भारत में आर्थिक सुधारों के बाद के काल में आर्थिक नियोजन की प्रासंगिकता की विवेचना कीजिये। इस संदर्भ में समझाइए कि किस प्रकार राज्य और बाजार देश के आर्थिक विकास में एक सकारात्मक भूमिका निबाह सकते हैं। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
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आर्थिक सुधारों के बाद आर्थिक नियोजन की प्रासंगिकता
भारत में 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद नियोजन के स्वरूप में व्यापक बदलाव आया। उदारीकरण, निजीकरण, और वैश्वीकरण की नीतियों ने राज्य-केंद्रित नियोजन की पारंपरिक अवधारणा को चुनौती दी। इसके बावजूद, आर्थिक नियोजन ने विकास के मार्गदर्शन और संतुलन बनाए रखने में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है।
आर्थिक सुधारों के बाद नियोजन की प्रासंगिकता
राज्य और बाजार की सकारात्मक भूमिका
1. राज्य की भूमिका
2. बाजार की भूमिका
राज्य और बाजार का सहयोग: एक सकारात्मक दृष्टिकोण
1. पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP):
2. नीति निर्माण और कार्यान्वयन:
3. सामाजिक न्याय और समावेशन:
निष्कर्ष
आर्थिक सुधारों के बाद, आर्थिक नियोजन की प्रकृति भले ही बदल गई हो, लेकिन इसकी प्रासंगिकता बनी रही। राज्य और बाजार के बीच संतुलन बनाए रखने से आर्थिक विकास और समावेशी वृद्धि को बढ़ावा दिया जा सकता है। राज्य का मार्गदर्शन और बाजार की दक्षता साथ मिलकर भारत को आत्मनिर्भर और सतत विकासशील बना सकते हैं।