उत्तर लेखन के लिए रोडमैप
1. परिचय
- सवाल में सरकार द्वारा किए गए उपायों और घरेलू निजी क्षेत्र में निवेश में कमी के बीच के अंतर को स्पष्ट करने की आवश्यकता है।
- मुख्य उद्देश्य: भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों के बावजूद निजी क्षेत्र का निवेश क्यों प्रभावित है, इसे समझना।
2. सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का उल्लेख
- ‘मेक इन इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी योजनाओं के तहत सरकार ने निवेश को बढ़ावा देने की कोशिश की है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल को बढ़ावा देना।
- निवेश संवर्धन आयोग (FIPB) जैसी संस्थाओं के माध्यम से विदेशी और घरेलू निवेशकों को प्रोत्साहित करना।
3. घरेलू निजी क्षेत्र में निवेश में कमी के कारण
a. उच्च राज्य कर्ज का बोझ
- RBI रिपोर्ट के अनुसार, कई राज्य सरकारों का कर्ज 2018-19 में 19.1% से बढ़कर 2021-22 में 25.1% हो गया है। यह राज्य वित्तीय स्वास्थ्य को कमजोर कर रहा है और राज्य सरकारों को निवेश का अवसर सीमित कर रहा है। (Source: RBI Report)
b. राज्यों के घटते राजस्व
- राज्यों का कर राजस्व बढ़ने की बजाय घटता जा रहा है। 1955-56 में राज्यों का खुद का राजस्व 69% था, जो अब घटकर 38% रह गया है। इसकी वजह है GST के तहत टैक्स दरों में राज्य की स्वतंत्रता की कमी।
- COVID-19 महामारी ने भी राजस्व में गिरावट ला दी, जिससे राज्यों के पास निवेश के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।
c. उच्च राज्य खर्च और लोकलुभावन योजनाएँ
- राज्य सरकारें कृषि ऋण माफी, सब्सिडी, और अन्य लोकलुभावन योजनाओं में अधिक खर्च कर रही हैं, जबकि सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए आवश्यक निवेश कम हो गया है।
- अन्य क्षेत्रों में खर्च पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, यह लोकलुभावन योजनाएँ राज्य सरकारों के बजट को दबा रही हैं।
d. डिस्कॉम और कर्ज की बढ़ती समस्या
- राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMs) का कर्ज बढ़ रहा है, जिससे राज्यों का वित्तीय दबाव बढ़ा है, और यह निवेश के लिए नकारात्मक माहौल बनाता है।
e. अतिरिक्त बजटीय उधारी और कानूनी खामियाँ
- राज्य सरकारें अपनी लोकलुभावन योजनाओं को अतिरिक्त बजटीय उधारी के माध्यम से पूरा करती हैं, जो FRBM (Fiscal Responsibility and Budget Management) के दायरे से बाहर होती हैं। इससे सरकारी वित्तीय स्थिति और कमजोर होती है।
4. समाधान और सुझाव
- व्यय प्राथमिकताओं की पुनरीक्षा कर राजकोषीय अनुशासन को सुधारने की आवश्यकता है।
- सभी सरकारी देनदारियों को FRBM के तहत लाना, ताकि यह पूरी तरह से पारदर्शी हो।
- केंद्रीय योजनाओं की युक्तिकरण और राज्यों को अधिक लचीलापन देना, ताकि वे अपनी जरूरतों के अनुसार योजनाओं को लागू कर सकें।
- काली अर्थव्यवस्था पर अंकुश लगाना, ताकि सरकारी राजस्व में वृद्धि हो सके और निवेश के लिए बेहतर माहौल बने।
निष्कर्ष
- सरकार ने कई कदम उठाए हैं, लेकिन राज्य सरकारों के कर्ज के बोझ, घटते राजस्व, और उच्च खर्च जैसे कारणों ने निजी निवेश को प्रोत्साहित करने में रुकावट डाली है। यदि इन समस्याओं को हल किया जाए तो भारतीय निजी क्षेत्र में निवेश में बढ़ोतरी हो सकती है।
भारत में निवेश के उपाय
सरकार ने भारत में निवेश को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए हैं, जैसे:
निवेश में कमी के कारण
हालाँकि, घरेलू निजी क्षेत्र का निवेश लगातार कम बना हुआ है। इसके कुछ मुख्य कारण हैं:
वर्तमान स्थिति
इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए नीति में सुधार और अधिक पारदर्शिता आवश्यक है।
इस उत्तर का मूल्यांकन करते समय कुछ प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है। उत्तर में सरकार द्वारा उठाए गए उपायों का उल्लेख किया गया है, जैसे “मेक इन इंडिया” और MSME के लिए वित्तीय सहायता, लेकिन इसमें कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों और आंकड़ों का अभाव है।
मिसिंग फैक्ट्स और डेटा:
निवेश के आंकड़े: वर्तमान में घरेलू निजी क्षेत्र के निवेश की दर क्या है? पिछले वर्षों की तुलना में यह कैसे बदली है?
वैश्विक तुलना: क्या अन्य देशों में निवेश के प्रवृत्तियों की तुलना की गई है?
उद्योग विशेष डेटा: किन उद्योगों में निवेश में सबसे अधिक कमी आई है?
सरकारी नीतियों का प्रभाव: क्या सरकार की नीतियों का कोई ठोस आंकड़ा प्रस्तुत किया गया है जो उनके प्रभाव को दर्शाता हो?
Madhavi आप इस फीडबैक का भी उपयोग कर सकती हो।
उत्तर में आर्थिक अनिश्चितता, उत्पादन लागत और नियामक बाधाओं का उल्लेख किया गया है, लेकिन उदाहरणों या आंकड़ों के बिना ये बिंदु प्रभावी नहीं हैं।
सुधार के लिए सुझाव:
उत्तर में अधिक ठोस डेटा और उदाहरण शामिल करने चाहिए, जिससे तर्कों को मजबूती मिले। इसके अतिरिक्त, समस्या के समाधान के लिए विस्तृत योजनाओं का सुझाव दिया जाना चाहिए।
मॉडल उत्तर
भारत में निवेश को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, फिर भी घरेलू निजी क्षेत्र का निवेश स्थिर क्यों बना हुआ है, इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण हैं:
1. राज्य सरकारों का बढ़ता कर्ज
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों का कर्ज 2018-19 में 19.1% से बढ़कर 2021-22 में 25.1% तक पहुँच चुका है। उच्च कर्ज का बोझ राज्यों की वित्तीय स्थिति को कमजोर कर रहा है, जिससे निवेश का वातावरण प्रभावित होता है। राज्य सरकारों की कम राजकोषीय क्षमता और उच्च व्यय ने निवेश के लिए अनुकूल माहौल उत्पन्न करने में कठिनाइयाँ उत्पन्न की हैं।
2. राजस्व में गिरावट
राज्यों के खुद के राजस्व में कमी आ रही है, जो 1955-56 में 69% से घटकर 2019-20 में 38% रह गया है। इसके पीछे कर राजस्व वृद्धि की धीमी गति और GST व्यवस्था में राज्य सरकारों की स्वतंत्रता की कमी प्रमुख कारण हैं। इसके परिणामस्वरूप, राज्य अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हैं, जिससे निवेश की कमी हो रही है।
3. लोकलुभावन योजनाएँ और उच्च व्यय
राज्य सरकारों के पास सीमित वित्तीय संसाधन होते हुए भी, वे कृषि ऋण माफी, सब्सिडी जैसी लोकलुभावन योजनाओं में अधिक खर्च करती हैं। इससे अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश की कमी हो जाती है। इसके अलावा, राज्यों की बढ़ती डिस्कॉम (बिजली वितरण कंपनियों) के कर्ज ने भी इस समस्या को बढ़ाया है।
4. विकासशील क्षेत्रीय बुनियादी ढाँचे की कमी
राज्य सरकारों के पास केंद्रीय योजनाओं के लिए आवश्यक हिस्से का बजट आवंटित करने की सीमित क्षमता है। इसके परिणामस्वरूप, इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में निवेश नहीं हो पा रहा है, जो निजी निवेशकों को आकर्षित करने में बाधा डालता है।
5. अर्थव्यवस्था में असमानताएँ और काली अर्थव्यवस्था
काली अर्थव्यवस्था और कर चोरी की समस्या सरकार के राजस्व को प्रभावित करती है, जिससे सरकार की योजनाओं को लागू करने में समस्या होती है। इससे निजी निवेशक विश्वास नहीं करते और उनका निवेश संयमित रहता है।
निष्कर्ष
सरकार को व्यय प्राथमिकताओं को पुनः निर्धारित करने, राजकोषीय अनुशासन लागू करने और काली अर्थव्यवस्था पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है ताकि निवेश की अनुकूल स्थिति तैयार हो सके।