लोक-प्रशासन में नीतिशास्त्र की भूमिका की विवेचना कीजिये। [उत्तर सीमा: 250 शब्द] [UKPSC 2012]
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लोक-प्रशासन में नीतिशास्त्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह शासन और प्रशासन के नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों को निर्धारित करता है। नीतिशास्त्र लोक-प्रशासन के निर्णय लेने, नीति निर्माण और कार्यान्वयन में मार्गदर्शन प्रदान करता है।
1. नैतिकता का महत्व:
लोक-प्रशासन में नीतिशास्त्र नैतिकता के मानकों को स्थापित करता है, जिससे प्रशासकों को सही और गलत के बीच भेद करने में मदद मिलती है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी नीतियाँ और कार्य समाज के कल्याण के लिए हों।
2. जिम्मेदारी और पारदर्शिता:
नीतिशास्त्र प्रशासनिक कार्यों में जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। यह नागरिकों को यह अधिकार देता है कि वे प्रशासनिक कार्यों की निगरानी करें और प्रशासकों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराएँ।
3. नीति निर्माण:
नीतिशास्त्र नीति निर्माण की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान देता है। यह सुनिश्चित करता है कि नीतियाँ न केवल तकनीकी दृष्टि से प्रभावी हों, बल्कि नैतिक और सामाजिक दृष्टि से भी उचित हों।
4. सामाजिक न्याय:
लोक-प्रशासन में नीतिशास्त्र का एक मुख्य उद्देश्य सामाजिक न्याय की प्राप्ति है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को समान अवसर मिले और उनके अधिकारों का संरक्षण किया जाए।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, लोक-प्रशासन में नीतिशास्त्र की भूमिका न केवल नैतिक और ethical governance को सुनिश्चित करती है, बल्कि नागरिकों के विश्वास और सहभागिता को भी बढ़ावा देती है। इससे समाज में सामंजस्य और स्थिरता बनी रहती है।