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परिचय
असहयोग आंदोलन 1920-22 में महात्मा गांधी द्वारा नेतृत्व किया गया था, जिसका उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता को अहिंसक तरीकों से प्राप्त करना था। लेकिन गांधीजी द्वारा अचानक आंदोलन को वापस लिए जाने के बाद कई क्रांतिकारी समूहों में असंतोष और मोहभंग उत्पन्न हुआ, जिसके कारण 1920 के दशक में क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि हुई।
मुख्य शरीर :
- असहयोग आंदोलन के अचानक वापस लेने से मोहभंग
- कारण: गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया गया, जिससे क्रांतिकारियों का विश्वास टूट गया। उन्हें यह लगा कि अहिंसक तरीके से स्वतंत्रता प्राप्त करना संभव नहीं है, और उन्होंने अन्य विकल्प तलाशने शुरू कर दिए।
- उदाहरण: भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों ने हिंसक रास्ते को अपनाना शुरू किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की योजना बनाई।
- युवाओं में बढ़ता असंतोष और हिंसक संघर्ष की ओर आकर्षण
- कारण: युवा राष्ट्रवादी केवल शांतिपूर्ण असहमति में विश्वास नहीं करते थे। वे यह मानते थे कि केवल हिंसक संघर्ष ही स्वतंत्रता दिला सकता है।
- उदाहरण: हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) जैसे क्रांतिकारी समूहों का गठन, जिनमें भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव जैसे नेता शामिल थे।
- रूसी क्रांति का प्रभाव
- कारण: 1917 में रूस में हुई क्रांति ने भारतीय क्रांतिकारियों को प्रेरित किया। रूस की समाजवादी क्रांति ने मार्क्सवाद और साम्यवाद के विचारों को फैलाया, जिससे भारतीय क्रांतिकारियों में नए क्रांतिकारी विचार उभरे।
- उदाहरण: भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन और समाजवादी विचारधारा का प्रसार हुआ, जिससे और अधिक क्रांतिकारी समूह बने।
- श्रमिक और किसान आंदोलनों का उभार
- कारण: विश्व युद्ध के बाद मजदूर वर्ग में असंतोष बढ़ा और उन्होंने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई। यह क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए एक नया प्रेरणा स्रोत बना।
- उदाहरण: बंगाल और पंजाब में किसान आंदोलन और मज़दूरों के हड़तालों ने क्रांतिकारियों को प्रभावित किया।
- क्रांतिकारी साहित्य का प्रभाव
- कारण: क्रांतिकारी साहित्य ने युवाओं में वीरता और आत्मबलिदान की भावना जागृत की। यह साहित्य युवा क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।
- उदाहरण: ‘आत्मशक्ति’, ‘सारथी’ जैसी पत्रिकाओं और शरत चंद्र चट्टोपाध्याय की ‘पाथेर दाबी’ जैसी पुस्तकों ने क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ावा दिया।
- सामूहिक क्रियाओं की ओर रुझान
- कारण: व्यक्तिगत कार्यों के बजाय सामूहिक क्रियाओं पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसका उद्देश्य युवा पीढ़ी को एक दिशा देना और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एकजुट करना था।
- उदाहरण: चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों ने सरकारी संस्थाओं को लक्षित करने के लिए सामूहिक क्रियाओं को प्राथमिकता दी।
निष्कर्ष :
असहयोग आंदोलन के समाप्त होने और उससे उत्पन्न मोहभंग के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों का उभार हुआ। रूस क्रांति, मजदूर आंदोलनों और क्रांतिकारी साहित्य ने भारतीय युवाओं को प्रभावित किया और वे अब हिंसक संघर्ष के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए प्रेरित हुए।
प्रासंगिक तथ्य :
- असहयोग आंदोलन का अचानक वापस लिया जाना (1922): गांधीजी द्वारा आंदोलन वापस लेने से क्रांतिकारियों में निराशा और असंतोष।
- हिंसक संघर्ष की ओर रुझान: युवा क्रांतिकारियों का हिंसक तरीकों को अपनाना, जैसे भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद का HSRA में शामिल होना।
- रूसी क्रांति (1917) का प्रभाव: मार्क्सवाद और समाजवाद के विचारों का प्रसार।
- मजदूर और किसान आंदोलन: विश्व युद्ध के बाद भारतीय मजदूर वर्ग और किसानों का उभार।
- क्रांतिकारी साहित्य का प्रभाव: ‘आत्मशक्ति’, ‘सारथी’ जैसी पत्रिकाएं और ‘पाथेर दाबी’ जैसी पुस्तकें।
- सामूहिक क्रियाएं: भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सूर्य सेन जैसी क्रांतिकारी गतिविधियों में सामूहिक क्रियाओं पर जोर।
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मॉडल उत्तर
असहयोग आंदोलन (1920-22) के असफल होने के बाद भारत में क्रांतिकारी गतिविधियाँ फिर से उभरीं। गांधीजी के अहिंसक आंदोलन को वापस लिए जाने के बाद, कई युवा राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी आंदोलनों की ओर आकर्षित हुए। विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों ने क्रांतिकारी गतिविधियों को प्रोत्साहित किया, जिससे भारत में स्वतंत्रता संग्राम के एक नए रूप की शुरुआत हुई।
1. असहयोग आंदोलन का अचानक समापन (Sudden Withdrawal of the Non-Cooperation Movement)
असहयोग आंदोलन को अचानक समाप्त करने से कई क्रांतिकारियों का विश्वास टूट गया। यह आंदोलन सफल नहीं हो सका, और इसके नेतृत्व ने अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया। इससे क्रांतिकारी विचारधारा को बढ़ावा मिला, क्योंकि अब युवा नेताओं को अहिंसा से अधिक हिंसक संघर्ष का मार्ग दिखा।
2. युवा राष्ट्रवादियों की असंतुष्टि (Dissatisfaction of Young Nationalists)
कई युवा राष्ट्रवादी स्वराजवादियों और अपरिवर्तनकारियों के संसद में काम करने से संतुष्ट नहीं थे। वे यह मानते थे कि केवल हिंसक तरीके ही भारत को स्वतंत्र करा सकते हैं। इसने क्रांतिकारी गतिविधियों को पुनः सक्रिय किया और हिंसा के माध्यम से स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ाए गए।
3. मजदूर वर्ग और ट्रेड यूनियन का उभार (Rise of Labor Movements and Trade Unions)
प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारत में मजदूर वर्ग का आन्दोलित होना और ट्रेड यूनियनवाद का उभार हुआ, जिससे क्रांतिकारी गतिविधियों को एक नई दिशा मिली। कई क्रांतिकारी नेता अब इन नए वर्गों को जोड़कर आंदोलन को और तेज़ करने के लिए प्रेरित हुए।
4. रूसी क्रांति का प्रभाव (Impact of the Russian Revolution)
रूसी क्रांति (1917) ने वैश्विक स्तर पर समाजवाद और मार्क्सवाद के सिद्धांतों को प्रोत्साहित किया। इसने भारत में उभरते हुए साम्यवादी समूहों को प्रभावित किया और क्रांतिकारी गतिविधियों में तेजी लाई। युवा सोवियत राज्य की सफलता ने भारत में क्रांतिकारी समूहों को एक नई दिशा दी।
5. क्रांतिकारी साहित्य का प्रसार (Spread of Revolutionary Literature)
साहित्य और पत्रकारिता का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, जिसमें आत्म-बलिदान और क्रांतिकारी कार्यों की प्रशंसा की जाती थी। पत्रिकाएँ जैसे “आत्मशक्ति”, “सारथी” और शरत चंद्र चटर्जी की “पाथेर दाबी” ने युवाओं को प्रेरित किया और उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के लिए उत्साहित किया।
6. व्यक्तिगत वीरता और सामूहिक कार्रवाई (Individual Heroism and Collective Action)
क्रांतिकारी गतिविधियों का एक प्रमुख पहलू यह था कि व्यक्तिगत वीरता को बढ़ावा दिया गया। इसके साथ ही, सामूहिक कार्रवाई पर भी जोर दिया गया, जहां औपनिवेशिक राज्य के अंगों को लक्षित कर युवाओं को एक उदाहरण प्रस्तुत किया गया।
7. नए क्रांतिकारी समूहों का गठन (Formation of New Revolutionary Groups)
असहयोग आंदोलन के बाद, कई नए क्रांतिकारी समूहों का गठन हुआ। इन समूहों ने भूमिगत गतिविधियों को तेज़ किया और सरकारी दमन के बावजूद अपने आंदोलनों को जारी रखा। सूर्य सेन का चटगांव समूह एक प्रमुख उदाहरण है।
निष्कर्ष (Conclusion)
असहयोग आंदोलन के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों के उभरने के पीछे कई कारक थे, जैसे गांधीजी द्वारा आंदोलन की वापसी, युवा राष्ट्रवादियों का असंतोष, मजदूर वर्ग का उभार, रूसी क्रांति का प्रभाव और क्रांतिकारी साहित्य का प्रसार। इन सभी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नए, अधिक उग्र और हिंसक दिशा में क्रांतिकारी गतिविधियों को प्रेरित किया।
असहयोग आंदोलन (1920-1922) की समाप्ति के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि के कई कारण थे:
1. आंदोलन की अचानक समाप्ति:
2. ब्रिटिश दमनकारी नीतियाँ:
3. अंतर्राष्ट्रीय क्रांतियों से प्रेरणा:
4. क्रांतिकारी साहित्य का प्रभाव:
5. क्रांतिकारी संगठनों की स्थापना:
इन सभी कारणों से असहयोग आंदोलन के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
असहयोग आंदोलन (1920-1922) की समाप्ति के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि के कई कारण थे:
1. आंदोलन की अचानक समाप्ति:
2. ब्रिटिश दमनकारी नीतियाँ:
3. अंतर्राष्ट्रीय क्रांतियों से प्रेरणा:
4. क्रांतिकारी साहित्य का प्रभाव:
5. क्रांतिकारी संगठनों की स्थापना:
इन सभी कारणों से असहयोग आंदोलन के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
असहयोग आंदोलन (1920-1922) की अचानक समाप्ति के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि हुई। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
इन सभी कारणों से असहयोग आंदोलन के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।