साहित्य की समृद्धि के लिए किन-किन विषयों के और कैसे-कैसे ग्रन्थों की आवश्यकता है, यह निवेदन करने की शक्ति मुझमें नहीं। जिस भाषा के साहित्य में, जिधर देखिए उधर ही अभाव ही अभाव देख पड़ता है, उसकी उन्नति के निमित्त यह कहने के लिए जगह ही कहाँ कि यह लिखिए; बह लिखिए या पहले यहू लिखिए। जो जिस विषय का ज्ञाता है अथवा जो विषय जिसे अधिक मनोरंजक जान पड़ता है उसे उसी विषय की ग्रन्थ-रचना करनी चाहिए। साहित्य की जितनी शाखाएँ हैं- ज्ञानार्जन के जितने साधन है सभी को अपनी भाषा में सुलभ कर देने की चेष्टा करनी चाहिए। साहित्य की दो एक बहुत ही महत्त्वत्मयी शाखाओं को अस्तित्व में लाने के लिए ग्रन्थ-प्रणयन के विषय में, पहले भी कहा जा चुका है। अपनी ही भाषा के साहित्य से जनता की यथेष्ट ज्ञानोन्नति हो सकती है। विदेशी भाषाओं के साहित्य से यह बात कदापि संभव नहीं। हमारा इतिहास, हमारा विकास, हमारी सभ्यता बिलकुल ही भिन्न प्रकार की है। विदेशी साहित्य के उन्मुक्त द्वार से आयी हुई सभ्यता हमारी सभ्यता को निरन्तर ही बाधा पहुँचाती रहेगी। फल यह होगा कि हम अपने गौरव और आत्म-भाव को भूल जाएँगे। इससे हमारी जातीयता ही नष्ट हो जाएगी। और, जो देश अपना इतिहास और जातीयता खो देता है उसके पास फिर रह ही क्या जाता है? अतएव हमारा परम धर्म है कि हम अपने ही साहित्य की सृष्टि और उन्नति करें। एतदर्थ हमें चाहिए कि हम, हिन्दी के साहित्य- कोश में अपने पूर्व-पुरुषों के द्वारा अर्जित ज्ञान का भी संचय करें और बिदेशी भाषाओं के साहित्य में भी जो ज्ञान हमारे मतलब का हो उसे भी लाकर उसमें भर दें। विदेशी ज्ञान अरबी, फ़ारसी, अँगरेजी, फ्रेन्च, जर्मनी, चीनी, जापानी आदि किसी भी भाषा में क्यों न पाया जाता हो, हमें निःसंकोच उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। हमारी सभ्यता पर सिक्खों, पारसियों, मुसलमानों, अंगरेजों, चीनियों और जापानियों तक की सभ्यता का प्रभाव पड़ा है। जैनों और बौद्धों की सभ्यता का तो कुछ कहनी ही नहीं। अतएब इन जातियों और धर्मानुयायियों के साहित्यों से भी उपादेय अंश ग्रहण करके हमें अपने साहित्य की पूर्ति करना चाहिए।
(i) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) उपर्युक्त गद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
(iii) उपर्युक्त गद्यांश के रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।
[उत्तर सीमा: 250 शब्द] [UKPSC 2023]
(i) शीर्षक: “भारतीय साहित्य की आवश्यकता और महत्व”
(ii) भावार्थ: गद्यांश में लेखक ने भारतीय साहित्य की समृद्धि के लिए आवश्यक विषयों और ग्रंथों की कमी पर चिंता व्यक्त की है। वह यह बताते हैं कि जिस भाषा में साहित्य का अभाव है, उसकी उन्नति के लिए आवश्यक विषयों की रचना करनी चाहिए। लेखक का मानना है कि केवल अपनी भाषा में साहित्यिक रचनाएँ ही लोगों को ज्ञान की ऊँचाई तक पहुँचा सकती हैं। विदेशी साहित्य हमारी अपनी संस्कृति और जातीयता को बाधित कर सकता है। इसलिए, हमें अपने पूर्वजों से अर्जित ज्ञान को संग्रहित करते हुए, अन्य भाषाओं से भी उपयोगी ज्ञान ग्रहण करना चाहिए।
(iii) व्याख्या: रेखांकित अंशों में लेखक ने इस बात पर जोर दिया है कि भारतीय साहित्य के विकास के लिए सिर्फ अपने अनुभवों और ज्ञान का संकलन करना जरूरी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि विदेशी सभ्यताओं का प्रभाव हमारी आत्मा और जातीयता को कमजोर कर सकता है। यदि हम अपने इतिहास और सांस्कृतिक पहचान को खो देते हैं, तो हम अपनी पहचान ही खो देंगे। इसलिए, यह आवश्यक है कि हम अपने साहित्य का सृजन करें और इसमें अन्य भाषाओं के ज्ञान का समावेश करें। लेखक ने विभिन्न जातियों और धर्मों के साहित्य से लाभ उठाने की बात की, जिससे हमारे साहित्य की पूर्ति हो सके। इस प्रकार, साहित्य के माध्यम से ज्ञान का सृजन और समृद्धि संभव है।