उत्तर लिखने के लिए रोडमैप
1. प्रस्तावना
- सार्वजनिक ऋण का सामान्य अर्थ: जब सरकार अपने खर्चों को पूरा करने के लिए आंतरिक (बैंक, वित्तीय संस्थाएं) और बाह्य (विदेशी ऋण) स्रोतों से धन उधार लेती है, तो उसे सार्वजनिक ऋण कहते हैं।
- सवाल का उद्देश्य: इस प्रश्न में हमें सार्वजनिक ऋण के महत्व और उच्च सार्वजनिक ऋण के कारण चिंता को समझना है, विशेषकर भारत के संदर्भ में।
2. सार्वजनिक ऋण की परिभाषा
- सार्वजनिक ऋण: यह वह ऋण होता है जो सरकार द्वारा लिया जाता है और जो उसे ब्याज सहित चुकाना होता है।
- ऋण के प्रकार: आंतरिक (सरकारी बॉन्ड्स, अन्य घरेलू उधारी) और बाह्य (विदेशी ऋण, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं)।
3. उच्च सार्वजनिक ऋण की चिंता
- ब्याज का बोझ: उच्च ऋण का मुख्य मुद्दा ब्याज का भुगतान होता है, जो सरकारी वित्त पर दबाव डालता है।
- सामाजिक सेवाओं में कटौती: उच्च ऋण की स्थिति में सरकार को अन्य सामाजिक सेवाओं में खर्च घटाना पड़ता है।
- सांस्कृतिक प्रभाव: उच्च ऋण विदेशी सरकारों और संस्थाओं पर निर्भरता बढ़ाता है।
- मुद्रास्फीति और आर्थिक असंतुलन: अधिक ऋण के कारण मुद्रा की आपूर्ति बढ़ने से मुद्रास्फीति हो सकती है।
4. भारत के संदर्भ में उच्च सार्वजनिक ऋण
- भारत का सार्वजनिक ऋण: 2023-24 में भारत का सार्वजनिक ऋण लगभग 90% जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के आसपास था।
- ब्याज का बोझ: 2023-24 में भारत का ब्याज भुगतान ₹10.8 लाख करोड़ से अधिक अनुमानित था, जो कि बजट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- सरकारी खर्च और ऋण का संतुलन: सरकार को ऋण लेने की मजबूरी होती है, लेकिन इसे नियंत्रित करना जरूरी है ताकि यह विकासात्मक कार्यों के लिए उपयोगी हो।
5. समाधान और निष्कर्ष
- सार्वजनिक ऋण प्रबंधन: सरकार को सार्वजनिक ऋण का संतुलित प्रबंधन करना चाहिए, जैसे कि दीर्घकालिक ऋण और लागत कम करने की रणनीतियाँ।
- आर्थिक सुधार: अधिक राजस्व संग्रहण और खर्चों को बेहतर तरीके से नियोजित करना।
- निष्कर्ष: उच्च सार्वजनिक ऋण चिंता का कारण है, लेकिन इसे नियंत्रित रूप से प्रबंधित किया जा सकता है, ताकि यह विकासात्मक उद्देश्य पूरा कर सके।
तथ्य
- भारत का सार्वजनिक ऋण:
- 2023-24 में भारत का सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 90% के आस-पास था (भारतीय रिजर्व बैंक, 2023)। यह उच्च सार्वजनिक ऋण की चिंता का प्रमुख कारण है।
- ब्याज भुगतान:
- 2023-24 के केंद्रीय बजट में ₹10.8 लाख करोड़ से अधिक का ब्याज भुगतान अनुमानित था, जो सरकारी खर्च का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- भारत के ऋण का बाह्य हिस्सा:
- भारत का बाह्य ऋण कुल सार्वजनिक ऋण का लगभग 20% है, जबकि 80% ऋण आंतरिक स्रोतों से लिया जाता है।
- आर्थिक संकट का प्रभाव:
- अत्यधिक सार्वजनिक ऋण बढ़ने पर भारत को वित्तीय संकट, मुद्रास्फीति और विकास दर में कमी का सामना करना पड़ सकता है।
सार्वजनिक ऋण वह धनराशि है, जो सरकारें अपने खर्चों की पूर्ति हेतु उधार लेती हैं। यह आंतरिक (देश के भीतर) और बाह्य (विदेशी स्रोतों से) दोनों प्रकार का हो सकता है। उच्च सार्वजनिक ऋण चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि इससे सरकार की वित्तीय स्थिरता प्रभावित होती है। बढ़ते ऋण के साथ ब्याज भुगतान का बोझ बढ़ता है, जिससे विकासात्मक कार्यों के लिए उपलब्ध संसाधन कम हो जाते हैं।
भारत के संदर्भ में, सार्वजनिक ऋण का उच्च स्तर कई चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। बढ़ते ऋण के कारण सरकार को अपने बजट का बड़ा हिस्सा ब्याज भुगतान में खर्च करना पड़ता है, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निवेश सीमित हो जाता है। इसके अतिरिक्त, उच्च ऋण स्तर के चलते सरकार को नए ऋण लेने में कठिनाई हो सकती है, जिससे आपातकालीन स्थितियों में वित्तीय लचीलापन कम हो जाता है। अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियाँ भी उच्च सार्वजनिक ऋण को नकारात्मक रूप से देखती हैं, जिससे विदेशी निवेश प्रभावित हो सकता है।
इसलिए, भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने सार्वजनिक ऋण को नियंत्रित रखते हुए राजकोषीय अनुशासन बनाए रखे, ताकि आर्थिक विकास सुगम हो और वित्तीय स्थिरता बनी रहे।
सार्वजनिक ऋण की समझ
सार्वजनिक ऋण वह राशि है, जो सरकारें अपने खर्चों और विकासात्मक परियोजनाओं के लिए उधार लेती हैं। यह आंतरिक (देश के भीतर) और बाह्य (विदेशी स्रोतों से) दोनों प्रकार का हो सकता है।
उच्च सार्वजनिक ऋण: चिंता के कारण
भारत के संदर्भ में
निष्कर्ष
भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने सार्वजनिक ऋण को नियंत्रित रखते हुए राजकोषीय अनुशासन बनाए रखे, ताकि आर्थिक विकास सुगम हो और वित्तीय स्थिरता बनी रहे।
सार्वजनिक ऋण वह धनराशि है, जो सरकारें अपने खर्चों और विकासात्मक परियोजनाओं के लिए उधार लेती हैं। यह आंतरिक (देश के भीतर) और बाह्य (विदेशी स्रोतों से) दोनों प्रकार का हो सकता है।
उच्च सार्वजनिक ऋण: चिंता के कारण
भारत के संदर्भ में
इसलिए, भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने सार्वजनिक ऋण को नियंत्रित रखते हुए राजकोषीय अनुशासन बनाए रखे, ताकि आर्थिक विकास सुगम हो और वित्तीय स्थिरता बनी रहे।
मॉडल उत्तर
सार्वजनिक ऋण वह ऋण होता है जो सरकार द्वारा विभिन्न स्रोतों से लिया जाता है। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों की कुल देयताएं शामिल होती हैं, जिन्हें भुगतान के लिए सरकार अपनी संचित निधि का उपयोग करती है। सार्वजनिक ऋण के प्रमुख स्रोतों में सरकारी अतिभूतियां (G-Secs), ट्रेजरी विल, बाह्य सहायता और उधार शामिल हैं।
उच्च सार्वजनिक ऋण क्यों चिंता का कारण है?
उच्च सार्वजनिक ऋण का बोझ कई कारणों से चिंता का विषय बन सकता है:
भारत में सार्वजनिक ऋण की स्थिति
भारत का सार्वजनिक ऋण लगातार बढ़ रहा है। 2011-12 में यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 51.8% था, जो 2020-21 में बढ़कर 58.8% हो गया। उच्च सार्वजनिक ऋण से सरकार को ब्याज भुगतान की चिंता होती है, और इसका असर देश की आर्थिक विकास दर और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर भी पड़ता है।
भारत जैसे उभरते देशों में सार्वजनिक ऋण को संतुलित करना एक चुनौती है। सरकार को विकास के लिए पर्याप्त वित्त की आवश्यकता होती है, लेकिन उच्च ऋण और ब्याज दरों से निजी निवेश और आर्थिक वृद्धि में कमी आ सकती है।