“योग कर्मसु कौशलम्” को विस्तार से समझाइए । [उत्तर सीमा: 50 शब्द, अंक: 05] [RPSC 2023]
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
‘योग: कर्मसु कौशलम्’ का शाब्दिक अर्थ है कि कार्य में कुशलता ही योग है। यह श्लोक भगवद गीता से लिया गया है, जहाँ भगवान कृष्ण अर्जुन को संदेश देते हैं कि कर्म का वास्तविक अर्थ केवल कार्य करना नहीं है, बल्कि उसे पूरी दक्षता, ध्यान और कौशल के साथ करना है। इस सिद्धांत के अनुसार, कर्म को बिना किसी परिणाम की लालसा के, आत्म-नियंत्रण और संयम के साथ किया जाना चाहिए। यह विधि व्यक्ति को काम में पूरी तरह से डूबने और आत्म-संतुष्टि और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने में मदद करती है। जब हम बिना किसी इच्छा के काम करते हैं, तो यह योग का एक रूप बन जाता है और हमारी आत्मा विकसित होती है।
योग कर्मसु कौशलम्” का अर्थ
परिभाषा: “योग कर्मसु कौशलम्” का अर्थ है – कर्मों में दक्षता और कुशलता प्राप्त करना। इसका मतलब है कि हमें अपने कार्यों को पूरी निष्ठा और योग्यता के साथ करना चाहिए, बिना किसी परिणाम की चिंता किए।
विस्तार से समझना:
महत्व: यह शांति, संतुलन और मानसिक विकास की दिशा में मार्गदर्शन करता है।