उत्तर लेखन के लिए रोडमैप
- परिचय (Introduction)
- भूस्खलन की परिभाषा और इसका महत्व।
- पश्चिमी घाट और हिमालय का पृष्ठभूमि विवरण और भूस्खलनों का संदर्भ।
- भौगोलिक विशेषताएँ (Geographical Features)
- पश्चिमी घाट और हिमालय की भूगर्भीय और जलवायु संबंधी विशेषताएँ।
- उनके भू-विज्ञान एवं स्थलाकृति का संक्षिप्त वर्णन।
- भूस्खलन के कारण (Causes of Landslides)
- प्रत्येक क्षेत्र में भूस्खलनों के कारणों का वर्णन।
- पश्चिमी घाट: अधिक वर्षा, भूखंडों का अव्यवस्थित उपयोग।
- हिमालय: भूकंप, भौगोलिक अस्थिरता, और ग्लेशियर्स का पिघलना।
- प्रत्येक क्षेत्र में भूस्खलनों के कारणों का वर्णन।
- भूस्खलन की प्रकृति और प्रकार (Nature and Types of Landslides)
- पश्चिमी घाट और हिमालय में भूस्खलनों के अलग-अलग प्रकारों की तुलना करना।
- पश्चिमी घाट: कीचड़ स्लाइड, मलबा प्रवाह।
- हिमालय: चट्टान के गिरने वाले भूस्खलन, बर्फ के अवशेष।
- पश्चिमी घाट और हिमालय में भूस्खलनों के अलग-अलग प्रकारों की तुलना करना।
- भूस्खलन घटना की बारंबारता (Frequency of Landslide Incidents)
- भूस्खलनों की आवृत्ति की तुलना करना।
- पश्चिमी घाट में भूस्खलनों की उच्च और न्यूनतम घटनाएँ।
- प्रभाव और मानवजनित तत्व (Impact and Human Factors)
- किस प्रकार मानव गतिविधियाँ भूस्खलनों को प्रभावित करती हैं।
- दोनों क्षेत्रों में अवसंरचना विकास और खनन द्वारा भूस्खलनों पर प्रभाव।
- निष्कर्ष (Conclusion)
- भूस्खलनों के अंतर का सारांश और संभावित समाधान की दिशा में सुझाव।
प्रासंगिक तथ्य और उनके स्रोत
- भूस्खलन की परिभाषा:
- “भूस्खलन की संहति का नीचे की ओर संचलन है।” (Source: भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण)
- भौगोलिक विशेषताएँ:
- पश्चिमी घाट भारत के डेक्कन प्लेटफार्म का हिस्सा है, जबकि हिमालय एक विवर्तनिक प्लेट के साथ जुड़ा हुआ है। (Source: भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण)
- वर्षा:
- “पश्चिमी घाट में मानसून के दौरान औसतन 3000 मिमी वर्षा होती है।” (Source: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग)
- भूस्खलन के कारण:
- “हिमालय में भूस्खलन मुख्यतः भूकंपीय गतिविधियों के कारण होते हैं।” (Source: Earth Surface Processes and Landforms)
- भूस्खलन की प्रकृति:
- “पश्चिमी घाट में भूस्खलन छोटे और मलबा प्रवाह के रूप में होते हैं, वहीं हिमालय में बड़े पैमाने पर चट्टान के गिरने वाले भूस्खलन।” (Source: Journal of Mountain Science)
- घटना की बारंबारता:
- “हिमालय में भूस्खलनों की आवृत्ति पश्चिमी घाट की अपेक्षा अधिक है।” (Source: NDMA वार्षिक रिपोर्ट)
- मानवजनित प्रभाव:
- “खनन और अवसंरचना विकास के कारण भूस्खलनों का खतरा बढ़ता है।” (Source: NDMA)
इस रोडमैप और तथ्यों का उपयोग करके, आप प्रश्न “पश्चिमी घाट में होने वाले भूस्खलन हिमालय में होने वाले भूस्खलनों से किस प्रकार भिन्न हैं?” का विस्तृत और सूचनात्मक उत्तर तैयार कर सकते हैं।
भौगोलिक संदर्भ
पश्चिमी घाट: भारत के पश्चिमी तट पर स्थित पर्वत श्रृंखला, जिसमें खड़ी ढलानें, घने जंगल और उष्णकटिबंधीय जलवायु है।
हिमालय: विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला, जो भारत, नेपाल और भूटान के उत्तरी हिस्से में फैली हुई है, जिसमें कठोर भूभाग और चरम मौसम की स्थितियाँ हैं।
भूस्खलन के कारण
भारी मानसूनी वर्षा से मिट्टी में जल संतृप्ति।
वनों की कटाई और शहरीकरण के कारण कटाव में वृद्धि।
हाल के वर्षों में 2021 के केरल भूस्खलन ने अनियोजित विकास के जोखिम को उजागर किया।
भूकंप और ग्लेशियरी पिघलने के कारण भूस्खलन।
मौसमी बर्फबारी और तेजी से तापमान में परिवर्तन से अस्थिर ढलानें।
2022 का उत्तराखंड आपदा, जो भारी वर्षा के बाद हुई, ने संवेदनशील क्षेत्रों में अवसंरचना विकास के खतरों को दिखाया।
प्रभाव और आवृत्ति
मानसून के दौरान बार-बार भूस्खलन, स्थानीय समुदायों और कृषि को प्रभावित करते हैं।
पर्यटन और अवसंरचना विकास वाले क्षेत्रों में भूस्खलन अधिक होते हैं।
भूस्खलन प्रायः विनाशकारी होते हैं, जिनसे जीवन और महत्वपूर्ण अवसंरचना को नुकसान होता है।
कठिन भूभाग के कारण बचाव कार्य चुनौतीपूर्ण होते हैं।
निष्कर्ष
दोनों क्षेत्रों में भूस्खलन की चुनौतियाँ भिन्न हैं, जिनके लिए विशेष ध्यान और सतत विकास की आवश्यकता है।
परिचयः
भूस्खलन, चट्टान, मलबे, पृथ्वी या मिट्टी के द्रव्यमान की ढलान; मिट्टी पृथ्वी और मलबे का मिश्रण है। भूस्खलन तब होता है जब ढलान के भीतर गुरुत्वाकर्षण और अन्य प्रकार के अपरूपण दबाव ढलान का गठन करने वाली सामग्री की अपरूपण शक्ति, या अपरूपण के प्रतिरोध से अधिक हो जाते हैं।
इन भूस्खलन की घटना के मुख्य कारणों में शामिल हैंः भूविज्ञान, आकृति विज्ञान और मानव गतिविधि।
– भूविज्ञान भौतिक गुणों की व्याख्या करता है। मिट्टी या चट्टान खराब और कमजोर है, टूटी हुई है या अलग-अलग परतों में उल्लेखनीय ताकत के साथ एक चट्टान है और परत की ताकत और कठोरता भिन्न होती है।
आकृति विज्ञान भू-आकृतियों से संबंधित है। भूस्खलन के लिए अतिसंवेदनशील ढलान प्राकृतिक क्षरण वाले क्षेत्रों में बन सकते हैं जो शायद आग या सूखे से भूमि आवरण के नुकसान से बढ़ जाते हैं।
– मानव निर्मित। कृषि और सिविल इंजीनियरिंग विकास भूस्खलन की संभावना को बढ़ाते हैं।
हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन के कारण
– भूविज्ञानः हिमालय युवा, नाजुक पहाड़ हैं जो अभी भी बढ़ रहे हैं, इसलिए प्राकृतिक भूस्खलन, विवर्तनिक गतिविधि के लिए अतिसंवेदनशील हैं, प्लेट ऊपर की ओर बढ़ने के साथ जो अस्थिरता का कारण बनती है।
– आकृति विज्ञानः हिमालय में खड़ी और तेज ढलान।
– एन्थ्रोपोजेनिकः इनमें झूम की खेती, वनों की कटाई आदि शामिल हैं, जिससे भूस्खलन होता है। ?
पश्चिमी घाट में भूस्खलन के कारण
– भूविज्ञानः ये कारक यहाँ बहुत कम भूमिका निभाते हैं क्योंकि पश्चिमी घाट सबसे स्थिर भूभागों में से एक हैं।
मानवः सघन खनन कार्य, आवास विकास के लिए वनों की कटाई और सड़कों के निर्माण के लिए सफाई, पवनचक्की परियोजनाओं ने पहाड़ों, ढलानों में भारी दरारें पैदा कर दी हैं। ?
हिमालय पर्वत श्रृंखलाः हिमालय क्षेत्र, विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में, सबसे अधिक भूस्खलन प्रवण है।
ऊँची ढलानें, भंगुर चट्टान संरचनाएँ और मजबूत भूकंपीय गतिविधियाँ एक ऐसा संयोजन है जो भूकंप-प्रेरित और बारिश-बर्फ पिघलने-भूस्खलन की भेद्यता को बढ़ाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अचानक भारी बारिश हो रही है, जिससे भूस्खलन की संख्या बढ़ रही है। हिमालयी क्षेत्र में लगभग 73 प्रतिशत भूस्खलन के लिए भारी बारिश और पानी को अवशोषित करने की मिट्टी की कम क्षमता को जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसरो के उपग्रह आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड के दो जिले रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल हैं, जहां देश में सबसे अधिक भूस्खलन होने की संभावना है।
हाल की घटनाएंः 2000 में जब पर्वतीय राज्य को उत्तर प्रदेश से अलग किया गया था, तब से भूस्खलन में 5,300 से अधिक लोग मारे गए थे। 2021 तक उत्तराखंड के चमोली जिले में अचानक आई बाढ़ में कम से कम 72 लोगों की मौत हो गई।
पश्चिमी घाटः पश्चिमी घाट पर्वत श्रृंखला जो भारत के पश्चिमी तट का अनुसरण करती है, दूसरा भूस्खलन क्षेत्र है।
भूस्खलन का एक अन्य रूप हमेशा दक्षिण के पश्चिमी घाट पर होता है।
कोंकण तट और नीलगिरी की खड़ी ढलानों के साथ एक लेटराइटिक कैप और भारी कटाव की उपस्थिति।
भारी मानसूनी वर्षा मिट्टी को संतृप्त करती है और ढलानों को कमजोर करती है।
वनों की कटाई, खनन और अन्य अनुचित भूमि उपयोग ने इस क्षेत्र में भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाने में योगदान दिया है।
पश्चिमी घाट और हिमालय में होने वाले भूस्खलन कई दृष्टिकोणों से भिन्न होते हैं:
इन सभी कारकों के कारण, पश्चिमी घाट और हिमालय में भूस्खलनों की प्रकृति और प्रभाव में महत्वपूर्ण भिन्नताएँ पाई जाती हैं।
मॉडल उत्तर
भूस्खलन के कारण
हिमालय पर्वत में भूस्खलनों का मुख्य कारण विवर्तनिक गतिविधियां हैं। यह क्षेत्र भूकंपीय गतिविधियों के अधीन है, जो कि इससे बनी भूगर्भीय संरचनाओं को कमजोर बनाती हैं। भारतीय प्लेट का उत्तर की ओर गति करना भी शैल को भुरभुरी और कमजोर करता है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ता है (Source: भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण)।
इसके विपरीत, पश्चिमी घाट में भूस्खलन का प्रमुख कारण मानसुन के दौरान अत्यधिक वर्षा होती है, जिससे भूजल स्तर बढ़ता है और मिट्टी तक बेहद संतृप्त हो जाती है (Source: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग)।
भूस्खलन की प्रकृति
हिमालय में भूस्खलन बड़े पैमाने पर होते हैं और अक्सर चट्टानों एवं मिट्टी की एक बड़ी मात्रा को प्रभावित करते हैं। यह ज्यादातर भूकंप के कारण होते हैं (Source: Earth Surface Processes and Landforms)। दूसरी ओर, पश्चिमी घाट में भूस्खलन छोटे पैमाने पर होते हैं और आमतौर पर कीचड़ के रूप में प्रकट होते हैं।
घटना की बारंबारता
हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलनों की घटनाएं अधिक सामान्य हैं, जबकि पश्चिमी घाट में यह घटना कम होती है (Source: NDMA)। यह हिमालय की ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृति और अपरिपक्व ढलानों के कारण है।
ढाल अस्थिरता
कुल मिलाकर, हिमालय में उच्च ढाल अस्थिरता पाई जाती है, जबकि पश्चिमी घाट भूगर्भीय रूप से अधिक स्थिर है, जिससे भूस्खलनों की घटनाएं कम होती हैं (Source: Journal of Mountain Science)।
निष्कर्ष
हालांकि भूस्खलनों के कारण और प्रकृति विभिन्न हैं, लेकिन दोनों क्षेत्रों में मानवजनित गतिविधियाँ जैसे अवसंरचना विकास और खनन भूस्खलनों के लिए खतरा बढ़ा रही हैं। इसलिए, प्रभावी प्रबंधन के लिए सभी संबंधित पक्षों के साथ समन्वित प्रयास आवश्यक हैं (Source: NDMA वार्षिक रिपोर्ट)।