उत्तर लिखने के लिए रोडमैप
1. प्रस्तावना (Introduction):
- वर्तमान भू-राजनीतिक संदर्भ की संक्षिप्त जानकारी दें।
- ‘न्यू ओरिएंटेशन फॉर अ रिफॉर्मड मल्टीलेटरल सिस्टम (NORMS)’ का एक संक्षिप्त परिचय और इसके उद्देश्यों का उल्लेख करें।
2. भू-राजनीतिक वास्तविकताएँ (Current Geopolitical Realities):
- वर्तमान वैश्विक स्थिति, जैसे कि अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा, रूस-यूक्रेन युद्ध, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक स्वास्थ्य संकट।
- पारंपरिक बहुपरकारी संस्थाओं की सीमाएँ और परिवर्तन की आवश्यकता।
3. NORMS का सिद्धांत (Concept of NORMS):
- NORMS क्या है? इसके प्रमुख उद्देश्यों और तर्कों का विवरण दें।
- भारत ने इस पहल का नेतृत्व क्यों किया, इसके पीछे के कारणों का विश्लेषण करें।
4. भारत के प्रयास और योगदान (India’s Efforts and Contributions):
- भारत ने वैश्विक मंचों पर NORMS को बढ़ावा देने के लिए क्या कदम उठाए हैं (जैसे G20, BRICS, SCO)।
- विभिन्न राष्ट्रों के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी और सहयोग।
5. चुनौतियाँ और संभावनाएँ (Challenges and Opportunities):
- NORMS के कार्यान्वयन में आने वाली संभावित चुनौतियाँ।
- भारत की भूमिका और नेतृत्व की संभावनाएँ।
6. निष्कर्ष (Conclusion):
- NORMS की आवश्यकता और इसके भविष्य की संभावनाओं का संक्षेप में विश्लेषण करें।
- भारत की भू-राजनीतिक स्थिति और वैश्विक शांति में योगदान पर जोर दें।
महत्वपूर्ण तथ्यों का संग्रहण
- अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का विकास:
- भारत को वैश्विक मानक बनाना, जहां वे विभिन्न देशों के साथ संबंध स्थापित कर सकें। (स्रोत: Ministry of External Affairs, Government of India)
- G20 और BRICS का महत्व:
- भारत ने G20 सम्मेलन का सफलतापूर्वक आयोजन किया है, जिसका उद्देश्य एक समृद्ध और समाकालिक बहुपरकारी प्रणाली का निर्माण करना था। (स्रोत: G20 Summit Reports)
- चीन-भारत समीकरण:
- अमेरिका-चीन प्रतिस्पर्धा के कारण भारत को एक स्थायी शक्ति के रूप में उभरने के लिए प्रेरित किया गया है। इसकी पुष्टि राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतियों द्वारा होती है। (स्रोत: Journal of International Affairs)
- जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ:
- जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कई महत्वपूर्ण पहलों की ओर ध्यान दिलाया है, जैसे कि पेरिस समझौता। (स्रोत: United Nations Framework Convention on Climate Change)
- वैश्विक स्वास्थ्य संकट:
- COVID-19 महामारी के निवास से वैश्विक स्वास्थ्य तंत्र में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया गया है, जिसे NORMS के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है। (स्रोत: World Health Organization)
- भविष्य की संभावनाएँ:
- अनुसंधान एवं विकास में भारत की वृद्धि और इसके वैश्विक स्तर पर प्रभाव का विवरण। (स्रोत: World Economic Forum)
उत्तर लिखने का तरीका
- तर्कों को स्पष्ट और तार्किक तरीके से प्रस्तुत करें।
- तथ्यों और आंकड़ों का संदर्भ दें ताकि उत्तर संगठित और समर्थित हो।
- मानवीय शैली में भाषा का उपयोग करें, जिससे उत्तर प्रभावी और आकर्षक हो।
यह रोडमैप और तथ्यों का संग्रहण आपको ‘न्यू ओरिएंटेशन फॉर अ रिफॉर्मड मल्टीलेटरल सिस्टम (NORMS)’ पर प्रभावी और सूचनात्मक उत्तर लिखने में मदद करेगा।
भारत का ‘न्यू ओरिएंटेशन फॉर अ रिफॉर्मड मल्टीलेटरल सिस्टम (NORMS)’ पहल वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण कदम है। वर्तमान में, विश्व असमानता, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य संकट जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस संदर्भ में, भारत का प्रयास बहुपरकारी संस्थाओं को फिर से परिभाषित करने और सुधारने के लिए है ताकि वे अधिक प्रभावी और समावेशी बन सकें।
भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति और क्षेत्रीय नेतृत्व की आकांक्षा इसे इस दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती है। NORMS का उद्देश्य वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रिया में सभी देशों की भागीदारी को बढ़ाना है, खासकर विकासशील देशों के लिए। यह पहल न केवल भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को मजबूत करती है, बल्कि यह एक नई वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। भारत की यह कोशिश बहुपरकारी संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक ठोस आधार तैयार कर रही है, जिससे सभी देशों को समान अवसर और अधिकार मिल सकें।
भारत का ‘न्यू ओरिएंटेशन फॉर अ रिफॉर्मड मल्टीलेटरल सिस्टम (NORMS)’ पहल वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण कदम है। वर्तमान में, विश्व असमानता, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य संकट जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस संदर्भ में, भारत का प्रयास बहुपरकारी संस्थाओं को फिर से परिभाषित करने और सुधारने के लिए है ताकि वे अधिक प्रभावी और समावेशी बन सकें।
भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति और क्षेत्रीय नेतृत्व की आकांक्षा इसे इस दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती है। NORMS का उद्देश्य वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रिया में सभी देशों की भागीदारी को बढ़ाना है, खासकर विकासशील देशों के लिए। यह पहल न केवल भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को मजबूत करती है, बल्कि यह एक नई वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। भारत की यह कोशिश बहुपरकारी संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक ठोस आधार तैयार कर रही है, जिससे सभी देशों को समान अवसर और अधिकार मिल सकें।
भारत का ‘न्यू ओरिएंटेशन फॉर अ रिफॉर्मड मल्टीलेटरल सिस्टम (NORMS)’ पहल वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण कदम है। वर्तमान में, विश्व असमानता, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य संकट जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस संदर्भ में, भारत का प्रयास बहुपरकारी संस्थाओं को फिर से परिभाषित करने और सुधारने के लिए है ताकि वे अधिक प्रभावी और समावेशी बन सकें।
भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति और क्षेत्रीय नेतृत्व की आकांक्षा इसे इस दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करती है। NORMS का उद्देश्य वैश्विक निर्णय लेने की प्रक्रिया में सभी देशों की भागीदारी को बढ़ाना है, खासकर विकासशील देशों के लिए। यह पहल न केवल भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को मजबूत करती है, बल्कि यह एक नई वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। भारत की यह कोशिश बहुपरकारी संवाद और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक ठोस आधार तैयार कर रही है, जिससे सभी देशों को समान अवसर और अधिकार मिल सकें।
परिचय
बहुपक्षवाद वह दृष्टिकोण है जिसके माध्यम से देश संयुक्त राष्ट्र, डब्ल्यूएचओ और आईएमएफ जैसी संस्थाओं के माध्यम से वैश्विक मुद्दों से निपटते हैं। हालाँकि, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जिन संस्थानों का निर्माण किया गया था, वे अब भू-राजनीतिक क्रम में समकालीन वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। भारत का “सुधारित बहुपक्षीय प्रणाली के लिए नया अभिविन्यास” या NORMS बहुपक्षवाद को अधिक समावेशी, प्रतिनिधि और प्रभावी बनाकर बदलने का प्रयास करता है।
पृष्ठभूमि
परंपरागत रूप से, बहुपक्षीय संस्थान शांति, स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिरता का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन उन पर कुछ शक्तिशाली देशों का प्रभुत्व है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत जैसी उभरती शक्तियों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। उनके पांच स्थायी सदस्यों को अभी भी निर्णय लेने पर वीटो का अधिकार प्राप्त है जिसके परिणामस्वरूप कई गतिरोध पैदा होते हैं।
मानदंडों का तर्क
भारत का तर्क है कि यूएनएससी और ऐसे अन्य संस्थान पहले के द्विध्रुवीय विश्व से अधिक कुछ नहीं दर्शाते हैं जिसमें ग्लोबल साउथ ने विश्व मामलों में बहुत कम या कोई भूमिका नहीं निभाई थी। COVID-19 महामारी में, ग्लोबल साउथ के कई देशों को गैर-पारंपरिक स्रोतों से टीके प्राप्त हुए। प्रभाव विविध होना चाहिए, और आईएमएफ जैसी संस्थाओं को बाकी दुनिया की तुलना में विकसित अर्थव्यवस्थाओं का अधिक समर्थन नहीं करना चाहिए। ऐसे संस्थानों में विकसित अर्थव्यवस्थाओं का प्रभाव बहुत अधिक होता है। इसके अलावा, पारदर्शिता और भू-राजनीति जैसे मुद्दे डब्ल्यूटीओ जैसी संस्थाओं को कम प्रभावी बनाते हैं।
बहुपक्षवाद में सुधार
जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानता या स्वास्थ्य संकट जैसे मुद्दों का निष्पक्ष सहयोग से सामना करने के लिए बहुपक्षीय प्रणाली में निश्चित रूप से सुधार करना होगा। मानदंड पारदर्शिता, निर्णय लेने से पहले समानता और विकासशील देशों की प्रभावी भागीदारी का आह्वान करते हैं |
निष्कर्ष
बहुपक्षीय प्रणाली में सुधार के लिए भारत की नई दिशा-एनओआरएमएस प्रस्ताव को एक नई, व्यापक समावेशी आधुनिक बहुपक्षीय प्रणाली पेश करनी होगी जो आज मौजूद दुनिया से बेहतर हो और पहले से कहीं अधिक आपस में जुड़ी हुई आज की दुनिया की वैश्विक चुनौतियों का जवाब देने में सक्षम हो।
मॉडल उत्तर
भारत का NORMS प्रस्ताव: एक नई दिशा की ओर
भारत ने बहुपक्षीय संस्थानों के सुधार के लिए ‘न्यू ओरिएंटेशन फॉर अ रिफॉर्मड मल्टीलेटरल सिस्टम (NORMS)’ का प्रस्ताव दिया है। यह प्रस्ताव शांति और सुरक्षा, विकास, और मानवाधिकार जैसे तीन मुख्य स्तंभों पर आधारित है, जिसमें संयुक्त राष्ट्र को केंद्रीय भूमिका दी गई है।
1. समावेशिता और प्रतिनिधित्व का अभाव
UNSC की स्थापना के बाद से इसका ढांचा लगभग अपरिवर्तित रहा है, जिससे लैटिन अमेरिका, अफ्रीका, एशिया, और छोटे द्वीपीय देशों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं हो पा रहा है (स्रोत: UN महासभा रिपोर्ट)।
2. वीटो शक्ति का दुरुपयोग
वीटो शक्ति का उपयोग अक्सर महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय लेने में अड़चन डालता है। अधिकांश समय यह शक्ति कुछ देशों द्वारा अपने स्वार्थों के लिए इस्तेमाल की जाती है (स्रोत: अटलांटिक काउंसिल)।
3. परिवर्तित वैश्विक व्यवस्थाएं
COVID-19 महामारी के दौरान, विकासशील देशों ने पहली बार टीके अपने पारंपरिक स्रोतों से परे से प्राप्त किए। यह दिखाता है कि वैश्विक उत्पादन कितना विविध हो गया है, जिसे पुरानी व्यवस्था में समाहित नहीं किया जा सका (स्रोत: WHO)।
4. पश्चिमी देशों का प्रभुत्व
अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं, जैसे IMF, अक्सर पश्चिमी हितों को प्राथमिकता देती हैं। IMF की ऋण शर्तें विकासशील देशों के लिए अनुकूल नहीं होती हैं, जैसे कि व्यापार उदारीकरण पर जोर (स्रोत: IMF रिपोर्ट)।
5. प्रक्रियागत समस्याएं
WHO ने COVID-19 के उत्पत्ति की जांच में पारदर्शिता की कमी के लिए आलोचना का सामना किया, जो निर्णायक प्रक्रियाओं पर प्रश्न उठाती है (स्रोत: WHO बयान)।
6. वित्तपोषण में अंतर
हालांकि विकास सहायता में वृद्धि हुई है, फिर भी यह विकासशील देशों की आवश्यकताओं को पूरा करने में अपर्याप्त है (स्रोत: यूएनडीपी रिपोर्ट)।
निष्कर्ष
वर्तमान वैश्विक संकट का सामना करने के लिए, NORMS का प्रस्ताव एक नवीन, समावेशी, और प्रभावी बहुपक्षीय प्रणाली की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करता है। यह वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए एक उचित और व्यावहारिक मंच प्रदान करेगा, जिससे स्थायी शांति और विकास को सुनिश्चित किया जा सके।
परिचय
बहुपक्षवाद वह दृष्टिकोण है जिसके माध्यम से देश संयुक्त राष्ट्र, डब्ल्यूएचओ और आईएमएफ जैसी संस्थाओं के माध्यम से वैश्विक मुद्दों से निपटते हैं। हालाँकि, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जिन संस्थानों का निर्माण किया गया था, वे अब भू-राजनीतिक क्रम में समकालीन वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। भारत का “सुधारित बहुपक्षीय प्रणाली के लिए नया अभिविन्यास” या NORMS बहुपक्षवाद को अधिक समावेशी, प्रतिनिधि और प्रभावी बनाकर बदलने का प्रयास करता है।
पृष्ठभूमि
परंपरागत रूप से, बहुपक्षीय संस्थान शांति, स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिरता का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन उन पर कुछ शक्तिशाली देशों का प्रभुत्व है। उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत जैसी उभरती शक्तियों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। उनके पांच स्थायी सदस्यों को अभी भी निर्णय लेने पर वीटो का अधिकार प्राप्त है जिसके परिणामस्वरूप कई गतिरोध पैदा होते हैं।
मानदंडों का तर्क
भारत का तर्क है कि यूएनएससी और ऐसे अन्य संस्थान पहले के द्विध्रुवीय विश्व से अधिक कुछ नहीं दर्शाते हैं जिसमें ग्लोबल साउथ ने विश्व मामलों में बहुत कम या कोई भूमिका नहीं निभाई थी। COVID-19 महामारी में, ग्लोबल साउथ के कई देशों को गैर-पारंपरिक स्रोतों से टीके प्राप्त हुए। प्रभाव विविध होना चाहिए, और आईएमएफ जैसी संस्थाओं को बाकी दुनिया की तुलना में विकसित अर्थव्यवस्थाओं का अधिक समर्थन नहीं करना चाहिए। ऐसे संस्थानों में विकसित अर्थव्यवस्थाओं का प्रभाव बहुत अधिक होता है। इसके अलावा, पारदर्शिता और भू-राजनीति जैसे मुद्दे डब्ल्यूटीओ जैसी संस्थाओं को कम प्रभावी बनाते हैं।
बहुपक्षवाद में सुधार
जलवायु परिवर्तन, आर्थिक असमानता या स्वास्थ्य संकट जैसे मुद्दों का निष्पक्ष सहयोग से सामना करने के लिए बहुपक्षीय प्रणाली में निश्चित रूप से सुधार करना होगा। मानदंड पारदर्शिता, निर्णय लेने से पहले समानता और विकासशील देशों की प्रभावी भागीदारी का आह्वान करते हैं