उत्तर लेखन के लिए रोडमैप:
1. प्रस्तावना
- विवरण: मुद्रास्फीति की परिभाषा और इसका अर्थव्यवस्था पर प्रभाव।
- महत्व: क्यों यह विषय महत्वपूर्ण है।
2. मांग-जनित मुद्रास्फीति
- सरकारी व्यय में वृद्धि:
- विवरण: जैसे प्रत्यक्ष लाभ अंतरण से क्रय शक्ति बढ़ती है।
- उदाहरण: 2021 में दी गई आर्थिक सहायता।
- आय में वृद्धि:
- विवरण: सातवें वेतन आयोग का प्रभाव।
- उदाहरण: उच्चतम सरकारी कर्मचारियों की आय में वृद्धि।
- उपभोग पैटर्न में बदलाव:
- विवरण: प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों की मांग में वृद्धि।
- उदाहरण: दाल और मछली की बढ़ती कीमतें।
- जनसंख्या में वृद्धि:
- विवरण: बढ़ती जनसंख्या के कारण बढ़ती मांग।
- तथ्य: 2021 में भारत की जनसंख्या लगभग 1.39 अरब थी (संयुक्त राष्ट्र)।
- काला धन:
- विवरण: कालाबाजारी और जमाखोरी का प्रभाव।
- उदाहरण: रियल एस्टेट में काले धन का उपयोग।
3. लागत-जनित मुद्रास्फीति
- मांग और आपूर्ति में असंतुलन:
- विवरण: जैसे रूस-यूक्रेन संकट से तेल की कीमतों में वृद्धि।
- उदाहरण: वैश्विक तेल बाजार में उतार-चढ़ाव।
- अवसंरचनागत बाधाएं:
- विवरण: लॉजिस्टिक लागत में वृद्धि।
- उदाहरण: खराब सड़कों से होने वाली अतिरिक्त लागत।
- मौसमी उतार-चढ़ाव:
- विवरण: कृषि उत्पादन में गिरावट।
- उदाहरण: विफल मानसून का प्रभाव।
- करों में वृद्धि:
- विवरण: सीमा-शुल्क और उत्पाद-शुल्क का प्रभाव।
- उदाहरण: वस्तुओं की कीमतों पर करों का प्रभाव।
- प्रशासित कीमतों में वृद्धि:
- विवरण: MSP और पेट्रोलियम करों में वृद्धि।
- उदाहरण: खाद्यान्न के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि।
4. निष्कर्ष
- संक्षेप में: मांग-जनित और लागत-जनित मुद्रास्फीति का सामंजस्य।
- नीतिगत उपाय: सरकार के कदम और मौद्रिक नीति समिति की भूमिका।
उपयोगी तथ्य और स्रोत
- संयुक्त राष्ट्र: “भारत की जनसंख्या 2021 में 1.39 अरब थी।”
- भारतीय रिजर्व बैंक: “मुद्रास्फीति की गतिशीलता पर रिपोर्ट।”
- आर्थिक सर्वेक्षण: “भारत में कृषि उत्पादन और मौसमी उतार-चढ़ाव।”
इस रोडमैप का अनुसरण करके, आप मुद्रास्फीति के विभिन्न पहलुओं का विस्तार से वर्णन कर सकते हैं।
मॉडल उत्तर
मांग-जनित मुद्रास्फीति
सरकारी व्यय में वृद्धि:
जब सरकार खर्च बढ़ाती है, जैसे कि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, इससे लोगों की क्रय शक्ति बढ़ती है। इससे मांग में वृद्धि होती है और कीमतें बढ़ती हैं।
आय में वृद्धि:
उदाहरण के लिए, सातवें वेतन आयोग का कार्यान्वयन कर्मचारियों की आय बढ़ाता है, जिससे उपभोक्ताओं की खरीदारी क्षमता में वृद्धि होती है, और वस्तुओं की मांग में इजाफा होता है।
उपभोग पैटर्न में बदलाव:
यदि लोग प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ जैसे दालें और मछली अधिक खरीदते हैं, तो इन वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है।
जनसंख्या में वृद्धि:
भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण मांग में वृद्धि होती है, जिससे कीमतें बढ़ जाती हैं। 2021 में, भारत की जनसंख्या लगभग 1.39 अरब थी (संयुक्त राष्ट्र).
काला धन:
काले धन का उपयोग उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद में बढ़ता है, जिससे जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ती है, खासकर रियल एस्टेट में।
लागत-जनित मुद्रास्फीति
मांग और आपूर्ति में असंतुलन:
उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन संकट के कारण तेल की कीमतों में वृद्धि होती है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ती है।
अवसंरचनागत बाधाएं:
जैसे कि सड़कें नहीं होने से लॉजिस्टिक लागत बढ़ती है। इससे उत्पादन में लागत बढ़ती है।
मौसमी उतार-चढ़ाव:
अगर मानसून विफल होता है, तो कृषि उत्पादन में कमी आती है, जो मुद्रास्फीति का कारण बनता है।
करों में वृद्धि:
उदाहरण के लिए, सीमा-शुल्क और उत्पाद-शुल्क बढ़ने से वस्तुओं की खुदरा कीमतों में वृद्धि होती है।
प्रशासित कीमतों में वृद्धि:
सरकार जब न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) बढ़ाती है, तो इससे मुद्रास्फीति बढ़ती है।
निष्कर्ष
मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार ने मौद्रिक नीति समिति का गठन किया है। यह समिति मुद्रास्फीति को स्थिर रखने के लिए उपाय करती है।
भारत में मुद्रास्फीति के कारण-मांग में कमी और लागत में वृद्धि
मुद्रास्फीति का अर्थ है सामान्य मूल्य स्तर में निरंतर वृद्धि। भारतीय व्यवस्था में यह क्रय शक्ति में कमी ला रहा है और आर्थिक स्थिरता को भी खतरे में डाल रहा है। भारत में मांग और आपूर्ति दोनों कारकों ने मुद्रास्फीति के रुझानों में योगदान दिया है।
मांग-खिंचाव की मुद्रास्फीति या जो तब होती है जब वास्तविक मांग संभावित आपूर्ति से अधिक हो जाती है। भारत में मांग-खींचने वाली मुद्रास्फीति की घटना के मुख्य कारण हैंः
– सरकारी निवेश में वृद्धिः सामाजिक कल्याण सेवाओं, बुनियादी ढांचे और सब्सिडी से सरकारी खर्च में वृद्धि होती है जिससे कुल मांग में वृद्धि होती है। इसका एक उदाहरण 7वां वेतन आयोग है जिसने डिस्पोजेबल आय और इसलिए उपभोक्ता खर्च को बढ़ाया।
आय/व्यय बढ़ती पेशीय शक्ति प्राप्त करनाः व्यय योग्य आय में वृद्धि से व्यय के अधिक अवसर खुलते हैं। इनमें से अधिकांश लोगों के लिए, विशेष रूप से शहरी मध्यम वर्ग के बहुमत के लिए, यह खर्च में वृद्धि का कारण बनता है।
– उपभोक्ता-खर्च करने की आदतों के स्वाद और वरीयताएँ बदलींः उपभोक्ताओं के स्वाद और प्राथमिकताओं में बदलाव, उदाहरण के लिए, प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत भी मुद्रास्फीति की स्थिति का समर्थन करती है।
जन्म दर में वृद्धिः जब जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ती है, तो भोजन, आवास और अन्य बुनियादी वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है, जो मुद्रास्फीति के दबाव का कारण बनती है।
– सिस्टम में बेहिसाब धन (काला धन) – अर्थव्यवस्था में काले धन का अस्तित्व लोगों को कुछ वस्तुओं के लिए मजबूर करता है, विशेष रूप से अचल संपत्ति जैसे बाजारों में, और यह बदले में कीमतों में सामान्य वृद्धि की ओर ले जाता है।
लागत वृद्धि मुद्रास्फीति, जैसा कि नाम से पता चलता है, उत्पादन की लागत में वृद्धि के कारण होने वाली मुद्रास्फीति है जो बाद में कुल आपूर्ति को कम कर देती है। भारत में अनुभव की गई लागत वृद्धि मुद्रास्फीति के प्रमुख निर्धारकों में निम्नलिखित शामिल हैंः
मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन तक नहीं पहुंचा जा सकताः रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष जैसे कुछ कारकों के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होती है और इसलिए कुछ वस्तुओं की कमी के कारण पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ जाती हैं।
बुनियादी ढांचागत अड़चनः इस मामले में, परिवहन और रसद पर्याप्त बुनियादी ढांचे नहीं हैं जो उत्पादन की लागत को कम करने में मदद करते हैं, विशेष रूप से बाजार अर्थव्यवस्था के मुद्रास्फीति प्रवण परिदृश्य में।
मौसमीः सूखे या बाढ़ में प्रतिकूल मौसम की स्थिति कृषि प्रथाओं को प्रभावित करती है जिससे उनका उत्पादन प्रभावित होता है और कुछ वस्तुओं, मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की मांग और कीमतों में वृद्धि होती है। वस्तुओं पर करों को बढ़ाना और–
सेवाएँः वस्तुओं और सेवाओं के करों में वृद्धि से उत्पादन लागत में वृद्धि होती है जो ग्राहकों के लिए कीमतों में शामिल होती है।
प्रशासित मूल्यः उदाहरण के लिए, कृषि उपज के लिए सरकार द्वारा स्वीकृत मूल्य, जिसे न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में संदर्भित किया जाता है, सामान्य मूल्य स्तरों को प्रभावित करने की उम्मीद है।
मुद्रास्फीति से लड़ने में सही नीतियों को लागू करने में सक्षम होने के लिए नीति निर्माताओं को मांग-खींचने वाली मुद्रास्फीति और लागत-धकेलने वाले कारकों के तत्वों को जानने की आवश्यकता है। भारतीय रिजर्व बैंक के पास मौद्रिक नीति के साधन हैं जिनमें ब्याज दर समायोजन और खुले बाजार संचालन के माध्यम से मुद्रास्फीति प्रबंधन शामिल है।
भारत में मुद्रास्फीति के द्वार-जनित (Demand-pull) और लागत-जनित (Cost-push) कारक दोनों मुख्य रूप से मूल्य वृद्धि का कारण बनते हैं। इन दोनों कारकों का प्रभाव अलग-अलग स्रोतों से होता है।
मांग-जनित मुद्रास्फीति:
यह तब होती है जब कुल मांग अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता से अधिक होती है। भारत में बढ़ती हुई आय, सरकार की खर्च नीति, और तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या के कारण उपभोक्ता मांग में वृद्धि हो रही है। जब आपूर्ति से अधिक मांग होती है, तो उत्पादक कीमतें बढ़ा देते हैं। मुख्य कारण:
उपभोक्ता खर्च में वृद्धि: उच्च आय के कारण उपभोक्ता अधिक खर्च करते हैं।
सरकारी खर्च: सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और कल्याण योजनाओं में सरकारी खर्च की वृद्धि।
सस्ती ब्याज दरें: भारतीय रिज़र्व बैंक की नीति से उपभोक्ता और व्यवसायों के लिए सस्ती ऋण सुविधा।
लागत-जनित मुद्रास्फीति:
यह तब होती है जब उत्पादन लागत बढ़ जाती है और उत्पादनकर्ता इसे उपभोक्ताओं पर डालते हैं। भारत में कई कारणों से लागत बढ़ती है:
तेल की कीमतों में वृद्धि: भारत आयातित तेल पर निर्भर है, और वैश्विक तेल कीमतों में वृद्धि से परिवहन और उत्पादन लागत बढ़ती है।
आपूर्ति श्रृंखला में विघटन: प्राकृतिक आपदाएँ या वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में समस्याएं कच्चे माल की कीमतों को बढ़ा देती हैं।
मजदूरी में वृद्धि: मजदूरी की बढ़ती लागत से उत्पादन लागत बढ़ती है, जिसका असर कीमतों पर पड़ता है।
इन दोनों कारकों का मिश्रित प्रभाव भारत में मुद्रास्फीति को बढ़ाता है।
भारत में मुद्रास्फीति के मांग-जनित और लागत-जनित कारक मूल्य वृद्धि के प्रमुख कारण हैं। इन दोनों कारकों का प्रभाव अलग-अलग स्रोतों से होता है।
Parth आप इस फीडबैक का भी उपयोग कर सकते हैं
मांग-जनित मुद्रास्फीति
मांग-जनित मुद्रास्फीति तब होती है जब कुल मांग अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता से अधिक होती है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
उपभोक्ता खर्च में वृद्धि: उच्च आय के कारण उपभोक्ता अधिक खर्च करने लगते हैं, जिससे मांग में वृद्धि होती है।
सरकारी खर्च: सरकार द्वारा सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और कल्याण योजनाओं में बढ़ते खर्च से भी मांग में वृद्धि होती है।
सस्ती ब्याज दरें: भारतीय रिज़र्व बैंक की नीतियों के कारण सस्ती ऋण सुविधाएं उपभोक्ताओं और व्यवसायों को अधिक खर्च करने के लिए प्रेरित करती हैं।
जनसंख्या वृद्धि: तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य, आवास और अन्य आवश्यक वस्तुओं की मांग में वृद्धि होती है।
लागत-जनित मुद्रास्फीति
लागत-जनित मुद्रास्फीति तब होती है जब उत्पादन लागत बढ़ जाती है और उत्पादक इसे उपभोक्ताओं पर डालते हैं। इसके प्रमुख कारण हैं:
तेल की कीमतों में वृद्धि: भारत आयातित तेल पर निर्भर है, और वैश्विक तेल कीमतों में वृद्धि से परिवहन और उत्पादन लागत बढ़ती है।
आपूर्ति श्रृंखला में विघटन: प्राकृतिक आपदाएँ या वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में समस्याएं कच्चे माल की कीमतों को बढ़ा देती हैं।
मजदूरी में वृद्धि: मजदूरी की बढ़ती लागत से उत्पादन लागत में वृद्धि होती है, जिसका असर कीमतों पर पड़ता है।
करों में वृद्धि: वस्तुओं और सेवाओं पर बढ़ते कर भी लागत को प्रभावित करते हैं।
इन दोनों कारकों का मिश्रित प्रभाव भारत में मुद्रास्फीति को बढ़ाता है, जिससे आर्थिक स्थिरता पर खतरा उत्पन्न होता है