संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास समाधान नेटवर्क के अनुसार सुखदायिता के समर्थक प्रमुख सूचकों की समीक्षात्मक आलोचना कीजिये। [64वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2018]
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संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास समाधान नेटवर्क (UNSDSN) के अनुसार, 2019 की रिपोर्ट “Beyond Income, Beyond Averages, Beyond Today” ने विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है आय, औसत और वर्तमान स्थिति के परे जाकर टिकाऊ विकास के नए दृष्टिकोणों की आवश्यकता। इस रिपोर्ट का उद्देश्य यह था कि यह केवल आर्थिक प्रगति नहीं, बल्कि पर्यावरणीय, सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का भी समाधान प्रदान करने की दिशा में काम करे।
प्रमुख सूचकों की आलोचनात्मक समीक्षा
रिपोर्ट में जिन प्रमुख सूचकों का उल्लेख किया गया, उनमें “आय”, “औसत”, और “वर्तमान स्थिति” की सीमाओं को पहचानने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। उदाहरण के तौर पर, यदि केवल आय को मापा जाता है तो यह सामाजिक असमानताओं और अन्य गैर-आर्थिक पहलुओं को नजरअंदाज कर सकता है। रिपोर्ट ने यह भी बताया कि दुनिया में 10% लोग अत्यधिक गरीबी में जी रहे हैं, और महामारी के कारण कुछ क्षेत्रों में प्रगति रुक गई है।
आय सूचकांक की सीमाएँ
आय सूचकांक केवल आर्थिक स्वास्थ्य का संकेतक हो सकता है, लेकिन यह शोषण, असमानता और पर्यावरणीय संकटों को नजरअंदाज करता है। यह ध्यान में रखना जरूरी है कि आय का वृद्धि सामाजिक विकास के लिए पर्याप्त नहीं है, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और समानता जैसे तत्वों पर भी ध्यान देना आवश्यक है।
औसत और समानता
औसत पर आधारित सूचकांक से कभी-कभी यह छिप जाता है कि असमानताएँ गहरी होती हैं, जैसे कि कुछ देशों में स्वास्थ्य, शिक्षा, और संसाधनों की असमान उपलब्धता। रिपोर्ट के अनुसार, कई देशों में संसाधनों की कमी के कारण टिकाऊ विकास की प्रक्रिया बाधित हो रही है।
रिपोर्ट की आलोचना
इस रिपोर्ट का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह रिपोर्ट अधिकतर केवल आंकड़ों और सिद्धांतों पर आधारित है, और इसे व्यवहारिक रूप में लागू करने में चुनौतियाँ हैं। उदाहरण के लिए, सस्टेनेबल विकास के लिए पूंजी निवेश की बात की गई है, लेकिन गरीब देशों के पास इसका वित्तीय संसाधन नहीं होता। यही कारण है कि सुधार और कार्यान्वयन के बीच एक बड़ा अंतर बना रहता है।
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र टिकाऊ विकास समाधान नेटवर्क की रिपोर्ट ने कई आवश्यक पहलुओं की पहचान की है, लेकिन इन बदलावों को लागू करने के लिए अधिक सटीक, व्यवहारिक और स्थानीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है। आर्थिक असमानता, पर्यावरणीय संकट और सामाजिक समस्याओं का समाधान एक समग्र और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से ही संभव होगा।