गाँधीजी के सामाजिक एवं सांस्कृतिक विचारों की महत्ता का वर्णन कीजिये। [63वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2017]
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गांधीजी के सामाजिक एवं सांस्कृतिक विचारों की महत्ता
महात्मा गांधी के सामाजिक और सांस्कृतिक विचार भारतीय समाज की नींव में गहरे बदलाव लाने वाले थे। उनके विचारों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को दिशा दी, बल्कि भारतीय समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों, भेदभाव और असमानता के खिलाफ आवाज उठाई। उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं और भारत ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर समाज सुधार, सत्य, अहिंसा, और समरसता के प्रतीक बने हुए हैं।
1. सत्य और अहिंसा
गांधीजी के विचारों में सत्य और अहिंसा का सबसे महत्वपूर्ण स्थान था। उनके अनुसार, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सत्य का पालन करना चाहिए और अहिंसा को सर्वोत्तम नीति मानना चाहिए। यह विचार न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रेरणा का स्रोत बने, बल्कि वैश्विक संघर्षों के लिए भी यह दो महत्वपूर्ण सिद्धांत साबित हुए।
गांधीजी ने सत्याग्रह के सिद्धांत को अपनाया, जिसका अर्थ था बिना हिंसा के संघर्ष करना। इसके माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से भारत की स्वतंत्रता की ओर एक शांतिपूर्ण रास्ता तैयार किया।
2. जातिवाद और छुआछूत का उन्मूलन
गांधीजी ने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, विशेषकर अछूतों के साथ भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई प्रयास किए। उन्होंने “हरिजनों” (अछूतों) के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और उन्हें समाज में समान दर्जा दिलाने की कोशिश की।
गांधीजी ने ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग किया और उन्हें समाज का अभिन्न अंग मानते हुए उनकी सामाजिक और राजनीतिक स्थिति सुधारने के लिए संघर्ष किया। उन्होंने “मनुष्यता की सबसे बड़ी परीक्षा” को अछूतों के कल्याण के लिए निरंतर संघर्ष किया।
3. स्वदेशी आंदोलन और आत्मनिर्भरता
गांधीजी के अनुसार, भारतीयों को विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करना चाहिए और अपनी खुद की उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देना चाहिए। यह उनके “स्वदेशी आंदोलन” का हिस्सा था, जिसमें उन्होंने खादी को आत्मनिर्भरता का प्रतीक माना।
गांधीजी ने खादी को राष्ट्रीय पहचान के रूप में प्रस्तुत किया और स्वदेशी वस्त्रों के प्रयोग को बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि खादी को बढ़ावा देने से न केवल आर्थिक स्वतंत्रता मिल सकती है, बल्कि यह भारतीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर को भी पुनर्जीवित कर सकता है।
4. समानता और महिला सशक्तिकरण
गांधीजी के सामाजिक विचारों में महिला सशक्तिकरण का भी महत्वपूर्ण स्थान था। उन्होंने महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया और समाज में उनकी स्थिति सुधारने के लिए कई कदम उठाए।
गांधीजी का मानना था कि महिलाओं को हर क्षेत्र में पुरुषों के समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए। उन्होंने महिलाओं के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सशक्तिकरण के लिए कई आंदोलनों की शुरुआत की।
5. स्वच्छता और ग्राम सुधार
गांधीजी का मानना था कि राष्ट्र की सशक्तता ग्रामों के सशक्तिकरण में छुपी हुई है। उन्होंने ग्राम सुधार की दिशा में कई योजनाओं की शुरुआत की, जिनमें स्वच्छता, जल प्रबंधन और कृषि के सुधार को प्रमुखता दी।
गांधीजी ने “स्वच्छता” को अपने आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया। उनका मानना था कि यदि हमें अपने राष्ट्र को स्वच्छ और समृद्ध बनाना है, तो हमें पहले अपने गांवों को स्वच्छ और आत्मनिर्भर बनाना होगा।
निष्कर्ष
गांधीजी के सामाजिक और सांस्कृतिक विचार भारतीय समाज के लिए एक दिशा के रूप में सामने आए। उनके विचारों ने भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों और असमानताओं को समाप्त करने का प्रयास किया। सत्य, अहिंसा, समानता, और स्वदेशी आंदोलन जैसे सिद्धांतों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी, बल्कि भारतीय समाज को एक सशक्त और समानता-आधारित समाज बनाने की दिशा में अग्रसर किया। गांधीजी का दृष्टिकोण आज भी हमारे लिए प्रेरणास्त्रोत है और उनके विचारों की महत्ता समय के साथ बढ़ती जा रही है।