उत्तर लेखन के लिए रोडमैप
1. प्रस्तावना
- उद्देश्य: भारत में निर्धनता आकलन की प्रक्रिया का संक्षिप्त परिचय दें।
- पार्श्वभूमि: स्वतंत्रता के बाद से इस प्रक्रिया की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा करें।
2. प्रारंभिक अनुमान
- 1962 में योजना आयोग का गठन:
- तथ्य: योजना आयोग ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए क्रमशः 20 रुपये और 25 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष की गरीबी रेखाएँ निर्धारित की। (स्रोत: योजना आयोग)
3. प्रमुख समितियाँ और उनके योगदान
- वीएम डांडेकर और एनआर रथ (1971):
- योगदान: NSS डेटा का उपयोग करके पहला व्यवस्थित आकलन।
- तथ्य: न्यूनतम कैलोरी खपत मानदंड 2250 कैलोरी प्रतिदिन का सुझाव दिया। (स्रोत: डांडेकर और रथ रिपोर्ट)
- अलघ समिति (1979):
- योगदान: पोषण संबंधी आवश्यकताओं के आधार पर गरीबी रेखा का निर्माण।
- तथ्य: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए अलग-अलग गरीबी रेखाएँ। (स्रोत: अलघ समिति रिपोर्ट)
- लकड़ावाला समिति (1993):
- योगदान: उपभोग व्यय के लिए कैलोरी खपत का उपयोग।
- तथ्य: राज्य विशिष्ट गरीबी रेखाएँ और CPI-I तथा CPI-AL का उपयोग। (स्रोत: लकड़ावाला समिति रिपोर्ट)
- तेंदुलकर समिति (2009):
- योगदान: महत्वपूर्ण बदलाव, जैसे मिश्रित संदर्भ अवधि (MRP) का उपयोग।
- तथ्य: गरीबी रेखा 446.68 रुपये (ग्रामीण) और 578.80 रुपये (शहरी) निर्धारित की गई। (स्रोत: तेंदुलकर समिति रिपोर्ट)
- रंगराजन समिति (2012):
- योगदान: स्वतंत्र सर्वेक्षण के आधार पर नए मानकों का प्रस्ताव।
- तथ्य: नई गरीबी रेखा 32 रुपये (ग्रामीण) और 47 रुपये (शहरी)। (स्रोत: रंगराजन समिति रिपोर्ट)
4. वर्तमान पद्धति
- नीति आयोग (2011-12):
- तथ्य: गरीबी रेखा को 816 रुपये (ग्रामीण) और 1,000 रुपये (शहरी) प्रति व्यक्ति प्रति माह परिभाषित किया गया। (स्रोत: नीति आयोग रिपोर्ट)
5. निष्कर्ष
- सारांश: निर्धनता आकलन की पद्धति में बदलाव का संक्षिप्त पुनरावलोकन करें, जिसमें विभिन्न समितियों के योगदान और वर्तमान दृष्टिकोण पर चर्चा करें।
स्वतंत्रता के बाद निर्धनता आकलन का विकास
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में निर्धनता आकलन का कार्य कई समितियों द्वारा किया गया। समय के साथ इन समितियों ने विभिन्न पद्धतियों का उपयोग किया, जो समाज और अर्थव्यवस्था के बदलते पहलुओं को ध्यान में रखते थे।
1. कुंदनलाल समिति (1944)
इस समिति ने निर्धनता का आकलन परिवारों की आवश्यकताओं और उनकी आय के आधार पर किया।
उन्होंने यह सुझाव दिया कि निर्धनता के लिए आय के स्तर को मुख्य मानदंड माना जाए।
2. गंगूलि समिति (1962)
इस समिति ने परिवार की भोजन, वस्त्र और आवास की स्थिति को निर्धनता का प्रमुख मानदंड माना।
समिति ने सामाजिक सुरक्षा और जीवन स्तर के आंकड़ों पर अधिक ध्यान दिया।
3. सरकार की समिति और राष्ट्रीय सर्वेक्षण (1990-2000)
एनएसएसओ (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन) ने नए पैमानों के तहत गरीबी का आकलन शुरू किया।
1993-94 में “खपत आधारित निर्धनता” के आकलन पर जोर दिया गया, जिसमें उपभोक्ता खर्च को प्राथमिक मानक माना गया।
4. हाल की पहल (2020 और बाद)
2020 में नेशनल पोवर्टी इंडेक्स (NPI) और वैश्विक गरीबी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 10-15% लोग अब भी निर्धनता रेखा से नीचे हैं।
महामारी और लॉकडाउन ने निर्धनता के आकलन को और भी जटिल बना दिया, जिससे नए पैमानों की आवश्यकता महसूस हुई।
निष्कर्ष इन समितियों और पहलियों ने समय के साथ निर्धनता आकलन की पद्धतियों को विकसित किया है, जो अब ज्यादा वास्तविक और बहुआयामी हैं।
आपके उत्तर का मूल्यांकन:
उत्तर में स्वतंत्रता के बाद निर्धनता आकलन के विकास को सरल ढंग से प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न समितियों का उल्लेख करके क्रमबद्ध व्याख्या की गई है, जो उत्तर को सुव्यवस्थित बनाता है। निष्कर्ष भी उचित है और विकास प्रक्रिया को समाहित करता है। भाषा स्पष्ट और प्रवाहपूर्ण है।
हालांकि, कुछ महत्वपूर्ण तथ्य और आंकड़े गायब हैं, जिनसे उत्तर और समृद्ध हो सकता था।
Abhiram आप इस फीडबैक का भी उपयोग कर सकते हैं।
छूटे हुए तथ्य और डेटा:
पी. सी. महालनोबिस के नेतृत्व में 1950 के दशक में किए गए प्रारंभिक प्रयासों का उल्लेख नहीं है।
लक्ष्मीदास आयोग (1959) और डी. टी. लक्ष्मण समिति (1971) का जिक्र नहीं हुआ है।
एस. आर. हाशिम समिति (1980s) और तेंदुलकर समिति (2009) जैसी प्रमुख समितियों का उल्लेख नहीं है, जबकि तेंदुलकर समिति ने गरीबी रेखा निर्धारण के नए मानक पेश किए थे।
रंगराजन समिति (2014) का उल्लेख भी नहीं किया गया, जिसने गरीबी मापने के नए मानदंड सुझाए थे।
NITI Aayog द्वारा प्रस्तुत मल्टीडायमेंशनल पोवर्टी इंडेक्स (MPI) का विशेष उल्लेख करना चाहिए था।
सुझाव:
उत्तर को और बेहतर बनाने के लिए प्रमुख समितियों और उनके योगदान का संक्षिप्त, लेकिन व्यापक उल्लेख करना चाहिए था, साथ ही कुछ महत्वपूर्ण वर्षों और आंकड़ों को जोड़ना भी आवश्यक था।
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद निर्धनता का आकलन एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया। पहले-पहल, स्वतंत्रता के समय निर्धनता को परिभाषित करने और मापने के लिए कोई ठोस प्रणाली नहीं थी। इसके लिए विभिन्न समितियों और आयोगों ने समय-समय पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिससे निर्धनता आकलन की पद्धतियों में बदलाव आया।
सबसे पहले, 1951 में सर्वे ऑफ इन्डियन लाइवलीहुड (Indian Livelihood Survey) किया गया था, जिसमें आय और खपत के पैटर्न को मापा गया। 1962 में, Planning Commission ने निर्धनता रेखा (poverty line) को परिभाषित किया, जिसमें औसत परिवार की आय की न्यूनतम सीमा तय की गई। इस पद्धति में भोजन, आवास, और अन्य आवश्यकताओं के लिए एक न्यूनतम खर्च निर्धारित किया गया था।
इसके बाद, 1979 में Dandekar-Narang समिति ने निर्धनता के आकलन में जीवन स्तर और सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर भी ध्यान दिया। 1993 में Suresh Tendulkar समिति ने उपभोक्ता खर्च और आय के आधार पर निर्धनता रेखा का निर्धारण किया।
आजकल, Poverty Estimation Reports में विभिन्न आयुर्वेदिक मापदंडों के साथ-साथ बहुआयामी निर्धनता आकलन (Multidimensional Poverty Index) का उपयोग किया जाता है, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, और जीवनस्तर जैसे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए निर्धनता को अधिक सटीकता से मापता है।
उत्तर का मूल्यांकन और सुझाव:
आपका उत्तर अच्छा प्रयास है और प्रश्न के मुख्य बिंदु को छूता है। आपने स्वतंत्रता के बाद भारत में निर्धनता आकलन के विकास की समयरेखा सही तरह से प्रस्तुत की है। उत्तर में विभिन्न समितियों का उल्लेख भी किया गया है, जो प्रश्न की मांग के अनुरूप है। भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है।
हालांकि, कुछ सुधार आवश्यक हैं:
Dandekar-Narang समिति का उल्लेख गलत है। सही नाम Dandekar-Rath है, जिन्होंने 1971 में न्यूनतम कैलोरी आवश्यकता के आधार पर निर्धनता रेखा तय करने का सुझाव दिया था।
Lakdawala समिति (1993) का जिक्र गायब है, जिसने 1973-74 की कीमतों के आधार पर उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण का उपयोग कर निर्धनता रेखा तय की थी।
Suresh Tendulkar समिति की रिपोर्ट 2009 में आई थी, 1993 नहीं।
Rangarajan समिति (2014) का भी उल्लेख करना चाहिए था, जिसने उपभोग खर्च के साथ शिक्षा और स्वास्थ्य व्यय को भी जोड़ा।
Multidimensional Poverty Index (MPI) के साथ NITI Aayog की भूमिका भी जोड़ सकते थे।
Yashvi आप इस फीडबैक का भी उपयोग कर सकती हो।
गायब तथ्य और आंकड़े:
Dandekar-Rath समिति (1971)
Lakdawala समिति (1993)
Tendulkar समिति (2009)
Rangarajan समिति (2014)
NITI Aayog और Global MPI (2021 के आंकड़े)
कुल मिलाकर, थोड़ा और तथ्यात्मक स्पष्टता और समितियों का क्रम सही करने से उत्तर और सटीक बनेगा।