भारतीय सन्दर्भ में, ‘एक राष्ट्र एक निर्वाचन’ की अवधारणा का वर्णन कीजिए तथा इसके पक्ष और विपक्ष में अपने तर्क दीजिए। [67वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा 2022]
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भारतीय संदर्भ में ‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ की अवधारणा का वर्णन
प्रस्तावना
‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ की अवधारणा का उद्देश्य भारत में एक ही समय में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को आयोजित करना है। इस विचार का प्रस्ताव इस कारण से उठाया गया कि चुनावों के बार-बार होने वाले दौर को कम किया जाए और संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जा सके। इसके साथ ही, यह देश की चुनावी प्रक्रिया को स्थिर और व्यवस्थित बनाने की दिशा में एक कदम होगा।
यह अवधारणा भारतीय संविधान और लोकतंत्र की संरचना के संदर्भ में महत्वपूर्ण सवाल उठाती है, क्योंकि इसका प्रभाव लोकतंत्र, संघीय ढांचे, राजनीतिक प्रणाली और संसदीय शासन पर पड़ सकता है।
‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ की अवधारणा
‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ के पक्ष में तर्क
‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ के विपक्ष में तर्क
भारतीय संदर्भ में इसका महत्त्व
भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में ‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ की अवधारणा को लागू करना एक गंभीर कदम हो सकता है। जहां इसके लाभ हैं, वहीं इसके कुछ नकरात्मक पहलू भी हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, 2019 के लोकसभा चुनावों और राज्य विधानसभा चुनावों के बीच समय अंतराल को देखकर यह साफ होता है कि भारत के विभिन्न राज्यों की राजनीतिक स्थिति और समस्याएँ अलग-अलग होती हैं। एक साथ चुनाव कराना राज्यों की राजनीतिक स्वायत्तता पर असर डाल सकता है।
हालाँकि, यदि इस योजना को सही तरीके से लागू किया जाए और राज्यों की चिंताओं को ध्यान में रखा जाए, तो यह देश के लिए एक सकारात्मक बदलाव साबित हो सकता है।
निष्कर्ष
‘एक राष्ट्र, एक निर्वाचन’ की अवधारणा एक महत्वाकांक्षी योजना है जो भारतीय चुनाव प्रणाली को सुधारने के उद्देश्य से प्रस्तावित की गई है। इसके पक्ष में और विपक्ष में दोनों तरह के तर्क मौजूद हैं। यह योजना देश को आर्थिक, प्रशासनिक और राजनीतिक स्थिरता प्रदान कर सकती है, लेकिन इसके साथ ही संघीय ढांचे और राज्यों की स्वायत्तता पर सवाल भी उठ सकती है। अत: इस विचार को लागू करने से पहले इसके संभावित प्रभावों का गहरे से अध्ययन और संवाद आवश्यक है।