वायु अपरदन से निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिय | [उत्तर सीमा: 250 शब्द] [UKPSC 2016]
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वायु अपरदन (Aeolian erosion) से निर्मित स्थलाकृतियाँ उन भू-आकृतियों को संदर्भित करती हैं, जो हवा द्वारा मिट्टी और चट्टानों के कणों के कटाव और संचय के परिणामस्वरूप बनती हैं। यह प्रक्रिया विशेषकर शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में देखी जाती है, जहाँ वायु की गति अधिक होती है।
### प्रमुख स्थलाकृतियाँ:
1. द्यूक (Dunes): ये बालू के ढेर होते हैं, जो हवा की दिशा में चलते हैं। द्यूक विभिन्न आकारों और प्रकारों में पाए जाते हैं, जैसे कि पाराबालु (Barchan) और स्टैबिलाइज्ड द्यूक।
2. सैंड ब्लॉस्टर (Sandblasted Features): जब तेज़ हवा से रेत के कणों का टकराव होता है, तो यह चट्टानों और भूमि की सतहों को घिसता है, जिससे विशेष आकृतियाँ बनती हैं।
3. पेन (Panes): ये क्षतिग्रस्त चट्टानों के सपाट हिस्से होते हैं, जो हवा के प्रभाव से उत्पन्न होते हैं।
4. गुल्ली (Gully): ये गहरी खाई होती हैं, जो वायु और वर्षा के प्रभाव से बनती हैं, विशेषकर मिट्टी के कटाव के कारण।
5. इफलियेशन (Deflation): यह प्रक्रिया तब होती है जब वायु मिट्टी के हल्के कणों को उड़ा ले जाती है, जिससे सतह पर गहरे गड्ढे या खड्डे बनते हैं।
इन स्थलाकृतियों का अध्ययन न केवल भूविज्ञान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि ये पर्यावरणीय परिवर्तन और जलवायु के प्रभावों को भी दर्शाते हैं। वायु अपरदन के माध्यम से बनने वाली ये आकृतियाँ पृथ्वी के भौगोलिक स्वरूप को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।