उत्तर लेखन का रोडमैप
1. परिचय
- सी.बी.आई. की भूमिका और महत्व को संक्षेप में प्रस्तुत करें।
- सामान्य सहमति की परिभाषा और इसके महत्व पर ध्यान दें।
2. सहमति वापस लेने का संदर्भ
- यह बताएं कि किन राज्यों ने सामान्य सहमति वापस ली और इसके कारण क्या हैं।
- राजनीतिक हितों और प्रतिशोध के आरोपों को उल्लेखित करें।
3. कानूनी ढांचा
- संविधान की सातवीं अनुसूची में ‘पुलिस’ और ‘लोक व्यवस्था’ को राज्य विषय के रूप में समझाएं।
- सी.बी.आई. की केंद्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करने के प्रभाव पर चर्चा करें।
4. सहकारी संघवाद पर चुनौतियाँ
- अधिकार क्षेत्र का अतिव्यापन:
- स्थानीय पुलिस बलों के साथ सी.बी.आई. की कार्यवाही में टकराव के उदाहरण दें।
- जांच में रुकावट:
- यह बताएं कि सी.बी.आई. पिछले तीन वर्षों में कितने मामलों में सहमति के अभाव में जांच नहीं कर पाई।
- राजनीतिक तनाव:
- सी.बी.आई. के राजनीतिक उपयोग के आरोपों का उल्लेख करें और इससे केंद्र-राज्य संबंधों पर प्रभाव को समझाएं।
5. परिणाम
- केंद्र और राज्यों के बीच विश्वास में कमी और इसकी न्याय प्रणाली पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा करें।
- सहकारी संघवाद को कमजोर करने वाले दीर्घकालिक प्रभावों का विश्लेषण करें।
6. निष्कर्ष
- सहकारी संघवाद की भावना को पुनर्स्थापित करने के उपायों का संक्षेप में उल्लेख करें।
- सी.बी.आई. की स्वतंत्रता और राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्ति की आवश्यकता पर जोर दें।
उपयोगी तथ्य
- सी.बी.आई. की स्थापना: सी.बी.आई. दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के तहत स्थापित की गई है।
- सामान्य सहमति का महत्व: सामान्य सहमति के अभाव में सी.बी.आई. को हर मामले के लिए राज्य सरकार से स्वीकृति लेनी पड़ती है।
- राज्यों की संख्या: वर्तमान में नौ राज्यों ने सी.बी.आई. से सामान्य सहमति वापस ली है।
- बैंक धोखाधड़ी के मामले: सी.बी.आई. ने पिछले तीन वर्षों में ₹21,000 करोड़ से अधिक के बैंक धोखाधड़ी मामलों में जांच शुरू नहीं की है (स्रोत: उच्चतम न्यायालय)।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: 2013 में उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश ने सी.बी.आई. को “पिंजरे का तोता” कहा था, जो राजनीतिक प्रभाव के अधीन है।
सहकारी संघवाद की परिभाषा
सहकारी संघवाद वह सिद्धांत है, जिसमें केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच सामूहिक सहयोग और आपसी सम्मान होता है। यह प्रणाली राज्यों को अपनी नीतियों में स्वायत्तता प्रदान करती है, जबकि केंद्र की सरकार भी अपने अधिकारों का पालन करती है।
सी.बी.आई. से सहमति वापसी
कुछ राज्य सरकारों ने सी.बी.आई. को राज्य सीमा में बिना अनुमति प्रवेश करने से रोकने के लिए सामान्य सहमति वापस ले ली है।
सहकारी संघवाद पर प्रभाव
यह कदम सहकारी संघवाद की भावना को चुनौती देता है क्योंकि
निष्कर्ष
राज्य सरकारों द्वारा सी.बी.आई. से सहमति वापस लेने से संघीय ढांचे में तनाव बढ़ सकता है, जो भारतीय सहकारी संघवाद की भावना को कमजोर करता है।
उत्तर में सहकारी संघवाद की परिभाषा और सी.बी.आई. से सहमति वापसी के संदर्भ को अच्छे से प्रस्तुत किया गया है। हालांकि, कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों और डेटा की कमी है, जो इसे अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं।
पहले, सहकारी संघवाद के सिद्धांत के साथ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 और 257 का उल्लेख किया जा सकता था, जो केंद्र और राज्य के अधिकारों के बंटवारे को स्पष्ट करते हैं। दूसरा, सी.बी.आई. से सामान्य सहमति वापस लेने वाले राज्यों का विस्तार से जिक्र होना चाहिए, जिसमें पश्चिम बंगाल, दिल्ली और महाराष्ट्र का उदाहरण तो दिया गया है, परंतु आंध्र प्रदेश और राजस्थान का भी उल्लेख किया जा सकता था।
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यह भी जरूरी था कि इस कदम से राज्यों और केंद्र के बीच बढ़ते तनाव का विशेष रूप से उल्लेख हो, और इससे जुड़े संवैधानिक संकटों का भी जिक्र किया जा सकता था।
इस उत्तर में केंद्र और राज्य के बीच संतुलन और सहयोग की आवश्यकता पर जोर देना जरूरी था।
मॉडल उत्तर
परिचय
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सी.बी.आई.) भारत की प्रमुख जांच एजेंसी है, जो भ्रष्टाचार और उच्च-स्तरीय अपराधों की जांच करती है। इसकी कार्यवाही के लिए राज्य सरकारों से सामान्य सहमति आवश्यक होती है। हाल ही में, नौ राज्यों ने सी.बी.आई. से यह सहमति वापस ले ली है, जिसका मुख्य कारण राजनीतिक हितों के लिए सी.बी.आई. का उपयोग बताया गया है।
सहकारी संघवाद पर चुनौती
संविधान की सातवीं अनुसूची में ‘पुलिस’ और ‘लोक व्यवस्था’ राज्य विषय हैं, जिससे राज्यों को इन पर कानून बनाने का विशेषाधिकार प्राप्त है। सी.बी.आई. का केंद्रीय एजेंसी के रूप में कार्य करना इस अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करता है और संघीय तनाव को बढ़ाता है।
सी.बी.आई. को पिछले तीन वर्षों में पांच राज्यों से सहमति न मिलने के कारण ₹21,000 करोड़ से अधिक के बैंक धोखाधड़ी मामलों की जांच शुरू करने में असमर्थता का सामना करना पड़ा है। इससे न केवल न्याय प्रक्रिया में देरी होती है, बल्कि जनता का विश्वास भी घटता है।
सी.बी.आई. पर राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोपों ने केंद्र-राज्य संबंधों को तनावग्रस्त किया है। उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश ने सी.बी.आई. को “पिंजरे का तोता” कहा था, जो राजनीतिक स्वार्थों के लिए काम करती है।
निष्कर्ष
राज्य सरकारों द्वारा सी.बी.आई. से सामान्य सहमति वापस लेना सहकारी संघवाद की भावना को कमजोर करता है। इसे ठीक करने के लिए आवश्यक है कि सी.बी.आई. की स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया जाए और इसे राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखा जाए। ऐसा करने से ही भारत में सहकारी संघवाद की भावना को पुनर्स्थापित किया जा सकेगा।