स्वामी सहजानंद और किसान सभी आंदोलन पर एक टिप्पणी लिखिये। [65वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2019]
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स्वामी सहजानंद और किसान आंदोलन
स्वामी सहजानंद सरस्वती भारतीय किसान आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे, जिन्होंने किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई संघर्ष किए। उनका जीवन और कार्य भारतीय समाज के परिवर्तन के साथ जुड़ा हुआ था। स्वामी सहजानंद ने बिहार में किसान आंदोलन की नींव रखी और उसे एक राष्ट्रव्यापी रूप दिया। उनका उद्देश्य किसानों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारना और सामंती शासन के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन खड़ा करना था।
स्वामी सहजानंद का जीवन और योगदान
स्वामी सहजानंद का जन्म 1889 में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में हुआ था। वे बचपन से ही धार्मिक थे, लेकिन युवावस्था में उन्होंने संन्यास लेकर सामाजिक कार्यों की दिशा में कदम बढ़ाया। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा बिहार और अन्य क्षेत्रों में किसानों के बीच बिताया, जहां उन्होंने उनकी समस्याओं को समझा और उनके लिए संघर्ष किया।
किसान सभा की स्थापना और आंदोलन
स्वामी सहजानंद ने 1929 में “प्रांतीय किसान सभा” की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जमींदारों के अत्याचारों के खिलाफ किसानों को संगठित करना था। उनका यह आंदोलन धीरे-धीरे बिहार के विभिन्न इलाकों में फैल गया। 1936 में “अखिल भारतीय किसान सभा” का गठन किया गया, जिसमें स्वामी सहजानंद को अध्यक्ष चुना गया। इस सभा ने जमींदारी प्रथा को समाप्त करने और किसानों के कर्ज माफ करने की मांग उठाई। स्वामी जी के नेतृत्व में किसान संगठनों ने जमींदारी उन्मूलन और भूमि पर किसानों के अधिकार की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।
आंदोलन की प्रभावशीलता
स्वामी सहजानंद के नेतृत्व में किसान आंदोलन ने एक मजबूत जनाधार प्राप्त किया। उन्होंने किसानों को संगठित करने के लिए कई पहल की, जिनमें उनका प्रसिद्ध नारा “लट्ठ हमारा जिंदाबाद” शामिल था। यह नारा न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश में किसान आंदोलनों को प्रेरित करने वाला बन गया। उनका आंदोलन गांधीजी और कांग्रेस के आंदोलन से अलग था, क्योंकि वे किसानों की समस्याओं को प्राथमिकता देते थे और उन्हें राजनीतिक मंच पर उठाने की कोशिश करते थे।
किसान आंदोलन का साम्यवाद से संबंध
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कांग्रेस के किसान मुद्दों पर उदासीनता के कारण स्वामी सहजानंद का झुकाव कुछ हद तक साम्यवाद की ओर हुआ। इस समय किसान आंदोलन का नेतृत्व साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित नेताओं ने किया, जिनमें जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया जैसे लोग शामिल थे।
निष्कर्ष
स्वामी सहजानंद का किसान आंदोलन भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ। उन्होंने किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए न केवल समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य किया, बल्कि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को भी एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया। उनके आंदोलन से भारतीय समाज को यह समझ में आया कि स्वतंत्रता केवल अंग्रेजों से नहीं, बल्कि समाज के भीतर व्याप्त असमानताओं से भी मिलनी चाहिए।