पटना कलाम चित्रकला शैली की मुख्य विशेषताओं का परीक्षण कीजिये। [63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2017]
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जब कला और चित्रकला की बात आती है तो पटना का इतिहास समृद्ध और विविध है। इसमें चित्रकला की पटना कलाम शैली बिहार के सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास के निर्माण का एक समृद्ध स्रोत है।
पटना कलाम पेंटिंग को पटना स्कूल ऑफ़ पेंटिंग्स के नाम से भी जाना जाता है, जहाँ कलाम या क़लम शब्द का अनुवाद “शैली” होता है।
पटना कलाम कला रूप मुगल और यूरोपीय कला का एक मिश्रण है। चित्रों में स्पष्ट रूप से मुगल शैली के रंग और अस्तर देखे जा सकते हैं, और छायांकन को ब्रिटिश शैली से अपनाया हुआ देखा जा सकता है।
चौड़ी और उत्कृष्ट रूप से सजाई गई सीमाओं की मुगल और फारसी शैली से हटकर, पटना कलाम ने मुख्य रूप से चित्रकला के विषय पर ध्यान केंद्रित किया।
पटना कलाम चित्रकला शैली:
पटना कलाम भारतीय चित्रकला की एक अद्वितीय शैली है, जो बिहार के पटना शहर से उत्पन्न हुई। यह शैली भारतीय चित्रकला की समृद्ध परंपरा का हिस्सा है और इसकी विशेषता मुख्यतः बारीकी से की गई रेखांकन, जीवंत रंगों का उपयोग, और स्पष्ट रूप से परिभाषित रूपों में देखी जाती है। पटना कलाम चित्रकला शैली का उदय 18वीं शताब्दी के अंत और 19वीं शताब्दी की शुरुआत में हुआ था, जब मुग़ल और राजपूत कला शैली के प्रभाव से इसकी विशेषताएँ विकसित हुईं। इस चित्रकला ने बिहार की संस्कृति, इतिहास और धार्मिक विषयों को चित्रित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
1. पटना कलाम चित्रकला की विशेषताएँ
– सचित्रता और रेखांकन
पटना कलाम चित्रकला की सबसे प्रमुख विशेषता उसकी बारीक और स्पष्ट रेखांकन शैली है। चित्रकारों ने अपने कार्य में हर विवरण को अत्यधिक ध्यान से अंकित किया है, जैसे कि चेहरे के भाव, वस्त्रों की बनावट, या प्रकृति के दृश्य।
– जीवंत रंगों का प्रयोग
पटना कलाम चित्रकला में जीवंत और चमकदार रंगों का उपयोग किया जाता है। इसके चित्रों में गहरे लाल, हरे, नीले और सुनहरे रंग प्रचलित हैं। इन रंगों का उपयोग न केवल चित्र को आकर्षक बनाता है, बल्कि दृश्य को गहरे अर्थ और सौंदर्य प्रदान करता है।
– धार्मिक और ऐतिहासिक विषय
पटना कलाम चित्रों में धार्मिक विषयों और ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण अधिक होता है। इस शैली में हिंदू धर्म के विभिन्न देवी-देवताओं, महाकाव्य नायकों और राजा-महाराजाओं के चित्र होते हैं। इसके अलावा, इन चित्रों में समाज के विभिन्न पहलुओं का भी चित्रण किया जाता है, जैसे विवाह, उत्सव, और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियाँ।
– पारंपरिक भारतीय कला की धारा
पटना कलाम भारतीय कला की पारंपरिक धारा से जुड़ी हुई है, लेकिन इसमें मुग़ल और राजपूत कला शैली के प्रभाव भी दिखाई देते हैं। मुग़ल चित्रकला में जो नजाकत और विस्तार था, उसे पटना कलाम में अपनाया गया। इसके अलावा, राजपूत कला की तरह रंगों की सजावट और परिष्कृत शैली भी इसमें देखने को मिलती है।
– मूलभूत रचनाएँ
पटना कलाम चित्रकला का मुख्य केंद्र राजा-महाराजाओं की तस्वीरें और शाही दरबारों के दृश्य होते हैं। इन चित्रों में शाही व्यक्तियों की भव्यता और समाज की समृद्धि को दर्शाया गया है। इसके अतिरिक्त, सामाजिक घटनाओं जैसे शादी-ब्याह, धार्मिक अनुष्ठान आदि की भी चित्रित की जाती हैं।
2. पटना कलाम चित्रकला का विकास और प्रभाव
पटना कलाम चित्रकला ने अपनी कला को धीरे-धीरे बिहार और भारत के अन्य हिस्सों में फैलाया। इसकी प्रभावशीलता केवल कला की सुंदरता में ही नहीं, बल्कि बिहार की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण में भी थी। पटना कलाम चित्रकला ने भारतीय चित्रकला को एक नया आयाम दिया और इसे उच्चतम स्तर पर स्थापित किया।
– मुग़ल और राजपूत कला का प्रभाव
पटना कलाम चित्रकला में मुग़ल और राजपूत शैली की महत्वपूर्ण झलकें मिलती हैं। विशेषकर मुग़ल चित्रकला की सूक्ष्मता और विस्तृत रंगों का प्रभाव इस शैली में दिखता है।
– स्थानीय शिल्पकारों की भागीदारी
पटना कलाम में कई स्थानीय शिल्पकारों ने हिस्सा लिया और उन्होंने इस शैली को हर आयाम में पारंपरिक रूप से उत्कृष्ट बनाया। यह कला अब भी कुछ कलाकारों द्वारा जीवित रखी जाती है, जो आधुनिक चित्रकला में इसका समावेश करते हैं।
3. सारांश
पटना कलाम एक अद्वितीय और प्रभावशाली चित्रकला शैली है, जो बिहार की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ जैसे बारीक रेखांकन, जीवंत रंगों का उपयोग, और ऐतिहासिक और धार्मिक विषयों का चित्रण इसे भारतीय चित्रकला के क्षेत्र में एक विशेष स्थान प्रदान करती हैं। यह कला न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आधुनिक भारतीय चित्रकला में भी एक अमूल्य धरोहर बनी हुई है।