उत्तर लेखन के लिए रोडमैप:
1. परिचय
- होमरूल आंदोलन की परिभाषा: संक्षिप्त में इस आंदोलन का उद्देश्य क्या था, इसे स्पष्ट करें।
- ऐतिहासिक संदर्भ: यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कैसे बना, इस पर प्रकाश डालें।
2. होमरूल आंदोलन का विकास
- वर्ष 1915:
- एनी बेसेंट द्वारा आंदोलन की शुरुआत की जानकारी दें।
- स्वशासन की मांग के लिए समाचार पत्रों (जैसे ‘न्यू इंडिया’ और ‘कॉमनवील’) का उपयोग।
- तथ्य: एनी बेसेंट ने अपने अभियान की शुरुआत 1915 में की थी।
- वर्ष 1916:
- लोकमान्य तिलक द्वारा होमरूल लीग की स्थापना का विवरण।
- एनी बेसेंट की लीग की 200 शाखाएं।
- प्रमुख नेताओं की सूची जिनकी भूमिकाएँ महत्वपूर्ण थीं।
- तथ्य: तिलक ने 1916 में अपनी होमरूल लीग स्थापित की।
- जनता की भागीदारी:
- आम जनता में जागरूकता फैलाने के लिए किए गए प्रयास।
- संघर्ष और समाप्ति:
- 1919 में एनी बेसेंट और उनके सहयोगियों की गिरफ्तारी।
- इसके बाद आंदोलन की धीमी गति और समाप्ति के कारणों पर चर्चा।
3. होमरूल आंदोलन के योगदान
- भारतीय राष्ट्रीयता पर प्रभाव:
- शिक्षित वर्ग से लेकर आम जनता तक आंदोलन का विस्तृत प्रभाव।
- तथ्य: इसने राष्ट्रीयता के एक नए आयाम को तैयार किया।
- संगठनात्मक संपर्क:
- गांवों और शहरों के बीच के संपर्क का निर्माण।
- राजनीतिक नेताओं की नई पीढ़ी:
- जुझारू राष्ट्रवादियों की पीढ़ी का उभरा।
- गांधीवादी विचारों के प्रति आम जनता को जागरूक करने का दृष्टिकोण।
- बाद में सुधारों पर प्रभाव:
- मटिग्यू की घोषणा और मोंटफोर्ड सुधार की चर्चा।
- लखनऊ अधिवेशन का पुनर्निर्माण।
- तथ्य: लखनऊ अधिवेशन में नरम दल और गरम दल के एकीकरण के प्रयास।
4. निष्कर्ष
- प्रभाव का सारांश: होमरूल आंदोलन का स्वतंत्रता संग्राम पर दीर्घकालिक प्रभाव।
- आज की प्रासंगिकता: इस आंदोलन के सिद्धांत और विचारों की वर्तमान महत्ता पर चर्चा।
प्रासंगिक तथ्यों के साथ स्रोत
- एनी बेसेंट द्वारा आंदोलन की शुरुआत: “उन्होंने 1915 में होमरूल के लिए अपना अभियान प्रारंभ किया।”
- 1916 में तिलक की होमरूल लीग की स्थापना: “लोकमान्य तिलक ने मई 1916 में अपनी होमरूल लीग की शुरुआत की।”
- आंदोलन का समापन: “यह आंदोलन सांप्रदायिक दंगों और अन्य कारकों के चलते धीरे-धीरे समाप्त हो गया।”
- नई पीढ़ी के राष्ट्रवादियों का जन्म: “इसने जुझारू राष्ट्रवादियों की एक नयी पीढ़ी को जन्म दिया।”
इस रोडमैप और तथ्यों का उपयोग करके आप एक विस्तृत और प्रभावी उत्तर तैयार कर सकते हैं।
ब्रिटिश राज में भारत के लिए स्वशासन की शुरुआत करने के लिए, यानी डोमिनियन स्टेटस, आंदोलन होम रूल की शुरुआत की गई थी। राजनीतिक संगठन के रूप में आयरिश होम रूल लीग के समान अखिल भारतीय होम रूल लीग का गठन 1916 में किया गया था।
यह आंदोलन 1916-1918 तक लगभग दो वर्षों तक जारी रहा, और इसे एक ऐसे आधार के रूप में स्थापित किया गया जिसके द्वारा भारतीय स्वतंत्रता को नेताओं एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक द्वारा शिक्षित उच्च वर्ग के अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों के लिए चिह्नित किया गया था। वर्ष 1920 में अखिल भारतीय होम रूल लीग को बदल दिया गया और बाद में इसे स्वराज्य सभा के नाम से जाना गया।
होम रूल आंदोलन का विकास
-कांग्रेस का गठन 1885 में भारत के लिए स्वशासन प्राप्त करने के उद्देश्य से किया गया था। लेकिन कांग्रेस के शुरुआती नेता उदारवादी थे। उन्होंने सोचा कि सुधारों की एक श्रृंखला के माध्यम से भारत को स्वशासन प्रदान किया जा सकता है।
-प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) भारत में एक नया राजनीतिक माहौल लेकर आया। भारत सरकार को अधिक कर बढ़ाना पड़ा और युद्ध प्रयासों के लिए अधिक सैनिकों की भर्ती करनी पड़ी। इससे भारतीय जनता में अत्यधिक आक्रोश था।
-1916 में बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट ने होम रूल आंदोलन शुरू किया, जिसमें ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर भारत के लिए स्वशासन की मांग की गई। इस आंदोलन की प्रेरणा सफल आयरिश होम रूल आंदोलन से मिली, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर आयरलैंड के लिए स्वशासन सुनिश्चित किया था।
-होम रूल आंदोलन ने भारत के लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल की। यह राष्ट्रीय एकता को एक पहचान दिलाने में कामयाब रहा। इसने कांग्रेस के भीतर भी एक प्रमुख भूमिका निभाई। इस आंदोलन के बाद, यह स्व-शासन पर और भी अधिक कट्टरपंथी हो गया।
-1919 के रौलेट एक्ट ने ब्रिटिश सरकार को असहमति को कुचलने की पूरी शक्ति प्रदान कर दी। अब आंदोलन को झटका लगा। फिर भी, इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक आधार स्थापित किया था।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में होम रूल आंदोलन का महत्वपूर्ण योगदान:
होमरूल आंदोलन का विकास
होमरूल आंदोलन, जो 1916 में शुरू हुआ, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था। इसे लोकमान्य तिलक ने प्रोत्साहित किया, जो ब्रिटिश शासन से अधिक स्वायत्तता की मांग कर रहे थे। इस आंदोलन का उद्देश्य भारतीयों को आत्म-शासन का अधिकार दिलाना था।
प्रमुख घटनाएँ
योगदान
वर्तमान संदर्भ
हाल ही में, 2022 में, तिलक के योगदान को याद करते हुए भारत ने उनके सिद्धांतों के आधार पर स्वराज की भावना को फिर से जागृत किया। आज का भारत तिलक के विचारों को आत्म-निर्भरता और स्वराज के रूप में देखता है।
मॉडल उत्तर
भारत में होमरूल आंदोलन के विकास और इसके योगदानों का विवरण
होमरूल आंदोलन का विकास
होमरूल आंदोलन का आगाज अखिल भारतीय होमरूल लीग द्वारा आयरिश होमरूल लीग की तर्ज पर किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर एक डोमिनियन का दर्जा प्राप्त करना था। यह आंदोलन 1915 में एनी बेसेंट द्वारा आरंभ किया गया, जिन्होंने युद्ध के बाद भारत के लिए स्वशासन की मांग की। 1916 में लोकमान्य तिलक ने भी अपनी होमरूल लीग की स्थापना की, जिसमें विभिन्न राज्यों में शाखाएं थीं। इसी वर्ष एनी बेसेंट ने लंदन में अपनी होमरूल लीग का गठन किया।
यह आंदोलन कई प्रमुख लोगों जैसे मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू और लाला लाजपत राय को शामिल करके मजबूत हुआ। हालांकि, 1919 तक आंदोलन में गिरावट आ गई, मुख्यतः सांप्रदायिक दंगों और अन्य कारकों के चलते। (स्रोत: ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ – विभिन्न इतिहासकारों के लेख)
होमरूल आंदोलन के योगदान
होमरूल आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। इसने शिक्षित वर्ग से लेकर आम जन तक ज्यादा व्यापकता प्रदान की। इसके माध्यम से देश और शहरों के बीच एक संगठनात्मक संपर्क स्थापित हुआ। इस आंदोलन ने जुझारू राष्ट्रवादियों की नई पीढ़ी का निर्माण किया और आम जनता को गांधीवादी आदर्शों की राजनीति के प्रति जागरूक किया।
मटिग्यू की घोषणा और मोंटफोर्ड सुधार भी इस आंदोलन से प्रभावित थे। लखनऊ अधिवेशन में तिलक और एनी बेसेंट के प्रयासों ने कांग्रेस को पुनर्जीवित किया और होमरूल लीग को कांग्रेस का अंग मान्यता दिलाने के लिए एक ठोस प्रयास किया।
इस प्रकार, होमरूल आंदोलन ने आने वाले वर्षों में स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। (स्रोत: ‘भारतीय राजनीति का इतिहास’ – जाने-माने इतिहासकारों द्वारा)।