उत्तर लेखन के लिए रोडमैप
1. भूमिका
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र की परिभाषा।
- इस क्षेत्र का वैश्विक और भारत के संदर्भ में महत्व।
2. भारत के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र का रणनीतिक महत्व
- समुद्री सुरक्षा: SLOCs का महत्व और चीन की आक्रामकता।
- आर्थिक विकास: व्यापार विविधीकरण और IPEF में भागीदारी।
- प्रौद्योगिकी और अवसंरचना: डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना की पहल।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु अनुकूलन के प्रयास और ब्लू इकॉनमी।
3. भारत की सक्रिय भागीदारी में बाधाएँ
- सामरिक संसाधनों की कमी: सीमित नौसैनिक क्षमता और बजटीय समस्याएँ।
- सुसंगत नीति का अभाव: हिंद-प्रशांत नीति का एकीकृत दृष्टिकोण नहीं होना।
- भू-राजनीतिक संतुलन की दुविधा: चीन के साथ कूटनीतिक जुड़ाव।
- आर्थिक असमंजस: RCEP से वापसी और सीमित FTA।
- संस्थागत क्षमता की कमी: IORA और BIMSTEC में कमजोर स्थिति।
4. भारत की भूमिका बढ़ाने के उपाय
- एक व्यापक रणनीति का विकास: SAGAR, एक्ट ईस्ट और IPOI का एकीकरण।
- नौसैनिक क्षमताओं का विस्तार: रसद-साझाकरण और मिशन आधारित तैनाती।
- लघु-पार्श्वीय नेतृत्व को बढ़ावा: क्वाड और अन्य समूहों में सक्रियता।
- रणनीतिक अवसंरचना का विकास: चाबहार बंदरगाह और IMEC।
- सांस्कृतिक और शैक्षिक कूटनीति का उपयोग: सॉफ्ट पावर को बढ़ाना।
5. आगे की राह
- भारत की हिंद-प्रशांत भागीदारी का महत्व।
- प्रभावी रणनीति के माध्यम से भारत की भूमिका को मजबूती प्रदान करना।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र का रणनीतिक महत्व
हिंद-प्रशांत क्षेत्र भारत के लिए अत्यधिक रणनीतिक महत्व रखता है क्योंकि यह क्षेत्र वैश्विक व्यापार, सामरिक सुरक्षा, और आर्थिक विकास के लिए केंद्र बन चुका है।
आर्थिक महत्व: इस क्षेत्र में वैश्विक व्यापार का लगभग 60% होता है, जिसमें भारत की समुद्री व्यापार से जुड़ी कई योजनाएँ हैं।
सुरक्षा: चीन की बढ़ती सैन्य शक्ति और दक्षिण चीन सागर में उसकी गतिविधियाँ भारत के लिए चिंता का विषय हैं।
वैश्विक कनेक्टिविटी: हिंद-प्रशांत क्षेत्र भारत को पश्चिमी प्रशांत और अफ्रीका के साथ मजबूत कनेक्टिविटी प्रदान करता है।
चुनौतियाँ
भारत की सक्रिय भागीदारी में कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं:
चीन का प्रभाव: चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और उसके सैन्य विस्तार के कारण भारत को अपनी रणनीतियाँ सावधानी से तय करनी पड़ती हैं।
क्षेत्रीय तनाव: विशेष रूप से पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में तनाव के कारण भारत का ध्यान आंतरिक सुरक्षा पर भी केंद्रित है।
विपरीत सहयोगी: कुछ क्षेत्रीय देशों के साथ भारत के सामरिक रिश्ते कमजोर हैं, जैसे कुछ एशियाई देशों के साथ भारत का तनाव।
उपाय
भारत अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए निम्नलिखित कदम उठा सकता है:
द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों को मजबूत करना: क्वाड और ASEAN जैसे समूहों में सक्रिय भागीदारी।
सैन्य और आर्थिक सहयोग में वृद्धि: क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए संयुक्त सैन्य अभ्यास और व्यापार समझौतों को बढ़ावा देना।
डिप्लोमेसी को प्राथमिकता देना: भारतीय विदेश नीति में लचीलापन और संवाद को बढ़ावा देना।
इन उपायों से भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत कर सकता है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र का रणनीतिक महत्व और भारत की भूमिका
हिंद-प्रशांत क्षेत्र भारत के लिए अत्यधिक रणनीतिक महत्व रखता है, क्योंकि यह वैश्विक व्यापार, सुरक्षा और ऊर्जा के प्रमुख मार्गों का हिस्सा है। यहां स्थित चीन, जापान, और अमेरिका जैसी शक्तियों के साथ भारत का समृद्ध संबंध है। भारत की समुद्र-व्यापार, कूटनीतिक और सुरक्षा उपस्थिति क्षेत्रीय स्थिरता के लिए आवश्यक है।
हालांकि, भारत के लिए इस क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी में कई चुनौतियाँ हैं। सबसे प्रमुख चुनौती चीन का बढ़ता प्रभाव है, साथ ही क्षेत्रीय संघर्षों और देशों के बीच तनाव भी एक बाधा है। भारत की समुद्री सुरक्षा, क्षेत्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय सहयोग के विकास में चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
भारत को क्या उपाय करने चाहिए?
भारत को अपनी समुद्री सुरक्षा को मजबूत करना चाहिए, और कूटनीतिक, सैन्य और आर्थिक सहयोग में वृद्धि करनी चाहिए। क्वाड जैसे गठबंधनों में अपनी सक्रिय भागीदारी को बढ़ाकर वह क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ा सकता है।