सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों में क्या भेद हैं? उत्तराखण्ड राज्य में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों की वर्तमान स्थिति एवं समस्याओं को समझाइये । [उत्तर सीमा: 250 शब्द] [UKPSC 2023]
Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link and will create a new password via email.
Please briefly explain why you feel this question should be reported.
Please briefly explain why you feel this answer should be reported.
Please briefly explain why you feel this user should be reported.
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (MSMEs) को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है:
1. सूक्ष्म उद्योग: यह वे उद्योग होते हैं जिनमें निवेश की सीमा ₹1 करोड़ से कम होती है और श्रमिकों की संख्या 10 तक होती है। ये मुख्यतः सेवा क्षेत्र में कार्यरत होते हैं।
2. लघु उद्योग: इसमें निवेश की सीमा ₹1 करोड़ से ₹10 करोड़ के बीच होती है और श्रमिकों की संख्या 10 से 50 तक होती है। ये उत्पादन और सेवा दोनों क्षेत्रों में हो सकते हैं।
3. मध्यम उद्योग: इस श्रेणी में निवेश की सीमा ₹10 करोड़ से ₹50 करोड़ के बीच होती है और श्रमिकों की संख्या 50 से 250 तक होती है। ये अधिकतर उत्पादन क्षेत्रों में कार्यरत होते हैं।
उत्तराखण्ड में MSMEs की वर्तमान स्थिति
उत्तराखण्ड में MSMEs की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है। राज्य में औद्योगिक नीतियों के तहत MSMEs को बढ़ावा दिया जा रहा है। यहाँ की प्राकृतिक संसाधनों और पर्यटन क्षेत्र ने भी उद्योगों के विकास में योगदान किया है।
समस्याएँ
हालाँकि, MSMEs को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है:
1. आर्थिक संसाधनों की कमी: MSMEs को वित्तीय सहायता प्राप्त करना कठिन होता है, जिससे उनकी विकास की क्षमता प्रभावित होती है।
2. बुनियादी ढाँचे की कमी: औद्योगिक क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे की कमी, जैसे सड़कें और परिवहन सुविधाएँ, MSMEs के लिए चुनौती बनती हैं।
3. कौशल की कमी: श्रमिकों के लिए उचित कौशल विकास कार्यक्रमों की कमी के कारण उत्पादन और उत्पादकता प्रभावित होती है।
इन समस्याओं का समाधान करने के लिए सरकार और अन्य संस्थानों को मिलकर कार्य करना आवश्यक है, ताकि MSMEs को मजबूती मिल सके और वे राज्य की आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।