उत्तर लेखन के लिए रोडमैप
1. परिचय
- प्रश्न में राज्य की राजकोषीय स्थिरता से जुड़ी समस्याओं को समझना है, अतः उत्तर की शुरुआत इन समस्याओं के महत्त्व से करनी चाहिए।
- आप इस मुद्दे को वर्तमान संदर्भ में पेश करें, जैसे राज्य सरकारों का कर्ज बढ़ना और राजस्व में कमी आदि।
2. समस्याओं का विश्लेषण
- कर्ज का बढ़ता बोझ:
भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों का कुल कर्ज 2018-19 में 19.1 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 25.1 प्रतिशत हो गया है। कर्ज का यह बढ़ता बोझ राज्यों की वित्तीय स्थिरता के लिए खतरे का संकेत है। (Source: RBI Report) - राजस्व में गिरावट:
राज्यों के राजस्व में गिरावट आई है। 1955-56 में राज्यों का अपना राजस्व 69 प्रतिशत था, जो 2019-20 में घटकर 38 प्रतिशत रह गया। इससे राज्य सरकारों को विकास कार्यों और सामाजिक योजनाओं को लागू करने में मुश्किल हो रही है। (Source: RBI Report) - उच्च राज्य व्यय:
राज्य सरकारों की सामाजिक-आर्थिक योजनाओं, कृषि ऋण माफी, पेंशन, और अन्य लोकलुभावन योजनाओं पर अत्यधिक खर्च हो रहा है। साथ ही, ब्याज भुगतान और प्रशासनिक खर्च भी बढ़ते जा रहे हैं, जिससे वित्तीय संसाधन सीमित हो रहे हैं। (Source: RBI Report) - केंद्र प्रायोजित योजनाओं का बढ़ता बोझ:
केंद्र द्वारा शुरू की गई योजनाओं के लिए राज्य सरकारों को अपनी हिस्सेदारी देनी पड़ती है, जिससे राज्य सरकारों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
3. समाधान के उपाय
- व्यय प्राथमिकता और ऋण समेकन:
राज्य सरकारों को अपने खर्चों में प्राथमिकता तय करनी चाहिए। अत्यधिक लोकलुभावन योजनाओं पर खर्च कम करना चाहिए और वित्तीय अनुशासन बनाए रखना चाहिए। साथ ही, कर्ज समेकन के माध्यम से बेहतर राजकोषीय स्थिति बनाई जा सकती है। - केंद्र-राज्य सहयोग का सुधार:
केंद्र द्वारा राज्यों को अधिक लचीलापन दिया जाए, ताकि वे अपनी स्थानीय जरूरतों के हिसाब से योजनाओं को लागू कर सकें। केंद्र प्रायोजित योजनाओं को अधिक पारदर्शी और राज्यों के अनुकूल बनाना चाहिए। - राजस्व में वृद्धि के उपाय:
राज्यों को अपने कर-टू-जीडीपी अनुपात को बढ़ाने के लिए उपाय करना चाहिए। वर्तमान में यह अनुपात लगभग 17 प्रतिशत है, जिसे बढ़ाकर वित्तीय स्थिति को मजबूत किया जा सकता है। - काली अर्थव्यवस्था पर अंकुश:
काली अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए, ताकि अधिक राजस्व प्राप्त हो सके और राज्य सरकारों को वित्तीय संसाधन मिल सकें।
4. निष्कर्ष
- राज्य की राजकोषीय स्थिरता में सुधार के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं, जैसे कि व्यय प्राथमिकता, राजस्व में वृद्धि, और काली अर्थव्यवस्था पर अंकुश। ये उपाय राज्य सरकारों को बेहतर वित्तीय स्थिति में लाने में मदद करेंगे।
प्रासंगिक तथ्य
- कर्ज का बोझ बढ़ना: राज्यों का संचयी कर्ज 2018-19 में 19.1 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 25.1 प्रतिशत हो गया है।
- राजस्व में गिरावट: 1955-56 में राज्यों का राजस्व 69 प्रतिशत था, जो 2019-20 में घटकर 38 प्रतिशत रह गया।
- सामाजिक-आर्थिक व्यय: राज्यों का खर्च सामाजिक योजनाओं और लोकलुभावन उपायों पर अत्यधिक है, जिससे राजस्व पर दबाव बढ़ रहा है।
यह रोडमैप आपको उत्तर लिखने में मदद करेगा, जिससे आप समग्र समस्याओं और उनके समाधान पर स्पष्ट और संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कर सकेंगे।
भारत में राज्यों की राजकोषीय स्थिरता कई चुनौतियों का सामना कर रही है। कोविड-19 महामारी के दौरान कल्याणकारी उपायों के कारण राज्यों के राजस्व व्यय में 14% की वृद्धि हुई, जबकि बुनियादी ढाँचे के लिए पूंजीगत व्यय में कमी आई, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक विकास प्रभावित हुआ। मार्च 2024 तक, राज्यों का ऋण-जीडीपी अनुपात 28.5% तक पहुँच गया, जो राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन समिति द्वारा अनुशंसित 20% के स्तर से अधिक है। यह उच्च ऋण स्तर राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता को बाधित करता है।
इन समस्याओं के समाधान हेतु निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
प्रदर्शन प्रोत्साहन अनुदान लागू करने से राज्यों को वित्तीय अनुशासन में मदद मिलेगी। अंततः, वित्त आयोगों द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के आधार पर एक समग्र और प्रभावी योजना बनानी होगी।
मॉडल उत्तर
भारत में राज्यों की राजकोषीय स्थिरता , वर्तमान समस्याएं और समाधान
1. कर्ज का बढ़ता बोझ
भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, कई राज्यों जैसे पंजाब, राजस्थान, बिहार, और केरल पर भारी कर्ज का बोझ है। राज्यों का कुल कर्ज 2018-19 में 19.1 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 25.1 प्रतिशत हो गया है, जो एक चिंताजनक स्थिति है।
2. राजस्व में गिरावट
राज्यों के कर राजस्व में कमी आई है। 1955-56 में राज्यों का अपने राजस्व का हिस्सा 69 प्रतिशत था, जो 2019-20 में घटकर 38 प्रतिशत से भी कम हो गया। इसके कारण राज्यों के पास विकास कार्यों के लिए सीमित वित्तीय संसाधन हैं।
3. उच्च राज्य व्यय
राज्यों के लिए सामाजिक-आर्थिक विकास, कृषि ऋण माफी, और पेंशन जैसी लोकलुभावन योजनाओं पर उच्च खर्च किया जाता है। इसके अतिरिक्त, ब्याज भुगतान और प्रशासनिक खर्च भी बढ़ते जा रहे हैं, जिससे वित्तीय संसाधन और सीमित हो जाते हैं।
4. केंद्र प्रायोजित योजनाओं का बोझ
केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए राज्यों को अपनी हिस्सेदारी जमा करनी होती है, जिससे उनका वित्तीय बोझ बढ़ता है। इसके अलावा, राज्यों के सार्वजनिक उपक्रमों (PSUs) और अन्य संस्थाओं द्वारा लिए गए कर्ज से भी राज्य की देनदारियां बढ़ रही हैं।
समाधान
निष्कर्ष
राज्यों के वित्तीय प्रबंधन में सुधार के लिए जरूरी है कि व्यय में प्राथमिकता तय की जाए, केंद्र-राज्य सहयोग बढ़ाया जाए और राजस्व को बढ़ाने के लिए उपाय किए जाएं। इसके साथ ही काली अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करना राज्य की वित्तीय स्थिति को मजबूत कर सकता है।