उत्तर लेखन की रणनीति
- प्रस्तावना
- जलवायु परिवर्तन का संक्षिप्त परिचय।
- हरित अर्थव्यवस्था की परिभाषा और महत्व।
- भारत की चुनौतियाँ
- जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले प्रभाव (जैसे बाढ़, कृषि अस्थिरता)।
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना की कमी।
- नीतिगत और विनियामक अनिश्चितता।
- भारत के अवसर
- 500 GW नवीकरणीय ऊर्जा का लक्ष्य।
- हरित हाइड्रोजन और संवहनीय कृषि में प्रगति के अवसर।
- वैश्विक जलवायु वित्त और हरित वित्त तंत्र का विकास।
- नवीन वित्तपोषण और नीतिगत उपाय
- सॉवरेन ग्रीन बॉंड और अन्य वित्तीय उपाय।
- PLI योजना और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना।
- भूमि उपयोग नीतियों और EV बुनियादी ढाँचे का विस्तार।
- आगे की राह
- भारत के हरित अर्थव्यवस्था में संक्रमण का महत्व।
- जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में भारत की भूमिका।
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जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिए भारत के सामने कई चुनौतियाँ हैं। इनमें अपर्याप्त नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना, जीवाश्म ईंधन पर अत्यधिक निर्भरता, और वित्तीय बाधाएँ शामिल हैं। उदाहरण के लिए, भारत का 77% बिजली उत्पादन कोयले से होता है, जिससे हरित ऊर्जा में संक्रमण कठिन हो जाता है। इसके साथ ही, जलवायु वित्त की कमी और नीतिगत अनिश्चितताएँ भी बाधाएं उत्पन्न करती हैं।
हालांकि, इस परिवर्तन के लिए कई अवसर भी मौजूद हैं। नवीकरणीय ऊर्जा, जैसे सौर और पवन ऊर्जा में निवेश बढ़ रहा है, और हरित हाइड्रोजन तथा संवहनीय कृषि के क्षेत्र में प्रगति हो रही है।
नवीन वित्तपोषण और नीतिगत उपाय इस परिवर्तन को सुविधाजनक बना सकते हैं। उदाहरण के लिए, हरित बॉंड और ग्रीन क्रेडिट गारंटी फंड जैसे तंत्रों के माध्यम से हरित परियोजनाओं में निवेश को प्रोत्साहित किया जा सकता है। इसके अलावा, नीतियों में स्थिरता और स्पष्टता लाने से निजी निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा, जिससे हरित विकास की गति तेज होगी।