बिहार में सन् 1857 से सन् 1947 तक पाश्चात्य शिक्षा के विकास की विवेचना कीजिये। [63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2017]
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बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का विकास (1857-1947)
बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का विकास ब्रिटिश शासन के दौरान एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसने भारतीय समाज को आधुनिक विचारों, विज्ञान, और प्रौद्योगिकी से अवगत कराया। सन् 1857 से 1947 तक के समय में बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में कई बदलाव हुए, जो समाज की मानसिकता और राष्ट्र के भविष्य को आकार देने में सहायक रहे।
1. 1857 के बाद शिक्षा का प्रसार
1857 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की दिशा में कुछ कदम उठाए। ब्रिटिश सरकार की प्राथमिकता पश्चिमी शिक्षा को फैलाना और भारतीयों को प्रशासनिक सेवाओं के लिए तैयार करना थी।
1854 में “मैकाले शिक्षा नीति” लागू की गई, जिसने अंग्रेजी शिक्षा के महत्व को बढ़ाया। इसके बाद बिहार में स्कूलों की स्थापना के साथ-साथ पाश्चात्य शिक्षा का विस्तार हुआ।
2. विकास के प्रमुख चरण और संस्थाओं की स्थापना
1860 से 1900 तक पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार में कई बदलाव हुए। शिक्षा का उद्देश्य अब केवल प्रशासनिक सेवाओं के लिए लोगों को तैयार करना नहीं, बल्कि समाज के अन्य क्षेत्रों में भी सुधार करना था।
इस दौरान बिहार में कई महत्वपूर्ण संस्थान और विश्वविद्यालय स्थापित हुए। 1917 में पटना विश्वविद्यालय की स्थापना की गई, जो बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। इससे उच्च शिक्षा का स्तर बढ़ा और अंग्रेजी साहित्य, विज्ञान, गणित, और कानून के अध्ययन को बढ़ावा मिला।
3. शिक्षा के प्रसार में सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
पाश्चात्य शिक्षा ने बिहार के समाज में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए। इसने भारतीय समाज में नए विचारों, अधिकारों और समानता की भावना को फैलाया। इसके प्रभाव से समाज में जागरूकता आई, जिससे सुधार आंदोलनों का जन्म हुआ।
पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से समाज में जातिवाद, धर्म, और महिलाओं की स्थिति जैसे मुद्दों पर चर्चा शुरू हुई। उदाहरण के लिए, बिहार में बाबू वीर कुंवर सिंह, महात्मा गांधी, और अन्य समाज सुधारकों ने शिक्षा के महत्व को बताया और लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया।
4. पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव और आलोचना
हालांकि पाश्चात्य शिक्षा ने बिहार के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन इसके कुछ नकारात्मक प्रभाव भी थे। इसने भारतीय संस्कृति और शिक्षा की पारंपरिक प्रणाली को प्रभावित किया और कई जगहों पर भारतीय भाषाओं और साहित्य को नजरअंदाज किया गया।
पाश्चात्य शिक्षा ने भारतीय समाज में अंग्रेजी के महत्व को बढ़ाया, लेकिन यह भारतीय भाषाओं और परंपराओं के लिए एक चुनौती बन गई। इसके परिणामस्वरूप भारतीय साहित्य और संस्कृति को नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
5. सारांश और निष्कर्ष
1857 से 1947 तक पाश्चात्य शिक्षा का बिहार में विस्तार हुआ, जिसने समाज, संस्कृति, और राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला। जहां यह शिक्षा प्रशासन, विज्ञान, और समाज सुधार के लिए महत्वपूर्ण साबित हुई, वहीं इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी सामने आए। कुल मिलाकर, पाश्चात्य शिक्षा ने बिहार के समाज को एक नई दिशा दी, जो आज भी उसके विकास में योगदान दे रही है।