उत्तर लेखन के लिए रोडमैप
- भूमिका:
- 2004 की हिंद महासागर सुनामी का संक्षिप्त परिचय।
- आपदा प्रबंधन के महत्व पर प्रकाश डालें।
- भारत के आपदा प्रबंधन ढांचे का विकास:
- प्रारंभिक राहत-केंद्रित दृष्टिकोण (1960-1980)।
- 2000 के दशक में महत्वपूर्ण बदलाव, जैसे आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005।
- वर्तमान में सक्रिय और समुत्थानशीलता-केंद्रित दृष्टिकोण।
- नीतिगत सुधार:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की स्थापना।
- सेंदई फ्रेमवर्क और ह्योगो फ्रेमवर्क के अनुसार सुधार।
- चुनौतियाँ:
- जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती आपदाएँ।
- शहरीकरण और अव्यवस्थित विकास की समस्याएँ।
- कमजोर पूर्व चेतावनी प्रणाली और स्वास्थ्य संकट।
- आपदा लचीलापन बढ़ाने के उपाय:
- जलवायु-अनुकूल बुनियादी अवसंरचना की आवश्यकता।
- समुदाय-आधारित आपदा जोखिम न्यूनीकरण (CBDRR)।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग और बेहतर समन्वय।
- निष्कर्ष:
- भारत के आपदा प्रबंधन ढांचे की प्रगति की सराहना करें।
- सक्रिय और समुत्थानशीलता-केंद्रित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दें।
मॉडल उत्तर
भूमिका:
2004 का हिंद महासागर सुनामी एक विनाशकारी घटना थी, जिसने 230,000 से अधिक लोगों की जान ली। इस घटना ने भारत को अपने आपदा प्रबंधन ढांचे की समीक्षा करने और उसे मजबूत करने की आवश्यकता का एहसास कराया।
भारत के आपदा प्रबंधन ढांचे का विकास:
स्वतंत्रता के बाद, भारत का आपदा प्रबंधन मुख्य रूप से राहत-केंद्रित था, जहाँ खाद्य वितरण और चिकित्सा सहायता पर ध्यान दिया गया। 2005 में आपदा प्रबंधन अधिनियम के अधिनियमन के साथ, भारत ने एक समर्पित ढांचा स्थापित किया, जिसमें राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का गठन शामिल था। वर्तमान में, भारत ने सक्रिय और समुत्थानशीलता-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें जोखिम में कमी और समुदायों की भागीदारी पर जोर दिया गया है।
नीतिगत सुधार:
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 ने आपदा प्रबंधन की चार मुख्य धाराओं—न्यूनिकरण, तैयारी, मोचन और पुनर्वास पर ध्यान केंद्रित किया। सेंदई फ्रेमवर्क और ह्योगो फ्रेमवर्क के साथ, भारत ने वैश्विक मानकों के अनुरूप अपने नीतिगत सुधारों को लागू किया है।
चुनौतियाँ:
हालांकि भारत ने प्रगति की है, लेकिन जलवायु परिवर्तन, अव्यवस्थित शहरीकरण और कमजोर पूर्व चेतावनी प्रणाली जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। उदाहरण के लिए, 2023 में चक्रवात मोखा और हिमाचल प्रदेश में अत्यधिक बारिश ने गंभीर नुकसान पहुँचाया, जिससे पता चलता है कि जलवायु-संबंधित आपदाएँ बढ़ती जा रही हैं।
आपदा लचीलापन बढ़ाने के उपाय:
भारत को जलवायु-अनुकूल बुनियादी अवसंरचना में निवेश करने की आवश्यकता है, जैसे कि हरित भवन और बाढ़-प्रतिरोधी जल निकासी प्रणालियाँ। समुदाय-आधारित आपदा जोखिम न्यूनीकरण (CBDRR) को लागू करना और प्रौद्योगिकी का उपयोग करके बेहतर पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करना भी महत्वपूर्ण है।
आगे की राह
भारत के आपदा प्रबंधन ढांचे ने 2004 के सुनामी के बाद महत्वपूर्ण सुधार किए हैं, लेकिन जलवायु-प्रेरित आपदाएँ और अन्य चुनौतियाँ हमें सक्रिय और समुत्थानशीलता-केंद्रित दृष्टिकोण की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। हमें अपने आपदा प्रबंधन को और मजबूत करने के लिए निरंतर प्रयास करने की आवश्यकता है।
2004 के हिंद महासागर सुनामी के बाद भारत के आपदा प्रबंधन ढांचे का विकास
2004 में आई सुनामी ने भारत के आपदा प्रबंधन ढांचे की कमजोरी को उजागर किया। इस घटना के बाद भारत ने अपने आपदा प्रबंधन संरचना में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं।
प्रमुख नीतिगत सुधार
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम (2005): भारत ने यह अधिनियम पारित किया, जिससे आपदा प्रबंधन के लिए एक संस्थागत ढांचा तैयार हुआ।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का गठन: इसे आपदाओं से निपटने के लिए केंद्रीय स्तर पर फैसले लेने की जिम्मेदारी दी गई।
राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF): त्वरित प्रतिक्रिया और राहत कार्यों के लिए एक समर्पित बल की स्थापना।
बढ़ती जलवायु भेद्यता
जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री तूफान, बाढ़ और सूखा जैसी आपदाओं में वृद्धि हो रही है। उदाहरण के लिए, 2020 में चक्रवात अम्फान ने पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भारी तबाही मचाई।
चुनौतियाँ
संवेदनशील क्षेत्रों का आंकलन: कई स्थानों पर डेटा की कमी और संसाधनों का अभाव।
स्थानीय समुदायों का प्रशिक्षण: लोगों में आपदा से निपटने की क्षमता की कमी।
उपाय
स्थानीय स्तर पर जागरूकता और शिक्षा: आपदा लचीलापन बढ़ाने के लिए समुदायों को प्रशिक्षित करना।
प्रौद्योगिकी का उपयोग: उपग्रह चित्रण और डेटा विश्लेषण से आपदाओं के पूर्वानुमान में सुधार।
2004 के हिंद महासागर सुनामी के बाद भारत ने आपदा प्रबंधन ढांचे में महत्वपूर्ण सुधार किए हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की स्थापना, आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005, और राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (NDRF) जैसे कदम महत्वपूर्ण रहे हैं। साथ ही, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के कारण, सरकार ने जलवायु अनुकूलन योजनाओं और क्षेत्रीय आपदा चेतावनी प्रणालियों में सुधार किया है।
हालांकि, भारत अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जैसे अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, वित्तीय कमी, और समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन की कमी। जलवायु परिवर्तन के चलते प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ता खतरा और भी जटिल बनाता है।
आपदा लचीलापन बढ़ाने के लिए, स्थानीय समुदायों में जागरूकता बढ़ाना, सटीक पूर्वानुमान तकनीकों का विकास, और आपदा प्रबंधन में अधिक निवेश आवश्यक है।