वेद भारतीय ज्ञान, चिंतन और मनन का आदि मानसरोवर है। उनमें ईश्वरीय चिंतन का अपौरुषेय रूप विद्यमान है. प्रकृति के नाना रूपों की अर्चना और बंदना है, मानवतावादी जीवन मूल्यों की व्याख्या है, समस्त प्राणी मात्र के अभ्युदय की ऋचाएँ हैं। वेद समर्पित है लोक कल्याण एवं लोक हित के लिये। वेद में सर्वमंगल, सर्वकल्याण, सर्व सुंदर, संपूर्ण शुचिता, सर्व योग-क्षेम की कामना अभिव्यक्त है। बेद की मान्यता है कि सभी में एक ही ईश्वर का दिव्य रूप है। सभी ईश्वर पुत्र हैं। सभी उसी की अमृत संतान हैं। भारत का सम्पूर्ण चिंतन इसी मानसरोवर से विविध स्रोतों और निर्झरों के रूप में फूटता है।
1. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिये।
2. गद्यांश का संक्षेपण कीजिये।
3. रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिये। [उत्तर सीमा: 125 शब्द] [UKPSC 2016]
1. गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक
“वेद: भारतीय ज्ञान और चिंतन का आधार”
2. गद्यांश का संक्षेपण
गद्यांश में वेदों को भारतीय ज्ञान, चिंतन और मनन का स्रोत बताया गया है। वेदों में ईश्वरीय चिंतन का अपौरुषेय रूप विद्यमान है, जिसमें प्रकृति की पूजा, मानवतावादी जीवन मूल्यों की व्याख्या और समस्त प्राणी के अभ्युदय की ऋचाएँ शामिल हैं। वेद लोक कल्याण और लोक हित के लिए समर्पित हैं। इसमें सर्वमंगल, सर्वकल्याण, और सर्व सुंदरता की कामना की गई है। वेद की मान्यता के अनुसार, सभी मनुष्य एक ही ईश्वर के पुत्र हैं और भारत का संपूर्ण चिंतन इसी वेद से उत्पन्न होता है।
3. रेखांकित अंश की व्याख्या
गद्यांश का यह अंश यह दर्शाता है कि वेदों में ईश्वर का दिव्य रूप सभी प्राणियों में विद्यमान है। “सभी ईश्वर पुत्र हैं” वाक्य का अर्थ है कि हर व्यक्ति में ईश्वर का अंश है, जो सभी के बीच एकता का संदेश देता है। यह विचार समाज में समानता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता है। वर्तमान में, जब विभाजन और संघर्ष का माहौल है, तब वेदों का यह संदेश अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। हमें इस विचार को अपनाकर, सभी के लिए प्रेम, समर्पण और सेवा की भावना विकसित करनी चाहिए। इस प्रकार, वेद हमें मानवता के प्रति उत्तरदायित्व का अनुभव कराते हैं, जो कि समाज के समग्र विकास के लिए आवश्यक है।