनौतियों में कैसे वृद्धि कर रहा है? 2030 तक शून्य मुखमरी प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता के संदर्भ में चर्चा कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
जलवायु परिवर्तन भारत में भुखमरी और कुपोषण की समस्याओं को गहराता जा रहा है, जिससे 2030 तक शून्य भुखमरी प्राप्त करने की प्रतिबद्धता पर गंभीर चुनौती उत्पन्न हो रही है। कृषि उत्पादन पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के पैटर्न में अनिश्चितता, सूखा, बाढ़, और अनियमित मानसून जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रRead more
जलवायु परिवर्तन भारत में भुखमरी और कुपोषण की समस्याओं को गहराता जा रहा है, जिससे 2030 तक शून्य भुखमरी प्राप्त करने की प्रतिबद्धता पर गंभीर चुनौती उत्पन्न हो रही है।
कृषि उत्पादन पर प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के पैटर्न में अनिश्चितता, सूखा, बाढ़, और अनियमित मानसून जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। ये समस्याएं कृषि उत्पादन को सीधे प्रभावित करती हैं, जिससे फसल की पैदावार घटती है। भारत की बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है, और जब उत्पादन घटता है तो खाद्य सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न होता है।
पोषण गुणवत्ता में गिरावट: जलवायु परिवर्तन से मिट्टी की गुणवत्ता में कमी, जल की कमी और तापमान में वृद्धि होती है, जिससे फसलों की पोषण गुणवत्ता प्रभावित होती है। पोषक तत्वों की कमी से बच्चों और गर्भवती महिलाओं में कुपोषण की समस्याएं बढ़ सकती हैं।
आर्थिक असमानता और खाद्य पहुंच: जलवायु परिवर्तन के चलते किसानों की आर्थिक स्थिति बिगड़ रही है, जिससे वे कर्ज और गरीबी के दलदल में फंस रहे हैं। इस आर्थिक असमानता से गरीब और हाशिये पर खड़े लोग पोषणयुक्त खाद्य सामग्री तक पहुंच नहीं बना पाते, जिससे भुखमरी और कुपोषण की समस्या और बढ़ जाती है।
सरकार की प्रतिबद्धता पर असर: भारत ने 2030 तक शून्य भुखमरी प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है, लेकिन जलवायु परिवर्तन इस लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधा बन रहा है। इसके लिए आवश्यक है कि भारत जलवायु अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाए, खाद्य वितरण प्रणालियों को मजबूत करे और कुपोषण से लड़ने के लिए नए नीतिगत प्रयास करे।
समग्र रूप से, जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियां भारत के लिए खाद्य सुरक्षा और पोषण को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण बाधा हैं, जिनका समाधान किए बिना शून्य भुखमरी का लक्ष्य प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है।
See lessसमुद्री हीटवेव की उत्पति के लिए उत्तरदायी कारणों की व्याख्या कीजिए। उन तरीकों पर चर्चा कीजिए जिनसे वे समुद्री पारितंत्र को प्रभावित कर सकती हैं और आर्थिक तक पहुंचा सकती हैं।(250 शब्दों में उत्तर दें)
समुद्री हीटवेव (Marine Heatwaves) तब उत्पन्न होती हैं जब समुद्र के सतही तापमान में असामान्य और निरंतर वृद्धि होती है, जो दिनों से लेकर महीनों तक बनी रह सकती है। इसके उत्पत्ति के लिए कई कारक उत्तरदायी होते हैं: कारण: जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, जिससे समुद्रीRead more
समुद्री हीटवेव (Marine Heatwaves) तब उत्पन्न होती हैं जब समुद्र के सतही तापमान में असामान्य और निरंतर वृद्धि होती है, जो दिनों से लेकर महीनों तक बनी रह सकती है। इसके उत्पत्ति के लिए कई कारक उत्तरदायी होते हैं:
कारण:
जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, जिससे समुद्री हीटवेव अधिक सामान्य और तीव्र हो रही हैं।
स्थानीय मौसम पैटर्न: अल नीनो जैसी मौसमी घटनाएं समुद्री जल के तापमान में वृद्धि का कारण बनती हैं। इन घटनाओं के दौरान, गर्म पानी समुद्र की सतह पर इकट्ठा हो जाता है, जिससे हीटवेव की स्थिति उत्पन्न होती है।
समुद्री धाराओं में परिवर्तन: समुद्री धाराओं में परिवर्तन के कारण गर्म पानी का संचलन समुद्र की सतह पर बढ़ सकता है, जिससे तापमान में वृद्धि होती है।
प्राकृतिक घटनाएं: ज्वालामुखीय विस्फोट या अन्य प्राकृतिक घटनाएं समुद्री तापमान को अस्थायी रूप से बढ़ा सकती हैं।
प्रभाव:
समुद्री पारितंत्र पर प्रभाव: समुद्री हीटवेव कोरल रीफ्स के लिए विनाशकारी हो सकती हैं, जिससे कोरल ब्लीचिंग होती है और उनकी मृत्यु हो सकती है। यह मछलियों और अन्य समुद्री जीवों की आबादी को भी प्रभावित कर सकती है, जिससे जैव विविधता में कमी आ सकती है।
मत्स्य पालन पर प्रभाव: समुद्री जीवों की मृत्यु और आबादी में कमी से मछली पकड़ने की उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह आर्थिक रूप से उन समुदायों को प्रभावित करता है जो मत्स्य पालन पर निर्भर होते हैं।
समुद्री पर्यटन पर प्रभाव: कोरल रीफ्स और अन्य समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों के नुकसान से पर्यटन प्रभावित होता है, जिससे संबंधित क्षेत्रों में रोजगार और आय में कमी आ सकती है।
इस प्रकार, समुद्री हीटवेव न केवल पर्यावरणीय बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी गंभीर चुनौतियां प्रस्तुत करती हैं, जो स्थानीय और वैश्विक स्तर पर प्रभावित कर सकती हैं।
See lessजलवायु क्षतिपूर्ति (क्लाइमेट रेपरेशन) के विचार से आप क्या समझते हैं? इस विचार को वर्तमान संदर्भ में लागू करने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिए। साथ ही, इसके कार्यान्वयन के समक्ष विद्यमान चुनौतियों को रेखांकित कीजिए। (250 शब्दों में उत्तर दीजिए)
जलवायु क्षतिपूर्ति (क्लाइमेट रेपरेशन) का मतलब: जलवायु क्षतिपूर्ति का अर्थ है जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों से निपटने के लिए उपायों का अभिवादन करना। यह उपाय जलवायु परिवर्तन को रोकने, कम करने और उससे निपटने के लिए सशक्त एवं सामर्थ्यशाली पहलू प्रस्तुत करता है। वर्तमान संदर्भ में इसकी आवश्यकता: जRead more
जलवायु क्षतिपूर्ति (क्लाइमेट रेपरेशन) का मतलब:
जलवायु क्षतिपूर्ति का अर्थ है जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों से निपटने के लिए उपायों का अभिवादन करना। यह उपाय जलवायु परिवर्तन को रोकने, कम करने और उससे निपटने के लिए सशक्त एवं सामर्थ्यशाली पहलू प्रस्तुत करता है।
वर्तमान संदर्भ में इसकी आवश्यकता:
जलवायु क्षतिपूर्ति की आवश्यकता इस समय अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं, जैसे की बाढ़, भूकंप, और तूफानों की वर्तमान स्थिति जलवायु क्षतिपूर्ति के महत्व को और भी दर्शाती है।
चुनौतियाँ:
.शोध बताते हैं कि ग्लोबल साउथ जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित होगा एवं दक्षिण एशिया गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों में से एक होगा। विश्लेषण कीजिए। (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)
ग्लोबल साउथ जलवायु परिवर्तन से दक्षिण एशिया एक प्रमुख प्रभावित क्षेत्र होगा। इस क्षेत्र में तापमान बढ़ने से भूमि क्षेत्र, जलवायु, और जल संसाधन धीमे धीमे प्रभावित हो रहे हैं। जल स्तरों का वृद्धि, तीव्रता बढ़ने वाले प्राकृतिक आपदाओं की संभावना बढ़ जाती है। दक्षिण एशिया में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सबRead more
ग्लोबल साउथ जलवायु परिवर्तन से दक्षिण एशिया एक प्रमुख प्रभावित क्षेत्र होगा। इस क्षेत्र में तापमान बढ़ने से भूमि क्षेत्र, जलवायु, और जल संसाधन धीमे धीमे प्रभावित हो रहे हैं। जल स्तरों का वृद्धि, तीव्रता बढ़ने वाले प्राकृतिक आपदाओं की संभावना बढ़ जाती है।
दक्षिण एशिया में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सबसे ज्यादा महसूस होंगे क्योंकि यह क्षेत्र प्राकृतिक तटों, जलवायु परिवर्तन के कारण बदलते मौसम पैटर्न, और जल संसाधनों की मात्रा में विविधता के साथ प्रसिद्ध है। इससे इस क्षेत्र के जलवायु, कृषि, और लोगों के जीवन पर व्यापक प्रभाव हो सकता है।
इस दृष्टि से, दक्षिण एशिया को सावधानीपूर्वक जलवायु परिवर्तन के प्रति सक्रिय और समर्थनीय उत्तरदायी ढांचों की आवश्यकता है ताकि इस क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय स्थिति को सुधारा जा सके।
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