उत्तर लेखन की रोडमैप
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परिचय
- तकनीकी क्रांति का संक्षिप्त परिचय।
- डिजिटल बुनियादी ढांचे, AI और स्वदेशी नवाचार का महत्व।
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चुनौतियाँ
- विनियामक अनिश्चितता: नीतिगत बदलाव और अनुपालन जटिलताएँ।
- डिजिटल डिवाइड: ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की कमी।
- कौशल की कमी: R&D में निवेश की कमी और प्रतिभा की कमी।
- साइबर सुरक्षा खतरे: डेटा उल्लंघन और साइबर हमले।
- विदेशी तकनीक पर निर्भरता: आयातित सेमीकंडक्टर और तकनीक।
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उपाय
- नीतिगत सुधार: स्थायी और स्पष्ट नीतियाँ।
- DPI का विस्तार: स्वास्थ्य, शिक्षा आदि में डिजिटल अवसंरचना।
- स्वदेशी उत्पादन: सेमीकंडक्टर और AI में निवेश।
- कौशल विकास: डिजिटल कौशल कार्यक्रमों का विकास।
- साइबर सुरक्षा में सुधार: साइबर शिक्षण और सुरक्षा उपाय।
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आगे की राह
- समावेशी और टिकाऊ विकास के लिए सभी उपायों की आवश्यकता।
- तकनीकी नेतृत्व की दिशा में भारत की प्रतिबद्धता।
भारत में समावेशी और टिकाऊ तकनीकी विकास की प्रमुख चुनौतियाँ
डिजिटल विभाजन
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का अभाव
नवाचार और रिसर्च में निवेश की कमी
समाधान और उपाय
डिजिटल साक्षरता बढ़ाना
AI शिक्षा और प्रशिक्षण
नवाचार के लिए निवेश
इस उत्तर में समावेशी और टिकाऊ तकनीकी विकास से संबंधित प्रमुख चुनौतियों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं की कमी है।
डिजिटल विभाजन की चुनौती सही ढंग से बताई गई है, लेकिन आंकड़ों में 2021 के बाद के डेटा का उपयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के प्रतिशत और डिजिटलीकरण की रफ्तार के बारे में अधिक जानकारी दी जा सकती थी।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से संबंधित चुनौती भी सही है, लेकिन इसमें तकनीकी रूप से उन्नत देशों की तुलना में भारत की स्थिति का उल्लेख नहीं किया गया है। AI के संदर्भ में डेटा प्राइवेसी, साइबर सुरक्षा, और एथिक्स से जुड़ी चुनौतियों पर भी चर्चा होनी चाहिए थी।
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नवाचार और रिसर्च में निवेश की कमी को बेहतर ढंग से विश्लेषित किया जा सकता था। उदाहरण के लिए, भारत के अनुसंधान और विकास (R&D) क्षेत्र में GDP का कितना हिस्सा निवेश किया जा रहा है, यह जोड़ना लाभकारी होता।
समाधानों में नीति निर्माण और बहु-क्षेत्रीय सहभागिता की ज़रूरत पर भी प्रकाश डाला जा सकता था।
अधिक सटीक आंकड़ों और विश्लेषण के साथ यह उत्तर और बेहतर हो सकता है।
मॉडल उत्तर
भारत डिजिटल बुनियादी ढांचे, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और स्वदेशी नवाचार द्वारा संचालित एक तेज़ तकनीकी क्रांति का गवाह बन रहा है। यह क्रांति न केवल आर्थिक विकास बल्कि सामाजिक परिवर्तन के लिए भी महत्वपूर्ण है। हालाँकि, इस विकास में कई चुनौतियाँ उपस्थित हैं जो समावेशी और टिकाऊ तकनीकी विकास में बाधा डालती हैं।
विनियामक अनिश्चितता एक प्रमुख चुनौती है। बार-बार नीतिगत बदलाव और अनुपालन के जटिलताएँ नवाचार और निवेश को प्रभावित कर रही हैं। उदाहरण के लिए, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए FAME योजना में बदलाव ने कई कंपनियों को प्रभावित किया है।
डिजिटल डिवाइड भी एक गंभीर समस्या है। ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की पहुँच की कमी के कारण आर्थिक वृद्धि असमान हो रही है। लगभग 665 मिलियन भारतीय नागरिक इंटरनेट का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं, जिससे वित्तीय समावेशन प्रभावित हो रहा है।
कौशल की कमी भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जहाँ भारत ने R&D पर अपने GDP का केवल 0.65% खर्च किया है। AI और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में कुशल श्रमिकों की भारी कमी है, जो तकनीकी विकास में बाधा डालती है।
साइबर सुरक्षा खतरे भी बढ़ रहे हैं। 2023 में भारत में 79 मिलियन से अधिक साइबर हमले हुए, जिससे डेटा उल्लंघन की चिंताएँ बढ़ गई हैं।
अंत में, विदेशी तकनीक पर निर्भरता भी चुनौतीपूर्ण है। भारत का डिजिटल विकास आयातित सेमीकंडक्टर और विदेशी AI मॉडल पर निर्भर है, जिससे आत्मनिर्भरता में कमी आती है।
इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, भारत को नीतिगत सुधार की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। स्थायी और स्पष्ट नीतियाँ स्थापित करना महत्वपूर्ण है। डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) को स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि जैसे क्षेत्रों में विस्तारित करना आवश्यक है।
स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सेमीकंडक्टर और AI में निवेश करना चाहिए। साथ ही, कौशल विकास के लिए बड़े पैमाने पर डिजिटल कौशल कार्यक्रमों का विकास किया जाना चाहिए।
साइबर सुरक्षा में सुधार के लिए स्कूलों और संस्थानों में साइबर शिक्षण को अनिवार्य बनाना चाहिए।
आगे की राह
समावेशी और टिकाऊ तकनीकी विकास के लिए सभी उपायों की आवश्यकता है। भारत को अपनी तकनीकी क्षमताओं को मजबूत करने के लिए एक सुसंगत रणनीति अपनानी होगी, जिससे वह वैश्विक तकनीकी नेतृत्व की दिशा में आगे बढ़ सके।