उत्तर लेखन के लिए रोडमैप
1. प्रस्तावना
- NPA की परिभाषा: सबसे पहले गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की परिभाषा दीजिए। यह स्पष्ट करें कि NPA वह ऋण होते हैं जिनकी किश्तें 90 दिन से अधिक समय तक नहीं चुकाई जाती हैं (कृषि ऋणों के लिए यह अवधि फसल के मौसम के अनुसार होती है)।
- महत्व: NPA की बढ़ती समस्या बैंकिंग प्रणाली पर दबाव डालती है और आर्थिक विकास को प्रभावित करती है।
2. NPA की श्रेणियाँ
- NPA को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है:
- अवमानक परिसंपत्तियां: 12 महीने तक NPA।
- संदिग्ध परिसंपत्तियां: 12 महीने से अधिक NPA।
- हानि वाली परिसंपत्तियां: जिन्हें बैंक या लेखा परीक्षकों द्वारा हानिपूर्ति के रूप में माना जाता है।
3. भारत में NPA की समस्या
- आंकड़े: RBI के आंकड़ों के अनुसार, 2021 तक भारत में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की सकल NPA ₹8 ट्रिलियन तक पहुंच गई थी, जो 2014 से दोगुना हो गई थी।
- प्रभाव: बढ़ते NPA बैंकों की पूंजीकरण पर दबाव डालते हैं, जिससे ऋण देने की क्षमता प्रभावित होती है। साथ ही, वित्तीय प्रणाली की स्थिरता पर खतरा उत्पन्न होता है।
4. NPA की समस्या के समाधान के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास
- पहचान
- Asset Quality Review (AQR): 2015 में RBI ने पारदर्शी तरीके से NPA की पहचान के लिए AQR की शुरुआत की। इसके तहत बैंकों को NPAs को सही तरीके से वर्गीकृत करने का निर्देश दिया गया।
- CRILC (Central Repository of Information on Large Credits): एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनाया गया ताकि ऋणों के संकट के संकेतों को पहले से पहचाना जा सके।
- बैंकों का पुनर्पूंजीकरण
- मिशन इंद्रधनुष: 2015 में राज्य संचालित बैंकों में ₹3 ट्रिलियन से अधिक का निवेश किया गया ताकि उनकी पूंजी पर्याप्तता सुनिश्चित की जा सके।
- NARCL (Bad Bank): 2021 में एनएआरसीएल की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य ₹2 लाख करोड़ के फंसे ऋणों का समाधान करना था।
- दिवालियेपन का समाधान
- IBC: 2016 में IBC लागू किया गया, जिसके तहत दिवालिया खातों को 180 दिन में निपटाने की प्रक्रिया तय की गई।
- प्रोजेक्ट सशक्त: 50 करोड़ से ऊपर के बैड लोन के समाधान के लिए अंतर-ऋणदाता समझौते और विशेष परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियां स्थापित करने का प्रस्ताव।
- सुधार
- PCA (Prompt Corrective Action): कमजोर वित्तीय स्थिति वाले बैंकों के लिए त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई का उपाय।
- ऋण जोखिम प्रबंधन: ऋणों के प्रबंधन के लिए नए उपायों को लागू किया गया, जैसे उच्चतर प्रावधानों की आवश्यकता और तीसरे पक्ष के डेटा स्रोतों का उपयोग।
5. निष्कर्ष
- NPA की समस्या पर काबू पाने के लिए सरकार ने एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया है जिसमें पहचान, पुनर्पूंजीकरण, दिवालिया समाधान और सुधार की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं।
- NPA की समस्या को हल करने के लिए निरंतर प्रयास और बैंकिंग सुधार की आवश्यकता है, ताकि भारतीय बैंकिंग प्रणाली को मजबूत किया जा सके और आर्थिक विकास में योगदान बढ़ाया जा सके।
प्रासंगिक तथ्य
- RBI की रिपोर्ट: वर्ष 2021 में सकल NPA ₹8 ट्रिलियन तक पहुंच गई थी।
- मिशन इंद्रधनुष: 2015 में ₹3 ट्रिलियन से अधिक का निवेश किया गया था।
- NARCL (Bad Bank): 2021 में ₹2 लाख करोड़ के फंसे हुए ऋणों का समाधान करने के लिए NARCL का गठन किया गया।
- IBC (Insolvency and Bankruptcy Code): 2016 में लागू किया गया था ताकि दिवालिया खातों के समाधान के लिए 180 दिनों का समय सीमा तय की जा सके।
- प्रोजेक्ट सशक्त: ₹50 करोड़ तक के बैड लोन के लिए बैंक स्तर पर समाधान किया जाएगा।
गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets – NPAs) वे ऋण हैं, जिनमें उधारकर्ता द्वारा 90 दिनों से अधिक समय तक ब्याज या मूलधन का भुगतान नहीं किया गया है। इससे बैंक की आय प्रभावित होती है और वित्तीय स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
भारत में NPAs की समस्या से निपटने के लिए सरकार द्वारा किए गए हालिया प्रयास:
इन उपायों के माध्यम से, सरकार ने बैंकों की वित्तीय सेहत में सुधार लाने और NPAs की समस्या को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (NPAs) वे ऋण हैं, जिनमें उधारकर्ता द्वारा 90 दिनों से अधिक समय तक ब्याज या मूलधन का भुगतान नहीं किया गया है। NPAs का बढ़ता स्तर बैंकों की आय को प्रभावित करता है और वित्तीय स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है .
हाल के समय में भारत में NPAs की समस्या को हल करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास निम्नलिखित हैं:
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) का पुनर्पूंजीकरण: सरकार ने PSBs में पूंजी निवेश करके उनकी वित्तीय स्थिति को मजबूत किया है, जिससे वे अपने बैलेंस शीट को सुधार सकें और ऋण देने की क्षमता बढ़ा सकें.
दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016: इस कानून के माध्यम से, ऋण वसूली की प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाया गया है, जिससे बैंकों को अपने फंसे हुए ऋणों की वसूली में सहायता मिली है.
संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (ARCs) का उपयोग: बैंकों ने अपने खराब ऋणों को ARCs को बेचकर अपने बैलेंस शीट को साफ किया है, जिससे वे नए ऋण देने में सक्षम हो सके हैं .
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बैंकों के विलय: सरकार ने PSBs के विलय के माध्यम से उनकी कार्यक्षमता और प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि की है, जिससे NPAs के प्रबंधन में सुधार हुआ है .
इन उपायों के माध्यम से, सरकार ने बैंकों की वित्तीय सेहत में सुधार लाने और NPAs की समस्या को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets – NPAs) वे ऋण या अग्रिम हैं, जिनमें उधारकर्ता द्वारा 90 दिनों से अधिक समय तक ब्याज या मूलधन का भुगतान नहीं किया गया है। इससे बैंक की आय प्रभावित होती है और उनकी वित्तीय स्थिति कमजोर होती है।
भारत में NPAs की समस्या से निपटने के लिए सरकार द्वारा किए गए हालिया प्रयास:
इन उपायों के माध्यम से, सरकार ने बैंकों की वित्तीय सेहत में सुधार लाने और NPAs की समस्या को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
उत्तर में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) की परिभाषा स्पष्ट रूप से दी गई है, जो इसे समझने में मदद करती है। हालाँकि, उत्तर में कुछ महत्वपूर्ण डेटा और तथ्यों की कमी है। उदाहरण के लिए, यह उल्लेख करना आवश्यक है कि भारत में NPAs की कुल राशि कितनी है और यह पिछले कुछ वर्षों में कैसे बढ़ी है। 2021-22 में, NPAs का स्तर लगभग 8% था, जो महत्वपूर्ण है।
सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की सूची में “4R रणनीति” का उल्लेख उपयोगी है, लेकिन इसे विस्तार से समझाया जा सकता था। विशेष रूप से, “संकल्प” और “सुधार” के तहत किन विशिष्ट योजनाओं या सुधारों का उल्लेख किया गया है, यह स्पष्ट नहीं है।
इसके अलावा, NARCL के गठन के बारे में अधिक जानकारी दी जा सकती थी, जैसे कि इससे बैंकों को किस प्रकार की सहायता मिल रही है।
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अंत में, उत्तर में NPAs के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय उदाहरण या सफलताएँ जोड़ना भी सहायक हो सकता था। इस प्रकार, उत्तर को डेटा और उदाहरणों के साथ और अधिक समृद्ध किया जा सकता है।
गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (Non-Performing Assets – NPAs) वे ऋण या अग्रिम हैं, जिनमें उधारकर्ता द्वारा 90 दिनों से अधिक समय तक ब्याज या मूलधन का भुगतान नहीं किया गया है। इससे बैंक की आय प्रभावित होती है और उनकी वित्तीय स्थिति कमजोर होती है।
भारत में NPAs की समस्या से निपटने के लिए सरकार द्वारा किए गए हालिया प्रयास:
इन उपायों के माध्यम से, सरकार ने बैंकों की वित्तीय सेहत में सुधार लाने और NPAs की समस्या को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
यह उत्तर NPAs की परिभाषा और उनके समाधान के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को ठीक से प्रस्तुत करता है। दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 4R रणनीति, और राष्ट्रीय संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी लिमिटेड (NARCL) जैसे उपायों का उल्लेख अच्छा है। ये कदम NPAs से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
हालांकि, उत्तर में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों की कमी है। उदाहरण के लिए, भारत में NPAs का सकल अनुपात 2018 में लगभग 11.5% था, जो एक महत्वपूर्ण डेटा है। इसके अलावा, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए 2017 में 2.11 लाख करोड़ रुपये और 2020 में 20,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश किया गया था, जो NPAs के प्रबंधन में मदद करता है। इन आंकड़ों का उल्लेख उत्तर को अधिक सटीक और विश्वसनीय बना सकता था।
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इसके अलावा, उत्तर में NPAs के कारणों का भी विस्तार से वर्णन किया जा सकता था, जैसे बैंकों द्वारा गलत ऋण मूल्यांकन, खराब सरकारी नीति, और कर्जदारों की अधिक उधारी, जो NPAs के निर्माण में योगदान करते हैं।
मॉडल उत्तर
गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (NPA) क्या होती हैं?
गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (NPA) वे ऋण या अग्रिम होते हैं जो बैंकों द्वारा दिए गए होते हैं, लेकिन जिनकी किश्तों का भुगतान समय पर नहीं किया जाता है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार, एक ऋण को NPA तब माना जाता है जब भुगतान की तारीख के बाद 90 दिन से अधिक समय तक मूलधन या ब्याज का भुगतान नहीं किया जाता। कृषि ऋणों के लिए यह अवधि फसल के मौसम के आधार पर निर्धारित होती है। NPA को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है:
भारत में NPA की समस्या और सरकार के प्रयास
भारत में, 2021 तक बैंकों का सकल NPA स्तर ₹8 ट्रिलियन तक पहुंच चुका था, जो 2014 के बाद से दोगुना हो गया था। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार ने कई उपाय किए हैं:
1. पहचान
RBI ने 2015 में Asset Quality Review शुरू किया, जिसके तहत बैंकों को NPAs की पहचान पारदर्शी तरीके से करने का आदेश दिया। इसके अलावा, केंद्रीय ऋण डेटाबेस CRILC भी बनाया गया ताकि उधारकर्ताओं के संकट के संकेतों को समय से पहचाना जा सके।
2. बैंकों का पुनर्पूंजीकरण
2015 में शुरू किए गए मिशन इंद्रधनुष के तहत राज्य संचालित बैंकों में ₹3 ट्रिलियन से अधिक की पूंजी डाली गई। इसके अतिरिक्त, NARCL (Bad Bank) का गठन किया गया, जो लगभग ₹2 लाख करोड़ के फंसे हुए ऋणों का समाधान करेगा।
3. दिवालियेपन का समाधान
IBC (Insolvency and Bankruptcy Code) के तहत दिवालिया खातों के समाधान के लिए 180 दिन का समय निर्धारित किया गया। प्रोजेक्ट सशक्त के तहत बड़े बैड लोन का समाधान करने के लिए एक विशेष प्रबंधन संरचना बनाई गई।
4. सुधार
ऋण जोखिम प्रबंधन को सुधारने के लिए RBI ने कई नए विनियामक कदम उठाए हैं, जैसे त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) और बड़े ऋणों के लिए उच्चतर निगरानी उपाय।
इन प्रयासों से NPAs की समस्या पर काबू पाया जा सकता है और भारतीय बैंकिंग प्रणाली की स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सकता है।