विजयनगर नरेश कृष्णदेव राय न केवल स्वयं एक कुशल विद्वान थे अपितु विद्या एवं साहित्य के महान संरक्षक भी थे। विवेचना कीजिए। (200 words) [UPSC 2016]
खगोलशास्त्र और गणित: आचार्य आर्यभट ने अपनी काव्य-रचना "आर्यभटीय" में ग्रहों की गति और सौरमंडल की संरचना का विस्तार से वर्णन किया। शून्य और दशमलव प्रणाली की अवधारणाएँ भी इसी काल की देन हैं। आयुर्वेद: आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में प्राकृतिक औषधियों और उपचार विधियों का विवरण मिलता है। "सुष्रुतRead more
- खगोलशास्त्र और गणित: आचार्य आर्यभट ने अपनी काव्य-रचना “आर्यभटीय” में ग्रहों की गति और सौरमंडल की संरचना का विस्तार से वर्णन किया। शून्य और दशमलव प्रणाली की अवधारणाएँ भी इसी काल की देन हैं।
- आयुर्वेद: आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में प्राकृतिक औषधियों और उपचार विधियों का विवरण मिलता है। “सुष्रुतसंहिता” में सर्जरी और चिकित्सा के अद्वितीय विधियों का उल्लेख है।
- वास्तुशास्त्र: प्राचीन वास्तुशास्त्र और मंदिर निर्माण में भौगोलिक और ध्वनिक विज्ञान का उपयोग किया गया, जो वास्तुकला के विज्ञान को दर्शाता है।
- धातु विज्ञान: दिल्ली का लौह स्तम्भ, जो जंग रहित है, प्राचीन धातु विज्ञान की उन्नति को प्रदर्शित करता है।
इन पहलुओं से प्राचीन भारतीय ज्ञान और वैज्ञानिक उपलब्धियों की गहराई का पता चलता है।
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विजयनगर साम्राज्य के नरेश कृष्णदेव राय (1509-1529 CE) एक प्रतिष्ठित विद्वान और साहित्य के महान संरक्षक थे। उनकी विद्या और साहित्य के प्रति गहरी रुचि ने उनके शासनकाल को सांस्कृतिक समृद्धि का युग बना दिया। स्वयं विद्वान: कृष्णदेव राय स्वयं एक कुशल विद्वान थे और अनेक भाषाओं जैसे तेलुगु, संस्कृत और कन्नRead more
विजयनगर साम्राज्य के नरेश कृष्णदेव राय (1509-1529 CE) एक प्रतिष्ठित विद्वान और साहित्य के महान संरक्षक थे। उनकी विद्या और साहित्य के प्रति गहरी रुचि ने उनके शासनकाल को सांस्कृतिक समृद्धि का युग बना दिया।
स्वयं विद्वान:
कृष्णदेव राय स्वयं एक कुशल विद्वान थे और अनेक भाषाओं जैसे तेलुगु, संस्कृत और कन्नड़ में पारंगत थे। उन्होंने तेलुगु भाषा में “अमुक्तमाल्यदा” नामक महाकाव्य लिखा, जो बौद्धिक और धार्मिक विचारों से समृद्ध है और आज भी तेलुगु साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है।
साहित्य का संरक्षण:
उनके दरबार में साहित्यिक और बौद्धिक गतिविधियों को अत्यधिक प्रोत्साहन मिला। उनका दरबार “अष्टादिग्गज” के नाम से प्रसिद्ध था, जिसमें आठ प्रमुख विद्वान शामिल थे, जैसे अल्लसानी पेड्दना। इन विद्वानों ने तेलुगु काव्य और साहित्य को नई ऊँचाइयाँ प्रदान की। कृष्णदेव राय ने विद्वानों और कलाकारों को अपने दरबार में आमंत्रित किया और साहित्यिक कार्यों को संरक्षित और प्रचारित किया।
साहित्यिक प्रोत्साहन:
उनके संरक्षण में तेलुगु साहित्य का सुवर्णकाल आया, और कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना हुई। उनके शासनकाल में साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ चरम पर थीं, जो दक्षिण भारतीय सांस्कृतिक परंपरा को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस प्रकार, कृष्णदेव राय का विद्या और साहित्य के प्रति समर्पण और संरक्षण उनके शासनकाल को सांस्कृतिक और बौद्धिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बना देता है।
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