बिहार में संथाल विद्रोह (1855-56) के कारणों एवं परिणामों का मूल्यांकन कीजिये। [63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2017]
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बिहार में संथाल विद्रोह (1855-56): कारणों और परिणामों का मूल्यांकन
संथाल विद्रोह 1855-56 में बिहार और बंगाल के संथाल परगना क्षेत्र में हुआ था, जो भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। यह विद्रोह संथालों द्वारा ब्रिटिश शासन और जमींदारी प्रथा के खिलाफ किया गया था, और इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी थी।
1. संथाल विद्रोह के कारण
संथाल विद्रोह के पीछे कई कारण थे, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों से जुड़े थे। मुख्य कारणों में निम्नलिखित थे:
– भूमि पर कब्ज़ा और जमींदारी प्रथा
ब्रिटिश काल में संथालों की भूमि को जमींदारों और बिचौलियों के द्वारा हड़प लिया जाता था। संथालों को अपनी भूमि से बेदखल किया गया, और वे जमींदारों द्वारा शोषित होते रहे।
– कर वसूली और शोषण
संथालों को ब्रिटिश प्रशासन द्वारा अत्यधिक कर वसूली का सामना करना पड़ा, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी खराब हो गई।
– सामाजिक और धार्मिक असहमति
ब्रिटिश शासन ने संथालों की पारंपरिक जीवन शैली और संस्कृति को प्रभावित किया। इसके साथ ही स्थानीय धार्मिक मान्यताओं को भी उपेक्षित किया गया।
2. संथाल विद्रोह के प्रमुख नेता
संथाल विद्रोह का नेतृत्व संथाल समुदाय के तीन प्रमुख नेताओं, सिदु, कान्हू, चांद, और भैरव ने किया था। इन नेताओं ने अंग्रेजों और जमींदारों के खिलाफ एकजुट होकर विद्रोह किया।
3. विद्रोह के प्रमुख घटनाएँ
संथाल विद्रोह का मुख्य केंद्र संथाल परगना क्षेत्र था, जो आज के बिहार और झारखंड में स्थित है। विद्रोह ने तात्कालिक प्रशासन को हिलाकर रख दिया और अंग्रेजों को अपनी उपस्थिति दर्ज करने पर मजबूर किया।
4. संथाल विद्रोह के परिणाम
संथाल विद्रोह का परिणाम भारतीय समाज और ब्रिटिश शासन के लिए गहरा था। इस विद्रोह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को प्रभावित किया और भारतीय समाज के लिए कई कड़े परिणामों की नींव रखी।
– ब्रिटिश शासन का दमन
संथाल विद्रोह के बाद, ब्रिटिश शासन ने कड़ी कार्रवाई की। विद्रोह के नेताओं को गिरफ्तार किया गया, और उनके खिलाफ कठोर दंड की व्यवस्था की गई।
– संथालों की स्थिति में सुधार
विद्रोह के परिणामस्वरूप संथालों की स्थिति में कुछ सुधार हुआ। हालांकि विद्रोह असफल था, लेकिन संथालों को जमींदारी और शोषण से कुछ राहत मिली।
– भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
संथाल विद्रोह ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष की भावना को जागृत करने का काम किया और आने वाले संघर्षों में प्रेरणा का स्रोत बना।
5. निष्कर्ष
संथाल विद्रोह (1855-56) ने न केवल बिहार और बंगाल में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की एक नई लहर उत्पन्न की, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला था। इस विद्रोह ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संथाल समुदाय की संघर्षशीलता और उनके अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता को रेखांकित किया। हालांकि यह विद्रोह विफल रहा, फिर भी इसके परिणाम स्वरूप संथालों को कुछ सुधार मिले और भारतीय समाज में स्वतंत्रता की भावना और भी प्रबल हुई।