केंद्र प्रायोजित योजनाएँ, केंद्र और राज्यों के बीच हमेशा विवाद का मुद्दा रही हैं। प्रासंगिक उदाहरणों का हवाला देते हुए चर्चा करें। [63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2017]
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केंद्र प्रायोजित योजनाएँ और उनके विवाद
केंद्र प्रायोजित योजनाएँ (Centrally Sponsored Schemes – CSS) वे योजनाएँ होती हैं जो भारतीय सरकार (केंद्र सरकार) द्वारा राज्यों में लागू करने के लिए निर्धारित की जाती हैं। इन योजनाओं के तहत केंद्र सरकार राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, लेकिन इनमें से अधिकांश योजनाओं के संचालन और कार्यान्वयन का जिम्मा राज्यों पर होता है। हालांकि, इन योजनाओं के लागू करने के तरीके और उनके फंडिंग मॉडल को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवाद उठते रहते हैं।
केंद्र और राज्यों के बीच विवाद
केंद्र प्रायोजित योजनाओं को लेकर राज्य सरकारों का अक्सर यह आरोप होता है कि केंद्र सरकार इन योजनाओं को लागू करते समय राज्यों की वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता में हस्तक्षेप करती है। इसके परिणामस्वरूप, राज्यों को इन योजनाओं को लागू करने में कई बार कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
1. वित्तीय हस्तक्षेप:
केंद्र प्रायोजित योजनाओं में आमतौर पर केंद्र और राज्य के बीच एक साझेदारी होती है, जिसमें केंद्र सरकार राज्य को एक निश्चित प्रतिशत राशि प्रदान करती है। हालाँकि, केंद्र द्वारा योजनाओं के लिए निर्धारित बजट और फंडिंग का राज्यों की वास्तविक जरूरतों से मेल न खाना विवाद का कारण बनता है।
उदाहरण:
2. राज्य सरकारों की स्वायत्तता पर असर:
केंद्र प्रायोजित योजनाएँ अक्सर राज्यों को एक विशेष तरीके से कार्य करने के लिए बाध्य करती हैं। इससे राज्यों की स्वायत्तता पर असर पड़ता है, क्योंकि उन्हें केंद्र की तय की गई शर्तों और दिशा-निर्देशों का पालन करना पड़ता है, भले ही ये उनके स्थानीय परिस्थितियों और आवश्यकताओं से मेल न खाते हों।
उदाहरण:
केंद्र सरकार द्वारा सुधार की कोशिशें
केंद्र सरकार ने इन विवादों के समाधान के लिए कई प्रयास किए हैं। नीति आयोग के माध्यम से राज्यों को अधिक वित्तीय और प्रशासनिक स्वतंत्रता देने की दिशा में कदम उठाए गए हैं।
1. केंद्र प्रायोजित योजनाओं में सुधार:
नीति आयोग ने 2015 में एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें केंद्र प्रायोजित योजनाओं की संख्या को कम करने और उन्हें राज्य की प्राथमिकताओं के अनुसार लचीला बनाने की सिफारिश की थी। इस सुधार के तहत कुछ योजनाओं को राज्यों के स्वामित्व में दिया गया और कुछ योजनाओं को साझा फंडिंग मॉडल के तहत लागू किया गया।
2. फंडिंग का पुनर्वितरण:
नीति आयोग ने राज्यों को अधिक वित्तीय सहायता देने के लिए योजना बनाई है ताकि वे अपनी आवश्यकताओं के अनुसार योजनाओं को लागू कर सकें और केंद्र सरकार से केवल मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें।
केंद्र प्रायोजित योजनाओं के फायदे और नुकसान
फायदे:
उदाहरण: मातृ-शिशु स्वास्थ्य योजना, जो पूरे देश में मातृ और शिशु स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए काम करती है।
नुकसान:
निष्कर्ष
केंद्र प्रायोजित योजनाएँ केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और वित्तीय सहायता का एक महत्वपूर्ण जरिया हैं। हालांकि, इनके कार्यान्वयन में केंद्र और राज्यों के बीच विवाद उत्पन्न होता है। इसके बावजूद, केंद्र सरकार द्वारा की गई सुधारात्मक पहलें और नीति आयोग का मार्गदर्शन इन विवादों को सुलझाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। राज्यों को अपनी वास्तविक जरूरतों के अनुसार योजनाओं में अधिक लचीलापन और स्वतंत्रता मिलनी चाहिए ताकि योजनाओं का अधिक प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन हो सके।